08-11-2014, 04:49 PM | #11 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
देश है तो जनता है जनता है तो नेता हैं नेता है तो गाड़ी है गाड़ी है तो सड़कें हैं सड़के हैं तो गढ्ढे हैं गढ्ढे हैं तो उनको भरने के वादे हैं वादे करके उनकी सुधि कौन लेता है वादा खिलाफी है तो नेता हैं. सड़कें हैं तो भीड़ है भीड़ है ट्रेफिक जाम है ट्रेफिक जाम है तो धुँआ है धुँआ है तो बीमारी है बीमारी है तो अस्पताल है अस्पताल है तो डॉक्टर हैं डॉक्टर हैं तो नर्सें हैं नर्सें हैं यानि कि लड़कियां हैं लड़कियाँ हैं तो छेड़खानी है साथ में चलती मनमानी है मनमानी जो करते हैं नेता के लड़के हैं नेता के लड़के हैं तो दबदबा है दबदबा है तो नेता हैं. मनमानी है तो बलात्कार है बलात्कार है तो पुलिस है पुलिस हैं तो चोर हैं चोर हैं तो पैसा है पैसा है तो बिल्डिंगें हैं बिल्डिंगे हैं तो बिल्डर हैं बिल्डर हैं तो जमीन के सौदे हैं जमीन के सौदे हैं तो घोटाले हैं घोटाले हैं तो नेता हैं. घोटाले हैं तो घोटाला करने वाले हैं घोटाला करने वाले हैं तो धन्धे काले हैं धन्धे काले हैं तो छानबीन वाले हैं छानबीन यानि कि सरकारी मुलाजिम हैं सरकारी मुलाजिम हैं तो भ्रष्टाचार है भ्रष्टाचार है तो नेता हैं. सरकारी मुलाजिम हैं तो काम चोरी है कामचोरी है तो हड़ताल है हड़ताल है तो धरना प्रदर्शन है धरना प्रदर्शन है तो तोड़ फोड़ है तोड़फोड़ है तो समाचार है समाचार है तो मिडिया है मिडिया है तो नेता हैं. धरना प्रदर्शन है तो बाजार बंद है बाजार बंद है तो लोग परेशान हैं परेशान लोग जनता है जनता है तो वोट हैं वोट हैं तो चुनाव हैं चुनाव है तो ताकत प्रदर्शन है ताकत प्रदर्शन है तो बूथ केप्चरिंग है बूथ केप्चरिंग है तो अपराध हैं अपराध हैं तो नेता हैं. तो जब कभी वादा खिलाफी, दबदबे, घोटाले, भ्रष्टाचार, मिडिया या अपराध की बात आती है… हे नेता, हमको तेरी बहुत याद आती है.
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08-11-2014, 04:50 PM | #12 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
माशूका के खर्चे
आशिक ने कहा माशुका से कहा ‘‘तुम अपनी फरमाईशें कम किया करो अब बढ़ गयी है मंदी और महंगाई, एक जगह से क्लर्क पद से छंटनी हुई दूसरी जगह बन गया हूं चपरासी घट गयी हैं मेरी कमाई, इस तरह मेरा कबाड़ा हो जायेगा, देता हूं तुम्हें ऑटो का जो किराया पेट्रोल के बढ़ते भाव से उसका भी महंगा भाड़ा हो जायेगा, मुझ पर कुछ पर तरस खाओ, अपने इश्क की फीस तुम घटाओ।’’ सुनकर बिगड़ी माशुका और बोली ‘‘सुनो जरा मेरी बात ध्यान से, महंगाई शब्द न चिपकाओं मेरे कान से, देशभक्ति हो या इश्क जज़्बात बाज़ार में बिकते हैं, खरीदने का दम हो जिनमें वहीं सौदा लेकर टिकते हैं, सौदागरों के भोंपू चीख चीख कर दिखाते हैं देशभक्ति, वही गरीब की जिंदगी को सस्ता बनाकर दिखते हैं अपने पैसे की शक्ति, उनके कहने पर पर ही सर्वशक्तिमान की तरफ इशारा करते हुए आशिक माशुकाओं के इश्क पर लिखते हैं शायर, जिस्म की चाहत होती मन में दिखाने के लिये इबादत करते हैं कायर, आजकल इश्क का मतलब है माशुकाओं को सामान उपहार में देना, चाहे पड़े बैंक से पैसा भारी ब्याज पर उधार में लेना, अगर तुम्हारी जेब तंग है, इश्क अगर जारी रहा मेरी त्वचा पड़ जायेगी फीकी जिसका अभी गोरा रंग है, मैं कोई ढूंढ लूंगी ऊंची कमाई वाला आशिक, लड़कियों की कमी है जायेगा जल्दी मेरा इश्क बिक, यह मंदी और महंगाई वाली बात न सुनाओ, ढूंढ लो कोई सस्ती माशुका मेरे सामने से तुम जाओ।’’ |
08-11-2014, 04:52 PM | #13 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
पोपला बच्चा
बच्चा देखता है कि मां उसको हंसाने की कोशिश कर रही है। भरपूर कर रही है, पुरज़ोर कर रही है, गुलगुली बदन में हर ओर कर रही है। मां की नादानी को
ग़ौर से देखता है बच्चा, फिर कृपापूर्वक अचानक… अपने पोपले मुंह से फट से हंस देता है। सोचता है ख़ूब फंसी मां भी मुझमें ख़ूब फंसी, फिर दिशाओं में गूंजती है फेनिल हंसी। मां की भी पोपले बच्चे की भी। |
08-11-2014, 04:54 PM | #14 |
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काकी की बनारसी साड़ी
कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान । काकी के बिछुआ बजे, खड़े है गए कान ॥ खड़े है गए कान, ‘रहस्य छुपाय रहे हो’ । सब जानूँ मैं, आज बनारस जाय रहे हो ॥ ‘काका’ बनिके व्यर्थ थुकायो जग में तुमने । कबहु बनारस की साड़ी नहिं बांधी हमने ॥ हे भगवन, सौगन्ध मैं आज दिवाऊं तोहि । कवि-पत्नी मत बनइयो, काहु जनम में मोहि ॥ काहु जनम में मोहि, रखें मतलब की यारी । छोटी-छोटी मांग न पूरी भई हमारी ॥ श्वास खींच के, आँख मीच आँसू ढरकाए । असली गालन पै नकली मोती लुढ़काए ॥ शांत ह्वे गयो क्रोध तब, मारी हमने चोट । ‘साड़िन में खरचूं सबहि, सम्मेलन के नोट’ ॥ सम्मेलन के नोट? हाय ऐसों मत करियों । ख़बरदार द्वै साड़ी सों ज़्यादा मत लइयों ॥ हैं बनारसी ठग प्रसिद्ध तुम सूधे साधे । जितनें माँगें दाम लगइयों बासों आधे ॥ गाँठ बांध उनके वचन, पहुँचे बीच बज़ार । देख्यो एक दुकान पै, साड़िन कौ अंबार ॥ साड़िन कौ अंबार, डिज़ाइन बीस दिखाए । छाँटी साड़ी एक, दाम अस्सी बतलाए ॥ घरवारी की चेतावनी ध्यान में आई | कर आधी कीमत, हमने चालीस लगाई || दुकनदार कह्बे लग्यो, “लेनी हो तो लेओ” । “मोल-तोल कूं छोड़ के साठ रुपैय्या देओ” ॥ साठ रुपैय्या देओ? जंची नहिं हमकूं भैय्या । स्वीकारो तो देदें तुमकूं तीस रुपैय्या ? घटते-घटते जब पचास पै लाला आए । हमने फिर आधे करके पच्चीस लगाए ॥ लाला को जरि-बजरि के ज्ञान है गयो लुप्त । मारी साड़ी फेंक के, लैजा मामा मुफ्त | लैजा मामा मुफ्त, कहे काका सों मामा | लाला तू दुकनदार है कै पैजामा || अपने सिद्धांतन पै काका अडिग रहेंगे । मुफ्त देओ तो एक नहीं द्वै साड़ी लेंगे ॥ भागे जान बचाय के, दाब जेब के नोट । आगे एक दुकान पै देख्यो साइनबोट ॥ देख्यो साइनबोट, नज़र वा पै दौड़ाई । ‘सूती साड़ी द्वै रुपया, रेशमी अढ़ाई’ ॥ कहं काका कवि, यह दुकान है सस्ती कितनी । बेचेंगे हाथरस, लै चलें दैदे जितनी ॥ भीतर घुसे दुकान में, बाबू आर्डर लेओ । सौ सूती सौ रेशमी साड़ी हमकूं देओ ॥ साड़ी हमकूं देओ, क्षणिक सन्नाटो छायो । डारी हमपे नज़र और लाला मुस्कायो ॥ भांग छानिके आयो है का दाढ़ी वारे ? लिखे बोर्ड पै ‘ड्राइ-क्लीन’ के रेट हमारे ॥ |
08-11-2014, 04:55 PM | #15 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
चुल्लूभर पानी
बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा- बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा कहँ ‘ काका ‘ , जो ऐश कर रहे रजधानी में नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस
हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी कहँ ‘ काका ‘ कविराय, ध्येय को भेजो लानत अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत |
08-11-2014, 04:57 PM | #16 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
एअर कंडीशन नेता
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥ मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ । है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥ गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण । निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥ आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा । हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥ आई स्वराज की बेला तब, ‘सेवा-व्रत’ हमने धार लिया । दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥ जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया । आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥ गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो । है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥ गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया । जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥ गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं । है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥ जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता । पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥ आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ । राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥ ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो । यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥ दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है । इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥ रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ । यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥ ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए । भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥ अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो । जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥
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08-11-2014, 05:00 PM | #17 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
आई मैं आ गए
सीधी नजर हुयी तो सीट पर बिठा गए। टेढी हुयी तो कान पकड कर उठा गये। सुन कर रिजल्ट गिर पडे दौरा पडा दिल का। डाक्टर इलेक्शन का रियेक्शन बता गये । अन्दर से हंस रहे है विरोधी की मौत पर। ऊपर से ग्लीसरीन के आंसू बहा गये । भूंखो के पेट देखकर नेताजी रो पडे । पार्टी में बीस खस्ता कचौडी उडा गये । जब देखा अपने दल में कोई दम नही रहा । मारी छलांग खाई से “आई“ में आ गये । करते रहो आलोचना देते रहो गाली मंत्री की कुर्सी मिल गई गंगा नहा गए । काका ने पूछा ‘साहब ये लेडी कौन है’
थी प्रेमिका मगर उसे सिस्टर बता गए।। |
08-11-2014, 05:18 PM | #18 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
होली रे होली
होली का हुड़दंग है यहां-वहां सब दूर। छोटे-बड़े सब बन गए रंगारंग लंगूर। कॉलोनी की भाभियां कॉलोनी के देवर, रंगधार बरसा रहे पिचकारी ले-लेकर। कसी-कसी-सी सेक्रेटरी फंसी-फंसी-सी ड्रेस, देख-देखकर हो रहे बॉस बड़े इंप्रेस। बोले – सजनी! होली पर रहेगा दफ्तर क्लोज, पर तुम छम्* से आ जाना खूब करेंगे मौज। सेक्रेटरी ने कहा – रंग का शौक नहीं अलबत्ता, फिर भी सोचूंगी, यदि मिले मोटा-सा होली-भत्ता।
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08-11-2014, 05:20 PM | #19 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
कमाल का कव्वाल
मेरठ में हमको मिले धमधूसर कव्वाल
तरबूजे सी खोपड़ी, ख़रबूजे से गाल ख़रबूजे से गाल, देह हाथी सी पाई लंबाई से ज़्यादा थी उनकी चौड़ाई बस से उतरे, इक्कों के अड्डे तक आये दर्शन कर घोड़ों ने आँसू टपकाये रिक्शे वाले डर गये, डील-डौल को देख हिम्मत कर आगे बढ़ा, ताँगे वाला एक ताँगे वाला एक, चार रुपये मैं लूँगा दो फ़ेरी कर, हुज़ूर को पहुँचा दूँगा |
08-11-2014, 05:21 PM | #20 |
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Re: हिंदी हास्यकविताये
होली में मेकअप बिगड़ जाएगा
एक लड़की ने दूसरी से पूछा ‘क्या होली पर तुम्हारा प्रेमी भी रंग खेलने आयेगा मैं भी उसका मूंह काला करूंगी जब वह तुमसे मिलने आयेगा’ दूसरी ने कहा
‘आने को तो वह कह रहा था पर मैंने बाहर जाने का बहाना कर मना कर दिया क्योंकि वह मुझे देखता है मेकअप में अगर रंग डालेगा तो सब बिगड़ जायेगा। बदल सकती है उसकी नजरें जब मेरी असली सूरत देख जायेगा। वैसे भी तुमने देखा होगा टीवी और अखबारों में प्रेमियों की चर्चा नहीं नहीं होती मेकअप से मिला प्यार नहीं टिक सकता पानी की धार इतनी तेज होती होली का एक दिन उससे दूर रहने पर मेरा यह प्यार बच जायेगा। इंटरनेट पर होली के रंग दोस्तों के अंदाज-ए-बयां में नजर आते है। कोई एक जैसी टिप्पणी सभी दरवाजों पर फैंकते कोई साथ में पाठ भी चिपका जाते हैं। चलता कोई नहीं दिखता पर भागमभाग सभी करते नजर आते लाल,गुलाबी,पीले और हरे रंग दिल नहीं बहला पाते जितना उससे अधिक दोस्तों की अदाओं के रंग अधरों पर मुस्कान बिखेर जाते हैं। |
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