25-11-2010, 08:04 PM | #11 |
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Re: ऐसी की तैसी।
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25-11-2010, 09:45 PM | #12 |
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Re: ऐसी की तैसी।
अरविन्द भाई नमस्कार ! क्या सूत्र बनाया है कि मुझे भी ममता, जया, अम्बिका और रेणुका आपको दे डालीं.
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26-11-2010, 06:19 AM | #13 | |
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Re: ऐसी की तैसी।
Quote:
मैंने सोचा था की आप अपने वाली से खुश हो
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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26-11-2010, 12:45 PM | #14 |
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Re: ऐसी की तैसी।
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26-11-2010, 04:33 PM | #15 | |
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Re: ऐसी की तैसी।
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आप चपाती के घी में कितना आता मिलते हो, दाल के कितने कण अपनी कटोरी में लेते हो, केसर की कितनी पत्तियां अपने नहाने के पानी में डालते हो, उबटन में कितने टन गुलाब की पत्तियां पिसवाते हो ????...... तनिक आभास तो हो ..... Last edited by munneraja; 26-11-2010 at 04:41 PM. |
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26-11-2010, 04:38 PM | #16 |
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Re: ऐसी की तैसी।
भ्राता काहे लड़के का बड़ा गर्क करने तुले है सर्दिया शुरू हो गयी है. अब भी नहाने के लिए कह रहे हो. मैंने तो सूना है मार्च तक स्नान करना पाप होता है
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26-11-2010, 04:44 PM | #17 | |
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Re: ऐसी की तैसी।
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बहुरानी ने खुशबू में लबरेज होने के लिए धमका दिया है इनको वरना खाना नही मिलेगा ... आप भी एक बार केसर क्यारी में स्नान करके देखिये तो बाहर नहीं आयेंगे गुसलखाने से .... |
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26-11-2010, 04:55 PM | #18 |
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Re: ऐसी की तैसी।
भ्राता, अभी प्रण लिया है जब तक कम्पनी पगार नहीं बढ़ाएगी सोने की थाली में खाना नहीं खाउंगा, केसर की क्यारी तो क्या सादे पानी से भी नहीं नहाऊंगा और फ्री की मिली तो भी शराब नहीं छोडूंगा.
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26-11-2010, 05:08 PM | #19 | |
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Re: ऐसी की तैसी।
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देखो मुझे तो घरवाली के डर के मरे गुसलखाने में जाना पड़ता है अपने हाथ बाल्टी में छाप्छ्पाने होते हैं फिर मग्गे से पानी गुसलखाने में बिखेरना होता है और फिर अपने गीले हाथ को बदन पर फिरा कर धोये हुए चड्डी बनियान पहन कर बाहर तैयार होकर ऑफिस भाग लेता हूँ आपको बहुरानी कुछ कहती नहीं..., आप पर भगवान मेहरबान है |
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27-11-2010, 07:20 AM | #20 |
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Re: ऐसी की तैसी।
भ्रष्टाचार
आज के अखवार में, निकला है एक विज्ञापन, संगठित भ्रष्टाचार में शामिल हों, जम कर रिश्वत खाएं, विदेश यात्रा पर जाएँ, पसंदीदा जगह पर पोस्टिंग, समय से पहले प्रमोशन, अच्छे अफसरों में गिनती, पड़ोसी आदर से नाम लें, रिश्तेदार नजरें झुका कर बात करें, कोई डर नहीं, कोई खतरा नहीं, सीवीसआई, पुलिस, अदालत, सरकार, सब मदद करने को तैयार, सावधान, अकेला भ्रष्टाचारी मार खाता है, संगठित भ्रष्टाचारी पूजा जाता है.
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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