19-12-2017, 12:17 PM | #221 |
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Re: मुहावरों की कहानी
उस दिन ही सबको पता चला कि इन सब शरारतों के पीछे राखी ही है। उसे स्कूल से थोड़े दिन के लिए निलम्बित कर दिया गया । रेखा की अच्छाई और बिना कुछ कहे सब कुछ सहते जाने के लिए माता-पिता प्रसन्न हुए पर उन्हें दु:ख भी हुआ कि राखी ने रेखा को बहुत सताया था । माँ-बाप गुजरता समय तो वापिस ला नहीं सकते थे । पर राखी को इस व्यवहार के लिए उन्होंने रेखा को एक तोहफा दिया और आगे से उस पर झूठे इल्ज़ाम लगाने से पहले खुद भी एक बार सोचने का वादा भी किया। (इन्टरनेट से साभार)
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19-12-2017, 12:26 PM | #222 |
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Re: मुहावरों की कहानी
दूध का दूध और पानी का पानी (2)
एक छोटे गांव में एक गूजरी रहती थी। उसके दो भैंसे थी। वह प्रतिदिन शहर में दूध बेचने के लिए जाती थी। एक दिन उसने सोचा – मार्ग में तालाब तो पड़ता ही है यदि मैं पाँच सेर दूध में पांच सेर पानी मिला दूँ, तो मुझे दस सेर के पैसे मिलते रहेंगे। और मेरी चालाकी को कोई पकड़ भी नहीं सकेगा। क्योंकि दूध और पानी एक हो जायेंगे। उसने वैसा ही किया। शहर के लोगों को गूजरी के प्रति विश्वास था कि यह बिल्कुल शुद्ध दूध लाती है, तनिक भी मिलावट नही करती है। इससे किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। गूजरी का काम बनता रहा। उसकी अपनी निपुणता पर अपूर्व गर्व था कि संसार में मेरे जैसी होशियार महिला कोई नहीं है। मैं बड़े-बड़े आदमियों की आंखों में धूल झोंकने वाली हूँ। चाहे कोई कितनी ही कपटाई करे, किन्तु एक दिन उसका भण्डाफोड़ हुए बिना नहीं रहता। पाप का घड़ा अवश्य फूटता है। “सौ सुनार की एक लुहार की” भी चरितार्थ होकर रहती है। महीना समाप्त होते ही गूजरी ने दूध का सारा हिसाब किया। जितने भी रुपये इकट्ठे हुए, उन सबको कपड़े में बांध टोकरी में रख गूजरी पानी पीने को तालाब में गई।
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19-12-2017, 12:27 PM | #223 |
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Re: मुहावरों की कहानी
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अचानक एक बन्दर आया। उसने रुपयों की थैली को खाद्य वस्तु समझकर उठा लिया और वृक्ष के ऊपर जाकर बैठ गया गूजरी वापिस आई। रुपयों की थैली न दिखने के कारण अवाक् रह गई। चेहरे पर उदासी छा गई। इधर-उधर अन्वेषण करने पर उसकी नजर बन्दर पर जा पड़ी। करुण आक्रन्दनपूर्वक जोर-जोर से वह पुकारने लगी-“अरे बन्दर! यह थैली तेरे क्या काम आयेगी? इसमें तनिक भी खाद्य वस्तु नही। मुझ पर कृपा कर। मैं तेरा उपकार कभी नही भूलूंगी। मेरी थैली मुझे दे दे।” बन्दर स्वभावतः चंचल होता ही है। उसने अपने नाखूनों से थैली को फाडा़ और क्रमशः एक रुपया टोकरी में और एक तालाब में डालना प्रारम्भ कर दिया। रुपया ज्यों ही पानी में गिरता त्यों ही गूजरी का कलेजा कराह उठता। वह हाय-हाय करती पर क्या उपाय। आखिर आधे रुपये टोकरी में आये और आधे तालाब (पानी में) में चले गये। इतने में एक कवि वहां पर आ गया। उसने पूछा-“बहिन! रोती क्यों हो?’ गूजरी ने कहा-“अरे भाई! इस दुष्ट बन्दर ने मेरे आधे रूपये पानी में डाल दिये। इसी दुख में बेहाल हो रही हूँ।” कवि बड़ा अनुभवी था। उसने कहा-“बहिन! तूने कभी दूध में पानी तो नहीं मिलाया? सच-सच बोल।” गूजरी-“मैंने अधिक तो नहीं मिलाया? किन्तु पांच सेर दूध में पांच सेर पानी अवश्य मिलाया था।” कवि-“तो फिर दुखी क्यों हो रही है? बन्दर ने यथोचित न्याय कर दिया। ’दूध का दूध, और पानी का पानी’ दूध के पैसे तुझे मिल गये और पानी के पैसे तालाब को मिल गये। जानती हो न्याय के घर देर है, अन्धेर नहीं।” गूजरी हाथ मलती हुई अपने घर को चल पड़ी।
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30-12-2017, 12:43 PM | #224 |
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Re: मुहावरों की कहानी
मानिये तो देव नहीं तो पत्थर
जिन्होंने यह कहावत गढ़ी होगी, "मानिए तो देव, नहीं तो पत्थर,' उन्होंने सार की बात कही है। यही स्थिति है अधिक मनुष्यता की। मान-मान कर सब चल रहे हैं। अंधे ने मान लिया है कि रोशनी है। बस माना है; आंख खुली नहीं है; खुली आंख ने देखा भी नहीं। यह भी हो सकता है कि अंधा आंख पर चश्मा लगा ले। लेकिन अंधे की आंख पर चश्में का क्या मूल्य है? आंख हो तो चश्मा देखने में सहायता भला कर दे; आंख न हो तो चश्मा क्या करेगा? तो बहुत-से अंधे चश्मे लगाए चल रहे है; फिर भी टकराते हैं। टकराएंगे ही। बहुत-से अंधों ने चश्मा भी लगा लिया है, हाथ में लालटेनें भी ले रखी हैं ताकि रोशनी साथ रहे। मगर फिर भी टकराएंगे। तुम्हारे शास्त्र तुम्हारे हाथ में लटकी हुई लालटेनों की तरह हैं। और तुम्हारे विश्वास तुम्हारी अंधी आंखों पर चढ़े हुए चश्मों की भांति हैं। इनका कोई मूल्य नहीं है दो कौड़ी मूल्य नहीं है। इनसे हानि है; लाभ तो ज़रा भी नहीं। इनके कारण आंख नहीं खुल पाती है। इनकी भ्रांति के कारण तुम कभी जानने की चेष्टा में संलग्न ही नहीं हो पाते। मैं तुमसे कहता हूं: परमात्मा को मानना मत। मानने की जरूरत नहीं है। परमात्मा को मानोगे तो फिर जानोगे किसको? परमात्मा को मानने का मतलब तो यह हुआ कि तुमने जानने में हताशा प्रकट कर दी, तुम हार गए, तुमने अस्त्र-शस्त्र डाल दिए। तुमने कहा, खोज समाप्त हो गई; जानने को तो है नहीं, माने लेते हैं। सूरज को तो नहीं मानते हो, चांद को नहीं मानते हो; जानते हो। इस संसार को मानते तो नहीं, जानते हो। और परमात्मा को मानते हो? यह माना हुआ परमात्मा अगर तुम्हारे जाने हुए संसार के सामने बार-बार हार जाता है तो कोई आश्चर्य तो नहीं है। परमात्मा भी जाना हुआ होना चाहिए। जिस दिन परमात्मा जाना हुआ होता है उस दिन यह संसार फीका पड़ जाता है, माया हो जाता है, सपना हो जाता है। अनुभव ही संपत्ति बनती है; थोथे विश्वास नहीं। तो मैं इस कहावत में थोड़ा फर्क करता हूं। मैं कहता हूं: "जानिए तो देव, नहीं तो पत्थर।' (ओशो)
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30-12-2017, 01:02 PM | #225 |
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Re: मुहावरों की कहानी
परमात्मा आदमियोंकी आकांक्षाएं पूरी कर दे,
तो आदमी बड़ी मुसीबत में पड़ जाएं एक आदमी ने यह कहावत पढ़ ली कि ‘परमात्मा आदमियों की आकांक्षाएं पूरी कर दे, तो आदमी बड़ी मुसीबत में पड़ जाएं’। उसकी बड़ी कृपा है कि वह आपकी आकांक्षाएं पूरी नहीं करता। क्योंकि अज्ञान में की गई आकांक्षाएं खतरे में ही ले जा सकती हैं। उस आदमी ने कहा, यह मैं नहीं मान सकता हूं। उसने परमात्मा की बड़ी पूजा, बड़ी प्रार्थना की। और जब परमात्मा ने आवाज दी कि तू इतनी पूजा-प्रार्थना किसलिए कर रहा है? तो उसने कहा कि मैं इस कहावत की परीक्षा करना चाहता हूं। तो आप मुझे वरदान दें और मैं आकांक्षाएं पूरी करवाऊंगा; और मैं सिद्ध करना चाहता हूं, यह कहावत गलत है। परमात्मा ने कहा कि तू कोई भी तीन इच्छाएं मांग ले, मैं पूरी कर देता हूं। उस आदमी ने कहा कि ठीक। पहले मैं घर जाऊं, अपनी पत्नी से सलाह कर लूं। अभी तक उसने सोचा नहीं था कि क्या मांगेगा, क्योंकि उसे भरोसा ही नहीं था कि यह होने वाला है कि परमात्मा आकर कहेगा। आप भी होते, तो भरोसा नहीं होता कि परमात्मा आकर कहेगा। जितने लोग मंदिर में जाकर प्रार्थना करते हैं, किसी को भरोसा नहीं होता। कर लेते हैं। शायद! परहेप्स! लेकिन शायद मौजूद रहता है। तय नहीं किया था; बहुत घबड़ा गया। भागा हुआ पत्नी के पास आया। पत्नी से बोल कि कुछ चाहिए हो तो बोल। एक इच्छा तेरी पूरी करवा देता हूं। जिंदगीभर तेरा मैं कुछ पूरा नहीं करवा पाया। पत्नी ने कहा कि घर में कोई कड़ाही नहीं है। उसे कुछ पता नहीं था कि क्या मामला है। घर में कड़ाही नहीं है; कितने दिन से कह रही हूं। एक कड़ाही हाजिर हो गई। वह आदमी घबड़ाया। उसने सिर पीट लिया कि मूर्ख, एक वरदान खराब कर दिया! इतने क्रोध में आ गया कि कहा कि तू तो इसी वक्त मर जाए तो बेहतर है। वह मर गई। तब तो वह बहुत घबड़ाया। उसने कहा कि यह तो बड़ी मुसीबत हो गई। तो उसने कहा, हे भगवान, वह एक और जो इच्छा बची है; कृपा करके मेरी स्त्री को जिंदा कर दें। ये उनकी तीन इच्छाएं पूरी हुईं। उस आदमी ने दरवाजे पर लिख छोड़ा है कि वह कहावत ठीक है। हम जो मांग रहे हैं, हमें भी पता नहीं कि हम क्या मांग रहे हैं। वह तो पूरा नहीं होता, इसलिए हम मांगे चले जाते हैं। वह पूरा हो जाए, तो हमें पता चले। नहीं पूरा होता, तो कभी पता नहीं चलता है। (ओशो)
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24-01-2018, 12:50 PM | #226 |
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Re: मुहावरों की कहानी
कुत्ते की पूंछ- विभिन्न स्थितियाँ
(इन्टरनेट से साभार डॉ किशोर पंवार) जिस तरह बैरोमीटर का पारा हवा के दबाव के साथ ऊपर-नीचे होता रहता है, ठीक उसी प्रकार कुत्ते की पूँछ उसकी भावनाओं के उतार-चढ़ाव को दर्शाती है। कुत्ते की पूँछ, वाह क्या बात है! झबरीली, रौबदार, कभी ऊँची, तो कभी नीची। इस पूँछ ने हिन्दी को भी समृद्ध किया है। 'कुत्ते की दुम' बड़ा जोरदार मुहावरा है। जिस व्यक्ति के व्यवहार में लाख कोशिशों के बावजूद कोई बदलाव न दिखे उसके लिए यही कहा जाता है कि वह तो 'कुत्ते की दुम' है। यह भी कहा जाता है कि बारह साल तक पोंगली में रखने के बाद भी 'कुत्ते की पूँछ टेढ़ी की टेढ़ी' रहती है। आइए, मुहावरों और कहावतों को यहीं छोड़ कुत्ते की पूँछ की वास्तविकता पर आते हैं। दरअसल, कुत्ते की दुम उसकी पूँछ के अलावा उसकी भावनाओं का बैरोमीटर भी है। जिस तरह बैरोमीटर का पारा हवा के दबाव के साथ ऊपर-नीचे होता रहता है, ठीक उसी प्रकार कुत्ते की पूँछ उसकी भावनाओं के उतार-चढ़ाव को दर्शाती है। जंतुओंके व्यवहार का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक उनके प्रत्येक व्यवहार को एकइकाई के रूप में देखते हैं जिन्हें कोनार्ड लॉरेंज ने फिक्स्ड एक्शन पैटर्न (एफएपी) यानी 'फेप' कहा है। एक फेप किसी जंतु की ऐसी मुद्रा या गति है, जो अपनी भावनाएँ दूसरे को प्रेषित करने में सहायक होती है। >>>
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24-01-2018, 12:51 PM | #227 |
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Re: मुहावरों की कहानी
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कुत्ते की पूँछ के उतार-चढ़ाव फेप के शानदार उदाहरण हैं, जैसे- * कुत्ते की पूँछ जब दोनों टाँगों के बीच अंदर की ओर मुड़ी हो तो इसका अर्थ है, इसने दूसरे कुत्ते से अपनी हार स्वीकार ली है। * पूँछ दोनों टाँगों के बीच में दबी हुई परंतु अंदर मुड़ी न हो तो इसका आशय है, दूसरे की सत्ता स्वीकारना। * जब कुत्ते की पूँछ जमीन के समानांतर खड़ी हो तो इसका मतलब है, यह कुत्ता दूसरे कुत्ते को डरा रहा है। * जब पूँछ ऊपर की ओर सीधी खड़ी हो तो इसका अर्थ होता है समूह पर अपना प्रभुत्व दर्शाना अर्थात समूह का मुखिया होना। * जब पूँछ टाँगों के बीच थोड़ी-सी बाहर की ओर लटक रही हो तो समझिए वह कह रहा है, 'मुझे कोई लेना-देना नहीं है।' ऐसा नहीं है कि व्यवहार-प्रदर्शन में केवल पूँछ की स्थिति में ही बदलाव आता है। पूँछ के साथ चेहरे के हाव-भाव भी बदलते हैं जिनमें मुँह और कान की स्थितियाँ बड़ी महत्वपूर्ण होती हैं। **
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27-01-2018, 11:56 AM | #228 |
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Re: मुहावरों की कहानी
रंगे हाथ पकडे जाना
यह मुहावरा सदियों से चला आ रहा है : ”रंगे हाथों पकड़े जाना ।” आखिर ये मुहावरा कब और कैसे बना ? हमारा खयाल है कि इस घटना के बाद ही यह बना होगा-एक दिन दक्षिण भारत के प्रसिद्ध विजय नगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय के दरबार की कार्यवाही चल रही थी कि नगर सेठ वहां उपस्थित होकर दुहाई देने लगा : ”महाराज! मैं मर गया…बरबाद हो गया-कल रात चोर मेरी तिजोरी का ताला तोड़कर सारा धन चुराकर ले गए। हाय…मैं लुट गया।” महाराज ने तुरन्त कोतवाल को तलब किया और इस घटना के बारे में पूछा । कोतवाल ने बताया : ”महाराज! हम कार्यवाही कर रहे हैं मगर चोरों का कोई सुराग नहीं मिला है ।” ”जैसे भी हो, वो शीघ्र ही पकड़ा जाना चाहिए ।” महाराज ने कोतवाल को हिदायत देकर सेठ से कहा : ”सेठ जी आप निश्चित रहे-शीघ्र ही चोर को पकड़ लिया जाएगा ।” आश्वासन पाकर सेठ चला गया । उसी रात चोरों ने एक अन्य धनवान व्यक्ति के घर चोरी कर ली । पुलिस की लाख मुस्तैदी के बाद भी चोर पकड़े न जा सके । और उसके बाद तो जैसे वहां चोरियों की बाढ़ सी आ गई। कभी कहीं चोरी हो जाती कभी कहीं। >>>
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27-01-2018, 11:58 AM | #229 |
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Re: मुहावरों की कहानी
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सभी चोरियां अमीर-उमरावों के यहाँ हो रही थीं । हर बार चोर साफ बचकर निकल जाते । शिकायतें सुन-सुनकर महाराज परेशान हो उठे । उन्होंने एक दिन क्रोध में अपने दरबारियों को खूब लताड़ा : ”क्या आप लोग यहां हमारी शक्ल देखने के लिए बैठे हैं-क्या कोई भी दरबारी चोर को पकड़ने की युक्ति नहीं सुझा सकता ।” सभी दरबारी चुप बैठे रहे । क्या करें ? जब कोतवाल जैसा अनुभवी व्यक्ति चोरों को नहीं पकड़ पा रहा तो कोई दरबारी भला कैसे पकड़ सकता था । किन्तु तेनालीराम को बात खटक गई । वह अपने स्थान से उठकर बोला : ” महाराज! मैं पकडूँगा इस चोर को ।” उसी दिन तेनालीराम शहर के प्रमुख जौहरी की दुकान पर गया । उससे कुछ बातें कीं, फिर अपने घर आ गया । अगले ही दिन जौहरी की ओर से एक प्रदर्शनी की मुनादी कराई गई जिसमें वह अपने सबसे कीमती आभूषणों और हीरों को प्रदर्शित करेगा । प्रदर्शनी लगी और लोग उसे देखने के लिए टूट पड़े । एक से बढ़कर एक कीमती हीरे और हीरों के आभूषण प्रदर्शित किए गए थे । रात को जौहरी ने सारे आभूषण व हीरे एक तिजोरी में बंद करके ताला लगा दिया जैसा कि होना ही था-रात को चोर आ धमके । ताला तोड़कर उन्होंने सारे आभूषण और हीरे एक थैली में भरे और चलते बने । >>>
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27-01-2018, 12:00 PM | #230 |
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Re: मुहावरों की कहानी
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इधर चोर दुकान से बाहर निकले, उधर जौहरी ने शोर मचा दिया । देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में जाग हो गई । चोर माल इधर-उधर डालकर लोगों की भीड़ में शामिल हो गए । मगर तभी सिपाहियों की टुकड़ी के साथ तेनालीराम वहां पहुंच गए और सिपाहियों ने पूरे क्षेत्र की नाकेबंदी कर ली । तेनालीराम ने कहा : ”सब की तलाशी लेने की आवश्यकता नहीं है, जिनके हाथ और वस्त्र रंगे हुए हैं, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए वे ही चोर हैं ।” और इस प्रकार आनन-फानन में चोर पकड़े गए । अगले दिन उन्हें दरबार में पेश किया गया । महाराज ने देखा कि चोरों के हाथ और वस्त्र लाल रंग में रंगे हुए हैं । ”इनके हाथों पर ये रंग कैसा है तेनालीराम ।” ”महाराज! तिजोरी में माल रख ने से पहले उसे लाल रंग से रंगा गया था-इसी कारण इनके हाथ रंगे हुए हैं । इसी को कहते हैं, चोरी करते रंगे हाथों पकड़ना ।” ”वाह!” महाराज तेनालीराम की प्रशंसा किए बिना न रह सके, फिर उन्होंने चोरों को आजीवन कारावास का दण्ड सुनाया ताकि वे जीवन में फिर कभी चोरी न कर सकें । *****
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