05-08-2016, 06:21 PM | #191 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
—ओशो एक छोटे से मजाक से महाभारत पैदा हुआ। एक छोटे से व्यंग से द्रौपदी के कारण जो दुर्योधन के मन में तीर की तरह चुभ गया और द्रौपदी नग्न की गई। नग्न की गई; हुई नहीं—यह दूसरी बात है। करने वाले ने कोई कोर-कसर न छोड़ी थी। करने वालों ने सारी ताकत लगा दी थी। लेकिन फल आया नहीं, किए हुए के अनुकूल नहीं आया फल—यह दूसरी बात हे। असल में, जो द्रौपदी को नग्न करना चाहते थे, उन्हों ने ख्याल रख छोड़ा था। उनकी तरफ से कोई कोर न थी। लेकिन हम सभी कर्म करने वालों को, अज्ञात भी बीच में उतर आता है, इसका कभी कोई पता नहीं है। वह जो कृष्ण की कथा है, वह अज्ञात के उतरने की कथा है। अज्ञात के हाथ है, जो हमें दिखाई नहीं पड़ते। हम ही नहीं है इस पृथ्वीी पर। मैं अकेला नहीं हूं। मेरी अकेली आकांक्षा नहीं हे। अनंत आकांक्षा है। और अंनत की भी आंकाक्षा है। और उन सब के गणित पर अंतत: तय होता है कि क्याा हुआ। अकेला दुर्योधन ही नहीं है नग्नग करने में, द्रौपदी भी तो है जो नग्नउ की जा रही है। द्रौपदी की भी तो चेतना है, द्रौपदी का भी तो अस्तित्व है। और अन्याय होगा यह कि द्रौपदी वस्तु की तरह प्रयोग की जाए। उसके पास भी चेतना है और व्यक्तित्व है; उसके पास भी संकल्प है। साधारण स्त्री नहीं है द्रौपदी। >>>
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05-08-2016, 06:25 PM | #192 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
द्रौपदी
सच तो यह है कि द्रौपदी के मुकाबले की स्त्री पूरे विश्व के इतिहास में दूसरी नहीं है। कठिन लगेगी बात। क्यों कि याद आती है सीता की, याद आती सावित्री की याद आती है सुलोचना की और बहुत यादें है। फिर भी मैं कहता हूं, द्रौपदी का कोई मुकाबला ही नहीं है। द्रौपदी बहुत ही अद्वितीय है। उसमें सीता की मिठास तो है ही, उसमें क्लियोपैट्रा का नमक भी है। उसमें क्लियोपैट्रा का सौंदर्य तो है ही, उस में गार्गी का तर्क भी है। असल में पूरे महाभारत की धुरी द्रौपदी है। यह सारा युद्ध उसके आस पास हुआ है। लेकिन चूंकि पुरूष कथाएं लिखते हे। इसलिए कथाओं में पुरूष-पात्र बहुत उभरकर दिखाई पड़ते है। असल में दुनिया की कोई महा कथा स्त्री की धुरी के बिना नहीं चलती है। सब महा कथाएं स्त्री की धुरी पर घटित होती है। वह बड़ी रामायण सीती की धुरी पर घटित हुई है। राम और रावण तो ट्राएंगल के दो छोर है, धुरी तो सीता है। ये कौरव और पांडव और यह सारा महाभारत और यह सारा युद्ध द्रौपदी की धुरी पर घटा हे। उस युग की और सारे युगों की सुंदर तम स्त्री है वह। नहीं आश्चर्य नहीं है कि दुर्योधन ने भी उसे चाहा हो। असल में उस युग में कौन पुरूष होगा जिसने उसे न चाहा हो। उसका अस्तिेत्व, उसके प्रति चाह पैदा करने वाला था। दुर्योधन ने भी उसे चाहा है और वह चली गई अर्जुन के पास। >>>
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05-08-2016, 06:26 PM | #193 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
द्रौपदी
और वह भी बड़े मजे की बात है कि द्रौपदी को पाँच भाइयों में बांटना पडा। कहानी बड़ी सरल है। उतनी सरल घटना नहीं हो सकती। कहानी तो इतनी ही सरल है कि अर्जुन ने आकर बाहर से कहा कि मां देखो, हम क्या ले आए है। और मां ने कहा, जो भी ले आए हो वह पांचों भाई बांट लो। लेकिन इतनी सरल घटना हो नहीं सकती। क्योंकि जब बाद में मां को भी तो पता चला होगा। कि यह मामला वस्तु का नहीं, स्त्री का हे। यह कैसे बाटी जा सकती है। तो कौन सी कठिनाई थी कि कुंती कह देती कि भूल हुई। मुझे क्या् पता था कि तूम पत्नी ले आए हो। लेकिन मैं जानता हूं कि जो संघर्ष दुर्योधन और अर्जुन के बीच होता, वह संघर्ष पाँच भाइयों के बीच भी हो सकता था। द्रौपदी ऐसी थी, वे पाँच भी कट-मर सकते थे उसके लिए। उसे बांट देना ही सुगमंतम राजनीति थी। वह घर भी कट सकता था। वह महायुद्ध जो पीछे कौरवों-पांडवों में हुआ, वह पांडवों-पांडवों में भी हो सकता था। इसलिए कहानी मेरे लिए इतनी सरलनहीं है। कहानी बहुत प्रतीकात्मक है और गहरी है। वह यह खबर देती है किस्त्री वह ऐसा थी। कि पाँच भाई भी लड़ सकते थे। इतनी गुणी थी। साधारण नहींथी। असाधारण थी। उसको नग्न करना आसान बात नहीं थी। आग से खेलना था। तोअकेला दुर्योधन नहीं है कि नग्ना कर ले। द्रौपदी भी है। >>>
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05-08-2016, 06:27 PM | #194 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
द्रौपदी
और ध्या न रहे, बहुत बातें है इसमें, जो खयाल में ले लेने जैसी है। जब तक कोई स्त्री स्वय्ं नग्न न होना चाहे, तब तक इस जगत में कोई पुरूष किसी स्त्री को नग्न नहीं कर सकता है, नहीं कर पाता है। वस्त्र उतार भी ले, तो भी नग्न नहीं कर सकता है। नग्न होना बड़ी घटना है वस्त्र उतरने से निर्वस्त्र होने से नग्*न होना बहुत भिन्न* घटना है। निर्वस्त्र करना बहुत कठिन बात नहीं है, कोई भी कर सकता है, लेकिन नग्न करना बहुत दूसरी बात है। नग्न तो कोई स्त्री तभी होती है, जब वह किसी के प्रति खुलती है स्वयं। अन्यथा नहीं होती; वह ढंकी ही रह जाती है। उसके वस्त्र छीने जा सकते है। लेकिन वस्त्र छीनना स्त्री को नग्न करना नहीं है। और बात यह भी है कि द्रौपदी जैसी स्त्रीं को नहीं पा सकता दुयोर्धन। उसके व्यंग्या तीखे पड़ गए उसके मन पर। बड़ा हारा हुआ है। हारे हुए व्यक्ति –जैसे कि क्रोध में आए हुई बिल्लियों खंभे नोचने लगती है। वैसा करने लगते है। और स्त्री के सामने जब भी पुरूष हारता है—और इससे बड़ी हार पुरूष को कभी नहीं होती। पुरूष से लड़ ले, हार जीत होती है। लेकिन पुरूष जब स्त्री से हारता है। किसी भी क्षण में तो इससे बड़ी हार नहीं होती है। तो दुर्योधन उस दिन उसे नग्न करने का जितना आयोजन करके बैठा है, वह सारा आयोजन भी हारे हुए पुरूष मन का है। और उस तरफ जो स्त्री खड़ी है हंसने वाली,वह कोई साधारण स्त्री नहीं है। उसका भी अपना संकल्प है अपना विल है। उसकी भी अपनी सामर्थ्य है; उसकी भी अपनी श्रद्धा है; उसका भी अपना होना है। उसकी उस श्रद्धा में वह जो कथा है, वह कथा तो काव्य है कि कृष्ण उसकी साड़ी को बढ़ाए चले जाते है। लेकिन मतलब सिर्फ इतना है कि जिसके पास अपना संकल्प है, उसे परमात्मा का सारा संकल्प तत्का्ल उपलब्ध् हो जाता है। तो अगर परमात्मा के हाथ उसे मिल जाते हे, तो कोई आश्चंर्य नहीं। >>>
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05-08-2016, 06:30 PM | #195 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
द्रौपदी
तो मैंने कहा,और मैं फिर कहता हूं, द्रौपदी नग्न की गई, लेकिन हुई नहीं। नग्न करना बहुत आसान है, उसका हो जाना बहुत और बात है। बीच में अज्ञात विधि आ गई, बीच में अज्ञात कारण आ गए। दुर्योधन ने जो चाहा, वह हुआ नहीं। कर्म का अधिकार था, फल का अधिकार नहीं था। यह द्रौपदी बहुत अनूठी है। यह पूरा युद्ध हो गया। भीष्म पड़े है शय्या पर—बाणों की शय्या पर—और कृष्ण कहते है पांडवों को कि पूछ लो धर्म का राज, और वह द्रौपदी हंसती है। उसकी हंसी पूरे महाभारत पर छाई है। वह हंसती है कि इनसे पूछते है धर्म का रहस्य, जब में नग्न की जा रही थी, तब ये सिर झुकाए बैठे थे। उसका व्यं*ग गहरा है। वह स्त्री बहुत असाधारण है। काश, हिंदुस्तान की स्त्रियों ने सीता को आदर्श न बना कर द्रौपदी को आदर्श बनाया होता तो हिंदुस्तान की स्त्री की शान और होती। लेकिन नही, द्रौपदी खो गई है। उसका कोई पता नहीं है। खो गई। एक तो पाँच पतियों की पत्नी* है। इसलिए मन को पीड़ा होती है। लेकिन एक पति की पत्नी होना भी कितना मुश्किकल है, उसका पता नहीं है। और जो पाँच पतियों को निभा सकती हे, वह साधारण स्त्री नहीं है। असाधारण है, सुपर ह्मन हे। सीता भी अतिमानवीय है लेकिन टू ह्मन के अर्थों में। और द्रौपदी भी अतिमानवीय है, लेकिन सुपर ह्यूमन के अर्थों में। >>>
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05-08-2016, 06:32 PM | #196 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
द्रौपदी
पूरे भारत के इतिहास में द्रौपदी को सिर्फ एक आदमी ने ही प्रशंसा दी है। और एक ऐसे आदमी ने जो बिलकुल अनपेक्षित है। पूरे भारत के इतिहास में डाक्टर राम मनोहर लोहिया को छोड़कर किसी आदमी ने द्रौपदी को सम्मान नहीं दिया है। हैरानी की बात है मेरा तो लोहिया से प्रेम इस बात से हो गया कि पाँच हजार साल के इतिहास में एक आदमी, जो द्रौपदी को सीता के ऊपर रखने को तैयार है। यह जो मैंने कहा, आदमी करता है कर्म फल की अति आकांक्षा से, कर्म भी नहीं हो पाता और फल की अति आकांक्षा से दुराशा और निराशा ही हाथ लगती है। कृष्ण ने यह बहुत बहुमूल्य सूत्र कहा है। इसे हृदय के बहुत कोने में सम्हालकर रख लेने जैसा है। करें कर्म, वह हाथ में है, अभी है, यहीं है। फल को छोडें। फल को छोडने का साहस दिखलाए। कर्म को करने का संकल्प, फल को छोड़ने का साहस, फिर कर्म निश्चित ही फल ले आता है। लेकिन आप उस फल को मत लाएं, वह तो कर्म के पीछे छाया की तरह चला आता है। और जिसने छोड़ा भरोसे से, उसके छोड़ने पर ही, उसके भरोसे में ही, जगत की सारी ऊर्जा सहयोगी हो जाती है। जैसे ही हम मांग करते हैं, ऐसा हो, वैसे ही हम जगत—ऊर्जा के विपरीत खड़े हो जाते हैं और शत्रु हो जाते हैं। जैसे ही हम कहते हैं, जो तेरी मर्जी; जो हमें करना था, वह हमने कर लिया, अब तेरी मर्जी पूरी हो, हम जगत—ऊर्जा के प्रति मैत्री से भर जाते हैं। और जगत और हमारे बीच, जीवन—ऊर्जा और हमारे बीच, परमात्मा और हमारे बीच एक हार्मनी, एक संगीत फलित हो जाता है। जैसे ही हमने कहा कि नहीं, किया भी मैंने, जो चाहता हूं वह हो भी, वैसे ही हम जगत के विपरीत खड़े हो गए हैं। और जगत के विपरीत खड़े होकर सिवाय निराशा के, असफलता के कभी कुछ हाथ नहीं लगता है। इसलिए कर्मयोगी के लिए कर्म ही अधिकार है। फल! फल परमात्मा का प्रसाद है। ***
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