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Old 16-04-2017, 08:58 PM   #11
Rajat Vynar
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

अभियोजन पक्ष के प्रारूप का हिन्दी में सारांश :

अभियोजन पक्ष की कहानी का प्रारूप और बचाव पक्ष की कहानी के प्रारूप के विरुद्ध प्रस्तुत किए गए सभी तर्क गवाहों के बयान पर आधारित थे तथा सुबूतों द्वारा पुख्ता किए गए थे। प्रेम के बदन पर लिपटा हुआ तौलिया कसकर बँधा हुआ था जो न ही ढ़ीला हुआ था और न ही खुल गया था। हाथापाई होने की दशा में यह बिल्कुल असम्भव था कि तौलिया शरीर पर कसकर बँधा रहे। सिल्विया के पाप-स्वीकरण के बाद शान्त और संयमित नानावटी ने अपने परिवार को चलचित्र-गृह में छोड़ने के बाद नेवी मुख्यालय में जाकर झूठा बयान देकर बन्दूक और गोलियाँ प्राप्त कीं। यह इस बात को उजागर करता है कि नानावटी ने प्रेम की हत्या अचानक उत्पन्न हुई उत्तेजना के कारण नहीं, बल्कि इरादतन हत्या की थी। नौकर अंजनी के बयान के अनुसार बहुत जल्दी-जल्दी तीन गोलियाँ चली थीं और सम्पूर्ण वारदात के होने में एक मिनट से भी कम समय लगा था जो हाथापाई होने की संभावना को नगण्य करता है। वारदात को अंजाम देने के बाद नानावटी उसी फ़्लैट के दूसरे कमरे में मौजूद उसकी बहन से यह सफाई दिए बिना बाहर चला गया कि हत्या महज एक दुर्घटना थी। बन्दूक से गोलियाँ निकालने के बाद नानावटी सबसे पहले अपने प्रधान उच्च सैन्याधिकारी से जाकर मिला और फिर पुलिस के समक्ष जाकर उसने अपना ज़ुर्म कुबूल कर लिया। पुलिस उपायुक्त ने नानावटी द्वारा पुलिस अभिलेख में दर्ज़ अपने नाम के अक्षर-विन्यास (Spelling) में हुई त्रुटि को ठीक करने की बात भी कही है। इन सभी बातों से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है कि नानावटी बिल्कुल घबड़ाया हुआ नहीं था।
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Old 16-04-2017, 11:11 PM   #12
Rajat Vynar
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

तो यह था नानावटी के मुकदमे में प्रस्तुत किए गए बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष के प्रारूपों का हिन्दी सारांश जिससे पाठकगण नानावटी के मुकदमे की कहानी को भली-भाँति समझ सकें। नानावटी के मुकदमे में अभियोजन पक्ष की ओर से भारत के जाने-माने वकील राम जेठमलानी और बचाव पक्ष की ओर से कार्ल खण्डालावाला खड़े थे। हमारे अनुसार तो बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष, दोनों का प्रारूप बड़ा ही लचर होने के कारण अत्यन्त हास्यास्पद रहा। एक ओर बचाव पक्ष ने प्रेम के शरीर पर लिपटे तौलिए की स्थिति पर ध्यान दिए बिना हाथापाई होने का लचर तर्क प्रस्तुत किया जिसे अभियोजन पक्ष ने बड़ी आसानी के साथ काट दिया। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने नानावटी पर 'हत्या करने के बाद न घबड़ाने' जैसा हास्यास्पद आरोप लगाया। नानावटी एक साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि नौसेना के एक बहादुर कमाण्डर थे। नौसेना के एक बहादुर कमाण्डर से थर-थर काँपने और घबड़ाने की अपेक्षा करना हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? अभियोजन पक्ष ने नौसेना मुख्यालय से बन्दूक और गोलियाँ प्राप्त करने की घटना को इरादतन हत्या के आरोप से जोड़ दिया। बचाव पक्ष चाहता तो बड़ी आसानी से यह कहकर अभियोजन पक्ष के आरोप को खारिज कर सकता था कि नानावटी प्रेम से एक बेहद खतरनाक, गम्भीर और संवेदनशील मुद्दे पर बातचीत करने जा रहा था। प्रेम के कारण उसकी जान को कभी भी खतरा पैदा हो सकता था। अतः इरादतन हत्या के लिए नहीं, बल्कि आत्मसुरक्षा के लिए नानावटी बंदूक अपने साथ लेकर गया था।

जो भी हो, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए 'इरादतन हत्या' के तर्क को स्वीकार करते हुए नानावटी को उम्रकैद की सज़ा सुनाई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
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Old 16-04-2017, 11:11 PM   #13
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Default Re: कहानी का रूपान्तरण

धन्यवाद, रजत जी. दोनों पक्षों के बारे में ऊपर दिया अंग्रेजी version पढ़ चुका हूँ. यह जरुरी नहीं कि आप के द्वारा लिखी हुई हर बात पर मैं अपनी टिप्पणी करूँ. मुझे जितना जरुरी लगा उतना लिख दिया. बहुत बहुत धन्यवाद.
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Old 17-04-2017, 09:13 AM   #14
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का सारांश प्रस्तुत करने के बाद अब कहानी के उन मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हैं जिनके कारण इस कहानी को अति विशिष्ट और अद्वितीय प्रेम-कहानी का दर्जा प्राप्त हो गया-

१. कहानी का अति विशिष्ट भाग बचाव पक्ष के प्रारूप में निहित है और हमने इसे मोटे अक्षरों में दर्शाया है-

....an angry Nanavati swore at Prem and proceeded to ask him if he intends to marry Sylvia and look after his children. Prem replied, "Will I marry every woman I sleep with?",....

अर्थात्-

....प्रेम को देखकर क्रुद्ध नानावटी ने पूछा कि क्या वह सिल्विया से शादी करके उसके बच्चों की देखभाल करेगा? प्रेम ने कहा- 'क्या मैं उन सभी लड़कियों से शादी कर लूँ जिनके साथ मैं सोता हूँ?'....

नानावटी और प्रेम के मध्य घटित उपरोक्त संवाद का मूल उद्देश्य है- 'नानावटी अपनी पत्नी सिल्विया का विवाह उसके प्रेमी प्रेम के साथ करने के लिए तैयार था।'

कहानी के इस मूल उद्देश्य को ही केन्द्रीय विचार (Central Idea) कहते हैं। कुछ लोग इसे 'कहानी की आत्मा' भी कहते हैं। इस केन्द्रीय विचार पर आधारित लघुकथा हो, कहानी हो, नाटक हो या उपन्यास हो- कहानी का यह केन्द्रीय विचार बिना किसी परिवर्तन के अपने मूल स्वरूप में ही रहेगा, अर्थात्- 'पत्नी का विवाहेतर सम्बन्ध संज्ञान में आने के बाद कहानी का नायक अपनी पत्नी का विवाह उसके प्रेमी के साथ कराना चाहेगा।'
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Old 17-04-2017, 04:43 PM   #15
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

अतः स्पष्ट है- उपरोक्त केन्द्रीय विचार में निहित तथ्य का समावेश जिस किसी रचना में भी किया जाएगा उस रचना को 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी से ही प्रेरित समझा जाएगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 'नानावटी के मुकदमे' पर आधारित समझी जाने वाली पहली हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'ये रास्ते हैं प्यार के' वस्तुतः 'नानावटी के मुकदमे' पर आधारित नहीं थी। इस फ़िल्म की नायिका लीला नायडू ने वर्ष 2010 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में इस बात का उल्लेख करते हुए लिखा है कि 'नानावटी के मुकदमे से पहले ही इस फ़िल्म की पटकथा लिखी जा चुकी थी। फ़िल्म की कहानी और एक वास्तविक जीवन की कहानी में समानता होना एक संयोग था।



यही कारण है- सम्पूर्ण विश्व में लेखकों की हर रचनाएँ 'समानता संयोग से हो सकती है' की वैधानिक घोषणा के साथ प्रकाशित की जाती हैं।

'नानावटी के मुकदमे' की कहानी में समाहित उपरोक्त केन्द्रीय विचार अपने आप में बेहद अनोखा, अनूठा और दुर्लभ है, क्योंकि अमूमन ऐसा होता हरगिज नहीं है। पत्नी के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होते ही पति या तो पत्नी की हत्या कर देता है, या फिर उसके प्रेमी की हत्या कर देता है, या फिर दोनों की हत्या कर देता है, या फिर दोनों या किसी एक की हत्या करके स्वयं आत्महत्या कर लेता है, या फिर स्वयं आत्महत्या कर लेता है।
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Old 17-04-2017, 10:18 PM   #16
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

'पत्नी के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होने के बाद नानावटी ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया किन्तु सिल्विया के समझाने-बुझाने के बाद शान्त हो गया'-- यह 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का एक मुख्य अंश है। यह सुनने में जितना सरल लगता है, लिखने में उतना ही कठिन है। इस सारांश में निहित तथ्यों का समावेश करते हुए किसी उपन्यास का अध्याय, नाटक या फ़िल्म का दृश्य अथवा आकाशवाणी नाटक का दृश्य लिखकर देखिए तो आपको पता चलेगा कि यह दृश्य कहानी का सबसे जटिल और पेचीदा भाग है। कहानी के दृष्टिकोण से नानावटी द्वारा आत्महत्या का प्रयत्न करना एक ऐसे व्यक्ति के लिए स्वाभाविक घटना है जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हो। समझा-बुझाकर आत्महत्या के प्रयत्न को विफल करना एक अत्यन्त जटिल भावनात्मक (Emotional) प्रक्रिया (Process) होने के कारण एक टेढ़ी खीर है। शायद इसीलिए पटकथाकारों ने 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के इस प्रमुख अंश का विस्तार करने के स्थान पर जड़ से काटकर हटा दिया और अपने हिसाब से 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के केन्द्रीय विचार में परिवर्तन करके 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का ठप्पा लगाकर दर्शकों के सम्मुख पेश कर दिया, जबकि सत्य यह है कि सत्यकथा होने की दशा में केन्द्रीय विचार में परिवर्तन करना नियम-विरुद्ध है और 'विवाहेतर सम्बन्ध होने मात्र से' किसी कहानी को 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी कहना नि:संदेह हास्यास्पद है।
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Last edited by Rajat Vynar; 18-04-2017 at 02:22 PM.
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Old 18-04-2017, 02:19 PM   #17
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

ताजमहल का प्रतिरूप (Dummy) बनाने के लिए यह अत्यावश्यक है कि प्रतिरूप का स्वरूप ताजमहल जैसा ही हो, न कि कुतुबमीनार, लालकिला या इंडिया गेट जैसा। कुतुबमीनार, लालकिला और इंडिया गेट बनाकर 'ताजमहल से प्रेरित होकर ताजमहल का प्रतिरूप बनाया' कहना आश्चर्चजनक है। ठीक इसी प्रकार नई कहानी में पुरानी कहानी में समाहित केन्द्रीय विचार की उपेक्षा करके नई कहानी को पुरानी कहानी से प्रेरित बताना आश्चर्यजनक है। अतः सच्चाई यह है कि आज तक 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के ठप्पे के साथ लोकार्पित हुई तीनों फ़िल्मों में से किसी फ़िल्म में भी 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी की आत्मा थी ही नहीं। हम यह तथ्य बता चुके हैं कि कहानी की आत्मा का आशय कहानी के केन्द्रीय विचार से है और 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का केन्द्रीय विचार है- 'पत्नी का विवाहेतर सम्बन्ध संज्ञान में आने के बाद कहानी का नायक अपनी पत्नी का विवाह उसके प्रेमी के साथ कराना चाहेगा।' 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के ठप्पे के साथ लोकार्पित हुई तीनों फ़िल्मों में 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी में समाहित इस केन्द्रीय विचार की घोर उपेक्षा की गई है।
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Old 18-04-2017, 11:16 PM   #18
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

जैसा कि हमने बताया- वर्ष 1963 में लोकार्पित हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'ये रास्ते हैं प्यार के' की कहानी की समानता 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी से होना महज एक संयोग था। इस फ़िल्म की कहानी 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी से काफी हद तक मिलती है। हमने यह भी बताया कि 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का मुख्य अंश 'पत्नी के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होने के बाद नानावटी ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया किन्तु सिल्विया के समझाने-बुझाने के बाद शान्त हो गया' था। 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के इस मुख्यांश को हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'ये रास्ते हैं प्यार के' में काफी मशक्कत करके दूसरी तरह से प्रस्तुत किया गया है जो कि निम्नलिखित है-

'पत्नी नीना (लीला नायडू) के विवाहेतर सम्बन्ध अशोक (रहमान) से होने की बात संज्ञान में आते ही अनिल साहनी (सुनील दत्त) विचलित और व्यथित हो जाता है। अनिल को व्यथित देखकर नीना अनिल का परित्याग करके घर छोड़कर जाना चाहती है, किन्तु मासूम दो बच्चों का हवाला देकर अनिल उसे जाने नहीं देता। बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती। अनिल नीना से काफी खफ़ा रहता है। अनिल के पिता दो मासूम बच्चों का हवाला देकर नीना को माफ़ कर देने के लिए कहते हैं। व्यथित अनिल नीना की बेवफ़ाई को हजम न कर पाने के कारण उसे डाँटता-फटकारता है और उसका गला दबाने का भी प्रयास करता है किन्तु बच्चों के बीच में आ जाने के कारण छोड़ देता है। अनिल के डाँटने-फटकारने के कारण नीना और अधिक अपराध-भाव से ग्रस्त होकर अत्यधिक दुःखित हो जाती है। नीना का दुःख अनिल बर्दाश्त नहीं कर पाता और अत्यधिक क्रोधपूर्वक नीना को बहलाकर पथभ्रष्ट करके दुःख के सागर में धकेलने वाले अशोक से मिलने के लिए जाता है। अशोक और अनिल में जबरदस्त वाक्युद्ध होता है और फिर दोनों में हुई हाथापाई के फलस्वरूप अशोक मारा जाता है।'
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Last edited by Rajat Vynar; 19-04-2017 at 03:56 PM.
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Old 19-04-2017, 05:42 PM   #19
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Talking Re: कहानी का रूपान्तरण

स्पष्ट है- 'ये रिश्ते हैं प्यार के' में 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के मुख्यांश का प्रयोग करने के स्थान पर एक लम्बी-चौड़ी भावनात्मक प्रक्रिया के जरिए कहानी के नायक को 'विवाहेतर सम्बन्ध के हादसे' को हजम कराने की कोशिश की गई। क्यों? यह फ़िल्म अपने ज़माने की एक निर्लज्ज (Bold) फ़िल्म मानी गई थी। यद्यपि इस फ़िल्म में कोई भी विवादास्पद दृश्य नहीं था, किन्तु उस ज़माने में निर्लज्ज संवादों का प्रयोग करना अथवा कथा-वस्तु में विवाहेतर सम्बन्ध का उपयोग होना ही निर्लज्जता (Boldness) का प्रतीक समझा जाता था। कहानी की नायिका लीला नायडू की किताब के अनुसार 'नानावटी के मुकदमे से पहले ही इस फ़िल्म की पटकथा लिखी जा चुकी थी।', किन्तु विकीपीडिया में अँग्रेज़ी दैनिक समाचार-पत्र 'दि हिन्दू' के हवाले से बताया गया है कि 'दत्त के पसंदीदा लेखक ए० काश्मीरी ने 'ये रास्ते' नामक एक कहानी लिखी जो मुम्बई में घटित 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी पर आधारित थी।' यदि हम इस बात को झूठ और लीला नायडू की किताब में प्रकाशित बात को सत्य भी मान लें तो भी 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी की घटना वर्ष 1959 की है और 'ये रास्ते हैं प्यार के' वर्ष 1963 में लोकार्पित हुई। अतः स्पष्ट है कि पटकथाकारों के संज्ञान में 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी अवश्य रही होगी, फिर भी पटकथाकारों ने 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के मुख्यांश की उपेक्षा करके वही लिखा जो उस समय का समाज और दर्शक आसानी से हजम कर सकता था, क्योंकि पटकथाकार प्रायः वही लिखते हैं जो दर्शकों को हजम हो जाए। शायद 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का मुख्यांश पटकथाकारों को इतना अधिक निर्लज्ज (Bold) लगा कि उन्हें विवश होकर उसकी उपेक्षा करनी पड़ी। फ़िल्म में 'व्यथित अनिल द्वारा नीना का गला दबाया जाना' और 'अनिल के पिता की सलाह' जैसे दृश्यों का होना यह स्पष्ट करता है कि पटकथाकार उस समय के दर्शकों की मनोवृत्ति के अनुकूल चल रहे थे, जबकि सच्चाई यह है कि 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के मुख्यांश का विस्तार करना ही अधिक सरल कार्य है। यहाँ पर हम यह स्पष्ट कर दें कि 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का मुख्यांश एक तरह से 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के केन्द्रीय विचार का ही प्रथम भाग है, क्योंकि प्रथम भाग के घटित हुए बिना कहानी में केन्द्रीय विचार में निहित तथ्यों को लागू करना असम्भव है।
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यद्यपि हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'ये रिश्ते हैं प्यार के' में 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के मुख्यांश का प्रयोग नहीं हुआ, किन्तु पटकथाकार 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के केन्द्रीय विचार में निहित भावनात्मक कोण (Emotional Angle) का समावेश कहानी में करने में सफल रहे। सबसे पहले समझिए कि 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के केन्द्रीय विचार 'नानावटी अपनी पत्नी सिल्विया का विवाह उसके प्रेमी प्रेम के साथ करने के लिए तैयार था।' में निहित भावनात्मक कोण क्या था? इसमें नानावटी की त्याग की भावना दृष्टिगोचर होती है जिसमें वह पत्नी का विवाह उसके प्रेमी के साथ कराकर पत्नी को खुश देखना चाहता था। अतः इस कार्य में 'पत्नी की खुशी' निहित है। 'ये रास्ते हैं प्यार के' में 'नीना का दुःख देखकर अनिल तड़प उठता है और उसे बहलाकर पथभ्रष्ट करके दुःख के सागर में धकेलने वाले अशोक से लड़ने के लिए जाता है।' इसमें अनिल का असीम प्रेम दृष्टिगोचर होता है जिसके कारण वह पत्नी का दुःख देखकर तड़प उठा और अशोक से लड़ने गया। अतः इस कार्य में 'पत्नी को दुःखित देखकर तड़पना' निहित है। भावनात्मक दृष्टिकोण से 'किसी की खुशी चाहना' अथवा 'किसी का दुःख देखकर तड़पना' लगभग एक-दूसरे के समतुल्य हैं, क्योंकि ऐसा कभी नहीं होता कि 'आप किसी की खुशी चाहते हैं तो उसका दुःख देखकर न तड़पें' अथवा 'आप किसी का दुःख देखकर तड़पते हैं तो उसकी खुशी न चाहें'। भावनात्मक दृष्टिकोण का विषय बहुत बड़ा है और यह इस लेख का विषय भी नहीं है। अतः इसकी विस्तृत व्याख्या यहाँ पर नहीं की जा रही है। 'कहानी में भावनात्मक दृष्टिकोण का समावेश' विषय पर हम एक अलग लेख फिर कभी लिखेंगे।
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