11-01-2013, 07:50 PM | #11 |
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Re: ग़ालिब का मर्सिया : ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाल
शह्र सारा बना है बैते-हुज़्न (शोक-स्थल) एक यूसुफ़ नहीं जो कन्आ में (यह एक शहर का नाम है जहाँ यूसुफ़ रहते थे) मुल्क यक्सर हुआ है बेआइन (पूरे तौर पर) इक फ़लातून नहीं जो यूनां में ख़त्म थी इक ज़बां पे शीरीनी (मिठास) ढूँढते क्या हो सेबो-रुग्मा में (सेब और अनार) हस्र थी इक बयाँ में रंगीनी (निर्भर) क्या धरा है अकीको-मर्ज़ां में (कीमती पत्थर) लबे-जादू बयाँ हुआ खामोश गोशे-गुल व है क्यों गुलिस्ताँ में गोशे-मानी शुनो हुआ बेकार (सुनाने वाला) मुर्ग़ क्यों नाराज़न है बुस्तां में (बाग़ में नारा लगाने वाले) वह गया जिससे बज़्म थी रौशन शमाँ जलती है क्यों शबिस्ताँ में (शयनागार) न रहा जिससे था फ़रोग़-ए-नज़र (आँखों की रौशनी बढाने वाला) सुरमा बनता है क्यों सफाहाँ में (एक शहर का नाम) माहे-कामिल में आ गई जुल्मत (पूर्णिमा में अंधकार छा गया) आबे-हैवाँ पे छा गई ज़ुल्मत (अमृत) |
11-01-2013, 07:52 PM | #12 |
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Re: ग़ालिब का मर्सिया : ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाल
(दस)
हिन्द में नाम पायेया अब कौन सिक्का अपना बिठाएगा अब कौन हमने जानी है इससे कद्रे-सलफ़ (पूर्वजों का सम्मान) उन पर ईमान लाएगा अब कौन उसने सबको भुला दिया दिल से उसको दिल से भुलायेगा अब कौन थी किसी की न जिसमे गुजाइश वह जगह दिल में पायेगा अब कौन उससे मिलने को याँ हम आते थे जाके दिल्ली से आयेगा अब कौन मर गया कद्रदाने-फ़हमे-सुख़न (काव्य का मर्म समझाने वाला) शे’र हमको सुनाएगा अब कौन मर गया तिश्नः-ए-मज़ाके-कलाम (शायरी के स्वाद/रस का प्यासा) हमको घर में बुलाएगा अब कौन था बिसाते-सुखन में शातिर एक हमको चालें बताएगा अब कौन शे’र में नातमाम है ‘हाली’ (अपूर्ण) ग़ज़ल इसकी बनाएगा अब कौन ***** समाप्त ***** |
12-01-2013, 07:37 AM | #13 |
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Re: ग़ालिब का मर्सिया : ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाल
बहुत खूबसूरत सूत्र है, रजनीश जी।
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13-01-2013, 03:27 AM | #14 |
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Re: ग़ालिब का मर्सिया : अल्ताफ हुसैन हाली
अत्यंत उत्तम, दुर्लभ कृति फोरम पर प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक आभार रजनीशजी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हाली का सम्पूर्ण सृजन मनमोहक है, ऎसी अजीम शख्सियत के एक बेहद धुंधले पक्ष को रोशनी में लाकर आपने निश्चय ही एक सराहनीय कार्य किया है। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
14-01-2013, 11:02 PM | #15 | |
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Re: ग़ालिब का मर्सिया : अल्ताफ हुसैन हाली
Quote:
अमोल जी, अभिषेक जी, दीपू जी, जय भारद्वाज जी, आप सब का उक्त सूत्र पढ़ने और पसंद करने के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. अलैक जी, आपसे प्रेरणा पा कर मैं इस दिशा में उन्मुख हुआ. गुज़रे वक्त के ये बेमिसाल शोअरा और उनका नफीस कलाम और अन्य कृतित्व आज के वक्त में भी अदब की दुनिया को मशाल दिखाने का काम करते हैं. जब भी हम उनको याद करके कुछ लिखते हैं तो इसे हमारी ओर से उनकी महानता को एक छोटी सी पुष्पांजलि समझना चाहिए. ऐसा करके हम उनकी छाया में बैठ कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं. अंत में, आपने मिर्ज़ा ग़ालिब और ख्वाजा हाली के रंगीन चित्र दे कर सारे अनुष्ठान को जो चार चाँद लगा दिए हैं उसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. धन्यवाद. |
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