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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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मुझे यह कहने के लिए क्षमा करें, किन्तु सत्य यही है कि ठीक ऐसे ही प्रश्न !
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मित्र ! विदेशी आक्रान्ता महमूद गौरी और भारत के तत्कालीन सम्राट पृथ्वीराज चौहान का यह प्रसंग संभवतः पांचवी कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी को पढ़ाया जाता है ! आप कैसे इससे अनभिग्य हैं, यह समझ नहीं पा रहा ! खैर, समयाभाव के कारण मैं पूरा प्रसंग लिखने की स्थिति में नहीं हूं ! इसके लिए आप कृपया इस लिंक का उपयोग करें !
http://hinduhistory.blogspot.in/2008...j-chauhan.html
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#2325 |
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सिर्फ इसलिए कि मेरे निकट केवल वही लोग आएं, जिन्हें मुझ पर पूरी तरह विश्वास हो !
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#2326 |
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हां, बिलकुल ! कोई न कोई ऎसी शक्ति अवश्य है, जो संसार को चला रही है और मेरा विश्वास है कि वह सद्कर्म और कुकर्म का प्रतिफल उसी अनुपात में तत्काल देती है अर्थात स्वर्ग-नरक सब यहीं हैं और आप अपने कर्मों के हिसाब से फल भोग कर इस संसार से विदा होते हैं ! इसका अर्थ हुआ कि मैं जन्नत, दोज़ख, हूरों इत्यादि में विश्वास नहीं करता !
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#2327 |
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हां, एक अंग्रेज़ी फोरम पर मेरे एक मित्र हैं ! एक दिन उन्होंने मुझे निशाचर नाम से संबोधित किया ! साथ ही यह भी लिखा कि मैं आपको विचारों के कारण 'सेंट इन द डार्कनेस' मानता हूं ! एक हिन्दी फोरम पर भी मैं उन दिनों 'अलैक' (Alaick) नाम से सक्रिय था और वहां मैं कई कारणों से अपनी पहचान बदलना चाहता था, अतः उनकी टिप्पणी से प्रेरणा लेकर मैं 'डार्क सेंट' बन गया और जब लोगों ने मुझे यह पूछ-पूछ कर बेतरह परेशान कर दिया कि क्या आप ही अलैक हैं, तो मैंने इस फोरम के प्रशासक अभिषेकजी से अनुरोध कर अपने नाम में फिर 'अलैक' जुड़वा लिया, ताकि लोगों को उनके प्रश्न का उत्तर स्वतः मिल जाए !
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#2328 |
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उम्मीद है आप सिकंदरजी को दिए गए उत्तर से संतुष्ट होंगे ! यदि नहीं तो कुछ और प्रश्नों के उत्तर खंगालें ! इस विषय पर मैं पहले ही काफी टिप्पणी कर चुका हूं !
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#2329 |
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नहीं ! यह बाद में संभव हुआ !
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#2330 |
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वर्तमान परिस्थितियों में सिर्फ यही कहूंगा कि बस, आपको थोड़ा मुखर और बेशर्म होना चाहिए ! किसी ज़माने में पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' जैसे पत्रकार हुआ करते थे, जिनका ज्ञान सिर्फ पांचवी उत्तीर्ण होने के बावजूद आज के कई आईएएस से बेहतर था ! वह सब उन्होंने अपने समाज के प्रति सरोकार और प्रतिवद्धता से अर्जित किया था ! संभवतः मैंने इसी सूत्र के किसी प्रश्न के उत्तर में बताया है कि मेरी 'पढ़ाई' के नाम पर की गई पढ़ाई आज मेरे किसी काम नहीं आ रही और मैं अपनी आजीविका साहित्यिक पुस्तकों के अध्ययन से अर्जित ज्ञान, विश्लेषण क्षमता और तर्क-शक्ति के बल पर कमा रहा हूं और पत्रकारिता का अंतिम सत्य यही है !
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