13-11-2010, 06:13 PM | #11 |
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बात राजस्थान की चल रही है तो यहाँ के अनेक राजाओं में एक और यशस्वी राजा जसवंत सिंह जी और उनकी हाड़ी रानी जसवंत दे की भी चर्चा करली जाए | ये वही जसवंत सिंह थे जिन्होंने एक वीर व निडर बालक द्वारा जोधपुर सेना के ऊँटों की व उन्हें चराने वालों की गर्दन काटने पर सजा के बदले उस वीर बालक की स्पष्टवादिता,वीरता और निडरता देख उसे सम्मान के साथ अपना अंगरक्षक बनाया और बाद में अपना सेनापति भी | यह वीर बालक कोई और नही इतिहास में वीरता के साथ स्वामिभक्ति के रूप में प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ था | महाराज जसवंत सिंह जिस तरह से वीर पुरूष थे ठीक उसी तरह उनकी हाड़ी रानी जो बूंदी के शासक शत्रुशाल हाड़ा की पुत्री थी भी अपनी आन-बाण की पक्की थी | १६५७ ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर उसके पुत्रों ने दिल्ली की बादशाहत के लिए विद्रोह कर दिया अतः उनमे एक पुत्र औरंगजेब का विद्रोह दबाने हेतु शाजहाँ ने जसवंत सिंह को मुग़ल सेनापति कासिम खां सहित भेजा | उज्जेन से १५ मील दूर धनपत के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ लेकिन धूर्त और कूटनीति में माहिर औरंगजेब की कूटनीति के चलते मुग़ल सेना के सेनापति कासिम खां सहित १५ अन्य मुग़ल अमीर भी औरंगजेब से मिल गए | अतः राजपूत सरदारों ने शाही सेना के मुस्लिम अफसरों के औरंगजेब से मिलने व मराठा सैनिको के भी भाग जाने के मध्य नजर युद्ध की भयंकरता व परिस्थितियों को देखकर ज्यादा घायल हो चुके महाराज जसवंत सिंह जी को न चाहते हुए भी जबरजस्ती घोडे पर बिठा ६०० राजपूत सैनिकों के साथ जोधपुर रवाना कर दिया और उनके स्थान पर रतलाम नरेश रतन सिंह को अपना नायक नियुक्त कर औरंगजेब के साथ युद्ध कर सभी ने वीर गति प्राप्त की |इस युद्ध में औरग्जेब की विजय हुयी | महाराजा जसवंत सिंह जी के जोधपुर पहुँचने की ख़बर जब किलेदारों ने महारानी जसवंत दे को दे महाराज के स्वागत की तैयारियों का अनुरोध किया लेकिन महारानी ने किलेदारों को किले के दरवाजे बंद करने के आदेश दे जसवंत सिंह को कहला भेजा कि युद्ध से हारकर जीवित आए राजा के लिए किले में कोई जगह नही होती साथ अपनी सास राजमाता से कहा कि आपके पुत्र ने यदि युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया होता तो मुझे गर्व होता और में अपने आप को धन्य समझती | लेकिन आपके पुत्र ने तो पुरे राठौड़ वंश के साथ-साथ मेरे हाड़ा वंश को भी कलंकित कर दिया | आख़िर महाराजा द्वारा रानी को विश्वास दिलाने के बाद कि मै युद्ध से कायर की तरह भाग कर नही आया बल्कि मै तो सेन्य-संसाधन जुटाने आया हूँ तब रानी ने किले के दरवाजे खुलवाये | लेकिन तब भी रानी ने महाराजा को चाँदी के बर्तनों की बजाय लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा और महाराजा द्वारा कारण पूछने पर बताया कि कही बर्तनों के टकराने की आवाज को आप तलवारों की खनखनाहट समझ डर न जाए इसलिए आपको लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा गया है | रानी के आन-बान युक्त व्यंग्य बाण रूपी शब्द सुनकर महाराज को अपनी रानी पर बड़ा गर्व हुआ | |
13-11-2010, 06:34 PM | #12 |
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अपने को राजपूत कहते हो ?
एक गांव में प्रतापनेर गद्दी के राजा भेष बदल कर गये और एक दरवाजे पर पडे तख्त पर बैठ गये। गांव राजपूतों का कहा जाता था। सभी अपने अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। घर के मर्द सभी खेती किसानी और अपने अपने कामो को करने के लिये गांव से बाहर गये थे। कोई भी दरवाजे पर पानी के लिये भी पूंछने के लिये नही आया। घर की बडी बूढी स्त्रियां बाहर निकली और घूंघट से देखकर फ़िर घर के भीतर चली गयीं,दोपहर तक वे जैसे बैठे थे वैसे ही बैठे रहे। दोपहर को घर के मर्द आये और उनसे पहिचान निकालने की बात की कि कौन और कहां से आये है क्या काम है आदि बातें कीं,जब उनकी कोई पहिचान नही निकली तो उन्होने भी कोई बात करने की रुचि नही ली और अपने अपने अनुसार घर के भीतर ही जाकर भोजन आदि करने के बाद फ़िर अपने अपने कामों को करने के लिये चले गये। राजा साहब शाम को अपने राज्य की तरफ़ प्रस्थान कर गये। दूसरे दिन वे उसी गांव के पास वाले गांव में गये वहां के लोग भी अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। वे एक घर के बाहर पडे तख्त पर जाकर बैठ गये,जैसे ही वे तख्त पर बैठे घर से एक बच्चा निकला और उनके पैर छूकर घर के अन्दर वापस चला गया,घर से एक बुजुर्ग स्त्री निकली और एक दरी तथा तकिया लाकर उस तख्त पर बिछा दी। उसने जब तक दरी और तकिया लगायी तब तक वही बच्चा एक प्लेट में मिठाई और पानी लेकर आया,राजा साहब के आगे रखकर सिर नीचे करके खडा हो गया,राजा साहब ने प्लेट से एक टुकडा मिठाई का उठाया और खाकर पानी पिया और तकिया के सहारे आराम करने की मुद्रा में लेट गये। दोपहर को उस घर के मर्द काम धन्धे से वापस आये तो उन्हे तख्त पर लेटा देखकर घर के लोगों को डांटने लगे कि लकडी के तख्त पर केवल दरी ही क्यों बिछाई कोई गद्दा बिछाना चाहिये था। जल्दी से आकर उन्होने राजा साहब के नीचे गद्दा लगाया और उनके गांव आदि के बारे में कोई बात नही पूंछ कर भोजन के लिये गुहार की कि वे उनके साथ चल कर चौका में भोजन करें। राजा साहब ने उनके साथ चौका में भोजन के लिये पीढा पर बैठ गये और सभी लोगों के सामने भोजन आने का इन्तजार किया जैसे ही सभी लोगों के सामने भोजन की थालियां आ गयीं सभी लोगों ने पहले राजा साहब को भोजन करने के लिये प्रार्थना की,राजा साहब ने भोजन का ग्रास लेकर जैसे ही ग्रहण किया सभी घर के लोगों ने भोजन करना शुरु कर दिया। राजा साहब को भूख तो नही थी लेकिन जानबूझ कर वे काफ़ी समय तक भोजन करते रहे,जब तक उन्होने भोजन किया,तब तक घर के बाकी के मर्द खाना खा चुकने के बाद भी राजा साहब के भोजन को समाप्त करने का इन्तजार करने लगे,राजा साहब ने जैसे ही हाथ धोये,घर के बाकी के मर्दों ने भी अपने अपने हाथ धोकर भोजन समाप्त किया। राजा साहब को तम्बाकू पान और हुक्का आदि के लिये पूंछ कर और राजा साहब के मना करने पर उन लोगों ने उनके आने का कारण पूंछा कि वे कहां से आये है,और क्या काम है,राजा साहब ने अपने को गुप्त रखने के बाद बताया कि वे किसी रिस्ते की तलाश में जो उनकी लडकी के लिये मिले,कोई अच्छा घर और वर मिलने के बाद वे उनसे मिलेंगे,इतना कहकर वे अपने राज्य को वापस चले गये। तीसरे दिन राजा साहब फ़िर से एक गांव में गये और किसी दरवाजे पर जाकर बैठ गये। उस गांव के लोग भी अपने अपने नामों के आगे सिंह लगाया करते थे। जैसे भी जाकर वे तख्त पर बैठे,दरवाजे पर बैठा एक वृद्ध व्यक्ति उनसे सवाल जबाब करने लगा,उनकी पहिचान को पूंछने लगा,उनकी जाति पांति के बारे में पूंछने लगा। राजा साहब ने अपने को छुपाते हुये कहा कि वे जाति से कोरी है,वह वृद्ध हडक कर बोला कि कोरी को हिम्मत कैसे हुयी कि वह उनके तख्त पर आकर बैठ गया,राजा साहब उसके दरवाजे से उठ कर अपने राज्य को वापस चले गये,उन्होने जबाब कुछ नही दिया। यह तीनो गांव उन्ही की राज्य में आते थे,और राजपूतों की गद्दी होने के कारण उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी कि वे अपने जाति और बिरादरी के लिये हितों के काम करें। कुछ समय बाद उन्होने उन तीनों गावों के उन्ही लोगों को बुलाया,जिनके दरवाजे पर वे जाकर बैठे थे। उन लोगों ने आकर राजा साहब को देखा तो उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी। कि यह आदमी तो उनके घर के दरवाजे पर बैठा थ,सभी अपने अपने मन में अपने अपने मन के अनुसार सोचने लगे कि उन्होने क्या क्या बर्ताव उनके साथ किया था। राजा साहब ने भरी सभा में पहले गांव वाले व्यक्ति को बुलाया और पूंछा कि वह अपने नाम के आगे सिंह कैसे लगाने लगा,उस व्यक्ति ने जबाब दिया कि उसके पूर्वज भी सिंह लगाया करते थे इसलिये उसने अपने नाम के आगे सिंह लगाना शुरु किया था। भाटों को बुलाकर उस गांव के इतिहास के बारे में पता लगाया गया,उस गांव की पुरानी नींव वास्तव में किसी राजपूत की ही थी,लेकिन राजपूत रानी के मरने के बाद किसी बेडिनी को घर में घर में बिठा लेने के कारण जो औलाद पैदा हुयी वह बाप के नाम का सिंह तो लगाने लगी लेकिन राजपूती बाना सही नही रख पायी। धीरे धीरे खून के अन्दर ठंडक आने लगी और राजपूती का खून खून को आकर्षित नही कर पाया। फ़लस्वरूप राजा को बिना किसी भोजन पानी के और मान मनुहार के वापस आना पडा,कारण राजपूती खून उन लोगों में होता तो वे अपने खून को पहिचान कर लगाव रखते। दूसरे गांव में राजा साहब गये थे,उस गांव के लोगों ने बिना किसी पूंछताछ के उनकी मान मनुहार की थी,उस गांव की राजपूती प्रथा जैसे पहले थी वैसी ही चली आ रही थी,इसलिये उन लोगों ने जैसा उनके पास था वैसा उनका सत्कार किया। तीसरे गांव में जहां राजा ने अपने को कोरी बताया था,वे लोग वास्तव में बने हुये राजपूत थे,और अन्य जाति का होने के कारण पहले ही जाति पांति के बारे में पूंछने लगे थे। कहने का तात्पर्य है कि राजपूत केवल सिंह लगाने से नही बना जा सकता है,जो राजपूती खून को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकता है वही सच्चा राजपूत है,अगर राजपूत के घर में कोई बेडिनी शादी के बाद आ गयी है तो वह पता नही किस जाति के खून को घर में लाकर पालने पोषने के बाद सिंह तो लगा देगी लेकिन जो वास्तविक राजपूती खून है उसे कहां से लेकर आयेगी। और आगे चलकर जो सन्तान होगी वह अपने खून को भूलने लगेगी और दूसरे खूनों की तरफ़ आकर्षित होकर भटकने लगेगी। |
17-11-2010, 06:44 AM | #13 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
तारा बाबु रुक क्यूँ गए
आगे बढाइये सूत्र को और हमारी राजस्थान यात्रा को
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
17-11-2010, 06:49 AM | #14 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
अगर तारा बाबु को कोई ऐतराज ना हो तो में राजस्थान के सभी प्रसिद्ध स्थानों की जानकारी और चित्र इस सूत्र में लगाना प्रारंभ कर दू ? तारा बाबु आपकी आज्ञा का इन्तजार रहेगा .
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26-11-2010, 04:20 PM | #15 | |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
Quote:
मित्र आप तो जानते है सूत्र किसी व्यक्ति विशेष का नहीं होता,सभी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर सकते है,फिर आपको आज्ञा लेने की कहाँ आवश्यकता है.......... |
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27-11-2010, 05:09 PM | #16 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
बहुत ही सुन्दर जानकारी ...
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17-09-2011, 04:10 PM | #17 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
नमस्कार दोस्तों ,मैं एक बार फिर से इस सूत्र को आगे बढाने का प्रयत्न करता हूँ और कोशिश करूँगा की बहुत ही कम शब्दों में अधिकतम जानकारी प्रदान कर सकूँ..............
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17-09-2011, 04:14 PM | #18 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
अमर सिंह राठौड़
अमर सिंह राठौड़ की वीरता सर्वविदित है ये जोधपुर के महाराजा गज सिंह के जेष्ठ पुत्र थे ।अमर सिंह बचपन से ही बड़े उद्दंड,चंचल,उग्रस्वभाव व अभिमानी होने के कारण महाराजा ने इन्हे देश निकाला की आज्ञा दे दी और जोधपुर राज्य के उत्तराधिकार से वंचित कर दिया। उनकी शिक्षा राजसी वातावरण में होने के फलस्वरूप उनमे उच्चस्तरीय खानदान के सारे गुण विद्यमान थे और उनकी वीरता की कीर्ति चारों और फ़ैल चुकी थी।लाहौर में रहते हुए उनके पिता महाराजा गज सिंह जी ने अमर सिंह को शाही सेना में प्रविष्ट होने के लिए अपने पास बुला लिया अतः वे अपने वीर साथियों के साथ सेना सुसज्जित कर लाहौर पहुँचे ।बादशाह शाहजहाँ ने अमर सिंह को ढाई हजारी जात व डेढ़ हजार सवार का मनसब प्रदान किया।अमर सिंह ने शाजहाँ के खिलाफ कई उपद्रवों का सफलता पूर्वक दमन कर कई युधों के अलावा कंधार के सैनिक अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।बादशाह शाहजहाँ अमर सिंह की वीरता से बेहद प्रभावित था| |
17-09-2011, 04:18 PM | #19 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
अच्छी जानकारी दे रहे हो मित्र
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17-09-2011, 04:24 PM | #20 |
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Re: धरती धोरां री............राजस्थान
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