14-01-2013, 11:11 PM | #11 | |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
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आपका बहुत बहुत अभिनन्दन है अलैक बन्धु व्यंग्य के इस बाजार (सूत्र) में। हाँ, मुझे ध्यान आ रहा है .. मैंने एक सूत्र बनाया था संदर्भित विषय पर ..... उस सूत्र में आपने एक विशिष्ट शब्द को लिखा था जो आपके नुक्कड़ के एक पानवाले बन्धु ने बोला था ... अभी वह शब्द मेरे मस्तिष्क पटल में उभर नहीं रहा है। .. खैर .. मैं शीघ्र ही इसी विषय में शोध (सामग्री एकत्र) करने के बाद सूत्र निर्मित करता हूँ। आप सहित सभी प्रबुद्ध जनों के स्वस्ति-वचनों का याची हूँ। धन्यवाद।
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14-01-2013, 11:21 PM | #12 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
किसी आतंकवादी घटना के पहले सरकार की प्रतिक्रिया
हमारी सीमाए सुरक्षित है। (फिर भी आतंकवादी टहलते हुए आ जाते है।) देश मे सभी आतंकवादियों की गतिविधियों पर कड़ी निगाह है। (निगाहो से निगाहे मत मिला, हमले के पहले धर दबोचो।) हम जमीन के हर इंच की रक्षा करेंगे। (इंचीटेप के आर्डर के लिए टेंडर अगले महीने मंगाए जाएंगे) हर संवेदनशील जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है। (कैमरे का ठेका, नेताजी के साले को दिया गया है।) आतंकवादियों का हौसला पस्त है। (पस्त नही, वे लोग व्यस्त है, आप शुतुरमुर्ग की तरह रेत मे सर डालकर खतरा टल जाने का सोच रहे हो) कड़ी चौकसी के कारण आतंकवादी किसी नयी योजना को अंजाम नही दे पा रहे। (अलबत्ता हैडली जैसे लोग आराम से रेकिंग कर पा रहे है, और हमें हवा भी नही लगती।) केंद्र और राज्यों के बीच सूचनाओं के आदान प्रदान का अच्छा तालमेल है। (यही तालमेल हमले के बाद के परस्पर विरोधी बयानों से जाहिर हो जाता है।) हम पाकिस्तान से तब तक बातचीत नही करेंगे जब तक वहाँ पर आतंकवादी कैम्प बन्द नही होते। (जिस दिन अंकल सैम (America) ने आदेश किया, हम दंडवत वार्ता को राजी हो जाएंगे।) पाकिस्तान से बातचीत की जा सकती है, आखिरी फैसला कैबिनेट लेगा। (अंकल सैम ने लगता है फोन कर दिया है।) पाकिस्तान से बातचीत मे अगले महीने होगी। (लगता है अंकल सैम ने दबाव बढा दिया है।)
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14-01-2013, 11:23 PM | #13 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
किसी आतंकवादी घटना के समय/उपरान्त सरकारी प्रतिक्रिया
लश्कर ने इसको अंजाम दिया है। (किसी का भी नाम लगा दो, कौन सा प्रूव करना है।) आतंकवादियों को बख्शा नही जाएगा। (पहले पकड़ो तो, जिनका पकड़ा है उनको ही दमाद बनाकर रखा है।) सभी देशवासी एकजुट है। (और कोई विकल्प है क्या? ) आतंकवादी काफी समय से प्लानिंग कर रहे थे। (और हमारा सूचनातंत्र सो रहा था।) ये राज्य सरकार की चूक है। (अक्सर ठीकरा राज्य सरकार पर ही फूटता है।) केंद्र सरकार से हमले की आशंका की सूचना थी, लेकिन सटीक जानकारी नही दी गयी थी। (अगली बार आपको पूरा कार्यक्रम पहले फैक्स किया जाएगा, तब तक आप हाथ पर हाथ धरकर बैठिए।) ये केंद्र सरकार की चूक है। (हम पहले ठाकरे जैसे नेताओं से फुरसत मिले तब तो सुरक्षा व्यवस्था देखें।) सीसीटीवी कैमरे नही थे। (नेताजी के साले साहब पैसा डकार गए।) सीसीटीवी कैमरे काम नही कर रहे थे। (किसी ने स्विच हटाकर मोबाइल चार्जर लगाया हुआ था।) हम आतंकवादियों को जल्द पकड़ लेंगे। (बस खबर लग जाए, कि ये लोग कहाँ छिपे है।) कुछ संदिग्ध लोगों को पकड़ा गया है। (नही भई, वे लोग बेकसूर है, ये तो हमारे वोटबैंक है, दिग्विजय सिंह जल्द ही उन लोगों से मिलकर उनकी रिहाई की आवाज उठाएंगे।) आगे से ऐसी कोई घटना होगी तो भारत चुप नही बैठेगा। (यानि जैसे पहले एक्शन लिया था, वैसा ही लेंगे।)
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14-01-2013, 11:27 PM | #14 | |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
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14-01-2013, 11:41 PM | #15 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
ओ हाँ, यही नेचुरलता ...... अब मुझे भी एक दो शब्द याद आ रहे हैं किन्तु अब इसकी चर्चा सूत्र विशेष में ही करेंगे। धन्यवाद।
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14-01-2013, 11:44 PM | #16 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
~~ अथ श्री टिप्पणी महात्म्य ~~
टिप्पणी का बहुत महत्व है मंच के सूत्रों मे, देखा जाए तो टिप्पणी के बिना सूत्र तो उजड़ी मांग की तरह होता है, जिस सूत्र मे जितनी ज्यादा टिप्पणिया समझो उसके उतने सुहाग. टिप्पणिया कई तरह की होती है, कुछ उदाहरण आपके सामने हैः जैसेः* आपका सूत्र पढा, अच्छा लगा लिखते रहो.. आगे भी इन्तजार रहेगा….. तात्पर्यःफालतू का टाइम वेस्ट था, पूरा पढने की इच्छा नही हुई,लिखते रहो, कभी तो अच्छा लिखोगे, फिर देखेंगे. थोड़ी तारीफः आपका सूत्र पढा, बहुत मजा आया, हंसते हंसते बेहाल हो गये, वगैरहा वगैरहाः तात्पर्यः अब जाकर ठीक लिख पाये हो,थोड़ा और इम्प्रूव करो, फिर भी ठीक है, थोड़ा पढा है, समय मिला तो बाकी का फिर पढेंगे. शिकायती तारीफः आपका सूत्र पढा, अच्छा लगा, मजा आया… पिछले सूत्र मे छुट्टन मिंया की दावत वाला किस्सा अच्छा था, कहाँ है आजकल छुट्टन मिंया? तात्पर्यः अबे ये सब क्या उलजलूल लिख रहे हो, मजा नही आ रहा, जैसा पिछला सूत्र लिखा था, वैसा लिखो, अगर अगले सूत्र मे छुट्टन के बारे मे नही लिखा तो मै तो नही पढने वाला, बाकी तुम जानो.
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14-01-2013, 11:48 PM | #17 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
थोड़ी आलोचना थोड़ी तारीफः आपका सूत्र पढा, आपने अपने सूत्र मे सूरज को पश्चिम से उगते हुए बताया है, यह सरासर गलत है, लेकिन आपका सूरज के उगने का वर्णन बहुत सही और सटीक था.
तात्पर्यः मैने पूरा सूत्र पढा, अजीब अहमक आदमी हो, पूरे फन्डे क्लियर नही है, और सूत्र बना कर बैठ गये. शुरू कंही से करते हो, खत्म कंही और जाकर होता है, कोई सिर पैर ही नही है, लेकिन फिर भी एक बात है, लिखते भले ही बकवास हो लेकिन शैली अच्छी है. ज्यादा आलोचनाः आपके सूत्र मे सूरज को पश्चिम से उगता दिखाया गया है, जो एकदम गलत है, बकवास है, वगैरहा……. जोशपूर्ण आलोचनाःआपने सूरज को पश्चिम से उगता दिखाया है, आप अहमक है, कोई आपका सूत्र नही देखना चाहता है, आप लिखते ही क्यों है? क्या जरूरत है लोगो का टाइम वेस्ट करने की, खुद तो फालतू है, दूसरो को भी समझते है. वगैरहा वगैरहा. तात्पर्यः बात दिल को चुभ गयी, या तो ज्यादा सच्चा लिख दिये हो, या फिर अकल के अन्धे हो. क्रोधपूर्ण आलोचनाः आपने सूरज…पश्चिम….. आपकी हिम्मत कैसे हुई यह सब लिखने की, कुछ शर्म लिहाज… उमर, बच्चो का ख्याल …….वगैरहा वगैरहा घुमावदार तारीफ और आलोचनाः जिसमे दोहो और शेरो शायरी से तारीफ की गयी है. तात्पर्यः सामने सामने तो तारीफ और शेरो शायरी मे शिकायत, मतलब है,अगर तारीफ करने वाला बात बात मे शेर और दोहे मार रहा है तो वह यह जताने की चेष्टा कर रहा है, जो बात वह खुद नही कहना चाहता है, उसको दोहो और शेरो शायरी से समझो. ईष्यापूर्ण तारीफः मैने आपके सूत्र की तारीफ, उस सूत्र पर पढी थी, आपकी कविता का अनुवाद पढा था, बहुत अच्छा लगा, अच्छा लिखते है, लिखते रहो. तात्पर्यः इतना वाहियात लिखते हो, फिर भी लोग तारीफ कैसे करते है?, यहाँ तो हम लिखते लिखते थक जाते है कोई घास नही डालता. लड़की है इसलिये लोग इसके सूत्र पर टूट पड़ते है,लोगो की पसन्द का भी कुछ पता नही चलता.
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14-01-2013, 11:50 PM | #18 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
तारीफ का इन्वेस्टमेंट
इन्वेस्टमेंट #1 : आपका सूत्र अच्छा लगा, कभी हमारे विचार भी देखिये हमारे सूत्र पर. तात्पर्यः मै तुम्हारे पन्ने पर आया, अब तुम भी आओ. इन्वेस्टमेंट #2 : आपका सूत्र पढा, अच्छा लगा, सूरज के उगने के संदर्भ मे आपके और मेरे विचार मेल खाते है, जिसे मैने अपने सूत्र link here पर लिखा है. तात्पर्यः देखो भइया मैने तुम्हारा सूत्र पढकर अपना फर्ज निभाया, अब तुम भी मेरा सूत्र पढ डालो, और हाँ मेने इस सब्जेक्ट पर तुमसे अच्छा लिखा है. ना मानो तो खुद पढकर देख लो. तो जनाब सच्ची तारीफ क्या होती है. अभी खोज जारी है. वैसे अब तक की रिसर्च से मालूम पड़ा है कि सच्ची तारीफ वो होती है जो दिल से निकली हो, जिसमे शब्दो का ज्यादा घालमेल ना हो, तारीफ करने वाले ने सूत्र पूरा देखा हो, भले ही समझा हो या नही, यह अलग बात है,लेकिन पूरा देखा जरूर हो. और उसने जितना समझा हो उसकी तारीफ के बारे मे लिखा हो. और एक आखिरी बात, तारीफ पाकर आप फूल कर कुप्पा ना हो जाय, तारीफ अस्त्र भी है.ऐसा ना हो की आप तारीफ पाकर दो तीन हफ्ते लिखना ही बन्द कर दे, या फिर ऊलजलूल लिखने लगें. जैसे मै लिख रहा हूँ……….और वैसे भी सूत्र तो दिल की भड़ास है, आपने लिख कर अपना काम तो कर दिया, अब लोग देखे या ना देखे . फिर घूम फिरकर बात वंही पर आ जाती है,क्या करे दिल है कि मानता नही वैसे भी बिना टिप्पणी के तो सूत्र उजड़ी मांग……………………..
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15-01-2013, 11:33 PM | #19 |
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
सू शब्द से मेरा पुरान परिचय है – जब मैं बच्चा था और गांव में रहता था¸ तब एक बिल्ली मेरे घर से परच गई थी और मौका मिलते ही सबकी आंख बचाकर कभी दुंधाड़ी में रखा दूध मय मलाई के साफ कर जाती थी और कभी तसले के नीचे छिपाई हुई रोटियों को बेतकल्लुफी–से तसला उठाकर मुंह मे दबा लेती थी और जब तक तसले के गिरने की आवाज पर कोई दौड़े रफू–चक्कर हो जाती थी। इसलिये मेरी मां ने एक कुत्ते को पाल लिया था जिसे बिल्ली के दिखाई पड़ते ही वह सू कहकर ललकार देती थी और वह बिल्ली को दौड़ा लेता था। चूंकि कुत्ता और बिल्ली की खानदानी दुश्मनी है अत: मां के एक बार सू कहने पर कुत्ता ऐसे दौड़ पड़ता था जैसे ओलम्पिक का गोल्ड मेडल उसी दौड़ के परिणाम पर मिलना हो।
सू–सू का अर्थ मुझे तब समझ में आया जब मैने शहर से ब्याह कर लायी गई अपनी भाभी को प्रथम बार अपने बच्चे को दोनों टांग उठाकर लटकाये देखा। उसे लटकाकर वह सू–सू कह रही थी कि शहरी भाभी के होशियार बच्चे ने निशाना लगाकर एक ऐसी तेज धार छोड़ी¸ जो उनके मुंह को बाकायदा धो गई थी। चूंकि मेरी मां मुझे सू–सू के बजाय सी–सी कहकर मुताती थी¸ अत: मैंने सू–सू पहली बार सुना था और उसका मुखस्वच्छकारी प्रभाव भी पहली बार देखा था। सू अंग्रेजी¸ भाषा का शब्द भी हैं¸ जिसका अर्थ होता है किसी प्रकार की हानि की भरपाई के लिये दीवानी करना – यह मुझे कालेज में पढ़ने जाने पर पता चला। भारत में कम ही व्यक्ति अंग्रेजी के इस सू शब्द से परिचित है क्योंकि भारत में दीवानी वह करता है जो दीवाना होता है। यहां किसी व्यक्ति द्वारा दाखिल दीवानी वाद का निर्णय यदि उसके नाती–पोतों के जीवनकाल में प्राप्त हो जाये तो उस व्यक्ति की स्वर्गवासी आत्मा अपने को धन्य मानती हैं। मुझे लगता है कि भारतीय माताओं ने सू करने के इस हेय परिणाम को देखकर ही हिन्दी में इस शब्द का प्रयोग कुत्ता दौड़ाने या बच्चों को मुताने के लिये करना प्रारम्भ किया होगा। सू की वास्तविक महिमा तो मुझे अमेरिका की यात्रा करने पर ज्ञात हुई। इस देश में तो हर व्यक्ति चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो¸ और हर संस्था चाहे वह स्वयं शासन ही क्यों न हो¸ सू शब्द से इतना घबराता है जितना मेरे गांव की बिल्ली भी कुत्ते के दौड़ाने पर नहीं घबराती थी। और फिर बेचारे घबरायें न तो क्या करें जब प्राय: न्यायालय के निर्णयों में हर्जाने की रकम मिलियन डालर्स से कम नहीं होती हैं। मजे.दार बात यह है कि यहां सू करने वाले की अपनी दमड़ी भी खर्च नहीं होती है और हर्जाना मिलता है लाखों करोड़ो में बस सू करने के लिये कोई उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त परंतु सामयिक खब्त के अनुरूप प्रकरण उपस्थित होना चाहिये। वास्तविकता यह है कि प्राय: सू करने वाला व्यक्ति जिन प्रकरणों को सू करने योग्य होने की बात सपने में भी नहीं सोचता है¸ उनकी भी टोह लेकर यहां के अटर्नी स्वयं उस व्यक्ति से सम्पर्क करके उसको सू करने को उकसाते हैं और इस बात के लिये राज़ी कर लेते हैं कि सू करने वाला व्यक्ति बिना कोई धन व्यय किये मुकदमा लड़े। जीत जाने पर वसूल होने वाली रकम वादी एवं अटर्नी में बांट ली जायेगी – यानी कि सू करने वाले के लिये हींग लगे न फिटकरी और रंग आवे चोखा।
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Re: कबिरा खडा बाज़ार में ...........(हास्य-व्यंग्य)
इलाज मे की गई तथाकथित असावधानी के लिये मरीजों द्वारा डाक्टरों को सू करके लाखों रूपये वसूल करने के किस्से तो आपने सुने होंगे¸ परंतु क्या आप विश्वास करेंगे कि एक व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से कार में लिफ्ट मांगी¸ भलामानुस पड़ोसी उसे अपनी कार में लेकर चला तो कार एक अन्य कार से टकरा गई। उस व्यक्ति को एक्सीडेंट में कुछ चोटें भी आ गई¸ तो उसने पड़ोसी को सू कर दिया कि उसकी लापरवाही से उसे गम्भीर वेदना सहनी पड़ी एवं उसके कार्य दिवसों की हानि हुई। अब वह पड़ोसी अपनी भलमनसाहत के परिणामस्वरूप अपना बैंक एकाउंट खाली कर चुका है और वेतन के एक अंश का मासिक भुगतान उस व्यक्ति को कर रहा है। एक अन्य प्रकरण में एक महिला ने दावा पेश किया कि वह 1965 से एक ही ब्रांड की सिगरेट पीती रही है और अब उसे कैंसर हो गयी है¸ और चूंकि सिगरेट कम्पनी ने सिगरेट के पैक पर यह नहीं लिखा था कि उसके पीने से कैंसर हो सकती हैं इसलिये कम्पनी उसे हर्जाना दे। विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में सिगरेट कम्पनी को आदेश दिया कि वह उस महिला को 30 बिलियन डालर/150 खरब रूपये/हर्जाना के दे। उस महिला को अब एक ही परेशानी हैं कि इस कल्पनातीत पैसे का वह अब मरते समय क्या करें।
एक मुस्लिम महाशय ने एक रेस्ट्रां–मालिक पर दावा किया कि वह जब उस रेस्ट्रां में मीट खाने गया तो रेस्ट्रां वाले ने उसे यह नहीं बताया कि उसका मीट हलाल मीट नहीं है¸ जिससे धर्मभ्रष्ट हो गया है। न्यायालय के निर्णय के फलस्वरूप उसका रेस्ट्रां बंद हो चुका है परंतु फिर भी वह अपना भाग्य सराह रहा है कि वह केवल एक लाख डालर का हर्जाना देकर उबर गया है। कुछ अन्य प्रकरण जिनमें अभी निर्णय नहीं हुआ है¸ और भी अधिक रोचक हैं। एक अमेरिकन ने दावा किया है कि वह एक विशेष फास्टफूड़ चेन का वसायुक्त खाना पिछले 20 वर्ष से खाता रहा है¸ जिससे उसका वज़न बढ़कर 300 पाउंड हो गया है। उसका वज़न बढ़ाने के लिये 'उत्तरदायी' उस फास्ट–फूड चेन से उसे हर्जाना दिलाया जावे। विधिविशेषज्ञों का विचार हैं कि बिलियन न सही तो कुछ मिलियन डालर से तो यह व्यक्ति धनी हो ही जायेगा। सबसे मज़ेदार दावा तो मेक्सिको के नागरिकों ने दायर किया है। अमेरिका से सीमा लगी होने के कारण वहां के अनेकों व्यक्ति बिना विसा प्राप्त किये अवैध रूप से अमेरिका में बसने हेतु पैदल आते रहते हैं। इनमें से एक मार्ग पर लंबा सा रेगिस्तान पड़ता है। एक बार इन अवैध घुसे मेक्सिकन में से 9 व्यक्ति प्यास के मारे इस मार्ग पर मर गये। अब उनके घर वालों ने अमेरिकन शासन को सू किया है कि अमेरिकन शासन को यह ज्ञान होते हुये भी कि इस मार्ग से मेक्सिकन्स अवैध रूप से अमेरिका में आते हैं¸ उन्होंने इस मार्ग पर पानी की समुचित व्यवस्था नहीं की। अब अमेरिकन शासन मुकदमा हार जाने के भय से अच्छे से अच्छे वकील तो अपने बचाव में लगाये ही हुये हैं¸ भविष्य में अवैध अमेरिका आने वाले मेक्सिकन्स के लिये उस रेगिस्तान में पानी एवं अन्य सुख–सुविधा का समुचित प्रबंध भी कर रहा है। वाह रे मालिक¸ क्या महिमा है तेरी? भारत में किसी को सू करने की धमकी दी तो कहेगा कि क्या दीवाना हो गया है – तेरे परदादे ने मेरे लकड़दादे को सू किया था¸ उसका फैसला अभी तक करा पाया है? जो नया झंझट अपने सिर ले रहा है। और अमेरिका में सू किये जाने के नाम से ही बड़े–बड़ों की सू सू निकल जाती हैं।
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