07-11-2011, 10:59 AM | #11 |
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Re: "ईद-उल-जुहा"
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Last edited by Sikandar_Khan; 07-11-2011 at 12:01 PM. Reason: बदलाव |
07-11-2011, 11:07 AM | #12 |
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Re: "ईद-उल-जुहा"
जब हजरत इब्राहीम इस्माइल को कुर्बानी की जगह ले जा रहे थे तो इबलीस (शैतान) ने उनको बहकाया कि क्यों अपने जिगर के टुकड़े को जिब्ह करने पर तुले हो, मगर वह न भटके और उसे पत्थर मारकर भगा दिया था |जिसे आज भी हज के दौरान शैतान का प्रतीक एक जगह पर पत्थर मारकर हजरत इब्राहिम कि सुन्नत को पूरा किया जाता है | हां, छुरी फेरने से पहले नीचे लेटे बेटे ने पिता की आंखों पर रूमाल बंधवा दिया कि कहीं ममता आड़े न आ जाए और हाथ डगमगा न जाएं। पिता ने छुरी चलाई और आंखों पर से पट्टी उतारी तो हैरान हो गए कि बेटा तो उछलकूद कर रहा है और उसकी जगह एक भेड़ की बलि खुदा की ओर से कर दी गई है। यह देखकर हजरत इब्राहीम की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने खुदा का बहुत शुक्रिया अदा किया। यह खुदा की ओर से इब्राहीम की एक और अग्निपरीक्षा थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि जलिहिज्ज के इस महीने में अपने हलाल के कमाए हुवे पैसों से जानवर खरीदकर या फिर घर में पाल कर जानवर की कुर्बानी दी जाती है|
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07-11-2011, 11:10 AM | #13 |
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Re: "ईद-उल-जुहा"
‘‘उस इंसान पर कुर्बानी वाजिब है, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या ५२ तोला चांदी या इसकी कीमत की कोई संपत्ति है. अगर किसी इंसान के पास इतनी कूवत नहीं है तो उस पर कुर्बानी वाजिब नहीं है.’’
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