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Old 25-11-2012, 09:37 AM   #231
Sameerchand
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लेखक

जेबकतरे ने उसकी जेब काटी तो लगा था कि काफी माल हाथ लगा है, भारी जान पड़ती थी। देखा तो सब के सब काग़ज़ निकले। काग़ज़ों पर नजर डाली तो तीन कविताएँ, एक कहानी और दो लघु-कथाएं थीं। नोट एक भी न था।

जेबकतरे को लेखक की जेब काटने का पछतावा हो रहा था।
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Old 25-11-2012, 09:37 AM   #232
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मेजबान

'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा

'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।
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Old 25-11-2012, 09:37 AM   #233
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खुशामद

एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली।'

बेचारा उदास होकर बोला, 'यार कुछ न पूछो! मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच ही परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज किया।'
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Old 25-11-2012, 09:38 AM   #234
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उलझन

‘ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट’ एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी।

‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ एक भारतीय संस्था में एक भारतीय बच्चे को विदेश में अँग्रेजी पढ़ाई जा रही थी।

अपने देश में विदेशी ढंग से और विदेश में देसी ढंग से। अपने देश में, ‘ए फॉर अर्जुन, बी फॉर बलराम’ क्यों नहीं होता? मैं उलझन में पड़ गया।

मैं सोचने लगा अगर अँग्रेजी हमारी जरूरत ही है तो ‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ ही क्यों न पढ़ा जाए?
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Old 25-11-2012, 09:38 AM   #235
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हृदय परिवर्तन

एक कारखाने में एक कर्मचारी की गलती से उसकी मौत हो गयी . सड़क पर लाश रख कर जाम लगा दिया. मृतक की बीबी का रो रो कर बुरा हाल था. १८ वर्षीय बेटा और १५ वर्षीय बेटी अपने पिता की लाश से लिपट लिपट कर रो रहे थे. पूरा वातावरण ग़मगीन था.


स्थानीय पत्रकार और फोटोग्राफर शव और भीड़ का छायांकन करते हुए लोगों से इस विषय में जानकारी ले रहे थे. मृतक की पत्नी
और बच्चे चीख चीख कर कारखाना मालिक को दोषी ठहरा रहे थे. पुलिस आयी और मौक़ा मुआयना करने कारखाने के अन्दर चलीगयी. साथ में मृतक के दो रिश्तेदार भी अन्दर गए.

थोड़ी देर बाद एक सिपाही मृतक के एक रिश्तेदार के साथ मृतक की बीबी और बच्चों को बुला लाया.
अब वे सभी कारखाना
मालिक के केबिन में बैठे थे. वहाँ पर कारखाना मालिक, थानेदार, मृतक की पत्नी और
बच्चे, दोनों रिश्तेदार और दो स्थानीय
पत्रकार ही उपस्थित थे. मेज पर रुपयों की कुछ गड्डियां रखी हुयी थी.
थानेदार ने दोनों रिश्तेदारों की तरफ इशारा किया तो उन्होने
तक कीपत्नी से कहा, 'भाभी, ये दो लाख रुपये हैं जो आपके खर्चे के लिए हैं.तीन लाख का ड्राफ्ट बेटी के नाम से और दो लाख काड्राफ्ट बेटे के नाम से बन कर आने वाले हैं.ये आप रख लो. जो होना था वो तो हो ही गया है. शायद ईश्वर को यही मंज़ूर था. अब
आप जैसा उचित समझें दरोगा जी और पत्रकारों को बता दें.'

मृतक की पत्नी और बच्चों के चहरे पर चमक थी. मृतक की पत्नी ने अपने बच्चों की ओर देखा और थानेदार की तरफ देखते हुए बोली, 'साहब हम अपने पति से बहुत दुखी थे. वे बहुत अधिक शराब पीते थे.
बच्चों से भी मार पीट करते रहते थे. आज सुबह भी
घर से झगडा कर के निकले थे . थोड़ी देर पहले ही हमें उनके साथियों से खबर मिली थी कि कारखाने में आने से पहले उन्होंने जमकर शराब पी थी.
क्या कहें मेरा नसीब ही ऐसा है. ये मालिक साहब तो भगवान् की तरह हैं. ' यह कहते हुए
उसने सामने रखी
गड्डियों को समेत लिया .

केबिन से बाहर निकलते समय थानेदार, पत्रकार और दोनों रिश्तेदारों की जेबें उभरी हुयी थी.
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Old 25-11-2012, 09:38 AM   #236
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प्रार्थना और जूता

नसरूद्दीन मजार पर गया और जूता पहन कर ही दुआ मांगने लगा.

वह नक्काशीदार चमरौंधे जूते पहना था जिसमें बढ़िया आवाज आ रही थी और उस पर काम की गई जरी की चमक कौंध रही थी.

वहीं मंडरा रहे एक फोकटिया छाप आदमी की नजर नसरुद्दीन के जूतों पर पड़ी. उसे लगा कि काश यह जूता उसके पास होता. जूते पर हाथ साफ करने की गरज से वो नसरुद्दीन के पास गया और उसके कान में धीरे से बोला –

“जूते पहन कर प्रार्थना करने से, दुआ मांगने से ईश्वर हमारी प्रार्थना नहीं सुनता.”

“मेरी प्रार्थना न पहुंचे तो भी कोई बात नहीं, कम से कम मेरे जूते मेरे पास तो रहेंगे.” – नसरूद्दीन का उत्तर था.
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Old 25-11-2012, 09:39 AM   #237
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ज्ञान का राजसी मार्ग


जब यूक्लिड अपने एक कठिन ज्यामितीय प्रमेय को अलेक्सांद्रिया के राजा टॉल्मी को समझा रहा था तो राजा की समझ में कुछ आ नहीं रहा था.


राजा टॉल्मी ने यूक्लिड से कहा – क्या कोई छोटा, सरल तरीका नहीं है तुम्हारे प्रमेय को सीखने का?


इस पर यूक्लिड ने उत्तर दिया – महोदय, इस देश में आवागमन के लिए दो तरह के रास्ते हैं. एक तो आम जनता के लिए लंबा, उबाऊ, कांटों, गड्ढों और पत्थरों भरा रास्ता और दूसरा शानदार, आसान रास्ता राजसी परिवार के लोगों के लिए. परंतु ज्यामिती में कोई राजसी रास्ता नहीं है. सभी को एक ही रास्ते से जाना होगा. चाहे वो राजा हो या रंक!
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Old 25-11-2012, 09:39 AM   #238
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सही ताले की ग़लत चाबी

अमीर जमींदार के घर में मुल्ला लंबे समय से काम कर रहा था. 11 वर्षों तक निरंतर काम करने के बाद एक दिन मुल्ला जमींदार से बोला – “अब मैं भर पाया. मैं अब यहाँ काम नहीं करूंगा. मैं यहाँ काम करके बोर हो गया. मैं काम छोड़कर जाना चाहता हूँ. वैसे भी आप मुझ पर भरोसा ही नहीं करते!”

जमींदार को झटका लगा. बोला – “भरोसा नहीं करते? क्या कह रहे हो मुल्ला! मैं तुम्हें पिछले 11 वर्षों से अपने छोटे भाई सा सम्मान दे रहा हूँ. और घर की चाबियाँ यहीं टेबल पर तुम्हारे सामने पड़ी रहती हैं और तुम कहते हो कि मैं तुम पर भरोसा नहीं करता!”

“भरोसे की बात तो छोड़ ही दो,” मुल्ला ने आगे कहा – “इनमें से कोई भी चाबी तिजोरी में नहीं लगती.”

"हमारे पास भी बहुत सी चाबियाँ नहीं हैं जो कहीं नहीं लगतीं?"
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Old 25-11-2012, 09:39 AM   #239
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सुझाव

एक दिन मुल्ला नसरूद्दीन एक अमीर सेठ के पास गया और कुछ रुपए उधार मांगे.

“तुम्हें रुपया क्यों चाहिए?”

“मुझे एक हाथी खरीदना है.”

“यदि तुम्हारे पास पैसा नहीं है, तुम उधारी के पैसे से हाथी खरीद रहे हो तो तुम हाथी को चारा कैसे खिलाओगे?”

“मैं उधारी मांग रहा हूँ, सुझाव नहीं!”
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Old 25-11-2012, 09:39 AM   #240
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प्रबंधन का गुर


जंगल का राजा सिंह युद्ध की तैयारी कर रहा था. सभी जानवरों को उनके बल-बुद्धि के अनुरूप कार्य दिए जा रहे थे. गधे और गिलहरी की जब बारी आई तो रणनीतिकारों ने गधे को मूर्ख समझ और गिलहरी को नाजुक मान कर युद्ध से बाहर रखने की सलाह सिंह को दी.


इस पर सिंह ने कहा - “युद्ध में जीतने के लिए सही काम के लिए सही जानवर होना जरूरी है. हर जानवर का सर्वोत्तम प्रयोग में लेना होगा. गधे की रेंक दूर दूर तक जाती है तो उसका उपयोग हम युद्ध घोष के लिए करेंगे और गिलहरी दौड़ भाग करने में माहिर है तो हम उसका उपयोग सूचना आदान-प्रदान के लिए करेंगे.”


"घनश्याम दास बिड़ला ने एक बार कहा था – सही काम के लिए सही आदमी ही प्रबंधक का एकमात्र गुर है."
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