17-02-2013, 01:02 PM | #191 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
बीरबल बादशाह अकबर के दरबार का सबसे बुद्धिमान व प्रभावशाली मंत्री था। बादशाह के सामने जब भी समस्या आती वह बीरबल की मदद से उसका हल निकाला करता था। बीरबल भी अपनी समझ से बादशाह को सही और उचित सलाह देता था। बादशाह सदैव उसके कठिन प्रश्न रखते थे परन्तु वह शीघ्र ही उनके सटीक उतर देकर बादशाह को लाजवाब कर देता था। एक दिन अकबर दरबार का कार्य कर रहे थे। उन्होंने बीरबल से पूछा, बीरबल, बताओ हम भगवान का न्याय कब देख सकते है? बीरबल कुछ क्षण सोचता रहा। दरबारी और महाराज उतर की प्रतीक्षा कर रहे थे। बीरबल बादशाह के समक्ष झुककर बोला, हम केवल तभी भगवान का न्याय देख सकते हैं जब आपके द्वारा सही न्याय नहीं होगा। जब आप कोई गलत न्याय करेंगे भगवान उसके सुधार के लिए अपना न्याय दिखाएगा। बादशाह बीरबल की बात से सहमत हो गए। इसके बाद उन्होंने कभी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं किया तथा सदैव इस बात का ध्यान रखते की कही अन्याय न हो जाए। इस समस्या को सुलझाने के बाद बादशाह ने बीरबल से कहा, क्या तुम जानते हो कि एक मूर्ख और ज्ञानी व्यक्ति में क्या अंतर है? बीरबल ने कहा,महाराज जानता हूं । अकबर ने कहा,क्या तुम विस्तार से बता सकते हो? बीरबल बोला, वह व्यक्ति जो अपनी बुद्धि का प्रयोग मुश्किल, चुनौतीपूर्ण तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में अपना नियन्त्रण खोए बिना करता है वह ज्ञानी होता है। वह व्यक्ति जो प्रतिकूल परिस्थितियों को इस प्रकार सुलझाता है कि वे और प्रतिकूल हो जाती है मूर्ख कहलाता है। अकबर ने सोचा की बीरबल कहना चाहता है की एक पढ़ा लिखा व्यक्ति ही ज्ञानी होता है क्योकि उसे पता होता है कि कब किस समस्या का समाधान कैसे करना है। बीरबल के चतुर जवाब से बादशाह के दिल में उसका स्थान और पक्का हो गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
17-02-2013, 01:03 PM | #192 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
बीता समय नहीं लौटता
वर्तमान बेहद अहम है। इसे न गंवाएं। अपने आज को भरपूर जिएं, क्योंकि बीता समय फिर नहीं लौटता। आज जो कर रहे हैं उसे शिद्दत से करें। स्कूल टाइम में पढ़ाई पर ध्यान देना जरूरी है तो युवा अवस्था में अपने व्यवसाय सम्बंधी जिम्मेदारियों को मेहनत से निभाना जरूरी है। आप चाहे जिस पेशे में हों, अपने काम को गंभीरता से लें। ऐसा न हो कि आगे चलकर आपको लगे कि काश मैंने यह इस कार्य को ऐसे किया होता तो कितना बेहतर होता। कैरियर के साथ ही परिवार भी बहुत अहम है। परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज न करें। कैरियर को लेकर आपकी महत्वाकांक्षा सही है लेकिन परिवार के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी को न भूलें। अपने बच्चों को पूरा समय दें और उन्हें अहसास कराएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं। माता-पिता को सम्मान दें, उनकी सेवा करें। उन्हें बताएं कि आपके जीवन में उनकी क्या जगह है। आप उम्र के जिस भी पड़ाव में हों, सीखने की चाहत बरकरार रखें। सीखना एक सतत प्रक्रिया है। जीवन में अच्छा हो या बुरा, हर तरह की घटना हमें कुछ न कुछ संदेश जरूर देती है। यह हमारे ऊपर है कि हम उससे क्या सबक लेते हैं। खुद को नई चुनौतियों और कठिनाइयों के लिए तैयार रखें। जिंदगी हर मोड़ पर इम्तिहान लेती है। एक युवक की उम्र करीब 22-23 साल की रही थी। उसके बॉस ने उससे कहा कि वह बेहद नकारा इंसान है और उनके साथ काम करने के लायक नहीं है। यह उस युवक के लिए बहुत बड़ा झटका था। उसे लगा कि उसकी सारी उपलब्धियां, पढ़ाई, डिग्रियां सब कुछ बेकार हैं। घर लौटा और बहुत रोया। उस समय लगा कि जीवन खत्म हो गया है। सब कुछ अंधकारमय लग रहा था। वह बहुत निराश था लेकिन उसने खुद को संभाला और नई नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश की। दो महीने बाद कोशिश रंग लाई और सब ठीक हो गया। जीवन के हर मोड़ पर हिम्मत रखें। घबराए नहीं। मुश्किलें अपने आप हल हो जाएंगी।
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17-02-2013, 01:04 PM | #193 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
मदद का जज्बा होना चाहिए
खुद खुश रहें और दूसरों को भी खुशी देने की कोशिश करें। जरूरी है कि आप चीजों को लेकर सकारात्मक नजरिया अपनाएं। जिंदगी बहुत खूबसूरत है। मुश्किलों का मतलब यह कतई नहीं है कि जीवन कठिन है। अगर आप सहज दिमाग से हल खोजेंगे तो मुश्किलें आसान हो जाएंगी। एक बेहतर समाज वह है जहां सब एक-दूसरे की मदद करते हैं। आप में दूसरों की मदद का जज्बा होना चाहिए। मदद का मतलब यह कतई नहीं कि आप दूसरों पर बहुत ज्यादा धन या समय खर्च करें। सोचें कि आप जिस पद पर या जिस पेशे में हैं वहां रहकर आप दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं। आपकी छोटी-सी पहल किसी को बहुत बड़ी खुशी दे सकती है। कई बार बहुत कम हैसियत वाले लोग दूसरों की मदद में बहुत बड़ा योगदान देते हैं जबकि दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो बहुत ज्यादा सक्षम हैं पर वे दूसरों की परवाह ही नहीं करते हैं। सिर्फ अपने बारे में न सोचें। दूसरों का खयाल रखना भी जरूरी है। अगर किसी ने कुछ अच्छा काम किया है तो उसकी तारीफ करना न भूलें। इससे न केवल उसका उत्साह बढ़ेगा बल्कि उसे खुशी भी मिलेगी। इस तरह आपकी दुनिया काफी खूबसूरत बन सकती है। जब दूसरे खुश होंगे तभी आपको सच्ची खुशी नसीब होगी। आर्थिक तरक्की सब कुछ नहीं है। भौतिक उपलब्धियां आपको सच्ची खुशी नहीं दे सकती है। मन में शांति और सकून न हो तो पैसा आपको खुशी नहीं दे पाएगा। पैसा कमाना ठीक है लेकिन पैसा ही जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। पैसे से ज्यादा अहम है सेहत। खुद का खयाल रखें ताकि आपकी सेहत अच्छी रहे। सेहत के साथ अपने रिश्तों पर भी ध्यान दें। कहीं तरक्की की दौड़ में आप सेहत और रिश्तों से समझौता तो नहीं कर रहे हैं? सेहत और रिश्तों पर निवेश कीजिए। हम हर चीज को फायदे-नुकसान से नहीं जोड़ सकते। बात अगर फायदे की हो तो सिर्फ तत्कालीन फायदे पर ध्यान न दें। हमें दीर्घकालीन फायदे के बारे में सोचना चाहिए।
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17-02-2013, 01:06 PM | #194 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
प्रजा को प्रिय राजा
एक ताकतवर जादूगर था। वह अपनी जादूगरी में काफी महारत हासिल किए हुए था। एक बार उसको न जाने क्या सूझी कि उसने किसी शहर को तबाह करने की ठान ली। उसने कई उपायों पर विचार किया कि आखिर किस तरह से उस शहर को बरबाद किया जाए। आखिर में उसको एक तरकीब सूझी। उसने पूरे शहर को ही खत्म करने की नीयत से वहां के कुएं में कोई जादुई रसायन डाल दिया। उस रसायन के असर से जिसने भी उस कुएं का पानी पिया वह पागल हो गया। सारा शहर ही उसी कुएं से पानी लेता था। अगली सुबह उस कुएं का पानी पीने वाले सारे लोग अपने होश-हवास खो बैठे। शहर के राजा और उसके परिजनों ने उस कुएं का पानी नहीं पिया था, क्योंकि उनके महल में उनका निजी कुआं था, जिसमें जादूगर अपना रसायन नहीं मिला पाया था। राजा ने अपनी जनता को सुधबुध में लाने के लिए कई फरमान जारी किए, लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि सारे कामगारों और पुलिसवालों ने भी उसी कुएं का पानी पिया था। सभी को यह लगा कि राजा बहक गया है और ऊल-जलूल फरमान जारी कर रहा है। सभी राजा के महल तक गए और उन्होंने राजा से गद्दी छोड़ देने के लिए कहा। राजा उन सबको समझाने-बुझाने के लिए महल से बाहर आ रहा था, तब रानी ने उससे कहा, क्यों न हम भी जनता कुएं का पानी पी लें। हम भी फिर उन्हीं जैसे हो जाएंगे। राजा और रानी ने भी जनता कुएं का पानी पी लिया और वे भी अपने नागरिकों की तरह बौरा गए और बेसिरपैर की हरकतें करने लगे। अपने राजा को बुद्धिमानीपूर्ण व्यवहार करते देख सभी नागरिकों ने निर्णय किया कि राजा को हटाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने तय किया कि राजा को ही राजकाज चलाने दिया जाए। इस तरह से जादूगर की योजना तो नाकाम हो ही गई, प्रजा भी जान गई कि उनका राजा उनके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो सकता है।
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17-02-2013, 10:48 PM | #195 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अफवाह ने मचाई भगदड़
एक गधा बरगद के पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। तभी जोर के धमाके की आवाज आई। वह उठा और चीखने लगा-भागो-भागो धरती फट रही है। वह पागलों की तरह एक दिशा में भागने लगा। एक अन्य गधे ने उससे पूछा तो उसने कहा, तुम भी भागो। धरती फट रही है। यह सुन दूसरा गधा भी भागने लगा। देखते-देखते सैकड़ों गधे भागने लगे। गधों को भागता देख अन्य जानवर भी डर गए। चारों तरफ जानवरों की चीख-पुकार मच गई। सभी जानवर भागने लगे। हल्ला सुन जंगल का राजा शेर गुफा से निकला और दहाड़ के साथ बोला - कहां भागे जा रहे हो तुम सब? बंदर बोला, महाराज धरती फट रही है। शेर ने पूछा - किसने कहा ये सब? सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे। अंत में पता चला कि यह बात सबसे पहले गधे ने बताई थी। शेर ने गधे को बुलाया और पूछा - तुम्हें कैसे पता चला कि धरती फट रही है? गधा बोला, मैंने अपने कानों से धरती के फटने की आवाज सुनी महाराज। शेर ने कहा - मुझे उस जगह ले चलो और दिखाओ कि धरती फट रही है। ऐसा कहते हुए शेर गधे को उस तरफ धकेलता हुआ ले जाने लगा। बाकी जानवर भी उनके पीछे हो लिए और डर-डर कर उस ओर बढ़ने लगे। बरगद के पास पहुंच कर गधा बोला, मैं यहीं सो रहा था कि तभी जोर से धरती फटने की आवाज आई। मैंने खुद उड़ती धूल देखी और भागने लगा। शेर ने पास जाकर देखा और मामला समझ गया। उसने सभी को कहा, ये गधा महामूर्ख है। दरअसल पास ही नारियल का एक ऊंचा पेड़ है और तेज हवा चलने से उस पर लगा एक बड़ा सा नारियल नीचे पत्थर पर गिर पड़ा। पत्थर सरकने से आस-पास धूल उड़ने लगी और ये गधा न जाने कैसे इसे धरती फटने की बात समझ बैठा। ये तो गधा है, पर क्या आपके पास भी दिमाग नहीं है। अपने - अपने घर जाइए और आइन्दा किसी अफवाह पर यकीन करने से पहले दस बार सोचिए।
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17-02-2013, 10:49 PM | #196 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
गलती को सच्चाई से स्वीकारें
माना जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ हम ज्यादा समझदार होते जाते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं लगता। नियम यह है कि हम फिर भी नासमझ बने रहते हैं और उम्र बढ़ने के बावजूद बहुत सी गलतियां करते हैं। फर्क सिर्फ इतना होता है कि हम नई गलतियां करते हैं, अलग तरह की गलतियां करते हैं। हम अनुभवों से सीखते हैं, इसलिए हो सकता है कि हम वही गलतियां दोबारा न करें, लेकिन फिर भी कुछ अवसर ऐसे आते हैं जो यह चाहते हैं कि हम उससे टकराकर गिर जाएं। असल बात इस सच्चाई को स्वीकार करना है। जब आप नई गलतियां करें तो खुद को कोसने न लगें। नियम तो यह है कि जब आपसे चीजें गड़बड़ हो जाएं तो खुद के प्रति दयालु रहें। क्षमावान बनें और इस सच्चाई को स्वीकार करें कि हमारी उम्र तो बढ़ेगी लेकिन हमारी समझदारी नहीं बढ़ेगी। हम हमेशा अपनी पुरानी गलतियों को देख सकते हैं, लेकिन भविष्य की गलतियों को देखने में असफल रहते हैं। समझदारी इसमें नहीं है कि गलतियां न हों। समझदारी तो यह सीखने में है कि गलतियां करने के बाद अपनी गरिमा और मानसिक संतुलन को बरकरार रखते हुए उनसे कैसे उबरा जाए। जबानी में हमें लगता है कि बुढ़ापा ऐसी चीज है, जो सिर्फ बूढ़े लोगों के साथ होती है। लेकिन यह हम सभी के साथ होती है। हमारे पास इसे गले लगाने और इसके साथ रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। चाहे हम जो भी करें और चाहे हम जैसे भी हों, असलियत यही है कि हम बूढ़े होंगे। और जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, बुढ़ापे की यह प्रक्रिया तेज होती जाती है। आप इसे इस तरह समझ सकते हैं कि आपकी उम्र जितनी ज्यादा होगी, आप उतने ही ज्यादा क्षेत्रों में गलतियां कर चुके होंगे। बहरहाल, इसके बावजूद कई नए क्षेत्र होंगे, जहां हमारे पास कोई दिशानिर्देश नहीं होंगे, इसलिए उनमें हम गड़बड़ करेंगे, अति प्रतिक्रिया करेंगे, गलती करेंगे। यह सच्चाई हमें समझनी ही पड़ेगी।
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18-02-2013, 11:46 PM | #197 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
गलती ना दोहराने का संकल्प करें
हम जितने ज्यादा लचीले, रोमांच-प्रेमी और जीवन को गले लगाने वाले होंगे, हम उतने ही ज्यादा क्षेत्रों में कदम रखेंगे और जाहिर है, उनमें गलतियां भी करेंगे। अगर हम पीछे मुड़कर देख सकते हैं कि हमसे कहां गलती हुई, अगर हम उन गलतियों को न दोहराने का संकल्प कर सकते हैं, तो इतना ही काफी है। हम इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते। याद रखें, आप पर जो नियम लागू होते हैं, वही आपके आस-पास के हर व्यक्ति पर भी लागू होते हैं। वे भी बूढ़े हो रहे हैं और खास समझदार भी नहीं हो रहे हैं। एक बार जब आप यह स्वीकार कर लेते हैं, तो आप अपने तथा दूसरों के प्रति ज्यादा क्षमाशील और दयालु हो जाएंगे। अंत में समय घाव भर देता है और आपकी उम्र बढ़ने के साथ इस क्षेत्र में आपकी स्थिति बेहतर होती जाती है। देखिए, आप अगर पहले ही बहुत ज्यादा गलतियां कर चुके हैं तो भविष्य में उतनी ही कम नई गलतियां करेंगे। सबसे अच्छा तो यह होता कि आप जिंदगी में जल्दी ही ढेर सारी गलतियां कर लें, ताकि बाद में मुश्किल तरीके से सीखने की संभावनाएं कम हो जाएं और जवानी इसी का तो नाम है - ज्यादा से ज्यादा गलतियां करने और उन्हें अपने रास्ते से हटाने का अवसर। मतलब यही है कि दुनिया का कोई भी शख्स यह दावा नहीं कर सकता कि वह गलती नहीं कर सकता। हां, गलती सभी से होती है लेकिन उसे बार बार दोहराने पर दो बातें सामने आती हैं। एक तो यह कि जो शख्स गलती कर रहा है वह समझना ही नहीं चाहता कि उसने गलती की है तो माना जा सकता है कि वह किसी भी दशा में सुधरना ही नहीं चाहता। दूसरा, गलती होने के बाद भी उसे दोहराने का मतलब है वह शख्स उससे सबक सीखना नहीं चाहता। ऐसा नहीं होना चाहिए। आप बड़े हो गए इसका मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि आप गलती नहीं कर सकते। गलती होगी और आपको उसे सच्चे मन से स्वीकार करना ही होगा।
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18-02-2013, 11:46 PM | #198 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
चींटी ने दी मकड़ी को सीख
एक मकड़ी ने जाला बनाने का विचार किया और सोचा कि जाले में खूब कीड़े, मक्खियां फंसेंगी और मै उसे आहार बनाऊंगी और मजे से रहूंगी। उसने कमरे के एक कोने में जाला बुनना शुरू किया। कुछ देर में आधा जाला बुन कर तैयार हो गया। मकड़ी खुश हुई कि अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हंस रही थी। मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली, हंस क्यो रही हो? बिल्ली ने जवाब दिया, यहां मक्खियां नहीं हैं। ये जगह बिलकुल साफ-सुथरी है। यहां कौन आएगा तेरे जाले में। उसने अच्छी सलाह के लिए बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़ दूसरी जगह तलाश करने लगी। उसने इधर-उधर देखा। एक खिड़की में जाला बुनना शुरू किया। कुछ देर वह जाला बुनती रही। तभी एक चिड़िया आई और मकड़ी से बोली, तू भी कितनी बेवकूफ है। यहां खिड़की से तेज हवा आती है। तू जाले के साथ ही उड़ जाएगी। वह सोचने लगी अब कहां जाला बनाया जाए? समय काफी बीत चूका था और उसे भूख भी लगने लगी थी। उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी में जाला बुनना शुरू किया। तभी उसे एक काक्रोच नजर आया। काक्रोच बोला, आलमारी को कुछ दिनों बाद बेच दिया जाएगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी। भूख की वजह से वह परेशान थी। उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता। उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया। चींटी बोली, मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी। तुम बार-बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती। और जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी यही हालत होती है। और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही।
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23-02-2013, 01:49 AM | #199 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अवसर का पूरा लाभ उठाएं
आपको जिंदगी को रोमांचक अनुभवों की शृंखला के रूप में देखना होगा। हर रोमांचक अनुभव मजे लेने, कुछ सीखने, दुनिया टटोलने, अनुभव तथा दोस्तों का दायरा बढ़ाने और अपने क्षितिजों का विस्तार करने का अवसर होता है। रोमांचक अनुभवों के दरवाजे बंद करने का मतलब बिलकुल यही है कि आप बंद हो जाते हैं। जिस पल आपको किसी रोमांचक अनुभव, अपनी सोच बदलने या खुद को बाहर कदम रखने का अवसर दिया जाए, उसका फायदा उठाएं। फिर देखें कि क्या होता है। अगर इस विचार से आप घबरा रहे हों तो याद रखें कि उस अनुभव के बाद आप अपने खेल में दोबारा घुस सकते हैं, बशर्ते आप ऐसा चाहते हों। लेकिन हर अवसर के लिए हां कहना भी कोई पत्थर की लकीर नहीं है, क्योंकि यह भी लचीलापन नहीं होगा। सचमुच लचीले लोग जानते हैं कि कब नहीं कहना है और कब हां कहना है। अगर आप जानना चाहते हैं कि आपकी सोच कितनी लचीली है, तो इन सवालों से अपनी जांच कर लें कि क्या आपके बिस्तर के सिरहाने पर रखी पुस्तकें वैसी ही हैं, जैसी आप हमेशा पढ़ते हैं? क्या आप इस तरह की बात कहते है कि मैं उस तरह के किसी व्यक्ति को नहीं जानता या मैं इस तरह की जगहों पर नहीं जाता हूं? अगर ऐसा है, तो शायद आपके दिमाग का विस्तार करने और अपनी सोच की बेड़ियों को उतारने का वक्त आ चुका है। आपको ना केवल खुद को लचीला बनाना होगा बल्कि अपनी कुछ महत्वाकांक्षाओं को ताक में भी रखना होगा। आपको केवल अपने बूते ही सब कुछ कर लेने की आदत भी बदलनी होगी क्योंकि दुनिया में कोई भी इंसान इतना परिपक्व नहीं होता कि सब कुछ अपने ही बूते कर ले। उसे कहीं ना कहीं दूसरों का भी साथ चाहिए होता है। खुद को लचीला बनाएं और उतना ही करें जितना क्षमता है। क्षमता से ज्यादा कुछ भी करने की तमन्ना आपको किसी संकट में भी डाल सकती है। खतरे उठाएं लेकिन सोच समझ कर।
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23-02-2013, 01:49 AM | #200 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
कलाकार का उत्साह
बहुत समय पहले की बात है। उन्नीसवीं सदी के मशहूर पेंटर दांते गेब्रियल रोजेटी के पास एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति पहुंचा। उसके पास कुछ स्केच और ड्राइंग्स थीं जो वो रोजेटी को दिखा कर उनकी राय जानना चाहता था की वे अच्छी हैं या कम से कम उन्हें देखकर कलाकार में कुछ टैलेंट जान पड़ता है। रोजेटी ने ध्यान से उन ड्राइंग्स को देखा। वह जल्द ही समझ गए कि वे किसी काम की नहीं हैं और उसे बनाने वाले में नहीं के बराबर आर्टिस्टिक टैलेंट है। वे उस व्यक्ति को दुखी नहीं करना चाहते थे पर साथ ही वो झूठ भी नहीं बोल सकते थे इसलिए उन्होंने बड़ी सज्जनता से उससे कह दिया कि इन ड्राइंग्स में कोई खास बात नहीं है। उनकी बात सुन व्यक्ति थोड़ा निराश हुआ लेकिन शायद वो पहले से ही ऐसी उम्मीद कर रहा था। उसने रोजेटी से उनका समय लेने के लिए माफी मांगी और अनुरोध किया कि यदि संभव हो तो वे एक यंग आर्ट स्टूडेंट के द्वारा बनाई कुछ पुरानी पेंटिंग्स भी देख लें। रोजेटी तैयार हो गए और एक पुरानी फाइल में लगी कृतियां देखने लगे। उन्होंने अपनी ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा,वाह, ये पेंटिंग्स तो बड़ी अच्छी हैं। इस नौजवान में बहुत टैलेंट है। उसे हर तरह का प्रोत्साहन दीजिए। यदि वह इस काम में लगा रहता है और जी-तोड़ मेहनत करता है तो कोई शक नहीं कि एक दिन वो महान पेंटर बनेगा। रोजेटी की बात सुनकर उस व्यक्ति की आंखें भर आयीं। रोजेटी ने पूछा,कौन है यह नौजवान? तुम्हारा बेटा? उसने कहा, नहीं,ये मैं ही हूं। तीस साल पहले का मैं । उस समय किसी ने आपकी तरह प्रोत्साहित किया होता तो आज मैं एक खुशहाल जिन्दगी जी रहा होता। रोजेटी ने कहा,उत्साह एक ऐसी चीज है जो हमारे अन्दर का बेस्ट बाहर लाती है,हमें और भी अच्छा करने के लिए मोटीवेट करती है। इसलिए जब कभी हमें मौका मिले हम उस शख्स को जरूर उत्साही करें जिसमें टेलेंट है।
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