28-01-2011, 02:28 PM | #11 | |
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Re: ग्रामीण भारत :: व्यापार और विकास
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रेत पर सिर्फ करेला . खरबुजा , तरबुज , पलवल जैसी चिजे ही उबज सकते हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
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28-01-2011, 02:32 PM | #12 |
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Re: ग्रामीण भारत :: व्यापार और विकास
आपकी बात भी सही है भाई नायक जी ....हरित क्रांती के पहले जब किसी रसायन का प्रयोग किये बिना फसलें उगायी जाती थी तो मिट्टी पर भी कुछ बूरा असर नहीं होता था ... और संसाधनों को जुटा कर आज के समय में किसी भी जगह पैदावार की जा सकती है ... पहली जरूरत है कि एकता हो और दूसरी वो पैदा किया जाये जिसे विश्व बाजार में भी बेचा जा सके... क्या सही दाम पर बिकेगा इस की जानकारी प्रत्येक किसान को प्रदान की जाये/ उत्तर प्रदेश में कई ऐसे इलाके हैं जहां से बासमती चावल खारीद कर निर्यात किया जाता है ...
पैदावार ke liye कुछ उदाहरण हैं ...मशरूम, मिंट आदि-आदि... इन से हमारे किसान गरीबी से निजात पा सकतें हैं... भाई सिकंदर जी तो कानपूर से हैं और उन्हें जानकारी होगी कि गुलाब की सबसे आच्छी पैदावार वहीं होती है और चालाक किसान बी पालन करके उससे शहद भी बनाते हैं और गुलाब का शहद बोलने से उसकी कीमत सामान्य शहद से कई गुना अधिक होती है... इस तरह के नये नये रास्ते तलासने होगें ... |
28-01-2011, 02:45 PM | #13 | |
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Re: ग्रामीण भारत :: व्यापार और विकास
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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28-01-2011, 02:45 PM | #14 |
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Re: ग्रामीण भारत :: व्यापार और विकास
खालिद भाई जी ...
ग्रामीण भारत :: व्यापार और विकास सूत्र का विषय है ... उपाय खोजनें होगें न की तकलीफों का बहाना ... विकास कैसे हो यह हमारी चर्चा का मुख्य विषय है .... और यह तभी होगा जब .... ग्रामीण लोगों को ज्ञान और तरीके सिखानें होगें... इस रसायन के युग में काफी कुछ अलग किया जा सकता है ... |
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