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#221 |
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![]() कुछ हिंदी फ़िल्मी गीत जो कुछ बीमारियों का वर्णन करते हैं: गीत - जिया जले, जान जले, रात भर धुआं चले बीमारी - बुखार गीत - तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही बीमारी - हार्ट अटैक गीत - सुहानी रात ढल चुकी है, न जाने तुम कब आओगे बीमारी - कब्ज़ गीत - बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया, जिगर म बड़ी आग है बीमारी - एसिडिटी गीत - तुझमे रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ बीमारी - मोतियाबिंद गीत - तुझे याद न मेरी आई किसी से अब क्या कहना बीमारी - यादाश्त कमज़ोर गीत - मन डोले मेरा तन डोले बीमारी - चक्कर आना गीत - टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई बीमारी - यूरिन इन्फेक्शन गीत - जिया धड़क-धड़क जाये बीमारी - उच्च रक्तचाप गीत - हाय रे हाय नींद नहीं आये बीमारी - अनिद्रा गीत - बताना भी नहीं आता, छुपाना भी नहीं आता बीमारी - बवासीर और अंत में गीत - लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है बीमारी - दस्त" |
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#222 |
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दिवाली का इतिहास !!!
टीचर पप्पू से: 'दिवाली' के बारे कुछ बताओ? पप्पू: ये है 'दिवाली' का इतिहास, इक वार इक मुण्डा सी। उसदा नाम हैप्पी सी। ओ अपने कन्ना विच वालियाँ पांन्दा सी। इक दिन उस दी वाली गुम गई। उसने बहुत लब्बी पर नही मिली पर थोड़ी देर बाद किसी होर मुंडे नू उस दी वाली मिल गई। लोक्का ने उस तो पूछया कि एह की है? ताँ उसने कहा कि एह 'हैप्पी दी वाली' है। बस उस दिन तो सारे 'हैप्पी दि वाली' मनान लग पए" |
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#223 |
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वाह..... क्या इतिहास है!! हैप्पी कहाँ है? पार्टी तो बनती है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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#224 |
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#225 |
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कटोरा !!!
एक बनिए की बाजार में छोटी सी मगर बहुत पुरानी कपड़े सीने की दुकान थी। उनकी इकलौती सिलाई मशीन के बगल में एक बिल्ली बैठी एक पुराने गंदे कटोरे में दूध पी रही थी। एक बहुत बड़ा कला पारखी बनिए की दुकान के सामने से गुजरा। कला पारखी होने के कारण जान गया कि कटोरा एक एंटीक आइटम है और कला के बाजार में बढ़िया कीमत में बिकेगा। लेकिन वह ये नहीं चाहता था कि बनिए को इस बात का पता लगे कि उनके पास मौजूद वह गंदा सा पुराना कटोरा इतना कीमती है। उसने दिमाग लगाया और बनिए से बोला, 'लाला जी, नमस्ते, आप की बिल्ली बहुत प्यारी है, मुझे पसंद आ गई है। क्या आप बिल्ली मुझे देंगे? चाहे तो कीमत ले लीजिए।' बनिए ने पहले तो इनकार किया मगर जब कलापारखी कीमत बढ़ाते-बढ़ाते दस हजार रुपयों तक पहुंच गया तो लाला जी बिल्ली बेचने को राजी हो गए और दाम चुकाकर कला पारखी बिल्ली लेकर जाने लगा। अचानक वह रुका और पलटकर बनिए से बोला--- "लाला जी बिल्ली तो आपने बेच दी। अब इस पुराने कटोरे का आप क्या करोगे? इसे भी मुझे ही दे दीजिए। बिल्ली को दूध पिलाने के काम आएगा। चाहे तो इसके भी 100-50 रुपए ले लीजिए।' कहानी में ट्विस्ट बनिए ने जवाब दिया, "नहीं साहब, कटोरा तो मैं किसी कीमत पर नहीं बेचूंगा, क्योंकि इसी कटोरे की वजह से आज तक मैं 50 बिल्लियां बेच चुका हूं।'" |
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#226 |
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तीन लफ्ज़ !!!
शर्त लगी थी दुनिया की ख़ुशी को तीन लफ्ज़ में लिखने की वो किताबे ढूँढ़ते रह गए मैंने 'बीवी मायके गयी' लिख दिया।" |
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जल ही जीवन हैं, पीले दांत, बालों का सोंदर्य, रक्तदान, हंसना ज़रूरी है |
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