25-01-2011, 02:31 PM | #11 |
VIP Member
|
Re: "अमृतवाणी"
पानी स्थिर और निर्मल होता है, परन्तु बाहर की हवा उसे चंचल बना देती है ! उसी तरह उद्वेग हमे असहनशील बन देता है ! चित पर बाहरी हवा अर्थात उद्वेगों का असर नही होगा तो वह विकार शून्य हो जायेगा ! हर परिस्थिति में सहनशील रहना ही भक्त्त की पहचान है ! Water is steady and clean but outer wind makes it restless!
Same way restlessness makes us intolerant! Intellect will be faultless if outer environment or restlessness will not effect it! To be tolerant in every condition is the sign of devotee!
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
25-01-2011, 09:55 PM | #12 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
उपनिषदों मै एक स्लोक कहा गया है
"न तत्र सुर्योभाति, न चन्द्र तारकं ना विधुतो भाति, कुतोयमनुभाती. तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति.." अर्थात इस संसार एवम इसकी प्रत्येक ईकाई को न तो सूर्य, न चन्द्र, न बिधुत, और न अग्नि प्रकाशित करते हैं वरन एक अद्वितीय आत्मा (इश्वर) ने ही ये सब प्रकाशित किये हैं अद्वितीय आत्मा ज्योतियों की भी ज्योति है यह आत्मा हमारे अन्दर भी है .परक्या कारण है कि हम सुख के लिए जीवन भर अन्धकार मैं भटका करते हैं. |
25-01-2011, 09:56 PM | #13 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
उपनिषदों मै एक स्लोक कहा गया है
"न तत्र सुर्योभाति, न चन्द्र तारकं ना विधुतो भाति, कुतोयमनुभाती. तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति.." अर्थात इस संसार एवम इसकी प्रत्येक ईकाई को न तो सूर्य, न चन्द्र, न बिधुत, और न अग्नि प्रकाशित करते हैं वरन एक अद्वितीय आत्मा (इश्वर) ने ही ये सब प्रकाशित किये हैं अद्वितीय आत्मा ज्योतियों की भी ज्योति है यह आत्मा हमारे अन्दर भी है .पर क्या कारण है कि हम सुख के लिए जीवन भर अन्धकार मैं भटका करते हैं. |
25-01-2011, 10:07 PM | #14 |
Exclusive Member
|
Re: "अमृतवाणी"
अच्छी जानकारी बाँट रहीँ हैँ भुमी जी
आपको ++
__________________
दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
25-01-2011, 10:13 PM | #15 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
|
25-01-2011, 10:45 PM | #16 |
Administrator
|
Re: "अमृतवाणी"
भूमि जी, बहुत ही लाजवाब सूत्र बनाया है आपने, इसकी जितनी प्रशंशा की जाये कम होगी.
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
26-01-2011, 03:23 AM | #17 |
Special Member
Join Date: Nov 2010
Location: ♕★ ★ ★ ★ ★♕
Posts: 2,316
Rep Power: 28 |
Re: "अमृतवाणी"
|
26-01-2011, 01:28 PM | #18 |
Diligent Member
Join Date: Nov 2010
Location: vadodara
Posts: 1,424
Rep Power: 22 |
Re: "अमृतवाणी"
ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद
सिकंदर जी और भूमि जी.............. |
26-01-2011, 01:42 PM | #19 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,421
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
सूर्य से इस सारे विश्व में प्राण का संचार होता रहता है. वृक्ष-वनस्पति, पशु-पक्षी आदि प्रकृति से सहज क्रम में सीमित प्राण शक्ति धारण करते रहते हैं.
मनुष्य में यह क्षमता है कि वह भावनाओं के अनुरुप बडी मात्रा में प्राण शक्ति को आकर्षित कर सकता है, धारण कर सकता है. शरीर से सामान्य दिखने पर भी माहाप्राण-माहामानवों ने असाधारण कार्य किए हैं. हम भी उज्जवल भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष प्राण शक्ति धारण करने का प्रयोग करते हैं. कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें. ध्यान करें कि हमारे चारों और श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण का समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें कि- ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यदभद्रं तन्नऽआसुव. इस महामंत्र का अर्थ है " हे विश्व के स्वामी, हे माहाप्राण, हमें बुराइयों से छुड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये. "
__________________
|
26-01-2011, 01:43 PM | #20 | |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
Quote:
आप लोग सूत्र पर पधारे और उत्साहवर्धन किया आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद |
|
Bookmarks |
Tags |
सत्संग, literature |
|
|