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Old 19-09-2013, 07:50 PM   #11
jai_bhardwaj
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Default Re: मुहावरों की कहानी

ज्ञानवर्धक संग्रह को साझा करने के लिए आभार बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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Old 19-09-2013, 08:10 PM   #12
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

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ज्ञानवर्धक संग्रह को साझा करने के लिए आभार बन्धु।
सूत्र पर मूल्यवान सम्मति देने के लिए आभार, जय जी.
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Old 23-09-2013, 11:10 PM   #13
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

हास्य-व्यंग्य/ किस्सा कहावतों का

होता दरअसल ये था कि जब भी हम कहावतों के बारे में सोचते, तो वही दो-चार घिसी-पिटी कहावतें जेहन में उभरा करतीं- जैसे कि धोबी का कुत्ता घर का न घाट का, दिल्ली दूर है, आंख के अंधे नाम नयनसुख, नौ दो ग्यारह होना या फिर न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी वगैरह-वगैरह।

इन मुहावरों का तड़का जब भी हम किसी रचना में लगाते, तो नतीजा ढाक के वही तीन पात। लगता था जैसे कहावतें लुट-पिट चुकी हैं, उनमें जो धार, जो तासीर हुआ करती थी, वह रफ़ूचक्कर हो चुकी है। हमें यह भी लगता कि जैसे वह घड़ी आ पहुंची है- जब जीर्ण-शीर्ण कहावतें त्याग कर नई कहावतें धारण की जाती हैं। मगर नई कहावतें आएं कहां से? वे कोई ख़ालाजान के घर में तो रखी न थीं कि गए और निकाल लाए। दिमाग़ के मरियल गधे-घोड़े चारों तरफ़ दौड़ाए। ध्यान आया बचपन के दोस्त वेदपाठी का। हमें तो फ्रेश कहावतों की जरूरत थी ही। सोचा- वेदपाठी जी के कहावत भंडार से कुछ नायाब मोती चुग लिए जाएं। वेदपाठी जी के भवन पर उनसे मिलते ही हमने पूछ लिया, ‘महाराज, सुना है, आजकल आप नई कहावतें रच रहे हैं।

वेदपाठी जी के चेहरे पर कुटिल मुस्कुराहट दौड़ गई। बोले, ‘ठीक सुना आपने। वैसे मैं कहावतों की रचना स्वांत: सुखाय कर रहा था, मगर आप गुन के गाहक हैं। ख़ाली कैसे जाने दूं? कुछ न कुछ देकर ही विदा करूंगा। एक बिल्कुल मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित कहावत है- अ़क्ल के कुत्ते फेल होना। यह आपकी रचनाओं से मेल भी खाती है।फिर वे मुस्करा कर बोले, ‘इस कहावत का ताल्लुक सीधा दिमाग़ से है। जब दिमाग़ का दही होने लगे, तो समझ जाइए कि अ़क्ल के कुत्ते फेल हो गए।


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Old 23-09-2013, 11:11 PM   #14
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

चलिए, एक मिनट को आपकी बात मान भी लें, मगर जनाब इस कहावत में नया क्या है। अ़क्ल पहले भी हुआ करती थी, अ़क्ल आज भी है। कुत्ते पहले भी थे, कुत्ते आज भी हैं। क्या यही लुटा-पिटा, थका-थकाया माल धरा था हमारे लिए?’ वेदपाठी जी बोले, ‘ऐसा नहीं है। चलो दूसरी कहावत देता हूं- उपभोक्ता का मोबाइल व्यस्त होना।मुस्कुरा कर हमने कहा, ‘ये हुई न बात! मोबाइल तो वाक़ई पहले नहीं थे। पर जनाब, मतलब इसका भी शून्य बटा सन्नाटा है।वेदपाठी जी बोले, ‘मतलब साफ़ है। स्वार्थ न होने पर उपेक्षा करना। आप लाख चाहते रहें बतियाना, मगर जनाब, हमारी इच्छा न होगी तो हर बार व्यस्त रहेगा हमारा मोबाइल।

तभी गृहयुद्ध की कर्णभेदी ध्वनियां सुनाई पड़ीं। एक बच्चा गरज रहा था, ‘बत्तीसी उखाड़ कर हाथ में दे दूंगा।दूसरा गुर्रा रहा था, ‘चुप कर बेमौसम की भविष्यवाणी। गरजता तो ऐसे है कि जाने कितना बरसेगा। मगर कभी छींटा तक नहीं पड़ा। ज्यादा मत रेंकियो मेघदूत की औलाद। बता दिया। हां।

हमने पूछा, ‘वेदपाठी जी, ये सब क्या है? समझाते क्यों नहीं?’ ‘क्या बताऊं वर्मा।वेदपाठी कराहे, ‘चावलों का मांड़ बन चुका है। नहीं मानते उल्लू के पट्ठे। कहता हूं- सुबह उठ कर मुंह-हाथ धो लो। कहते हैं- शेर मुंह नहीं धोते। कहता हूं- क़िताब निकाल कर पाठ याद करो। कहते हैं- बूढ़े तोते रटा नहीं करते। लो कल्लो बात।

तभी चाय लिए आती काकली रुककर बोली, ‘अरे पापा, क्यों समझाते हैं? हैं तो ये कल के जोगी, पर पेट में जटा पूरी है।फिर भुनभुनाने लगी, ‘गधों के पीछे जाना, अपनी कब्र खुलवाना।बच्चों के मुखारविंद से ऐसी नायाब कहावतें सुन, हमारे सब संदेह मिट गए। हमने काकली का सिर सहलाते हुए कहा, ‘चाय रहने दे बेटी, ये तो घर में भी पी लूंगा। बस मेरे पास बैठ कर कुछ और कहावतें सुना दे।

वह चहकी, ‘अरे अंकल, जहां बांस डूब चुके, वहां पोरियों की क्या गिनती! मैं तो कहती हूं, न छीले कोई सौ तोरियां, बस एक कद्दू छील ले। पता नहीं कैसे थे वो लोग, जो मरा हाथी भी सवा लाख में भेड़ देते थे। एक हमारे पापा हैं। सारे डंगर मु़फ्त में लेने को तैयार हैं, पर कोई दे तो। मीठा-मीठा गड़प-गड़प, कड़वा-कड़वा थू-थू। पीने को लपर-लपर, उठाने को ना नुकर।काकली बग़ैर अर्धविराम, पूर्णविराम, कौमा के दौड़ी जा रही थी।

हम कहावतों के इस सागर में डूबकर मोती चुनने लगे। इससे पहले कि ये मोती हाथ से छूट जाएं, याद से गिन-गिन कर उनकी माला यहां पिरो दी है।

( ‘अभिव्यक्ति’ वेबसाइटसेसाभार)
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Old 23-09-2013, 11:15 PM   #15
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

धोबी का कुत्ता न घर का न घाटका

एक बार कक्षा दस की हिंदी शिक्षिका अपने छात्र को मुहावरे सिखा रही थी। तभी कक्षा एक मुहावरे पर आ पहुँची धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का ” , इसका अर्थ किसी भी छात्र को समझ नहीं आ रहा था । इसीलिए अपने छात्र को औरअच्छी तरह से समझाने के लिए शिक्षिका ने अपने छात्र को एक कहानी के रूप में उदाहरण देना उचित समझा ।

उन्होंने अपने छात्र को कहानी कहना शुरू किया , ” कईसाल पहले सज्जनपुर नामकनगर में राजू नाम का लड़का रहता था , वह एक बहुत ही अच्छा क्रिकेटर था । वह इतना अच्छा खिलाड़ी था कि उसमे भारतीय क्रिकेट टीम में होने की क्षमताथी । वह क्रिकेट तो खेलता पर उसे दूसरो के कामों में दखल अन्दाजी करना बहुत पसंद था । उसका मन दृढ़ नहीं था जो दूसरे लोग करते थे वह वही करता था । यह देखकर उसकी माँ ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि यह आदत उसे जीवन में कितनी भारी पड़ सकती है पर वह नहीं समझा । समय बीतता गया और उसका अपने काम के बजाय दूसरो के काम में दखल अन्दाजी करने की आदत ज्यादा हो गयी । जभी उससे क्रिकेट का अभ्यास होता था तभी उसके दूसरे दोस्तों को अलग खेलो का अभ्यास रहता था । उसकामन चंचल होने के कारण वह क्रिकेट के अभ्यास के लिए नहीं जाता था बल्कि दूसरे दोस्तों के साथ अन्य अलग-अलग खेल खेलने जाता था।

उसकी यह आदत उसका आगे बहुत ही भारी पड़ी , कुछ ही दिनों के बाद नगर में ऐलान किया गया नगर में सभी खेलों के लिएएक चयन होगा जिसमे जो भी चुना जाएगा उसे भारतके राष्ट्रीय दल में खेलने को मिल सकता है । सभी यह सुनकर बहुत ही खुश हुए ओर वहीं दिन से सभी अपने खेल में चुनने के लिए जी-जान से मेहनत करने लगे , सभी के पास सिर्फ दो दिन थे । राजू ने भी अपना अभ्यास शुरू किया पर पिछले कुछ दिनों से अपने खेल के अभ्यास में जाने की बजाय दूसरो के खेल के अभ्यास में जाने के कारण उसने अपने शानदार फॉर्म खो दिया था । दो दिन के बाद चयन का समय आया राजू ने खूब कोशिश की पर अभ्यास की कमी के कारण वह अपना शानदार प्रदर्शननहीं दिखा पाया और उसका चयन नहीं हुआ , वह दूसरे खेलों में भी चयन न हुआ क्योंकि व़े सब खेल उसे सिर्फ थोड़ा आते थे ओर किसी भी खेल में वह माहिर नहीं था । जिसके कारण वह कोई भी खेल में चयन नहीं हुआ और उसके जो सभी दूसरे दोस्त थे उनका कोई न कोई खेल में चयन हो गया क्योंकि वे दिन रात मेहनत करते थे ।अंत में राजू को अपने सिर पर हाथ रखकर बैठना पड़ा और वह धोबी के कुत्ते की तरह बन गया जो न घर का होता है न घाट का ।

इसी तरह इस कहानी के माध्यम से सभी बच्चों को इस मुहावरे का मतलब पता चल गया । शिक्षिका को अपने छात्रों को एक ही सन्देश पहुँचाना था कि व़े जीवन में जो कुछ भी करे सिर्फ उसी में ध्यान दे और दूसरो से विचिलित न हो वरना वह धोबी के कुत्ते की तरह बन जाएगे जो न घर का न घाट का होता है
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Old 24-09-2013, 01:31 AM   #16
Arvind Shah
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बहुत ही बढ़ीया ! रोचक प्रस्तुती के लिए धन्यवाद !! नई पोस्टो का इन्तजार रहेगा !!!
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Old 24-09-2013, 11:35 AM   #17
rajnish manga
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बहुत ही बढ़ीया ! रोचक प्रस्तुती के लिए धन्यवाद !! नई पोस्टो का इन्तजार रहेगा !!!



सूत्र को पढ़ने के लिये और पसंद करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद, मित्र अरविंद शाह जी. आगामी कथा प्रस्तुत है.
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Old 24-09-2013, 11:37 AM   #18
rajnish manga
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जिसका काम उसी को साझे

किसी गांव मे एक गरीब घोबी रहता था| धोबी के पास एक गधा था और एक कुत्ता था| दोनों धोबीके साथ रोज सुबह धोबी घाट जाया करते थे| शाम को घर आया करते थे| धोबी का गधा शांत स्वभाव का था और स्वामी भक्त भी था| लेकिन धोबी का कुत्ता आलसी और कृतघ्न था | गधा अपना काम पूरी लगन के साथ करता था| जब सुबह धोबी धोबी-घाट को जाता था तो सारे कपड़े गधे पर लाद कर ले जाता था और शाम को गधे पर ही कपडे लाद कर लाया करता था | कभी कभी तो धोबी जब थका होता था तो खुद भी गधे पर बैठ जाया करता था| दिन भर गधा धोबी घाट केनजदीक हरी हरी घास चारा करता था | धोबी का कुत्ता सारा दिन धोबी घाट मे सोया ही रहता था | एक दिन गधे ने कुत्ते से पूछा की तुम भी मालिक के लिए कोई काम क्यूँ नहीं करते? कुत्ते ने जवाब दिया कि मालिक कौन सा हमें पेट भर के खाना देता है | अपना बचा खुचा खाना हमें डाल देता है| इतना कह कर कुत्ता फिर से सो गया | एक दिन धोबी के घर मे कोई चोर घुस आया| चोर को आते हुए कुत्ते ने देख लिया था पर कुत्ताभौका नहीं | उधर गधे ने भी चोर को देख लिया था | गधे ने कुत्ते से कहा की इस समय तुम्हारा फर्ज बनाता है कि तुम भौककर मालिक को जगाओ ताकि मालिक को पता चल सके किचोर आया है| कुत्ते ने कहा मालिक सो रहा है जगाने पर मारेगा | गधे ने कहा कि क्यूँ मारेगा? हम तो उसका फ़ायदा कर रहे है| कुत्ता इस बात के लिए नहीं माना| गधे से रहा नहीं गया और खुद रैकना शुरू कर दिया| आधी रात को गधे के रेकने पर धोबी को गुस्सा गया | धोबी उठा उसने डंडा उठा कर तीन चार डंडे गधे को जड़ दिए और सो गया| धोबी केसो जाने के बाद कुत्ते ने गधे से कहा, "देखा, मैं न कहता था कि मालिक मारेगा|" फिर उसने बताया कि "जिस का काम उसी को साझे और करे तो डंडा बाजे". इस पर गधे ने कहा, "भाई तुम ठीक थे, मैं ही गलत था|"

Last edited by rajnish manga; 24-09-2013 at 12:47 PM.
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Old 24-09-2013, 08:21 PM   #19
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sumitbagvar is on a distinguished road
Default Re: मुहावरों की कहानी

bhai mujhe namak haram wale muhaware ka matlab samajh me nhi aaya, uska ant to achanak ho gaya. Aakhir bodhisatv ne uska apman kis tarah kiya?
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Old 24-09-2013, 11:27 PM   #20
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

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Originally Posted by sumitbagvar View Post
bhai mujhe namak haram wale muhaware ka matlab samajh me nhi aaya, uska ant to achanak ho gaya. Aakhir bodhisatv ne uska apman kis tarah kiya?
सूत्र भ्रमण के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, मित्र सुमित बगवार जी. यह ठीक है कि कहानी का अंत अचानक हो गया. यहीं आपको इस मुहावरे के औचित्य ज्ञात हो जाता है. आपने कहानी में पढ़ा कि बोधिसत्व ने बाढ़ से पीड़ित चार प्राणियों की जान बचाई थी और उनको दो दिन तक अपने आतिथ्य में रखा. यहां उनसे जो बन पड़ा उन्होंने उनकी सेवा की. बन्दर, सांप और चूहे ने उनको अपने यहां आने का निमंत्रण दिया; यह विश्वास दिलाया कि वे समय आने पर उनके उपकार का बदला अवश्य देंगे. लेकिन, राजकुमार ने नरेश बनते ही अपनी पहली सी दुष्टता का परिचय देना शुरू कर दिया था. अतः यह जानते हुये भी कि बोधिसत्व ने उसके प्राण बचाये थे और वन में उनका आतिथ्य किया था, उसे भुला दिया तथा निर्दोष बोधिसत्व को बंदी बना कर कोड़े लगाने व अन्ततः फांसी पर लटकाने की सजा भी सुना दी. यह क्या था?

किसी के उपकार को भुला कर उसी के विरुद्ध षड्यंत्र करना ही नमक-हरामी है और यह कथा काशी राजकुमार / नरेश के नमक हराम होने का ही एक उदाहरण है.

मैं समझता हूँ कि अब आपकी शंका का समाधान हो गया होगा, सुमित जी. धन्यवाद.
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