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#11 |
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![]() मत बदलो वर्षों तक मैं मानसिक रोगी रहा - चिंताग्रस्त, अवसादग्रस्त और स्वार्थी। हर कोई मुझे अपना स्वभाव बदलने को कहता । मैं उन्हें नाराज करता, पर उनसे सहमत भी था। मैं अपने आपको बदलना चाहता था लेकिन अपने तमाम प्रयासों के बावजूद मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाया। मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती थी जब दूसरों की तरह मेरे सबसे नजदीकी मित्र भी मुझसे बदलने को कहते। मैं ऊर्जारहित और बंधा-बंधा सा महसूस करता । एक दिन उसने कहा - "अपने आप को मत बदलो। तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो।" ये शब्द मेरे कानों को मधुर संगीत की तरह लगे - "मत बदलो, मत बदलो, मत बदलो ............. तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो।" मैंने राहत महसूस की। मैं जीवंत हो उठा और अचानक मैंने पाया कि मैं बदल गया हूँ। अब मैं समझ गया हूँ कि वास्तव में, मैं तब तक नहीं बदला था जब तक कि मैंने ऐसे व्यक्ति को नहीं खोज लिया जो मुझसे हर हाल में प्रेम करता हो। |
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#12 |
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![]() राजा से तो बेहतर वृक्ष है एक लड़का आम के वृक्ष पर पत्थर मारकर आम तोड़ने का प्रयास कर रहा था। गलती से एक पत्थर अपने लक्ष्य से भटककर वहां से गुजर रहे राजा को लगा। राजा के सैनिकों ने दौड़कर उस लड़के को पकड़ लिया और उसे राजा के समक्ष प्रस्तुत किया । राजा ने कहा -"इसके लिए तुम सजा के भागीदार हो। ............ताकि फिर कभी कोई राजा के ऊपर पत्थर फेंकने की हिम्मत न करे, अन्यथा ऐसे तो शासन चलाना मुश्किल हो जाएगा।" लड़के ने विनयपूर्वक उत्तर दिया - "हे वीर एवं न्यायप्रिय राजन, जब मैंने आम के वृक्ष पर पत्थर मारा तो मुझे उपहार स्वरूप मीठे रसीले फल खाने को मिले और जब आपको पत्थर लगा तो आप मुझे दंड दे रहे हैं....आप से भला तो वृक्ष है।" राजा का सिर शर्म से झुक गया। |
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#13 |
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कोट के भीतर डायनामाइट
मुल्ला नसरुद्दीन खुशी-खुशी कुछ बुदबुदा रहा था। उसके मित्र ने इस खुशी का राज पूछा। मुल्ला नसरुद्दीन बोला - "वो बेवकूफ अहमद जब भी मुझसे मिलता है, मेरी पीठ पर हाथ मारता है। आज मैंने अपने कोट के भीतर डायनामाइट की छड़ छुपा ली है। इस बार जब वो मेरी पीठ पर हाथ मारेगा तो उसका हाथ ही उड़ जाएगा।" "भले ही मुझे हानि पहुंचे, मैं उसे क्षति पहुंचाकर बदला लूंगा।" |
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#14 |
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![]() मृगतृष्णा
जब महात्मा बुद्ध ने राजा प्रसेनजित की राजधानी में प्रवेश किया तो वे स्वयं उनकी आगवानी के लिए आये। वे महात्मा बुद्ध के पिता के मित्र थे एवं उन्होंने बुद्ध के संन्यास लेने के बारे में सुना था। अतः उन्होंने बुद्ध को अपना भिक्षुक जीवन त्यागकर महल के ऐशोआराम के जीवन में लौटने के लिए मनाने का प्रयास किया। वे ऐसा अपनी मित्रता की खातिर कर रहे थे। बुद्ध ने प्रसेनजित की आँखों में देखा और कहा, "सच बताओ। क्या समस्त आमोद-प्रमोद के बावजूद आपके साम्राज्य ने आपको एक भी दिन का सुख प्रदान किया है?" प्रसेनजित चुप हो गए और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं। "दुःख के किसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नहीं है; और अपने में संतुष्ट रहने से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है।" |
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#15 |
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![]() नदी का पानी बिकाऊ गुरू जी के प्रवचन में एक गूढ़ वाक्य शामिल था। कटु मुस्कराहट के साथ वे बोले, "नदी के तट पर बैठकर नदी का पानी बेचना ही मेरा कार्य है"। और मैं पानी खरीदने में इतना व्यस्त था कि मैं नदी को देख ही नहीं पाया। "हम जीवन की समस्याओं और आपाधापी के कारण प्रायः सत्य को नहीं पहचान पाते।"
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#16 |
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![]() प्रार्थना वे प्रतिवर्ष पिकनिक पर सपरिवार जोशोखरोश से जाते थे और अपनी धर्मपरायण चाची को बुलाना नहीं भूलते थे. मगर इस वर्ष वे हड़बड़ी में भूल गए. आखिरी मिनटों में किसी ने याद दिलाया. चाची को जब निमंत्रण भेजा गया तो उन्होंने कहा – “अब तो बहुत देर हो चुकी. मैंने तो आँधी-तूफ़ान और बरसात के लिए प्रार्थना भी कर ली है.”
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#17 |
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![]() बुद्धिमानी मुल्ला नसरूद्दीन शादी की दावत में निमंत्रित थे. पिछली दफ़ा जब वे ऐसे ही समारोह में निमंत्रित थे तो किसी ने उनका जूता चुरा लिया था. इसलिए इस बार मुल्ला ने जूता दरवाजे पर छोड़ने के बजाए अपनी कोट की जेब में ठूंस लिए. “आपकी जेब में रखी किताब कौन सी है” – मेजबान ने मुल्ला से पूछा. “लगता है यह मेरे जूतों के पीछे पड़ा है” मुल्ला ने सोचा और कहा – “वैसे तो लोग मेरी बुद्धिमानी का लोहा मानते हैं.” और फिर चिल्लाया – “मेरी जेब में रखी इस भारी भरकम चीज का मुख्य विषय भी यही है - बुद्धिमानी.” “अरे वाह!, आपने इसे कहाँ से खरीदा – ‘बुक-वार्म’ से या ‘क्रॉसवर्ड’ से?” “मोची से” |
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#18 |
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और बाकी कहानिया, आप लोगो की प्रतिक्रियाओं के बाद।
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#20 |
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बहुत ही अच्छी कहानिया हैं।
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