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Old 07-11-2011, 10:59 AM   #11
Sikandar_Khan
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तपते रेगिस्तान में बच्चे को प्यास लगी। मां अपने लाडले के लिए पानी तलाशती फिरी, मगर पानी तो क्या पेड़ की छाया तक न थी उस बीहड़ रेगिस्तान में। बच्चा प्यास से तड़पकर मरने को हुआ। वह एडियां रगड़ने लगा और और खुदा के हुक्म से फौरन चश्मा (तालाब) जारी हो गया ।और आज भी जिसे हम सब "आबे जम जम"कहते हैं पानी का फौव्वारा हजरत इस्माइल के पांव के पास फूटा और रेगिस्तान में यह करामत हुई। उधर, मां सोच रही थी कि शायद इस्माइल की मौत हो चुकी होगी। मगर ऐसा नहीं था। वह जीवित रहे। अब इस घटना के बाद जब यह पता चला कि बेटे का गला पिता द्वारा खुदा के लिए काटा जाएगा, तो हाजरा ने कोई हावभाव प्रकट नहीं किए। वह ऐसी बन गईं मानों मां नहीं, वह पत्थर की कोई देवी हो क्योँकि वो जनती थी की उनका खुदा ही उनके लिए सब कुछ है |
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Last edited by Sikandar_Khan; 07-11-2011 at 12:01 PM. Reason: बदलाव
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Old 07-11-2011, 11:07 AM   #12
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Default Re: "ईद-उल-जुहा"

जब हजरत इब्राहीम इस्माइल को कुर्बानी की जगह ले जा रहे थे तो इबलीस (शैतान) ने उनको बहकाया कि क्यों अपने जिगर के टुकड़े को जिब्ह करने पर तुले हो, मगर वह न भटके और उसे पत्थर मारकर भगा दिया था |जिसे आज भी हज के दौरान शैतान का प्रतीक एक जगह पर पत्थर मारकर हजरत इब्राहिम कि सुन्नत को पूरा किया जाता है | हां, छुरी फेरने से पहले नीचे लेटे बेटे ने पिता की आंखों पर रूमाल बंधवा दिया कि कहीं ममता आड़े न आ जाए और हाथ डगमगा न जाएं। पिता ने छुरी चलाई और आंखों पर से पट्टी उतारी तो हैरान हो गए कि बेटा तो उछलकूद कर रहा है और उसकी जगह एक भेड़ की बलि खुदा की ओर से कर दी गई है। यह देखकर हजरत इब्राहीम की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने खुदा का बहुत शुक्रिया अदा किया। यह खुदा की ओर से इब्राहीम की एक और अग्निपरीक्षा थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि जलिहिज्ज के इस महीने में अपने हलाल के कमाए हुवे पैसों से जानवर खरीदकर या फिर घर में पाल कर जानवर की कुर्बानी दी जाती है|
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Old 07-11-2011, 11:10 AM   #13
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Default Re: "ईद-उल-जुहा"

‘‘उस इंसान पर कुर्बानी वाजिब है, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या ५२ तोला चांदी या इसकी कीमत की कोई संपत्ति है. अगर किसी इंसान के पास इतनी कूवत नहीं है तो उस पर कुर्बानी वाजिब नहीं है.’’
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