04-04-2011, 05:23 PM | #11 |
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Re: Satsang (सत्संग)
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04-04-2011, 05:24 PM | #12 |
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Re: Satsang (सत्संग)
तिल, कुश और तुलसी – ये तीन पदार्थ मरणासन्न व्यक्तिकी दुर्गतिको रोककर उसे सद् गति दिलाते हैं।
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04-04-2011, 05:25 PM | #13 |
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Re: Satsang (सत्संग)
बुद्धिमान्* मनुष्यको राजा, ब्राह्मण, वैध, मूर्ख, मित्र, गुरु और प्रियजनोंके साथ विवाद नहीं करना चाहिये।
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04-04-2011, 05:28 PM | #14 |
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Re: Satsang (सत्संग)
कबिरा सब जग निर्धना धनवंता नहिं कोय ।
धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥
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04-04-2011, 05:28 PM | #15 |
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Re: Satsang (सत्संग)
नित्य वृद्धजनोंको प्रणाम करनेसे तथा उनकी सेवा करनेसे मनुष्यकी आयु, विद्या (बुद्धि, कीर्ति), यश और बल बढ़ते हैं।
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04-04-2011, 05:29 PM | #16 |
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Re: Satsang (सत्संग)
“कामनासे, भयसे, लोभसे, अथवा प्राण बचानेके लिये भी धर्मका त्याग न करे। धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य हैं। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धनका हेतु (राग) अनित्य है ।”
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04-04-2011, 05:30 PM | #17 |
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Re: Satsang (सत्संग)
जिसके घरसे अतिथि निराश होकर लौट जाता है, वह उसे अपना पाप देकर बदलेमें उसका पुण्य लेकर चला जाता
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04-04-2011, 05:58 PM | #19 |
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Re: Satsang (सत्संग)
बढिया सत्संग चल रहा हे भाई ... सत्संगी हो क्या आप आते ही सारे ऐसे सूत्र बना दिये अपने
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04-04-2011, 10:41 PM | #20 |
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Re: Satsang (सत्संग)
“कामनासे, भयसे, लोभसे, अथवा प्राण बचानेके लिये भी धर्मका त्याग न करे। धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य हैं। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धनका हेतु (राग) अनित्य है ।”
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