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Old 23-04-2012, 03:19 PM   #2291
abhisays
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
मित्रो ! क्षमाप्रार्थी हूं कि अति व्यस्तता के कारण मैं आज देर रात तक किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाऊंगा ! आपको होने वाली असुविधा के लिए मुझे खेद है ! धन्यवाद !

कोई बात नहीं हम लोग इंतज़ार करेंगे..
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum
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Old 23-04-2012, 03:45 PM   #2292
saajid
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Originally Posted by Dark Saint Alaick View Post
पृथ्वीराज चौहान द्वारा शत्रु को सात बार क्षमा करने की मूर्खता !
क्या पुरे प्रसंग की जानकारी प्राप्त हो सकती है
__________________
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Old 23-04-2012, 03:46 PM   #2293
saajid
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Originally Posted by Dark Saint Alaick View Post
मित्रो ! क्षमाप्रार्थी हूं कि अति व्यस्तता के कारण मैं आज देर रात तक किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाऊंगा ! आपको होने वाली असुविधा के लिए मुझे खेद है ! धन्यवाद !
हम भी इंतज़ार करेंगे
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Old 23-04-2012, 11:33 PM   #2294
neelam
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आप यह अजीब, काला सा, डरावना अवतार क्यों यूज करते हैं?
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Old 24-04-2012, 08:08 AM   #2295
Kalyan Das
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क्या आप इश्वर में विश्वास करते हैं ??
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!"
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Old 24-04-2012, 01:13 PM   #2296
Suresh Kumar 'Saurabh'
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आपने जो नाम रखा है, उसे रखने का कोई विशेष कारण है?
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Old 24-04-2012, 02:49 PM   #2297
MANISH KUMAR
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Originally Posted by sikandar_khan View Post
वर्तमान मे तेलंगाना राज्य को लेकर काफी विवाद मचा हुआ है ! इस पर आपके क्या विचार हैँ ?
सिर्फ तेलंगाना ही नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के भी ४ हिस्से करने की तैयारी है. क्या ये बटवारा उचित है?
__________________


क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है.
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Old 25-04-2012, 12:37 AM   #2298
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by suresh kumar 'saurabh' View Post
उपर आपने कन्हैया लाल जी के यात्रा वृतांत का कुछ अंश लिखकर बहुत अच्छा किया।

कवित्री महादेवी वर्मा ने भी कहा है-
''दूसरी भाषाओं को जानना गर्व की बात है लेकिन उसे अपनी मातृभाषा के बराबर का दर्ज़ा देना शर्म की बात है।''
भगवान उन भारतीयों को सद्बुद्धि दें, जो अपने ही देश में और अपने ही लोगों के बीच यह दर्शाते रहते हैं कि वो अंग्रेजी के गुलाम हैं। अब कुछ और प्रश्न-
1- हमारी हिन्दी भाषा को उपर उठाने के लिये क्या उपाय किया जाना चाहिए?
2- 'अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त करके ही भारत आधुनिक बनेगा' यह धारणा कब बदलेगी? क्या इसकी आपको आशा है?
3- हिन्दी के प्रसार में क्या दक्षिण भारतीय लोग भी बाधा बनकर सामने आ रहे हैं?
मित्र, क्षमा करें कि आपका यह सवाल मुझसे चूक गया था ! संभवतः महादेवीजी की रचना पढ़ कर इतना अविभूत हो गया कि आपको धन्यवाद देकर आगे बढ़ गया और मेरी इस भूल की ओर आपने भी ध्यान आकृष्ट नहीं किया ! आज एक दिन बाद लौट कर जब देख रहा था कि शुरुआत कहां से करनी है, तब इस ओर ध्यान गया !
लीजिये जवाब अब पेश कर रहा हूं -
1-2. मेरी नज़र में तो उपाय यही है कि हिन्दी को महज़ राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा देकर 'हैप्पी हिन्दी डे' कहते रहने से काम नहीं चलेगा ! संविधान निर्माताओं ने जब हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा दिया था, तब समस्त समस्यायों पर भी विचार किया था ! संविधान में वर्णित एक अंश पर नज़र डालें-
343. संघ की राजभाषा--(1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
(2) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था:
परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश 1 द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
(3) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्*, विधि द्वारा--
(क) अंग्रेजी भाषा का, या
(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ।

344. राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति--(1) राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारंभ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात्* ऐसे प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा, एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जाएगी।

स्पष्ट है कि बाद में किसी पर अमल नहीं हुआ और सब कुछ उसी तरह चलता रहा ! कारण है यह पेंच-

345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं - अनुच्छेद 346 और अनुच्छेद 347 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के प्ररूप में अंगीकार कर सकेगा: परन्तु जब तक राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।
346. एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा--संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी: परन्तु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।

347. किसी राज्य की जनसंख्*या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध--यदि इस निमित्त मांग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्*या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।

इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि जब तक हम क्षेत्रीयता की भावनाओं से नहीं उबरेंगे और हममें यह सोच विकसित नहीं होगी कि एक विदेशी भाषा से बेहतर एक देशी भाषा का इस्तेमाल है, यह मुझे संभव नज़र नहीं आता ! उपाय मेरी नज़र में यही है कि राष्ट्रभाषा के साथ क्षेत्रीय भाषा को द्वितीय भाषा का दर्ज़ा दिया जाए और राज्यों के बीच होने वाला पत्र-व्यवहार राष्ट्रभाषा या द्वितीय भाषा में होना आवश्यक किया जाए ! ऎसी स्थिति में केंद्र और राज्यों में कुछ भाषा अधिकारियों की जरूरत अवश्य होगी, लेकिन वे वर्तमान के उन हिन्दी अधिकारियों से अवश्य बेहतर साबित होंगे, जो हिन्दी दिवस मनवा कर ही अपने कार्य की इतिश्री मान लेते हैं !

3. यह द्रविड़ और आर्य भाषा वर्ग का संघर्ष है, निश्चित ही दक्षिण भारत में इससे सम्बंधित समस्याएं हैं, लेकिन एक बार मेरी केरल में कार्यरत कवयित्री डॉ. रति सक्सेना से बात हुई थी ! उन्होंने बताया था कि अब वहां नज़रिया काफी हद तक बदल गया है और प्रति वर्ष होने वाले हिन्दी सम्मेलनों में दक्षिण भारतीय लेखक समुदाय की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है, अतः आशा की जानी चाहिए कि यदि सरकारी प्रयासों में ईमानदारी आए, तो समस्या सुलझ सकती है !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु

Last edited by Dark Saint Alaick; 25-04-2012 at 05:11 AM.
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Old 25-04-2012, 02:20 AM   #2299
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by Kalyan Das View Post
"राजनीति" और "कूटनीति" में क्या अंतर है और क्या समानताएं ??
मित्र ! राजनीति (Politics) और कूटनीति (Diplomacy) में अंतर है ! Politics मूलतः ग्रीक शब्द Politikos से उत्पन्न हुआ है और इसका शाब्दिक अर्थ है, जिस नीति पर राज्य चले अर्थात उसकी परिभाषा कहती है -
The activities and affairs involved in managing a state or a government . (राज्य अथवा सरकार चलाने के लिए जिन कार्यकलापों का इस्तेमाल किया जाता है, उसे राजनीति कहते हैं !), लेकिन वर्तमान में इसका व्यवहृत अर्थ व्यापक है, क्योंकि इसका क्षेत्र विकसित होकर समाज और दफ्तर तक पहुंच गया है ! उदाहरणार्थ, आपने यदा-कदा सुना होगा - वह ऑफिस पोलिटिक्स में इन्वॉल्व है अथवा यह तो पूरा समाज ही पोलिटिशियंस से भरा पड़ा है !
और
कूटनीति का शाब्दिक अर्थ है - व्यवहार कुशलता अथवा दो देशों के बीच राजनय सम्बन्ध ! इसकी परिभाषा कहती है -The art or practice of conducting international relations, as in negotiating alliances, treaties, and agreements. (वह कला अथवा व्यवहार जिसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन, संधियां और समझौते किए जाते हैं !
भारत के मनीषी आचार्य चाणक्य ने राजनीति और कूटनीति पर विस्तृत विचार व्यक्त किए हैं, लेकिन उनके विचारों को अक्सर 'कूटनीति' ही कहा जाता है !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 25-04-2012, 02:23 AM   #2300
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by sikandar_khan View Post
क्या आप राजनीति मे रुचि रखते हैँ ?
हां, लेकिन उतनी ही जितनी मेरी व्यावसायिक विवशता के लिए आवश्यक है !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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