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Old 26-03-2013, 11:54 PM   #11
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

लघु प्रसंग

1.
एक लोमड़ी ने सुबह के समय अपनी छाया पर दृष्टि डाली और कहा,
"मुझे आज कलेवे के लिए ऊँट मिलना चाहिए."

उसने सुबह का सारा समय ऊंट को ढूँढने में व्यतीत कर दिया, लेकिन जब दोपहर को उसने दूसरी बार अपनी छाया देखी तो कहा,

"मेरे लिए एक चूहा ही काफी होगा."

2.
एक बार जब मैं एक मृतक दास को दफ़न कर रहा था, तो कब्र खोदने वाला मेरे पास आया और बोला,

"जितने भी लोग यहाँ दफ़न करने के लिए आते हैं, उनमे से मैं तुम्हें पसंद करता हूँ."

मैंने कहा,

"यह सुन कर मुझे ख़ुशी हुयी.; लेकिन आखिर तुम मुझे क्यों पसंद करते हो?"

उसने जवाब दिया,

"बात यह है कि और लोग तो यहाँ रोते हुए आते हैं और रोते हुए जाते हैं, मगर तुम हँसते हुए आते हो और हँसते हुए जा रहे हो."

लेखक: खलील जिब्रान
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Old 28-03-2013, 11:40 PM   #12
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Default Re: इधर-उधर से


दो शे’र और दो सुभाषित प्रस्तुत कर रहा हूँ:

इक और उम्र दे कि तुझे याद कर सकें
यह ज़िंदगी तो नज़रे - खराबात हो गई.
(खराबात = शराबखाना)
(शायर: कुंवर महेंदर सिंह बेदी ‘सहर’)

मुहब्बत को समझना है तो नासेह खुद मुहब्बत कर
किनारे से कभी अन्दाज़ – ए – तूफ़ां नहीं होता.
(नासेह = उपदेशक)
(शायर: शकील बदायूंनी)

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते.

(भावार्थ: विद्वान् एवं राजा की तुलना कभी नहीं करनी चाहिए. राजा को तो अपने देश में ही सम्मान दिया जाता है जबकि विद्वान् को हर जगह सम्मान प्राप्त होता है- देश हो या विदेश)
मुश्किलें नेस्त कि आसां नशबद
मर्द बायद कि हरासां नशबद.

(भावार्थ: दुनिया में ऐसी कोई बाधा नहीं है जो प्रयत्न के सामने आसां न हो जाए. मर्द को मर्दानगी दिखानी चाहिए, मायूस नहीं होना चाहिए)



Last edited by rajnish manga; 29-03-2013 at 10:30 PM.
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Old 29-03-2013, 10:33 PM   #13
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Default Re: इधर-उधर से


मित्रो, अंग्रेजी में कुछेक शब्द इस प्रकार के होते हैं जिन्हें हम किसी भी ओर से पढ़ें उनके स्पेलिंग और उच्चारण एक ही होता है. ऐसे शब्द को “palindrome” कहते हैं. उदाहरण के लिए कुछ शब्द इस प्रकार हैं:
rotator
dad
redivider
इस परिभाषा के अनुसार “malayalam” भी एक palindrome है.

हिंदी में भी इसी प्रकार के कुछ शब्द होते हैं. मुझे छुटपन की बात याद आती है. हम बच्चे आपस में हिंदी शब्दों का एक खेल खेलते थे जिसमे एक बच्चा दूसरे बच्चे से वह शब्द बताने का अनुरोध करता था जो शुरू से अंत तक और अंत से शुरू तक एक जैसे अक्षरों और एक से उच्चारण वाला होता था. प्रश्न करने वाला बच्चा पूछता था,
“तीन अक्षर का मेरा नाम,
उल्टा सीधा एक समान,
आता हू खाने के काम.

बोलो क्या?”
उत्तर मिलता था - “डालडा”

इस प्रकार के और भी शब्द हम ढूंढ सकते हैं जो तीन या तीन से अधिक अक्षरों के हैं और जो उलटे-सीधे एक समान पढ़े और उच्चारित किये जाते हैं.
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Old 29-03-2013, 11:16 PM   #14
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Default Re: इधर-उधर से

मित्रो, अंग्रेजी के महान कवि पी.बी.शैली की जानी मानी दो कविताओं से निम्नलिखित पंक्तियाँ ली गई हैं. इनकी विशेषता यह है कि इन्हें अक्सर मिसाल के तौर पर प्रयुक्त किया जाता है जैसे कई शे’र और दोहों को हम ‘मिसाली’ कहते हैं यानि मिसाल देने योग्य और उन्हें उपयुक्त समय पर इस्तेमाल करते हैं.

We look before and after and pine for what is not,
Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.
(From To A skylark by P.B.Shelley)

हम समय की रेत पर चल, उसे ढूंढते जो है नहीं,
पीड़ा से जो गीत उगा वो सबसे मादक और हसीं.

The trumpet of prophecy, O Wind,
If winter comes, can spring be far behind.
(From Ode to the West Wind by P.B.Shelley)

पछुआ पवन उद्घोषणा करती है सुन, क्या सार है,
शिशिर के आगमन के साथ ही मधुमास भी तैयार है.

Last edited by rajnish manga; 03-04-2013 at 11:35 AM.
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Old 30-03-2013, 10:31 PM   #15
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Default Re: इधर-उधर से


सबसे पहले दो शेर मुलाहिज़ा कीजिये:-

तुमने किया न याद भी भूल कर हमें
हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया.
(शायर: ज्ञात नहीं)

खुदा की कसम उसने खायी जो आज
कसम है खुदा कि मज़ा आ गया.
(शायर: ज्ञात नहीं)

अब संस्कृत की एक सूक्ति पर विचार करें:-

उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कर्माणि न मनोरथ:
न हि सुप्तस्य सिंघस्य, प्रविशन्ति मुखे मृग:

(भावार्थ: उद्यम करने से और कर्म करने से ही मनोरथ सिद्ध होते हैं, जिस प्रकार सोये हुए सिंह के मुंह में मृग स्वयं चल कर नहीं आ जाते बल्कि उसके लिए सिंह को भी कर्म करना पड़ता है)

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Old 30-03-2013, 10:40 PM   #16
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Default Re: इधर-उधर से

शनिवार / 30 नवम्बर 1996 की डायरी का एक अंश:

* आज दूरदर्शन (i) पर हिंदी फीचर फिल्म ‘उमराव जान’ टेलीकास्ट की गई. हम फिल्म का बाद वाला भाग ही देख सके. यह कहा जा सकता है कि फिल्म हर लिहाज़ से अद्वितीय है. इसमें अभिनेत्री रेखा की अदाकारी लाजवाब है – वही भावप्रवण अभिनय, वही कमनीयता और शिष्टता जो पुराने ज़माने की अभिनेत्रियों यथा- मीना कुमारी, नर्गिस और वहीदा रहमान आदि की विशेषता हुआ करती थी.
^^^
* संस्कृत की एक सूक्ति पर नज़र डालते है. क्या आपको यह पढ़ने के बाद कुछ और कहावते नहीं याद आ रहीं?

दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)
^^^
* अब कुछ हिंदी शब्दावली पर विचार करते है:

कालातीत = जिसका समय बीत गया हो
हतभाग्य = भाग्यहीन
साक्षादृश्य = अपनी आँखों से देखा हुआ
मोहभंग = भ्रान्ति निवारण


Last edited by rajnish manga; 30-03-2013 at 10:43 PM.
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Old 30-03-2013, 11:08 PM   #17
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Default Re: इधर-उधर से

राजा भोज और चार चोर
एक बार रात के समय चार चोर धारा नगरी में चोरी करने निकले. उन दिनों राजा भोज भी कभी कभी भेष बदल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए महल से बाहर निकलते थे. उस रात राजा भोज जब घूम रहा था तो उसकी मुलाक़ात इन चारों चोरों से हो गई. चोरों ने भेष बदले राजा से पूछा कि तू कौन है ? राजा ने कहा जो तुम हो वही मैं भी हूँ. राजा समझ गया कि ये चोर हैं. सो उसने उन चोरों से कहा,”यह भी खूब रही. भगवान् संयोग मिलाता है तो यूं मिलाता है.मैं भी चोर हूँ. आज रात को हम पाँचों मिल कर चोरी करते हैं और जो माल मिलेगा उसे पांच जगह बराबर बराबर बाँट लेंगे. चोरों ने कहा,
”तुममे क्या गुण है ? हम तुम्हें साथ क्यों ले जाएँ और तुम्हें क्यों हिस्सा दें?”

राजा ने कहा, ”पहले तुम बताओ कि तुममे क्या क्या गुण हैं, फिर मैं अपना गुण बताऊंगा?”

उनमें से एक चोर ने कहा,”मैं आँख बंद करके बता सकता हूँ कि धन कहां पड़ा है.”

दूसरे ने कहा, ”मुझे देखते ही सब पहरेदारों को नींद आ जाती है.”

तीसरे ने कहा, ”मैं जिस ताले को देख लेता हूँ वह खुद-ब-खुद खुल जाता है.”

चौथे ने कहा, ”मैं जिस व्यक्ति को एक बार देख लूँ, उसे मैं अँधेरे में भी पहचान सकता हूँ.”

इस पर राजा ने कहा, ”फिर तो हमें धन मिलने मैं कोई अड़चन नहीं होगी.”

चोरों ने कहा, “सो तो ठीक है, लेकिन तुम भी तो अपना गुण बताओ,जिसके बल पर तुम हमसे अपना हिस्सा मांग रहे हो.”

राजा बोला, ”न्यायाधीश के सामने मैं जा कर अगर खड़ा हो जाऊं तो उसकी मति फिर जाती है और वह अपनी सुनाई हुयी फांसी की सजा भी रद्द कर देगा.”

चोरों ने कहा, “तब तो ठीक है, अब पकडे जाने पर सजा का भय भी नहीं रहेगा.”

पाँचों निकले चोरी करने के लिए. पहले चोर ने आँखें बंद कर के बताया कि राजा के तहखाने में फलां जगह माल रखा है.
पहले वहीँ चला जाए.

पाँचों चले राजा के तहखाने में चोरी करने. वहां संगीनों का पहरा था. दूसरा चोर आगे बढ़ा तो पहरेदार अपने आप गहरी निद्रा में चले गए. अब तीसरा चोर आगे बढ़ा, तो जितनी भी तिजोरियां वहाँ रखी थीं, उन सबके ताले अपने आप खुल गए.
चोरों ने खूब धन बटोरा और गठरियों में बाँध कर बाहर निकल आये. दूर जंगल में लाकर सारा धन एक गहरा गड्ढा खोद कर गाड़ दिया और तय किया कि कल इसे आपस में बाँट लेंगे.

चारों चोर अपने अपने घर चले गए. राजा भी अपने महल में आकर सो गया.

प्रातः होते ही हल्ला मच गया कि तहख़ाना टूट गया है और बहुत सा धन चोरी चला गया है.पहरेदारों को बुलाया गया. पूछने पर उन्होंने कहा,
“महाराज, हमें तो कुछ पता नहीं कि यह चोरी कब और कैसे हुई? दोषी हम जरूर हैं और इसके लिए उचट सजा पाने के लिए हम इंकार नहीं करते, लेकिन सही बात तो यह है कि हम सारे लोगों को एक साथ ही ऐसी गहरी निद्रा आ गयी जैसे किसी ने जादू कर दिया हो.”

विशेषज्ञों ने बताया कि ताले इतने मजबूत हैं और इतनी कारीगरी से बनाए गए हैं कि न तो ये सहज ही तोड़े जा सकते हैं, न इन्हें खोलने के लिए दूसरी चाबी ही बनाई जा सकती है. तब सवाल उठता है कि यह काण्ड हो कैसे गया.

राजा ने कहा, “जो हुआ सो हुआ, किन्तु ऐसा लगता है कि कोई दैवी चमत्कार या देवी घटना हुयी है, लेकिन फिर भी इन चोरों का पता लगाने के लिए कोशिश तो होनी ही चाहिए. चारो तरफ आदमी दौड़ाए गए. संयोग की बात कि चारों चोर एक ही जगह पकड़ में आ गए. वे न्यायाधीश के सामने पेश किये गए और न्यायाधीश ने उन्हें सूली पर चढाने का हुक्म दिया.
चोरों को सूली पर लटकाने के लिए जब ले जाया जाने वाला था, तो राजा भोज भी न्यायाधीश के बगल में आ कर बैठ गया. राजा को देखते ही चौथा चोर जोर से चिल्लाया,

“अरे तुम हो! अच्छी बात है – हम चारों आदमीयों ने तो अपने करतब, अपनी कला तुम्हें दिखा दी, अब तुम इस तरह पत्थर की मूरत बने क्या देख रहे हो? तुम भी अपना करतब दिखाओ – फिर किस दिन काम आयेगी दोस्ती तेरी.”

सुन कर राजा हंसा और न्यायाधीश से कह कर उनकी सूली की सजा रद्द करवा दी. चोरों को अपने पास बैठाया और उनसे कहा कि तुम जैसे गुणी आदमियों को चोरी जैसा नीच धंधा कभी नहीं करना चाहिए. बल्कि सुसंस्कृत नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहिए. तुम लोग आज से मेरे पास रहो.”

चोरों ने उस दिन से चोरी करना छोड़ दिया और वे राजा के पास सम्मानपूर्वक रहने लगे.
*****

Last edited by rajnish manga; 31-03-2013 at 08:07 PM.
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Old 31-03-2013, 12:35 AM   #18
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Originally Posted by rajnish manga View Post
* संस्कृत की एक सूक्ति पर नज़र डालते है. क्या आपको यह पढ़ने के बाद कुछ और कहावते नहीं याद आ रहीं?

दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)
^^^
दूर के ढोल सुहावने होते हैं .
ढोल के भीतर पोल
हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
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Old 31-03-2013, 10:12 PM   #19
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)


Quote:
Originally Posted by jai_bhardwaj View Post

दूर के ढोल सुहावने होते हैं .
ढोल के भीतर पोल
हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .




जय जी, सूत्र भ्रमण करने और मूल्य-सामग्री-संवर्धन करने के लिए आपका आभारी हूँ. निश्चय ही, आपके द्वारा सुझाए गए तीनों मुहावरे उपरोक्त सूक्ति के बहुत नज़दीक हैं.
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Old 31-03-2013, 11:08 PM   #20
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से


देहली दरबार का जल्वा
(शायर / अकबर इलाहाबादी )
-- सन 1911 में दिल्ली दरबार के आयोजन का आँखों देखा हाल --

सर में शौक का सौदा देखा, देहली को हमने भी जा देखा
जो कुछ देखा अच्छा देखा, क्या बतलाएँ क्या क्या देखा

जमना जी के पाट को देखा, अच्छे सुथरे घाट को देखा
सबसे ऊंचे लाट को देखा, हज़रत ड्यूक कनाट को देखा

पलटन और रसाले देखे, गोरे देखे काले देखे
संगीनें और भाले देखे , बैंड बजाने वाले देखे

खेमों का इक जंगल देखा , इस जंगल में मंगल देखा
बढ़िया और दरंगल देखा, इज्ज़त ख्वाहों का दंगल देखा

सड़कें थी हर केम्प से जारी, पानी था हर पम्प से जारी
नूर की मौजें लैम्प से जारी, तेज़ी थी हर जम्प से जारी

डाली में नारंगी देखी, महफ़िल में सारंगी देखी
बेरंगी बारंगी देखी , दहर की रंगा रंगी देखी

अच्छे अच्छों को भटका देखा, भीड़ में खाते झटका देखा
मुंह को अगरचे लटका देखा, दिल दरबार से अटका देखा

हाथी देखे भारी भरकम, उनका चलना कम कम थम थम
ज़र्रीं झूले नूर का आलम,मीलों तक वह छम छम छम छम

पुर था पहलु ए मस्जिदे जा’मा, रोशनियाँ थीं हरसू ला’मा
कोई नहीं था किसी का सा’मा, सब के सब थे दैर के ता’मा

सुर्खी सड़क पर कुटती देखी, सांस भी भीड़ में घुटती देखी
आतिशबाजी छुटती देखी, लुत्फ़ की दौलत लुटती देखी

चौकी इक चौलिक्खी देखी, खूब ही चक्खी पक्खी देखी
हर सू न’आमत रखी देखी, शहद और दूध की मक्खी देखी

एक का हिस्सा मन ओ’ सलवा, एक का हिस्सा थोड़ा हलवा
एक का हिस्सा भीड़ और बलवा, मेरा हिस्सा दूर का जलवा.

ओजब्रिटिश राज का देखा, परतो तख़्त औ’ ताज का देखा
रंगे - ज़माना आज का देखा. रूख कर्ज़न महाराज का देखा

पहुंचे फांद के सात समंदर, तहत में उनके बीसों बंदर(गाह)
हिकमतो दानिश उनके अन्दर, अपनी जगह हर एक सिकंदर

हम तो उनके सैर तलब हैं, हम क्या ऐसे सब के सब हैं
उनके राज के उम्दा ढब हैं, सब सामाने ऐशो तरब हैं

एग्ज़ीबिशन की शान अनोखी, हर शय उम्दा हर शय चौखी
अक्लीदस की नापी जोखी, मन भर सोने की लागत सोखी

जश्ने अज़ीम इस साल हुआ है, शाही फोर्ट में बाल हुआ है
रौशन हर इक हॅाल हुआ है, किस्सा ए माजी हा’ल हुआ है

है मशहूर कूचा ए बरज़न , बाल में नाचें लेडी कर्ज़न
तायरे होश थे सब के परज़न, रश्क से देख रही थी हर ज़न

हॅाल में चमकीं आ के यकायक, ज़र्रीं थीं पौशाक झका झक
महव था उनका ओजे समा तक, चर्ख पे ज़हरा उनकी थी गाहक

गौर कास-ए-ओज फ़लक थी, इसमें कहाँ ये नोक पलक थी
इन्दर की महफ़िल की झलक थी, बज़्मे इशरत सुब्ह तलक थी

की है ये बंदिश ज़हने रसा ने, कोई माने ख्वाह न माने
सुनते हैं हम तो ये फ़साने, जिसने देखा हो वह जाने


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