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#231 |
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![]() मनि बिलासु बहु रंगु घणा द्रिसटि भूलि खुसीआ ॥ छत्रधार बादिसाहीआविचि सहसे परीआ ॥१॥ भाई रे सुखु साधसंगि पाइआ ॥ लिखिआ लेखु तिनि पुरखि बिधातै दुखुसहसा मिटि गइआ ॥१॥ |
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#232 |
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रहाउ ॥
जेते थान थनंतरा तेते भवि आइआ ॥ धन पाती वड भूमीआ मेरीमेरी करि परिआ ॥२॥ हुकमु चलाए निसंग होइ वरतै अफरिआ ॥ सभु को वसगति करि लइओनुबिनु नावै खाकु रलिआ ॥३॥ कोटि तेतीस सेवका सिध साधिक दरि खरिआ ॥ गिर्मबारी वड साहबीसभु नानक सुपनु थीआ ॥४॥२॥७२॥ |
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#233 |
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सिरीरागु महला ५ ॥
भलके उठि पपोलीऐ विणु बुझे मुगधअजाणि ॥ सो प्रभु चिति न आइओ छुटैगी बेबाणि ॥ सतिगुर सेती चितु लाइ सदा सदा रंगु माणि ॥१॥ प्राणी तूं आइआ लाहा लैणि ॥ लगा कितु कुफकड़े सभ मुकदी चली रैणि ॥१॥ |
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#234 |
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रहाउ ॥
कुदमकरे पसु पंखीआ दिसै नाही कालु ॥ ओतै साथि मनुखु है फाथा माइआ जालि ॥ मुकते सेई भालीअहिजि सचा नामु समालि ॥२॥ जो घरु छडि गवावणा सो लगा मन माहि ॥ जिथै जाइ तुधु वरतणा तिसकी चिंता नाहि ॥ फाथे सेई निकले जि गुर की पैरी पाहि ॥३॥ कोई रखि न सकई दूजा को न दिखाइ ॥ चारे कुंडा भालि कै आइ पइआ सरणाइ ॥ नानक सचै पातिसाहि डुबदा लइआ कढाइ ॥४॥३॥७३॥ |
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