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Old 17-04-2012, 11:18 AM   #2111
abhisays
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
आप याद करें और मैं हाज़िर नहीं होऊं, ऎसी गुस्ताखी कभी नहीं कर सकता ! खैर, इस ज़र्रानवाज़ी के लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूं ! धन्यवाद, मैं उपस्थित हूं !

आपका स्वागत है.
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Old 17-04-2012, 01:18 PM   #2112
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by sikandar_khan View Post
आप अपने बारे मे संक्षिप्त मेँ बताईए ?
मैं एक आम भारतीय इंसान हूं, जिसे हुनर ने वह सब कुछ बख्शा है, जिसकी अमूमन एक औसत आदमी को तमन्ना होती है ! अजीब यह है कि मैंने पढ़ाई बहुत विचित्र ढंग से की है ! हाईस्कूल साइंस से, इंटरमीडिएट कॉमर्स से और स्नातक आर्ट्स से ! एक और पेंच यह रहा कि एमए में मैंने वह सब्जेक्ट लिया, जो अब तक नहीं पढ़ा था - इकोनोमिक्स ! आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इसके एक प्रश्न-पत्र 'लेबर लॉ एंड सोशल वेलफेयर' में मेरे अंक सबसे ज्यादा (89 फीसदी) आए थे, जबकि इसकी किताब ही मेरे पास नहीं थी, क्योंकि उसे खरीदने के लिए मिले पैसों से मैंने कुछ साहित्यिक किताबें खरीद ली थीं ! आपको शंका होगी कि ऐसा कैसे संभव हुआ ! यह संभव हुआ था, मेरी सिक्स्थ-सेवेंथ क्लास से ही कॉमिक्स, पत्र-पत्रिकाएं और साहित्यिक किताबें पढने की आदत के कारण, क्योंकि उसके कोर्स में जो कुछ था, वह सब बल्कि कहें कि मैं उससे ज्यादा कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, ब्लादिमीर इल्यीच लेनिन, माओ त्से तुंग आदि की किताबों में पढ़ चुका था और इन्हीं किताबों से दिए गए मौलिक उद्धरण ने संभवतः परीक्षक को मजबूर किया कि वह मुझे बेहतरीन अंक दे ! बाद में मैंने अतिरिक्त योग्यता के लिए 'डवलपमेंट बैंकिंग' का दो वर्षीय कोर्स भी किया और अपने शौक के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया से उर्दू की तालीम भी ली ! ... और यह भी अजीब स्थिति है कि मैंने पढाई के नाम पर जो पढाई की आज तक वह मेरे किसी काम नहीं आई, लेकिन इतर पढ़ी गई किताबों ने जो शब्द ज्ञान, उन्हें प्रयोग करने की समझ और लेखन शैली अता की अथवा बख्शी, मैं आज उसी की बदौलत अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं ! मैं विवाहित हूं और दो संतानों का पिता भी ! कुछ अधूरा लगा हो, तो बेझिझक मुझे बताएं, कुछ और बताने का प्रयास करूंगा !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु

Last edited by Dark Saint Alaick; 18-04-2012 at 05:59 PM.
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Old 17-04-2012, 01:40 PM   #2113
arvind
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आप अपने पसंद और ना-पसंद के बारे मे हमलोगो को अवगत कराये।
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Old 17-04-2012, 01:53 PM   #2114
abhisays
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1. आपके पसंदीदा पत्रकार कौन कौन हैं?

2. पिछले साल के radia टेप controversy के कारण पुरे मीडिया पर लोगो ने ऊँगली उठाई थी, इसके बारे में आपका क्या ख्याल है?

3. अधिकतर पत्रकार अपने लेख और कहानियो में किसी एक राजनैतिक विचारधारा या पार्टी के तरफ झुके हुए नज़र आते हैं, आपका भी कोई ऐसा झुकाव है की aur yaah ki आप न्यूट्रल हैं?

4. केबल TV के आने के कारण इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार काफी तेजी से आगे बढ़ जाते है और लोकप्रिय हो जाते हैं, ऐसे में प्रिंट मीडिया के पत्रकार यानी आप का क्या कहना है!

5. कुछ दिन पहले जस्टिस काटजू ने कहा था की आजकल के पत्रकारों को इतिहास, अर्थशाश्त्र, विज्ञान आदि का कोई खास ज्ञान नहीं है, अधिकतर पत्र और पत्रकार सिनेमा, क्रिकेट, फैशन के बारे में ही लिखते रहते हैं, देश की जो मूलभूत समस्याएं हैं उनपर कोई कुछ नहीं लिखता, इसके बारे में आपकी क्या राय है?

6. जैसे अंग्रेजी में The Hindu के quality और विश्वसनीयता के कोई मुकाबला नहीं है, क्या हिंदी में भी कोई ऐसा अखबार है?

7. अंग्रेजी मीडिया पर हमेशा यह आरोप लगता है की वो प्रो लेफ्ट है, और हमेशा राईट विंग यानी भाजपा और संग में गलतियां और खामिया ही निकालता रहता है, क्या हिंदी मीडिया में भी ऐसा है, इसके बारे में आपका क्या ख्याल है?


फिलहाल के लिए ७ सवाल मेरी तरफ से.
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Old 17-04-2012, 02:33 PM   #2115
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by abhisays View Post
आपके पत्रकार बनने की कहानी क्या है, विस्तार से बताये?

आपके सवाल के जवाब के कुछ अंश तो सिकंदरजी को दिए उत्तर में निहित हैं, लेकिन यह मान लेने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इसके पीछे एक बड़ा कारण अनेक प्रयास के बावजूद सरकारी नौकरी नहीं मिलना भी है ! साहित्य के सान्निध्य की वज़ह से विचार तो प्रारम्भ से प्रगतिशील और क्रांतिकारी थे ही और लगभग तेरह वर्ष की उम्र से मैं लिखने और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने भी लगा था, अतः जब मेरे पैतृक नगर में मुझे एक सायंकालीन अखबार ने एक व्यंग्य कॉलम लिखने का निमंत्रण दिया, तो मैंने उसे सहर्ष स्वीकार लिया ! अभी यह कॉलम शुरू हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि उसी अखबार ने मुझे उप-सम्पादक के रूप में ज्वाइन करने का प्रस्ताव दिया ! ज़ाहिर है कि नैराश्य की स्थिति में इससे बेहतर और क्या हो सकता था ! इस तरह यही मेरा करियर बन गया !
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Old 17-04-2012, 02:39 PM   #2116
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by arvind View Post
आप अपने पसंद और ना-पसंद के बारे मे हमलोगो को अवगत कराये।
मित्र, मैं भी एक सामान्य मनुष्य हूं, अतः अन्यों की तरह कई खामियां और कमजोरियां भी मुझमें हैं और उसी तरह एक आम आदमी की सामान्य पसंद और नापसंदगी भी मेरी आदतों में शुमार है ! लेकिन आप विषय को वर्गीकृत करके यदि प्रश्न करें, तभी मैं यह समझ पाऊंगा कि आप क्या जानना चाहते हैं और उनके बारे में बता पाऊंगा !
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Old 17-04-2012, 04:39 PM   #2117
Dark Saint Alaick
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अभिषेकजी आपके सात सवालों के जवाब, कोट इसलिए नहीं किये कि प्रविष्ठी बहुत बड़ी हो जाती !

1. इंडिया के एन. राम (हिन्दू), चो रामास्वामी (तुगलक), वी. के. माधवन कुट्टी (मातृभूमि), स्व. राजेन्द्र माथुर (नई दुनिया), स्व. उदयन शर्मा (रविवार) और स्व. आलोक तोमर (स्वतंत्र) तथा विदेशी पत्रकारों में स्टीव लोपेज़ (लॉस एंजिलिस टाइम्स), बॉब वुडवार्ड (वाशिंगटन पोस्ट), डॉ. अलेक्स क्रोटोस्की (गार्जियन), रोरी सेलन जोन्स (बीबीसी) और कार्लोस ए. गार्सिया (द एक्जामिनर) अपनी विशिष्ठ लेखन शैली और जुझारूपन के लिए मुझे पसंद हैं !

2. इस प्रकरण में मैं मीडिया का कोई बचाव नहीं करूंगा ! जिन भी पत्रकारों पर इस दौरान उंगली उठी थी, वह उचित थी ! प्रभु चावला और बरखा दत्त जैसे अनेक पत्रकारों को इस प्रकरण में अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था ! लेकिन मेरा स्पष्ट मत यह है कि बहुत कम पत्रकार निजी तौर पर भ्रष्ट होते हैं, उन्हें उनका समूह अपने जाती फायदे और आकांक्षाओं के लिए दलाल में तब्दील कर देता है ! फिर वे संस्थान को फायदा पहुंचाने के साथ-साथ निजी लाभ भी लेने लगते हैं और पत्रकार नहीं रह जाते ! उनकी भूमिका सिर्फ और सिर्फ दलाल की रह जाती है ! राजनीतिक दलों या सरकारों में बैठे तथाकथित पत्रकारों पर ज़रा नज़र दौड़ाएं, बरसों से बकवास के अलावा क्या उनका कोई सृजन आपने कहीं पढ़ा है?

3. यह सही है कि प्रत्येक पत्रकार के हृदय में किसी न किसी विचारधारा के प्रति एक नरम कोना होता ही है, क्योंकि आखिर वे भी इंसान हैं और रोजमर्रा की दिक्कतों-घटनाओं से हम सभी की तरह वे भी दो-चार होते हैं ! किन्तु यह सही नहीं है कि इसका बहुत ज्यादा असर उनके काम पर होता है, क्योंकि समाचार का रुख अपने हिसाब से मोड़ा नहीं जा सकता ! ज्यादा से ज्यादा यह किया जा सकता है कि जो सूचना आपकी विचारधारा के अनुकूल नहीं है उसे आप कम स्पेस देंगे, लेकिन सूचना तो सूचना है और वह सिर्फ एक लाइन में ही सब कुछ कह जाती है ! इस दायरे से मैं कॉलमिस्ट को बाहर रखूंगा, क्योंकि वे विभिन्न मसलों पर टिप्पणियां करते हैं और उनकी विचारधारा का उस पर साफ़ असर होता है ! अपने बारे में यह कहूंगा कि मैं पाश की एक कविता के इस कथन से पूरी तरह सहमत हूं -"तय करो किस ओर हो तुम ... बीच का रास्ता नहीं होता !" स्पष्ट रूप में मैं वामपंथी रुझान वाला हूं, लेकिन जनता तक सूचना पहुंचाने और उसे यह बताने कि उसके लिए बेहतर क्या है, का अपना काम मैं पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और तटस्थता के साथ करता हूं, यह विश्वास आपको दिलाता हूं !

4. मेरा मत इस विषय में भिन्न है ! यदि आप इलेक्ट्रोनिक मीडिया के किसी दर्शक से कुछ पत्रकारों के नाम पूछें, तो वह अवश्य ही घुमा-फिरा कर दो-चार नाम बता देगा, लेकिन एक भी ऎसी एक्सक्लूसिव सूचना नहीं बता पाएगा, जिसने उसे झकझोरा हो और जो उसे अभी तक याद हो ! ज्यादा से ज्यादा तहलका प्रकरण को आप अपवाद कह सकते हैं ! लेकिन प्रिंट मीडिया के पाठक के पास न सिर्फ ऎसी यादगार स्टोरीज़ की एक लम्बी फेहरिस्त होती है, बल्कि वह आज भी केवल छपे हुए शब्दों पर ही विश्वास करता है और उसके पास पसंदीदा लिखने वालों की एक बड़ी सूची भी रहती है ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया की इस स्थिति के लिए उसका ब्रेकिंग न्यूज़ मैनिया जिम्मेदार है !


5. जस्टिस काटजू की टिप्पणियों को मैं बहुत गंभीरता से नहीं लेता, क्योंकि वे प्रेस परिषद् से हटने के बाद का भविष्य सुरक्षित करने के फेर में टिप्पणियों की अति कर रहे हैं और बुजुर्गों का कहना है कि अति सदैव खराब ही होती है ! एक उदाहरण लें - उन्होंने पोर्न स्टार सनी लियोन के विवाद पर तुरत-फुरत वक्तव्य दे डाला था ! मैंने सुना तो हंसी आ गई, क्योंकि वे उसे मिस लियोनी उच्चारित कर रहे थे ! ज़ाहिर है कि खुद उनका सामान्य ज्ञान काफी कमजोर है ! लेकिन इससे एक बात यह अवश्य साबित होती है कि वे चरित्रवान हैं, क्योंकि उन्होंने सनी की कोई फिल्म कभी देखी होती, तो उन्हें उसका सही नाम अवश्य पता होता ! शायद उन्हें पता नहीं है कि प्रत्येक अखबार में हर विभाग को अलग लोग संभालते हैं और ऐसा कभी नहीं होता कि खेल वाला वाणिज्यिक मसले पर, वाणिज्य वाला फैशन पर और राजनीतिक टिप्पणीकार फिल्मों पर टिप्पणी लिख दे ! हां, उनकी इस बात से मैं सहमत हूं कि वर्तमान में कार्यरत अधिकांश पत्रकार अपने कार्य के लायक ज्ञानवान नहीं हैं ! यहां तक कि ज्यादातर की भाषा ही ठीक नहीं है और इसके लिए 'नहीं पढ़ने' की आदत जिम्मेदार है ! मुझे यह देख कर ताज्जुब होता है कि ज्यादातर पत्रकार अखबार तक नहीं पढ़ते हैं !

6. नई दुनिया और श्री राजेन्द्र माथुर के समय का नवभारत टाइम्स ! शुरुआती जनसत्ता को भी आप इस श्रेणी में गिन सकते हैं, लेकिन वर्तमान में दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता !

7. प्रश्न संख्या तीन के उत्तर में इस विषय का मेरे विचार से पर्याप्त उल्लेख हो चुका है, फिर भी यहां यह और जोडूंगा कि हिन्दी हो या अंग्रेज़ी ज्यादातर मीडिया कांग्रेस का ज़रखरीद गुलाम है ! यही वज़ह है कि देश-हित के कई मुद्दों पर भी उसे अनेक खामियां नज़र नहीं आतीं, लेकिन कांग्रेस और उसके टटपूंजिए सहयोगी घरेलू दलों के जोकरनुमा नेताओं की बकवास सुर्खियां बनती रही है ! हां, समर्थन में वामपंथी दल दूसरे नंबर पर हैं और भाजपा के साथ बहुत कम लोग खुले तौर पर हैं ! जो हैं, वे छुपे तौर पर हैं, क्योंकि धर्म-निरपेक्षता के दंगल में 'आउट ऑफ़ फैशन' करार दिए जाने का ख़तरा जो है !
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Old 17-04-2012, 05:09 PM   #2118
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अभी हाल में ही शेखर गुप्ता द्वारा पुरे एक पेज रिपोर्ट, जो की भारतीय सेना के दिल्ली के आसपास के इलाको में गतिविधि के ऊपर आया था, ने काफी सुर्खिया बटोरी. छोटी से बात में नमक मिर्च लगाकर सनसनीखेज बनाकर पेश किया गया था, क्या आप इस तरह की पत्रकारिता का समर्थन करते हैं, क्या शेखर गुप्ता ने इस कहानी को पूरा का पूरा पहला पेज दे कर सही किया था?
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Old 17-04-2012, 05:24 PM   #2119
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एक ज़माने में नवभारत में शरद जोशी का "प्रतिदिन" आता था, धर्मवीर भारती के धर्मयुग पत्रिका का हर बैठक (drawing room) में होना अनिवार्य था, एक समय था, जब मनोहर श्याम जोशी द्वारा सम्पादित साप्ताहिक हिंदुस्तान और रघुवीर सहाय का दिनमान काफी लोकप्रिय था.

आज ना तो यह लोग हैं और ना धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान और ना ही दिनमान.
क्या ८० और ९० से दशक के बाद में हिंदी पत्रकारिता की उत्कृष्टता (quality) में कमी आई है?
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Old 17-04-2012, 05:52 PM   #2120
Dark Saint Alaick
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अभी हाल में ही शेखर गुप्ता द्वारा पुरे एक पेज रिपोर्ट, जो की भारतीय सेना के दिल्ली के आसपास के इलाको में गतिविधि के ऊपर आया था, ने काफी सुर्खिया बटोरी. छोटी से बात में नमक मिर्च लगाकर सनसनीखेज बनाकर पेश किया गया था, क्या आप इस तरह की पत्रकारिता का समर्थन करते हैं, क्या शेखर गुप्ता ने इस कहानी को पूरा का पूरा पहला पेज दे कर सही किया था?
यह पश्चिम की स्कैंडल और स्कूप पत्रकारिता की उपज है, जो वहां के वातावरण और सामाजिक स्थितियों में स्वीकार्य है, लेकिन भारतीय संस्कार, समाजशास्त्रीय पर्यावरण और परिस्थितियां इसकी इजाज़त नहीं देते ! मैं ऎसी पत्रकारिता के पक्ष में कतई नहीं हूं ! कोई बोली लगा कर बिकने वाला सायंकालीन अखबार इस पद्धति का उपयोग करे, वहां तक तो समझ में आता है, लेकिन यदि एक राष्ट्रीय स्तर का प्रतिष्ठित समाचार पत्र ऐसा करता है, तो उसके निहितार्थ साफ़ समझ में आते हैं ! बाद में एक 'अज्ञात केन्द्रीय मंत्री' के बारे में आई सूचनाएं और एम. जे. अकबर और शेखर गुप्ता में छिड़ा वाकयुद्ध गवाह है कि अखबार कहीं न कहीं पक्ष (पार्टी) बने हुए थे ! दुखद यह है कि ऐसे मामले अनसुलझे ही रह जाते हैं ! मेरा मानना है कि राष्ट्र-हित से जुड़े मुद्दों की कडाई से जांच होनी चाहिए और सच देश के सामने रखा जाना चाहिए कि इस के पार्श्व में कौन लोग थे और उनके स्वार्थ क्या थे !
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