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Old 11-11-2012, 07:51 AM   #11
omkumar
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जब दोनों न जाकर अरुण बाबू से इसके बारे में पूछा तो उनके आदमी ने उन्हें वहाँ से धक्का मार कर बाहर कर दिया।

'रास्ता रोको अभियान की खबर गाँव तक पहुँच गई और जब विघ्नराज अपने गाँव पहुँचा तो बाप ने खूब पिटाई की। विघ्नराज रात को ही गाँव छोड़कर अमरेश के पास शहर लौट गया।

विघ्नराज ने अमरेश से कहा,''भाई, कोई और रास्ता निकालो। यह पॉलिटिक्स-वॉलिटिक्स मुझसे नहीं होगी। ऐसा कोई धन्धा बताओ जिसमें हर्रे लगे न फिटकरी और रंग चोखा आए। बस साल-दो-साल में किसी तरह हम लोग लखपति बन जाएँ।''
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Old 11-11-2012, 07:51 AM   #12
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Default Re: प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र

अमरेश कुछ देर तक सोचता रहा। हठात उसके दिमाग में कुछ कौंध गया। वह मुस्कुराता हुआ बोला, ''अरे विघ्न, तू ने कभी आइने में अपना चेहरा देखा है? तुझ जैसा सुन्दर चेहरे वाले कितने लोग हैं? ख़बर मिलते ही लड़की वाले प्रस्ताव लेकर दौड़ेंगे तेरे पास।''

''मुझे अभी शादी नहीं करनी है।'' विघ्नराज ने कहा।

''शादी करने के लिए तुझे कौन कहता है?''

''तो?''

''हम लोग विवाह करने का व्यवसाय करेंगे। विवाह होते ही उड़न छू। फिर कौन खोज पाएगा।''

''अगर पकड़े गए?''

''कलकत्ता, बम्बई जैसे बड़े महानगरों में कौन किसे पहचानता है? हम लोग अपना-अपना नाम बदल लेंगे।''

दोनों इस नए धंधे के लिए एकमत हो गए। बाहर जाने के लिए खर्च का जोगाड़ अमरेश ने किया। अपने बाप को ने जाने उसने क्या पाठ पढ़ाया कि उन्होंने ज़मीन का एक टुकड़ा बेचकर पाँच हज़ार रुपए का जुगाड़ कर दिया।
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Old 11-11-2012, 07:51 AM   #13
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दोनों मित्र कलकत्ता जा पहुँचे। वहाँ श्याम बाज़ार में एक किराये का मकान लिया। छह महीने का एडवांस दे दिया। नाम बदलकर रमेश और महेश रख लिया। महेश ने रमेश के ब्याह के लिए एक व्यापारी की बेटी से बातचीत चलाई। व्यापारी अपनी बेटी के विवाह के लिए बहुत चिन्तित था क्योंकि उसकी लाड़ली बेटी दो बार अलग-अलग लड़कों के साथ घर से भागकर बदनामी के बाजार में खूब नाम कमा चुकी थी। रमेश के लिए विवाह प्रस्ताव तो दे दिया गया किन्तु पहला सवाल उठा कि लड़का का बाप कौन बनेगा और बाराती कहाँ से आएँगे?

''अरे भाई, सब भाड़े पर मिल जाते हैं। दैनिक बीस रुपए और पेटभर भोजन पर ढेर सारे लोग मिल जाएँगे। उनमें से किसी एक को बाप और बाकी लोगों को बाराती बना देंगे।'
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Old 11-11-2012, 07:52 AM   #14
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भाड़े के बाप और बारात को लेकर विवाह कार्य सम्पन्न हुआ। दहेज में बहुत से सामानों के साथ दस हज़ार रूपये नकद मिले। उसी दिन रात को घड़ी, अंगूठी, हार और दस हज़ार नकद लेकर दोनों मित्र चंपत हो गए। कलकत्ता से बनारस, बनारस से इलाहाबाद, दिल्ली, बड़ौदा, बम्बई होते हुए जब दो बर्ष बाद वे लोग पुन: कलकत्ता वापस आए तो उनकी वेशभूषा और चेहरे-मोहरे में काफी बदलाव आ गया था। दोनों लखपति हो गए थे। बिलकुल साहबी ठाठ-बाट हो गया था। दोनों सूट-बूट-टाई पहन कर क्लब, होटल, स्वीमिंगपुल का चक्कर लगाते और कोई नया शिकार तलाशते रहते।
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Old 11-11-2012, 07:52 AM   #15
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हठात एक दिन होटल में उनकी मुलाकात एक अनिंद्य सुन्दरी से हो गई। उसके बड़े भाई कौल साहब ने अपनी बहन से उन लोगों का परिचय कराया। दोनों भाई-बहन कलकत्ता, दार्जिलिंग, सिक्किम आदि घूमने के लिए आए थे। माँ-बाप नहीं थे। करोड़ों के व्यवसाय के मालिक थे कौल साहब। अभी तक कौल साहब का विवाह नहीं हुआ था। उम्र अधिक नहीं थी। देखने में काफी सौम्य-सुन्दर। आकर्षक व्यक्तित्व। शादी के लिए ढेर सारे प्रस्ताव आ रहे थे किन्तु उन्होंने निश्चय कर लिया था कि जब तक उनकी बहन सुनीता की शादी नहीं होगी वह ब्याह नहीं करेंगे। कौल साहब चाहते थे कि कोई सुन्दर और सच्चा लड़का मिल जाए तो सुनीता की शादी कर दें। सुनीता के नाम से जितनी सम्पत्ति है, वही उनके भावी जीवन को सुखमय बनाने के लिए काफी होगी।
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Old 11-11-2012, 07:52 AM   #16
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कौल साहब की बातें सुनकर विघ्नराज ने अमरेश की ओर देखा। अमरेश ने विघ्नराज को आँखें मारी। दूसरे दिन दोनों भाई-बहन को डिनर के लिए होटल में आमंत्रित किया गया। बातचीत के दौरान अमरेश ने विघ्नराज की सम्पत्ति के बारे में बताते हुए कहा, ''जानते हैं कौल साहब, हमारा कारोबार वैसे कोई बड़ा नहीं है। पाराद्वीप में पंद्रह ट्रालर, भुवनेश्वर में तीस ट्रक और चिंगुड़ी मछली पालन के लिए चिलिका में मात्र दो सौ एकड़ जमीन है। दो छोटी-छोटी इण्डस्ट्री थी। देखभाल करने का समय नहीं मिलता था इसलिए पिछले वर्ष बेच दी। सोचते हैं दिल्ली अथवा कलकत्ते में कोई नई इण्डस्ट्री बैठाएँगे। हम लोग आपके समान उतने बड़े बिजनेस मैन तो नहीं हैं किन्तु हमें अपने परिश्रम पर विश्वास है और जो मेहनत करता है उसे ईश्वर भी कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने देते।
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Old 11-11-2012, 07:52 AM   #17
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''वाह, आपका विचार कितना अच्छा है। इतना बड़ा कारोबार होने पर भी आपके मन में थोड़ा-सा भी अहंकार नहीं है। आप तो जानते हैं कि हम लोग पाकिस्तानी आक्रमण के कारण कश्मीर से भाग कर आए। हम लोग अर्थात हमारे पिता जी सिर्फ़ ग्यारह रुपए लेकर दिल्ली आए थे। शुरू-शुरू में वे पुराना डिब्बा खरीदते और बेचते थे और उसी से अपना गुज़ारा करते थे। इसी तरह धीरे-धीरे बिजनस करते हुए हम यहाँ तक पहुँचे हैं। पहले माँ और उसके बाद पिता जी हमें छोड़कर परलोक सिधार गए। हमलोग बिलकुल अनाथ हो गए। सब कुछ रहकर भी अगर सिर पर माँ-बाप का हाथ न रहे तो बड़ा अकेलापन महसूस होता है।'' इतना कहते-कहते कौल साहब का गला रूँध गया। उन्होंने रूमाल से आँसू पोंछते हुए पुन: कहना शुरू किया, ''इतने बड़े कारोबार का भार अचानक मेरे कंधे पर आ पड़ेगा, मैं नहीं जानता था। मैं अकेला आदमी, कहाँ-कहाँ मारा फिरूँ, किस-किस को सँभालूँ? इसीलिए इस तलाश में हूँ कि सुनीता के लिए कोई योग्य लड़का मिल जाए तो शादी करके आधा कारोबार उसको सौंप दूँ। लेकिन आजकल अच्छे आदमी कहाँ मिलते हैं। सबकी निगाह दहेज के रूप में मिलने वाली नकदी पर लगी रहती है। बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि आज का आदमी अपनी मेहनत पर विश्वास न करके दूसरे की धन-सम्पत्ति को फोकट में हड़प लेने की ताक में रहता हैं। अच्छा, आप ही बताएँ यदि ऐसी मनोवृत्ति लेकर हम चलेंगे तो देश का क्या होगा? क्या कभी हमारा राष्ट्र जापान और अमेरिका की तरह विकास कर पाएगा?''
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Old 11-11-2012, 07:53 AM   #18
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''आप बिलकुल ठीक कहते हैं। अपने देश को उन्नति के शिखर पर ले जाने के लिए पहले हमें अपने आपको सुधारना होगा।'' विघ्नराज एवं अमरेश दोनों ने कौल साहब के कथन के प्रति अपनी सहमति जताई। जब उन लोगों की बातें हो रही थीं सुनीता चुपचाप मुँह झुकाए बैठी थी। शायद बड़ों के बीच में बोलना उसे पसंद नहीं था। वह बड़ी शर्मीली लड़की थी सुनीता।

होटल से लौटने के बाद विघ्नराज ने अमरेश से पूछा, ''क्या अमरू, यहाँ दाँव मारने से कैसा रहेगा?''

''अरे पूछता क्या है? यही एक हाथ मारने पर तो हम मालामाल हो जाएँगे। देखते ही देखते करोड़ों के मालिक बन जाएँगे। सुनीता से शादी कर तू उसका कारोबार सँभाल लेना और मुझे अपना बिजनस पार्टनर बना देना।''
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Old 11-11-2012, 07:53 AM   #19
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''शादी के बाद हम अपनी सम्पत्ति के बारे में सुनीता को क्या कहेंगे?'' विघ्नराज ने प्रश्न किया।

''अरे विवाह होने के बाद यदि उन्हें मालूम भी हो गया कि हम लोग फोकट में राम गिरधारी हैं तो क्या फ़र्क पड़ेगा? क्या कर लेंगे वे लोग?'' अमरेश ने ठहाका लगाते हुए कहा।

''तब ठीक है। तू जाकर विवाह प्रस्ताव दे आ।'' विघ्नराज ने कहा।

दूसरे दिन विघ्नराज के विवाह का प्रस्ताव लेकर अमरेश कौल साहब के पास पहुँचा। कौल साहब पहले तो हिचकिचाए फिर बोले, ''देखिए, हम लोग रूढ़िवादी परिवार के हैं। यद्यपि विघ्नराज अच्छा लड़का है फिर भी हमें उसके माँ-बाप से बातचीत करनी होगी। इसके अलावा सुनीता से भी इस विषय में पूछना होगा। इसलिए अभी से मैं कुछ नहीं कह सकता।''
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Old 11-11-2012, 07:53 AM   #20
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'ज़रूर-ज़रूर, मैं विघ्नराज के पिता जी को बुला लाऊँगा। आपकी ओर से कौन बातचीत करेंगे?' अमरेश ने पूछा।

''हमारे मामा। मैं उन्हें खबर कर दूँगा।'' कौल साहब ने भी अपनी सहमति दी।

बातचीत के अनुसार तिथि निश्चित की गई। विघ्नराज की ओर से उसका भाड़े का बाप आया। कौल साहब के मामू भी समय पर पहुँच गए। कुछ देर बातचीत चलने के बाद विवाह की तारीख तय हुई। उससे पहले निबन्ध करने की तिथि निश्चित की गई।

सप्ताह भर बाद अमरेश को बुलाकर कौल साहब ने कहा, ''आप तो जानते हैं, व्यापारी समुदाय का मनोभाव कैसा होता है। इसलिए निर्बन्ध के समय अगर आपकी ओर से यथेष्ट गहने नहीं दिए गए तो समाज में चर्चा शुरू हो जाएगी। अब तो सिर्फ़ दो दिन रह गए हैं। मुझे मालूम हैं कि आप इतना जल्द इतने सारे रुपए जोगाड़ नहीं कर पाएँगे। मैं तीन लाख रुपए का चैक काट देता हूँ। आप उसी रुपए से सुनीता को हीरे का एक बढ़िया सेट देंगे। ताकि हमारे कुटुम्बजनों को बोलने का मौका न मिले।''
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