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#11 |
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![]() दुनिया में सबसे आसान क्या है और सबसे मुश्किल क्या है ? 1. सबसे आसान- दूसरो की गलती बताना। 2. सबसे मुश्किल- अपनी गलती मानना। ** 1. मानव स्वभाव भी अजीब है, जो अपनी ग़लतियों से ही सबक लेता है, उदाहरणों से नही। 2. जो सबकी प्रशंसा करते हैं दरअसल वे किसी की भी प्रशंसा करते हैं। 3. मैं अपने उस कार्य में असफल होना चाहूँगा जिसमें आगे मुझे सफलता अवश्य मिले। 4. उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं, तो विवेक के अधिक करीब होते हैं। 5. ज़रा शिद्दत से तारे तोड़ने की ज़िद तो ठानो तुम, यदि किस्मत काम न आई तो मेहनत काम आएगी। ** |
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#12 |
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![]() ग़ज़ल / अर्थ बहुत ही गहरे हैं |
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#13 |
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बेहतरीन........................................... ....
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#14 |
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बड़े बड़े देशों में ...
आभार: जुगनू शारदेय जी एक सिनेमाई वाक्य है : बड़े बड़े देशों में छोटी छोटी बातें होती रहती हैं। यह कहना मेरे लिए मुश्किल है कि यह मौलिक सोच है या हिंदी सिनेमा की परंपरा में प्रेरित है। यह वाक्य राजनीति के लिए इस्तेमाल हो सकता है। हमारे देश की राजनीति में इसका इस्तेमाल भी होता है। अंतर इतना है कि सिनेमा की समझ सत्ता बचाने के सोच में बदल कर हो जाता है कि बड़ी बड़ी सत्ता के लिए समर्थन देने वाले छोटे दलों का ख्याल रखा जाता है। सिनेमा में ऐसे विचार प्रेम करने के लिए और मारपीट करने के लिए एकता कपूर – विद्या बालन की जोड़ी के डर्टी पिक्चर के पहले हुआ करता था। डर्टी पिक्चर की सफलता के बाद सिनेमा का नारा वही हो गया है, जो इस पेशे का नीति वाक्य है कि एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट। जब एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट नहीं होता है, तो कोई प्लेयर हो जाता है तो कोई एजेंट विनोद और होता है … एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट … तो कोई कहानी सफलता की कहानी बन जाती है। पानसिंह तोमर न - न करते हुए हिट भी हो जाता है और सांसदों की आलोचना का बहाना भी। इसी से आप सिनेमा की ताकत समझ सकते हैं कि नैतिकता के खिलाड़ियों को भी अपनी बात कहने के लिए उसका सहारा लेना पड़ता है। लेकिन सिनेमा को अपने एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट के खेल में मुकाबला करना पड़ता है – अब तक एंटरटेनमेंट के बादशाह माने जाने वाले बिना खेल के खेल क्रिकेट से। दक्षिण भारत मेंसिनेमा के व्यक्ति भगवान हो जाते हैं। उनके मंदिर भी बन जाते हैं। हमारे यहां – हिंदी पट्टी में तो शायद सिनेमा का कोई व्यक्ति भगवान नहीं बना है। हालांकि हम भी कम दीवाने नहीं हैं। शायद अमिताभ बच्चन का कोई मंदिर पश्चिम बंग में बनाया गया था। लेकिन हम सिनेमा के किसी व्यक्ति को भगवान नहीं कहते। बहुत हुआ तो अमिताभ बच्चन को बिग बी कह डालते हैं और शाहरुख खान को किंग खान। यह कहना भी या तो फिल्मी पत्रकारिता या विज्ञापन का काम करने वालों की ही नारेबाजी या लफ्फाजी होती है। आखिर विज्ञापन एजेंसियों ने ही अमिताभ बच्चन को सदी का यानी बीसवीं सदी का महानायक बना दिया है। लेकिन क्रिकेट के एक खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को विज्ञापन एजेंसियों से ज्यादा क्रिकेट के कारोबारियों ने उन्हें भगवान बना दिया – फिर हमने भी उन्हें क्रिकेट का भगवान मान लिया। इस भगवान को इस देश का एक बहुत बड़ा सा छोटा सम्मान भारत रत्न चाहिए – ऐसा इस भगवान के भक्तों की मांग है। |
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#15 |
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यह भी एक सच हैकि हमारे देश में भारत रत्न से ले कर पद्मश्री तक जो सरकारी सम्मान है, वह अब वाद-विवाद का प्रिय विषय हो कर रह गया है। इसके किसी नियम में हेर फेर कर तय किया गया कि खिलाड़ियों को भी भारत रत्न दिया जाए। मांग शुरू हो गयी कि तेंदुलकर को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। इस भगवान की बड़ी बड़ी उपलब्धियां हैं। उन्होने बड़ी प्रतीक्षा के बाद बांग्ला देश के खिलाफ अपना सौवां शतक भी बनाया। यह भी मजे की बात है कि भगवान जीता और भारत हारा। यूं भी आज के भारत में इतने भगवान हैं कि उनसे भारत लगातार हार रहा है।
पता नहीं क्या वजह है, और हार कोई कारण तो हो नहीं सकता। हमारा देशप्रेम हमें समझाता है कि सारे जहां से हारो, बस पाकिस्तान से न हारो। वहां जीत लिया तो जग जीत लिया। हिंदुत्व की इससे बड़ी कोई और जीत नहीं हो सकती। फिर भी कोई तो बात होगी कि इस बिना खेल के खेल के प्रायोजकों ने इस पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। क्रिकेट का एक बड़ा प्रायोजक कह रहा है कि चेंज द गेम। उसके विज्ञापन में एक अनजान लड़का रॉकस्टार रणवीर कपूर को समझा रहा है कि थोड़ा फुटबाल भी खेल लिया करो। और वह भी कह रहे हैं कि चेंज द गेम। |
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#16 |
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बहुत बढ़ीया !
मित्र अब तक पढी पोस्टों के सन्दर्भ में एक छोटी टीप्पणी— ..सोये हुए को जगाना बहुत ही आसान है ! हल्की सी आहट पर भी जाग जाता है !! ...पर जागे हुए के भ्रम में सोये हुओ को जगाने में सदियां बित जाती है !!! अपने देश के लोग वर्तमान में ऐसी ही अवस्था में है । अंग्रेजो के ज़माने सरीखी आततायी बर्बरता ही शायद नये युग के निर्माण का सबब बने !!! |
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#17 | |
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एक बार फिर आपकी विचारोत्तेजक टिप्पणी के लिए मेरा आभार स्वीकार करें, अरविंद जी. Last edited by rajnish manga; 21-08-2013 at 10:36 AM. |
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#18 |
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rajnish manag ji
बहुत ही अच्छी सीख हम सब को अपने जीवन में उतारने के लिए. अच्छे जीवन बिताने का रह्स्य सामने रख दिया है. धन्यवाद |
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#19 |
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#20 |
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यह छोटी बात नहीं है
(इंटरनेट से साभार) नहीं। वे तीनों परिहास नहीं कर रहे थे। उपहास तो बिलकुल ही नहीं कर रहे थे। मुझे आकण्ठ विश्वास और अनुभूति है कि वे तीनों मुझे भरपूर आदर और सम्मान देते हैं। हाँ, साप्ताहिक उपग्रह में मेरे स्तम्भ ‘बिना विचारे’ में मेरे लिखे पर तनिक विस्मित होकर प्रसन्नतापूर्वक बात कर रहे थे। तीनों अर्थात् सर्वश्री डॉक्टर जयन्त सुभेदार, वरिष्ठ अभिभाषक मधुकान्त पुरोहित और डॉक्टर समीर व्यास। अपनी और अपनी उत्तमार्द्ध की नियमित जाँच कराने के लिए जब डॉक्टर सुभेदार साहब के कक्ष में पहुँचा तो मधुभैया के कागज देखे जा रहे थे। मैं पंक्तिबद्ध हो गया। मेरा क्रम आने पर मैंने अपने कागजात दिखाए और डॉक्टर साहब से निर्देश लेने के बाद अपनी ओर से कुछ जानना चाहा तो मधु भैया तपाक् से बोले - ‘इनसे सम्हल कर बात करना। पता नहीं ये किस बात पर कब, क्या लिख दें!’ सुभेदार साहब ने हाँ में हाँ मिलाई और उतने ही तपाक् से बोले - ‘इन्हें तो लिखने के लिए कोई सब्जेक्ट चाहिए। आपकी-हमारी बातों में से अपना सब्जेक्ट निकाल लेंगे।’ डॉक्टर समीर निःशब्द मुक्त-मन हँस दिए। हँस तो तीनों ही रहे थे। मुझे कोई उत्तर सूझ नहीं पड़ा। उनकी हँसी में शरीक होने में ही मेरी भलाई थी। मैं शरीक हो लिया। मेरी उत्तमार्द्ध के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। ऐसे क्षणों में सबका साथ देना ही बुद्धिमत्ता होती है। सो, वे भी सस्मित हम चारों को देखने लगी। ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ था। काफी पहले, वासु भाई (श्री वासुदेव गुरबानी) कम से कम दो बार कह चुके थे - ‘दादा! जिन छोटी-छोटी बातों की हम लोग अनदेखी कर देते हैं आप उन्हीं को अपनी कलम से बड़ी और महत्वपूर्ण बना देते हो।’ ऐसा ही कुछ, ‘विस्फोट’ वाले संजय तिवारी (नई दिल्ली) आठ-दस बार कह चुके हैं। |
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छोटी छोटी बातें, motivating |
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