19-04-2014, 11:13 PM | #11 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
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19-05-2014, 09:24 PM | #12 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
क्या भगतसिंह को गोली मारी गई ?...... ये ऐसा छुपा तथ्य है,जिससे अधिकांश लोग अनजान है। वास्तव में शहीद भगतसिंह,राजगुरु और सुखदेव को २३ मार्च १९३० को शाम ७.१५ पर फांसी दे दी गई परन्तु फांसी इस प्रकार दी गई कि तीनों की गर्दनें टूटी व अध्र्दमूच्र्छित अवस्था में उन्हे सतलज के किनारे ले जाकर गोलियों से भूना गया। आईए,पूर्ण विवरण से परिचित हो। पं.जवाहरलाल नेहरु के इलाहाबाद स्थित आनन्द भवन में एक माली काम करता था,जिसका नाम दिलीपसिंह इलाहाबादी था। इसी दिलीपसिंह ने कुछ ब्रिटीश आफिसरों के कहने पर साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त नेहरु जी से अभद्रता की थी,और ब्रिटीशर्स की नजरों में चढ गया। उसे हर प्रकार की सुविधा दी जाने लगी और उसे लाहौर भेज दिया गया। दिलीपसिंह इलाहाबादी के गोद लिए लडके का पुत्र अर्थात दिलीपसिंह के पौत्र का नाम कुलवन्तङ्क्षसह कुनेर है,जो आज भी डर्बी यू.के. में रहते है। इन्ही की लिखी पुस्तक,जो २८ अक्टूबर को २००५ में प्रकाशित हुई है,उसमें इस छुपे तथ्य का रहस्योद्घाटन किया गया है :......... eखबरटुडे के सौजन्य से :.........
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04-07-2014, 10:54 AM | #13 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
आज खेलजगत,राजनीती क्षेत्रों में भारत रत्न मिलता है ,परन्तु इन क्रान्तिकारियो को आज भी भारत रत्न से वंचित क्यों रखा गया है, इनको भारत रत्न मिलना चाहिए !सहमत हो तो प्रतिक्रिया दे !
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04-07-2014, 09:24 PM | #14 | |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
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रफ़ीक जी ने भी यहाँ पर एक ऐसा प्रश्न उठाया है जो सभी देशभक्तों के मन में उठा करता है. मेरा मानना है कि इन अमर शहीदों का जीवन और त्याग ही उन्हें सच्चा भारत रत्न बनाता है. जीते जी उन्होंने कभी किसी सरकारी या गैर-सरकारी सम्मान की इच्छा नहीं रखी. उनका एक ही लक्ष्य था - भारत की आज़ादी. इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने अपने जीवन का बलिदान कर दिया. ज़रूरत इस बात की है कि शहीदों के विचारों का क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठ कर अधिकाधिक प्रचार किया जाये जिन्होंने देश और देशप्रेम को सर्वोपरि रखा. इस पृष्ठभूमि में मैं यही कहना चाहता हूँ कि शहीदे-आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाकुल्लाह खां तथा अन्य अनेकों क्रांतिकारी हमारे हीरो हैं, हमारे असली भारत रत्न हैं. सरकार द्वारा घोषित भारत रत्नों से किसी मायने में कम नहीं है.
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07-07-2014, 02:32 PM | #15 | |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
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10-07-2014, 06:41 PM | #16 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
अंतिम भेंट......... ‘भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव इन महान क्रांतिकारियोंको फांसीका दंड सुनाया गया था । उस समय उनके साथ इस षड्यंत्रमें सहभागी शिवकर्मा, जयदेव कपूर एवं अन्य सहयोगियोंको आजन्म कारावासका दंड सुनाया गया था । जिन सहयोगियोंको आजन्म कारावास मिला था उन्हें अगले दिन बंदीगृह ले जानेवाले थे । तब बंदीगृहके वरिष्ठ अधिकारियोंने भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेवसे अंतिम भेंट करनेकी उन्हें अनुमति दी । इस भेंटमें जयदेव कपूरने भगतसिंहसे पूछा, ‘आपको फांसी दी जा रही है । युवावस्थामें मृत्युका सामना करते हुए क्या आपको दु:ख नहीं हो रहा ? तब भगतसिंहने हंसकर कहा, ‘अरे ! मेरे प्राणोंके बदलेमें ‘इंकलाब जिंदाबाद’ की घोषणा हिंदुस्थानके गली-कूचोंमें पहुंचानेमें मैं सफल हुआ हूं और इसे ही मैं अपने प्राणोंका मूल्य समझता हूं । आज इस बंदीगृहके बाहर मेरे लाखों बंधुओंके मुखसे मैं यही घोषणा सुन रहा हूं । इतनी छोटी आयुमें इससे अधिक मूल्य कौन-सा हो सकता है ?’ उनकी तेजस्वी वाणीसे सभीकी आंखें भर आर्इं । सभीने बडी कठिनाईसे अपनी सिसकियां रोकीं । तब उनकी अवस्था देखकर भगतसिंह बोले, ‘मित्रों, यह समय भावनाओंमें बहनेका नहीं है । मेरी यात्रा तो समाप्त हो ही गई है; परंतु आपको तो अभी अत्यंत दूरके लक्ष्यतक जाना है । मुझे विश्वास है कि आप न हार मानेंगे और न ही थककर बैठ जाएंगे ।’ उन शब्दोंसे उनके सहयोगियोंमें अधिक जोश उत्पन्न हुआ । उन्होंने भगतसिंहको आश्वासन दिया कि ‘देशकी स्वतंत्रताके लिए हम अंतिम सांसतक लढेंगे’, और इस प्रकार यह भेंट पूर्ण हुई । इसके पश्चात् भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेवके बलिदानसे हिंदुस्थानवासियोंके मनमें देशभक्तिकी ज्योत अधिक तीव्रतासे जलने लगी’ :......... (‘साप्ताहिक जय हनुमान’, १३.२.२०१०) Bal Sanskar के सौजन्य से :.........
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11-07-2014, 09:37 AM | #17 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
भगतसिंह में सभी धर्म की एकता झलकती है,भगतसिंह का जन्म सिख परिवार में हूआ,वही दिल में हिन्दूस्तान की आजादी का लक्ष्य था और जुबां पर इस्लामी नारा "इंकलाब जिंदाबाद"
इस प्रकार सभी धर्मो को ऐसे शहीदों को सलाम करना चाहिए सहमत हो तो प्रतिक्रिया दे
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11-07-2014, 10:38 PM | #18 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
प्रिय रफ़ीक जी, मैं अपनी ओर से सीधे सीधे कोई प्रतिक्रिया न दे कर निम्नलिखित दो प्रसंग उद्धृत करना चाहता हूँ:-
सन 1930 में भगत सिंह जेल में रहते हुये एक लेख लिखा था “मैं नास्तिक क्यों हूँ?” 1. भगत सिंह एक बहुत बड़े विचारक थे. 23 साल की छोटी सी उम्र में ही उसने ढेर सारी किताबें पढ़ डाली थी. भगत के सोचने का तरीका बेहद तार्किक व विवेकपूर्ण था. अपने विवेक और तर्क शक्ती के आधार पर 23 साल की छोटी सी उम्र में ही वह समझ गए थे कि समाज के असली दुश्मन ईश्वर व धर्म हैं. 23 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह फाँसी पर झूल गये थे. भगत सिंह का सपना भारत को अंग्रेज से आजाद कराना मात्र नहीं था. भगत का सपना इससे कहीं बड़ा था. उसका सपना था भारतीय समाज को ईश्वर व धर्म की गुलामी से मुक्ति दिलाना. भगतसिंह तर्क और विवेक को जीवन का आधार मानते थे. उनकी मान्यता थी कि धर्म और ईश्वर परआधारित जीवन पद्धति मनुष्य को कमजोर बनाती है. इसके विपरीत नास्तिकता मनुष्य को अपने भीतर शक्ति की प्रेरणा देता है. ** 2. महात्मा गांधी ने भले बरसों बाद अपनी जीवनी में हसरत मोहानी को पूर्ण स्वराज्य की मांग करने वाला पहला शख्स बताकर अपना दिल हल्का करने की कोशिश की हो, लेकिन कांग्रेस के आभामंडल की रोशनी में लिखे गए ज्यादातर इतिहास में न सिर्फ पूर्ण स्वराज्य बल्कि स्वदेशी आंदोलन को भी महात्मा गांधी से ही जोड़कर देखा जाता रहा है। बाल गंगाधर तिलक को हसरत मोहानी अपना उस्ताद मानते थे और इंक़लाब ज़िंदाबाद नारे को भी हसरत मोहानी से ही जोड़कर देखा जाता है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी और महान उर्दू शायर हसरत मोहानी ने बरसों पहले लिखा था – हज़ार खौफ़ हों पर ज़ुबां हो दिल की रफ़ीक़ यही रहा है अजल से कलंदरों का तरीक़....
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14-07-2014, 02:03 PM | #19 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
rajnish manga जी आपने बहुत उपयोगी जानकारी दी ,मेरा धन्यवाद स्वीकार करे
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18-07-2014, 11:07 AM | #20 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
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