12-03-2013, 04:00 PM | #11 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
He had sported spats in Persia, just for style ; With a necktie quite too utter, In the streets of old Calcutta, He had stirred up quite a flutter for a while. नील नदी का तीर तथा चटख रंग का ब्लेज़र था, ईरानी शैली का मौजा तेहरान में लगता सुन्दर था, कलकत्ते में आकर वो, पहने रखता था इक बो, प्रशंसकों के बीच स्वयं को कहता एक सिकंदर था. (अनुवाद/ रजनीश मंगा) |
12-03-2013, 09:22 PM | #12 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
A cannibal monarch imperial
Kept his wives on a diet of cereal, But he didn't much care What the women should wear, Nor did they; it was quite immaterial. नरभक्षी था एक मगर वो राजाओं का राजा था, उसकी हर इक बीवी को खाने को मिलता खाजा था, चिंता उसे कभी न होती, वह पहनेंगी कैसी धोती, वो मरता है या जीता है उनको भी नहीं अंदाजा था. (अनुवाद/ रजनीश मंगा) |
14-03-2013, 12:18 AM | #13 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
There was a young girl from Westchester
Whose fellow stole up and caressed her. "Come, kiss me!" he cried. But she blushed and denied, And refused to begin till he pressed her. वेस्चेस्टर में नयी नवेली इक सुन्दर लड़की रहती थी, अपने पुरुष मित्र की हरकत हरदम तकती रहती थी, ‘चुम्बन दो न’ वह चिल्लाता, लड़की को यह कतई न भाता, जब तक मित्र इसरार न करता तब तक चुप ही रहती थी. (अनुवाद/ रजनीश मंगा) |
14-03-2013, 12:23 AM | #14 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
दर्शक संख्या से ज़ाहिर है कि आपका सूत्र बेहद मकबूल किया जा रहा है, किन्तु मैं आपको बधाई दूंगा एक अनजान काव्य विधा से फोरम के सदस्यों को परिचित कराने के लिए और उससे भी बढ़ कर 'सुस्वाद' लिमरिक काव्य का बेहतरीन अनुवाद करने के लिए। मैं बेहिचक कह सकता हूं कि अनुवाद में आप मास्टर हैं। इन रचनाओं का इससे बेहतर अनुवाद संभव ही नहीं है। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
14-03-2013, 12:27 AM | #15 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
There were three little birds in a wood,
Who always sang hymns when they could, What the words were about They could never make out. But they felt they were doing them good. छोटे से इक जंगल में थे तीन मुर्ग़ रहा करते, यहाँ वहां बैठे उड़ते वो मंत्रोच्चार किया करते, मन्त्रों में क्या लिक्खा था, उनको कभी न दिक्खा था, पर लगता ये मन्त्र सदा सबका भला किया करते. (अनुवाद/ रजनीश मंगा) |
14-03-2013, 12:37 AM | #16 | |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
Quote:
Last edited by rajnish manga; 15-03-2013 at 12:37 AM. |
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15-03-2013, 12:38 AM | #17 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
There was a young lady of Niger
Who smiled as she rode on a tiger; They returned from the ride With the lady inside, And the smile on the face of the tiger. —attributed to Edward Lear नाईजर देश की रहने वाली थी वो इक सुन्दर बाला, बाघों पर बैठ सवारी करती, आफत की थी परकाला, इक दिन दोनों गए घूमने, बाघ शाम को लगा झूमने, क्योंकि उसने मार झपट्टा बाला का था किया निवाला. (अनुवाद: रजनीश मंगा) |
15-03-2013, 12:52 AM | #18 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
There was a small boy of Quebec
Who was buried in snow to his neck. When they asked, "Are you friz?" He replied, "Yes, I is — But we don't call this cold in Quebec!" —Rudyard Kipling बात पुरानी, क्यूबेक में इक छोटा बालक था रहता, सर्दी में जब बर्फ़ पड़े तो गर्दन तक था धंस जाता, सबने पूछा ‘जमे नहीं?’ वह बोला “जी, नहीं-नहीं, क्यूबेक में इतने जाड़े को जाड़ा नहीं कहा जाता”. (अनुवाद/ रजनीश मंगा) Last edited by rajnish manga; 15-03-2013 at 12:59 AM. |
16-03-2013, 11:15 PM | #19 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
एक लिमरिक कविता
(कवि: डा. हरिवंश राय बच्चन – विद्यार्थी बच्चन द्वारा प्रो. दवे पर रचित) Prof. Dave was the same in the length and breadth, And a man with Encyclopedic depth, He was humble to a fault, And humbler with a summersault, He could talk of Hafiz and Honolulu and Halwa in One-Breath. प्रोफेसर दवे थे गोल – मटोल, मानो विश्व ज्ञान के ढोल, विनम्रता के थे अवतार, औ’ विनम्रतम बन जाने में उन्हें नहीं लगती थी बार. कर सकते थे वे हाफ़िज़ का होनोलूलू का, हलवे का एक सांस में शंखोच्चार. (हिंदी रूपांतर: स्वयं कवि द्वारा) |
17-03-2013, 01:38 AM | #20 |
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Re: लिमरिक कविता (Limerick Poetry)
निश्चित ही मेरे विचार भी अलैक जी की उपरोक्त टिप्पणी से मिलते जुलते हैं। कविता की इस प्राचीन विधा से मंच में साझा करने के लिए हम आपके आभारी हैं रजनीश जी। मैं, यदि संभव हुआ तो कुछ लिमरिक कवितायें रचित करने का प्रयत्न करूँगा और यदि मुझे उपयुक्त प्रतीत हुईं तो इस सूत्र पर अवश्य समर्पित करूँगा। धन्यवाद बन्धु ।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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