18-10-2011, 09:09 PM | #11 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
उसी पत्थर को पूजा है किसी भगवान की तरह तुम्हारी इन उँगलियों की छुअन मौजूद है उस पर उसे महसूस करता हूँ किसी अहसान की तरह उसी पत्थर में मिलती है तुम्हारी हर झलक मुझको उसी से बात करता हूँ किसी इनसान की तरह कभी जब डूबता हूँ मैं उदासी के समंदर में तुम्हारी याद आती है किसी तूफ़ान की तरह मेरी किस्मत में है दोस्त तुम्हारे हाथ का पत्थर भूल जाना नहीं मुझे किसी अंजान की तरह
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
18-10-2011, 09:10 PM | #12 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
गीत है दिल की सदा हर गीत गाने के लिए
गुनगुनाने के लिए सबको सुनाने के लिए ज़ख़्म रहता है कहीं और टीस उठती है कहीं दिल मचलता है तभी कुछ दर्द गाने के लिए फूल की पत्ती से नाज़ुक गीत पर मत फेंकिए बेसुरे शब्दों के पत्थर आज़माने के लिए गीत के हर बोल में हर शब्द में हर छंद में प्यार का पैग़ाम हो मरहम लगाने के लिए फूल खिलते हैं वफ़ा के तो महकती है फ़ज़ा हुस्न ढलता है सुरों में गुनगुनाने के लिए आज के इस दौर में ‘जितू’ किसी को क्या कहे गीत लिखना चाहिए दिल से सुनाने के लिए
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18-10-2011, 09:10 PM | #13 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
दूर तक जिसकी नज़र चुपचाप जाती ही नहीं
हम समझते हैं समीक्षा उसको आती ही नहीं आपका पिंजरा है दाना आपका तो क्या हुआ आपके कहने से चिड़िया गुनगुनाती ही नहीं भावना खो जाती है शब्दों के जंगल में जहाँ शायरी की रोशनी उस ओर जाती ही नहीं आप कहते हैं वफ़ा करते नहीं हैं इसलिए जिस नज़र में है वफ़ा वह रास आती ही नहीं झाड़ियों में आप उलझे तो उलझकर रह गए आप तक बादे सबा जाकर भी जाती ही नहीं शेर की दोस्तों अभी भी शेरीयत है ज़िंदगी इसके बिना कोई ग़ज़ल तो गुदगुदाती ही नहीं
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18-10-2011, 09:10 PM | #14 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
उसने जो चाहा था मुझे इस ख़ामुशी के बीच
मुझको किनारा मिल गया उस बेखुदी के बीच घर में लगी जो आग तो लपटों के दरमियां मुझको उजाला मिल गया उस तीरगी के बीच उसकी निगाहेनाज़ को समझा तो यों लगा कलियाँ हज़ार खिल गईं उस बेबसी के बीच मेरे हजा़र ग़म जो थे उसके भी इसलिए उसने हँसाकर हँस दिया उस नाखुशी के बीच मेरी वफ़ा की राह में उँगली जो उठ गई दूरी दीवार बन गई इस ज़िंदगी के बीच दुनिया खफ़ा है आज भी तो क्या हुआ उसका ही रंगो नूर है इस शायरी के बीच
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18-10-2011, 09:11 PM | #15 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
बेमुरव्वत है मगर दिलबर है वो मेरे लिए
हीरे जैसा कीमती पत्थर है वो मेरे लिए हर दफा उठकर झुकी उसकी नज़र तो यों लगा प्यार के पैग़ाम का मंज़र है वो मेरे लिए आईना उसने मेरा दरका दिया तो क्या हुआ चाहतों का खूबसूरत घर है वो मेरे लिए एक लम्हे के लिए खुदको भुलाया तो लगा इस अंधेरी रात में रहबर है वो मेरे लिए उसने तो मुझको जलाने की कसम खाई मगर चिलचिलाती धूप में तरुवर है वो मेरे लिए जिस्म छलनी कर दिया लेकिन मुझे लगता रहा ज़िंदगी भर की दुआ का दर है वो मेरे लिए
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18-10-2011, 09:11 PM | #16 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
यादों ने आज फिर मेरा दामन भिगो दिया
दिल का कुसूर था मगर आँखों ने रो दिया मुझको नसीब था कभी सोहबत का सिलसिला लेकिन मेरा नसीब कि उसको भी खो दिया उनकी निगाह की कभी बारिश जो हो गई मन में जमी जो मैल थी उसको भी धो दिया गुल की तलाश में कभी गुलशन में जब गया खुशबू ने मेरे पाँव में काँटा चुभो दिया सोचा कि नाव है तो फिर मँझधार कुछ नहीं लेकिन समय की मार ने मुझको डुबो दिया दोस्तों वफ़ा के नाम पर अरमाँ जो लुट गए मुझको सुकून है मगर लोगों ने रो दिया
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18-10-2011, 09:12 PM | #17 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
सितम जिसने किया मुझ पर उसे अपना बनाया है
तभी तो ऐसा लगता है कि वो मेरा ही साया है उदासी के अँधेरों ने जहाँ रस्ता मेरा रोका तबस्सुम के चरागों ने मुझे रस्ता दिखाया है कभी जब दिल की बस्ती में चली जज़्बात की आँधी उसी आँधी के झोंकों ने ग़ज़ल कहना सिखाया है भले दुनिया समझती है इसे दीवानगी मेरी इसी दीवानगी ने तो मुझे शायर बनाया है इसी दुनिया में बसती है जो रंगो नूर की दुनिया नज़र आएगी क्या उसको जो घर में भी पराया है मुझे इस लोक से मतलब नहीं उस लोक से दोस्तों मुझे उस नूर से मतलब जो इस दिल में समाया है
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18-10-2011, 09:12 PM | #18 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
हर सितम हर ज़ुल्म जिसका आज तक सहते रहे
हम उसी के वास्ते हर दिन दुआ करते रहे दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे बादलों की बेवफ़ाई से हमें अब क्या गिला हम पसीने से ज़मीं आबाद जो करते रहे हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे हमने दुनिया को बताया था वफ़ा क्या चीज़ है आज जब पूछा गया तो आसमाँ तकते रहे हम तो पत्थर हैं नहीं फिर पिघलते क्यों नहीं भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे
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18-10-2011, 09:12 PM | #19 |
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
गम ही गम है मेरी जिन्दगी मैं ख़ुशी मुझे रास नहीं,
दिल भी उससे लगाया है जिसके मिलने की आस नहीं.
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18-10-2011, 09:12 PM | #20 |
Administrator
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Re: अब हमारी कवितायें भी झेलिये.
इतनी अच्छी कविताओ को झेला नहीं जाता, इनका आनंद उठाया जाता है.
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