17-04-2014, 02:21 PM | #221 |
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Re: इधर-उधर से
गुलाब क्यों सुन्दर होता है? (from internet) ^^ ^ ^^ ^ “बताओ! गुलाब क्यों सुन्दर होता है?” कुलकर्णी सर थे तो अंग्रजी के शिक्षक पर उनकी आदत थी कि कक्षा का प्रारम्भ किसी ना किसी प्रश्न से किया जाये। और लगभग हर बार प्रश्न ऐसा ही कुछ उटपटांग हुआ करता था। अब इसी को ले लो। गुलाब क्यों सुन्दर होता है? 7 वी कक्षा की बुद्धि के अनुसार छात्र उत्तर देते रहे, ‘गुलाब का रंग सुन्दर होता है इसलिये!’ किसी ने कहा उसकी पंखुड़ियों की रचना के कारण। कोई भी जबाब कुलकर्णी सर को संतुष्ट नहीं कर सका। वैसे भी उनके प्रश्नों का उत्तर उनके स्वयं के पास जो होता था वही उनको मान्य होता था। दो दिन का समय दिया गया छात्रों को ताकि घर में भी सब को पूछ सकें और फिर ये सिद्ध हो जाय कि कोई भी सही जबाब नहीं जानता। वैसे भी इस प्रश्न का माता -पिता भी क्या जबाब दें। ‘‘ये भी कोई बात हुई भला! गुलाब सुन्दर होता ही है अब इसमें क्यों क्या बताये। भगवान ने ही उसे सुन्दर बनाया है।’’
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17-04-2014, 02:23 PM | #222 |
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Re: इधर-उधर से
पढ़ते समय आप भी सोचने लगे ना कि गुलाब क्यों सुन्दर होता है? अब आपको कुलकर्णी सर का उत्तर बता ही देते है। सारे उत्तरों को खारिज कर देने के बाद ही शिक्षक वो उत्तर बताता है जो उसके अनुसार सही होता है और अक्सर छात्र इस बात से सहमत नहीं होते कि वो सही उत्तर है। पर कुलकर्णी सर का प्रश्न पूछने के पीछे हेतु ही अलग होता था। उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘गुलाब इसलिये सुन्दर होता है क्योंकि सब कहते है कि वो सुन्दर होता है। हर कवि कहता है, हर फिल्म में कहा जाता है कि तुम गुलाब सी सुन्दर हो। इसलिये हम भी मान लेते है।’’ देखा सर ने भी नहीं बताया कि क्यों गुलाब सुन्दर होता है? जब छात्रों ने ये बोला तो सर ने कहा, ‘‘मै तो बता दूँगा। पर मेरा पूछने का आशय ये था कि अधिकतर बाते हम जीवन में ऐसे ही मान लेते है क्योंकि सब कहते है। सोचते कहाँ है कि इसका वास्तविक अर्थ क्या है?’’ **
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17-04-2014, 05:31 PM | #223 | |
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Re: इधर-उधर से
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बेहतरीन ज्ञानवर्धक........
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17-04-2014, 06:15 PM | #224 |
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Re: इधर-उधर से
बात तो बिल्कुल सही है............
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
07-05-2014, 12:16 PM | #225 |
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Re: इधर-उधर से
भारत की एकता का निर्माण
(सरदार पटेल के भाषण 1947-1950) भारत की पहली हड़ताल फरवरी 1918 में अहमदाबाद के लगभग 5000 कपड़ा मिल मजदूरों ने मिल कर की थी. हड़ताल के दौरान अहमदाबाद के मिल मालिकों ने मजदूरों में फूट डालने और उनका मनोबल तोड़ने की पूरी कोशिश की. मजदूरों ने पहले अनुसूया साराभाई से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुजारिश की. बाद में अहमदाबाद मिल ओनर्स एसोसियेशन के प्रधान की बहन अनुसूया साराभाई के आग्रह पर महात्मा गाँधी भी बीच में आ गये. और जब उन्होंने देखा कि मजदूर ढीले पड़ रहे हैं तो उन्होंने फ़ाका (अनशन) की प्रतिज्ञा की और कहा कि वे अन्न छोड़ रहे हैं. और यह उनका भारत आने के बाद पहला अनशन था. इससे मजदूर और मिल मालिक दोनों ही बड़े चिंतित हुये. उन्होंने आपस में निश्चय किया कि भविष्य में मजदूरों और मालिकों के प्रतिनिधि बातचीत से समस्याओं को सुलझाएंगे. करीब सात वर्ष तक महात्मा गांधी मजदूरों के प्रतिनिधि के तौर पर इस काम को करते रहे.
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07-05-2014, 12:19 PM | #226 |
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Re: इधर-उधर से
विधर्मी मेहमान
शेख़ सादी ने अपनी विश्वविख्यात पुस्तक “बोस्तान” में एक बुज़ुर्ग पैग़म्बर की कहानी कही है जो अपनी मेहमाननवाज़ी के लिये बड़े मशहूर थे. बिना किसी अतिथि को शामिल किये खाना न खाते थे. जब कोई अतिथि न होता तो वे किसी मुसाफिर की खोज में दूर दूर तक निकल जाते और उसे जबरदस्ती अपने घर ला कर खाना खिलाते थे. एक दिन इसी खोज में निकले कि वन में एक सफ़ेद दाड़ी वाला वृद्ध मुसाफिर मिला और आदत के अनुसार उसे घर लिवा लाये. जब खाने पर बैठे तो मुसाफिर ने खाना शुरू करते समय ईश्वर का नाम न लिया. बुज़ुर्ग मेज़बान को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ. मुसाफिर ने उत्तर दिया, “मेरा धर्म दूसरा है, मैं आपके धर्म का नहीं.” अब बुज़ुर्ग मेज़बान का क्रोध और बढ़ा तथा उस धर्महीन मुसाफिर को उसी समय खाने से उठा दिया. उसके उठ कर जाते ही आकाशवाणी हुई – “ऐ पैग़म्बर, हमको देखो कि इस वृद्ध की आयु सौ वर्ष की है और हमने इसकी धर्महीनता के कारण एक समय भी इसका खाना बंद न किया और तुमसे एक समय भी खाना न खिलाया गया !!
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07-05-2014, 12:34 PM | #227 |
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Re: इधर-उधर से
हेलेन केलर और उनकी विशेषता
हेलेन केलर के दोनों हाथ उसके लिये आँखों और कानों का काम करते थे. और ये कभी कभी उसे न सिर्फ इस योग्य बनाते थे कि वह अपने मित्रों को पहचान सके, बल्कि यह भी मालूम कर सके कि वे उदास हैं अथवा प्रसन्न. फूलों को छू कर वह कहा करती, “कितने सुन्दर हैं यह फूल !!”वह सफ़ेद और लाल गुलाब में अंतर ढूंढ लेती थी, चूँकि सफ़ेद पत्तियां पतली होती हैं और रंगीन मोटी होती हैं. हेलेन अपने हाथों में और पैरों में आवाजे महसूस कर सकती थी. वह फर्श पर चलते हुये संगीत की लहरें महसूस कर सकती थी और गाने के साथ अच्छी तरह नाच सकती थी. वह लोगों के क़दमों की आवाज से उनके चरित्र मालूम कर सकती थी. वह बता सकती थी कि वह व्यक्ति शूरवीर है, दृढ़ निश्चय वाला है, थका हुआ है या गुस्से में है. तभी तो उन्होंने कहा था कि ईश्वर जब एक दरवाजा बंद कर देता है तो कई अन्य दरवाजे खोल देता है. परन्तु हमारी विडम्बना यही है कि हम बंद दरवाजे को ही ताकते रहते हैं.
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12-05-2014, 03:35 PM | #228 |
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Re: इधर-उधर से
मेरी डायरी के पन्ने / 26 सितम्बर 1995
टीवी कार्यक्रमों के बारे में आजकल यह हाल है कि दर्शक टीवी के सामने बैठा हुआ लगातार चैनल बदलता रहता है- मल्टी चैनेल चॉइस और रिमोट कण्ट्रोल की बदौलत मेरा खयाल है कि यदि आप आधा घंटा से अधिक किसी प्रोग्राम को बिना चैनेल बदले हुये देखते हैं तो मानना पड़ेगा कि निश्चय ही उस प्रोग्राम में कोई न कोई विशेषता जरुर है. एक ऐसे समय जब पांच मिनट भी एक चैनल लगातार नहीं चलता, वहां यह किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जायगा. ऐसे कार्यक्रम के निर्माता-निर्देशक-पात्र-संयोजक अवश्य बधाई के पात्र हैं. पीटीवी के प्रोग्राम “या मोहिउद्दीन” अपनी साहित्यिक तथा नाटकीय प्रकृति की उल्लेखनीय प्रस्तुति के कारण और “तारिक़ अज़ीज़ शो” आमंत्रित श्रोताओं के सम्मुख प्रश्नोत्तर शैली के कारण जिसमे हरेक सही उत्तर के लिये उत्तर देने वाले को तुरन्त गिफ्ट हेम्पर दे दिया जाता था, काबिले तारीफ़ हैं. हमारे यहाँ दिखाई गयी फिल्म “रावण” इसी श्रेणी में गिनी जायेगी. अन्य कार्यक्रमों में “चन्द्रकान्ता” “बोर्नवीटा क्विज़ कांटेस्ट” तथा समाचारों से जुड़े कार्यक्रम अद्वितीय हैं, जैसे अंग्रेजी के कार्यक्रमों में “newstrack” “eye witness” ‘insight” तथा हिंदी में प्रस्तुत किये जा रहे कार्यक्रमों में “आजतक” “घूमता आईना” और “परख” जिसे विनोद दुआ द्वारा पेश किया जाता है.
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12-05-2014, 03:50 PM | #229 |
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Re: इधर-उधर से
उपरोक्त कार्यक्रमों के अतिरिक्त भी कुछ कार्यक्रम अनायास स्मृति पटल पर उभर आते हैं. दूरदर्शन पर आने वाला साप्ताहिक कार्यक्रम “सुरभि” (जिसके अब तक यानि सितम्बर 1997 तक लगभग 190 एपिसोड हो चुके हैं), ज़ी टीवी पर प्रस्तुत किया जाने वाला व रजत शर्मा द्वारा पेश किया गया कार्यक्रम “आप की अदालत” (जो कालान्तर में उनके खुद के चैनल ‘इंडिया टीवी’ का आकर्षण बन गया) और El TV का कार्यक्रम रू-ब-रू.
कल शाम यानि सोमवार, 25 सितम्बर को टीवी पर एक फिल्म दिखाई गयी थी “रावण” (1984) जो हर लिहाज़ से एक बेहतरीन तथा उल्लेखनीय फिल्म कही जायेगी. इस फिल्म में स्मिता पाटिल, विक्रम, गुलशन अरोड़ा और ओम पुरी व अन्यों ने लाजवाब काम किया है. निर्माता-निर्देशक जॉनी बख्शी हैं और संगीत जगजीत- चित्रा सिंह का है. कहानी व पटकथा बहुत कसी हुई तथा निर्देशन बहुत अच्छा और गठा हुआ है. यह फिल्म आम फार्मूला फिल्मों से अलग एक साफ़-सुथरी फिल्म है. फिल्म इन्डस्ट्री, जहाँ फिल्म बनाने का एक बड़ा उद्देष्य मुनाफ़ा कमाना है, ऐसी कलात्मक फ़िल्में बनाने से कतराती है. नोट: आज इन्टरनेट के ज़रिये मालूम होता है कि इस फिल्म ने अपनी रिलीज़ पर ठीक ठाक कारोबार किया था और यह फिल्म वर्ष 1984 की 10 सफलतम फिल्मों में से एक थी. मेरा अपने साथी पाठकों से अनुरोध है कि यदि उन्होंने यह फिल्म अभी तक नहीं देखी तो एक बार अवश्य देखें. इन्टरनेट पर इसका लिंक आसानी से मिल जायेगा. **
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12-05-2014, 07:21 PM | #230 | |
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Re: इधर-उधर से
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सभी प्रसंगो की कड़ीयों को बड़ी सुन्दरता से यह पिरोयागया.........
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