13-09-2013, 03:12 PM | #2441 |
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Re: साक्षात्कार
[QUOTE=jai_bhardwaj;372476]प्रतिक्रिया: आगामी प्रश्नों का स्वागत है, मित्र. पर मुझे आपके शब्दों पर ऐतराज़ है. यदि उत्तर बने बनाये मिल जाते तो मैं उन्हें कॉपी-पेस्ट कर देता. तब आपको यह लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती कि मैंने उत्तर ‘फ्रेम’ किया है. दूसरे, यदि आप प्रश्न ‘फ्रेम’ करने के लिए स्वतंत्र हैं तो क्या मुझे उत्तर ‘फ्रेम’ करने की छूट नहीं मिल सकती? हाँ, अब आपके प्रश्न: बन्धु, जैसा कि आपने लिखा कि"समाज के दोहरे मानदण्डों केफलस्वरूप अधिकतर लोग सादगीपूर्ण जीवन की जगह सुविधायों से सम्पन्न जीवन जीना चाहतेहैं।"क्या इन 'अधिकतर लोंगों' की श्रेणी में सम्पूर्ण जनमानस नहीं आ रहा है ?उत्तर: जी नहीं. मैंने अपने जीवन में ऐसे बहुत से व्यक्ति देखे हैं, या जिनके बारे में पढ़ा है, जो सारी उम्र ईमानदारी का जीवन जीते रहे और संतुष्ट रहे. इनमे अधिक नहीं लेकिन मैं यहां कम से कम दो व्यक्तियों का ज़िक्र जरूर करूंगा- मेरे पूज्य पिता जी और आपके श्रद्धेय दादा जी (जिनके बारे में आपने फोरम पर एक से अधिक बार ज़िक्र किया है). इसके अलावा यदि आप शाम के समय किसी मजदूर बस्ती में गये हों तो आपको ज्ञात हो जाएगा कि हम अपने आसपास जो कुछ देखते हैं उससे परे भी ज़िन्दगी का अस्तित्व है और वह ज़िन्दगी कई मायनों में तथाकथित अभिजात्य वर्ग की ज़िन्दगी से बेहतर है- मूल्यों में, संतुष्टि में और सामाजिकता में. वे अपनी सीमित क्षमताओं में भी राष्ट्र निर्माण के कार्य में अपना योगदान दे रहे हैं. आपने आगे यह भी लिखा है कि भ्रष्टाचार का कारण मूलतः यही है कि लोग"रातों रात अमीर बनना चाहते हैं, अपने मित्रों, पड़ौसियों व कलीग्स केबीच रुतबा बढ़ाने के लिये दिखावा करते हैं और झूठी प्रतिष्ठा अर्जित करना चाहतेहैं. यदि वे यह सब कुछ उचित तरीकों से अफोर्ड नहीं कर पाते तो अनुचित या भ्रष्टतरीके अपना कर हासिल करना चाहते हैं."बन्धु, मैं यह समझता हूँ कि मात्रउपरोक्त कारण ही नहीं बल्कि अन्य बहुत से साधारण दैनिक कार्य भी भ्रष्टाचार से भरेहुए हैं। कृपया गौर करें कि:टिप्पणी: पैक किये हुये सामान को छोड़ दीजिये. खुले हुये सामान की बात करें जैसे सब्जी खरीदते समय आप मोल भाव करते हैं. आप कम से कम दाम में अच्छी से अच्छी सब्जी लेना चाहते है. और दुकानदार अच्छी सब्जी दे कर उसके अच्छे पैसे वसूल करना चाहता है. इसमें भ्रष्टाचार कहाँ है. यह तो बाजार है. आपको एक विक्रेता नहीं जंचता तो आप दूसरे विक्रेता के पास जा सकते हैं. वहां भी आपस में होड़ है, प्रतिस्पर्धा है. कोई दुकानदार बगैर मार्जिन के माल नहीं बेचेगा. कुछ समझदार लोग शाम के समय सब्जी खरीदने जाते हैं, क्योंकि उस समय विक्रेता को सारी बची-खुची सब्जी बेचनी होती है. अतः डिस्काउंट भी अधिकतम मिल जाता है} उत्तर: जय जी, मैंने ‘भ्रष्टाचार’ का जो कार्य-कारण समीकरण आपके सामने रखा है वह उस गम्भीर स्थिति को सामने रख कर बना है जिससे वर्तमान में आमजन त्रस्त है, जिस पर संसद में चर्चा होती है, मीडिया, जिसमें स्टिंग ऑपरेशन भी शामिल हैं, के द्वारा पोल-पट्टी खोली जाती है या जिनका ज़िक्र आजकल अखबार के पहले पन्ने से ले कर खेलों के पन्ने तक बिखरा होता है. जी हाँ, निश्चित ही आपके द्वारा दर्शाए गये उपरोक्त व्यवहार भी कहीं न कहीं सामाजिक नियमों के विरुद्ध हैं और हमारे सामाजिक ताने-बाने को कमज़ोर करते हैं. लेकिन यदि आप उक्त सभी व्यवहारों को एक ही शब्द ‘भ्रष्टाचार’ द्वारा परिभाषित करना चाहते हैं तो आपकी इच्छा. ऐसा करने से आपको कोई नहीं रोक सकता. लेकिन मैं सिर्फ यह निवेदन करना चाहता हूँ कि ‘भ्रष्टाचार’ एक व्यापक अर्थों वाला शब्द है. उपरोक्त दृष्यावली में चित्रित किये गये व्यवहारों को यदि किसी एक ही शब्द से व्यक्त किया जा सकता तो शब्दकोष या dictionary में अन्य शब्दों की ज़रुरत नहीं होनी चाहिये थी. मैं यहां Roget’s Pocket Thesaurus से संचित किये हुये कुछ ऐसे शब्दों की सूचि रखना चाहता हूँ जो आपके द्वारा उपरोक्त एक दर्जन ही नहीं बल्कि उससे भी कहीं अधिक स्थितियों पर उनकी प्रकृति के अनुसार लागू हो सकते हैं (यह सूचि केवल एक बानगी भर है. खंगालने पर और भी अर्थवान शब्द मिल सकते हैं). आप यह न समझें कि हिंदी में इसके समान्तर नहीं हैं. ढूँढ़ने से वह भी मिल जायेंगे. Corruption: dishonesty, sleaze, fraud, venality, vice, depravity, perversion, immorality, distortions Misuse: misappropriation, misapplication, abuse, exploitation, squander, embezzlement Turpitude: Immorality, depravity, baseness, improbity, moral turpitude, indiscipline Misconduct: delinquency, transgression Misdemeanors: wrongdoings, offences, indiscretion, lapses, breach of trust, misdeeds, Malfeasance कर्तव्य पालन में कोताही करने वालों के लिए कुछ शब्द: Truant: Malingerer, shirker, skiver, Laggard: slacker, shirker, dawdler, straggler Indolent: lazy, lethargic, idle, sluggish, slothful, laidback बन्धु, एक सर्वहारा मजदूर से लेकर एक उच्च प्रशासनिक अधिकारी तक सभी वर्ग, सभीसम्प्रदाय और सभी आय वाले लोग कहीं न कहीं, कभी न कभी भ्रष्टाचारी अवश्य बन चुकाहै। ऐसे में अमीर होने अथवा झूठी प्रतिष्ठा का दिखावा करने की बात बहुत गौड़ होजाती है। उपरोक्त कार्य करते समय हमें तनिक भी आभास नहीं होता कि हम गलत कर रहेहैं। क्या यह समझा जाना चाहिए कि 'भ्रष्टाचार' जैसा शब्द अब हमारे विचारों सेटकराता नहीं है? क्या भ्रष्टाचार आज का संस्कार बन चुका है?टिप्पणी: यहां मैं आपसे सहमत हूँ कि भ्रष्टाचार (अपने आर्थिक, राजनैतिक, कानूनी, नैतिक या किसी अन्य रूप-आकार में) समाज के लिए एक नासूर बन चुका है और कई बार हमें पता भी नहीं लगता हम ग़लत कर रहे हैं. लेकिन यदि यह मान लिया जाये कि इसका कोई इलाज है ही नहीं, तो यह उचित नहीं होगा. संगठित क्षेत्र में (जहां हर लेन-देन या निर्णय-प्रक्रिया का पूरा रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है) वहां लगातार अंदरूनी जांच (ऑडिट और इंस्पेक्शन) का प्रावधान रखा जाता है और सतर्कता विभाग और अन्य उच्चाधिकार प्राप्त एजेंसी द्वारा भी समय समय पर जांच की जाती है. बहुत से अन्य क्षेत्र जो स्वतंत्र काम करते हैं जैसे- खाने-पीने की वस्तुएं बेचने वाले, दवाएं बेचने और बनाने वाले, दुकानें जो माप-तौल के लिए साधन बरतते हैं, ऑटोमोबाइल गाड़ियों तथा औद्योगिक इकाइयों जहां प्रदूषण की संभावना हो सकती है, वहां पर भी अधिकृत एजेंसियों / विभागों द्वारा जांच-पड़ताल की जाती है. लेकिन सच्चाई यह है कि हर जगह और हर समय हर व्यक्ति के हर कार्य की जांच नहीं की जा सकती. जांच तो एक सैम्पल की हो सकती है. जहां हर व्यक्ति एक अलग सैम्पल बना हुआ हो तो जांच भी एक छलावा होगी. Last edited by rajnish manga; 13-09-2013 at 03:27 PM. |
13-09-2013, 03:36 PM | #2442 |
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Re: साक्षात्कार
उत्तर: राजनीति और वह भी आज की गठबंधन की राजनीति में दल बदल जायेंगे, चेहरे बदल जायेंगे, लेकिन बेदाग़ और सम्मानित नेता जब तक चुन कर नहीं आयेंगे तब तक स्थिति में गुणात्मक बदलाव कैसे आ पायेगा? ग्रामीण वोटर जब तक जात-पात की विवशता से ऊपर उठ कर नहीं सोचेगा, शहरी वोटर वोट डालने के लिए घर से नहीं निकलेगा, महिलायें अपने विवेक के अनुसार वोट नहीं देंगी और देश का युवा वर्ग जब तक खूब सोच-विचार कर पूरी गंभीरता से काम करने वाले अच्छे प्रत्यशियों को नहीं जितवायेगा, तब तक अधिक आशा करना मुनासिब नहीं. आर्थिक मामलों का मुझे इतना ज्ञान नहीं है. अतः मैं इनके भविष्य पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकूंगा. |
13-09-2013, 03:39 PM | #2443 |
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Re: साक्षात्कार
[aspundir] टिप्पणी: पूरे समाज को बदलने से पहले हम स्वयं को वैसा बनाये जैसा हम दूसरों को बनाना चाहते हैं. हमारी विडम्बना यही है कि हम में से हर एक यह मान कर चलता है कि तालाब में एक मेरे द्वारा दूध न डालने से क्या फ़र्क पड़ेगा. अंत में परिणाम यह होता है कि तालाब खाली मिलता है. [aksh] क्या ये प्रश्न है..?? या फिर उत्तर है..?? या फिर उत्तर के अन्दर छिपा हुआप्रश्न है..??टिप्पणी: यह प्रश्न भी है, उत्तर भी तथा प्रति-प्रश्न और प्रति-उत्तर भी. |
13-09-2013, 03:57 PM | #2444 |
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Re: साक्षात्कार
मैं समझता हूँ कि गत छः सितम्बर से आरम्भ इस साक्षात्कार के समापन का समय आ गया है. इसका पटाक्षेप करते हैं ताकि आगामी साक्षात्कार के लिये मंच तैयार किया जा सके.
मैं अपने उन मित्रों को नमन करता हूँ जिन्होंने मुझसे प्रश्न पूछ कर मुझे आत्म-मंथन करने का अवसर प्रदान किया. हो सकता है मैं आपकी अपेक्षाओं के अनुसार उत्तर न दे पाया होऊं अथवा मेरे किसी उत्तर से आपकी भावनाओं को ठेस पहुंची हो. ऐसे सभी मित्रों से में हृदय से क्षमा याचना करता हूँ. ध न्य वा द
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13-09-2013, 07:32 PM | #2445 |
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Re: साक्षात्कार
रजनीश जी ने जिस तरह साक्षात्कार में विस्तार से हर सवाल का जवाब दिया है उसके लिए हम सभी इनके बहुत बहुत आभारी हैं.
धन्यवाद।
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
13-09-2013, 08:12 PM | #2446 |
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Re: साक्षात्कार
रजनीश जी, सरल, कठिन तथा दुर्साध्य लगभग सभी प्रश्नों का अपनी चिर-परिचित शैली में मनन करने योग्य प्रति-उत्तरों के लिये हार्दिक अभिनन्दन ।
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13-09-2013, 08:15 PM | #2447 | |
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Re: साक्षात्कार
Quote:
आपकी नाराजगी शायद उचित ही है बन्धु क्योंकि मैंने जिस उद्देश्य से फ्रेम शब्द लिखा था उसका वह तात्पर्य तो कदापि नहीं था जो आपने निकाला। जिस तरह से किसी भी कटी फटी गंदी तस्वीर को फ्रेम करके अच्छा बना दिया जाता है उसी प्रकार से आपने उत्तर देते समय जिस तरह से शब्दों का चयन किया था वह मुझे पसंद आया था। इसलिए फ्रेम शब्द को प्रयोग में लिया था .. शायद कहीं चूक अवश्य हुयी है मुझसे। हृदय पर लगी चोट पर मैं क्षमा मांग कर मरहम लगाने का प्रयत्न अवश्य कर रहा हूँ किन्तु मुझे नहीं पता कि यह कितना असरकारक होगा।रजनीश जी, कृपया मुझे क्षमा करें। आभार एवं उचित प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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13-09-2013, 11:49 PM | #2448 |
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Re: साक्षात्कार
जय भाई जी, एक क्षण को मुझे लगा कि सवाल गैरवाजिब है, लेकिन दूसरे ही पल मुझे अपनी नादानी (अज्ञानता / अल्पज्ञता) का आभास हुआ. मैं उनसे कैसे नाराज हो कर जी सकता हूँ जिन्होंने मेरे होने को एक मक़सद दिया हो और जीने को एक वजह. अपने प्रश्न को में पुनः अपने सामने रखता हूँ और फिर ‘अदम’ का यह शेर पढ़ कर मलाल करता हूँ: यदि आप प्रश्न ‘फ्रेम’ करने के लिए स्वतंत्र हैं तो क्या मुझे उत्तर ‘फ्रेम’ करनेकी छूट नहीं मिल सकती?
सैयद अब्दुल हमीद ‘अदम’** Last edited by rajnish manga; 14-09-2013 at 12:13 AM. |
14-09-2013, 12:56 AM | #2449 |
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Re: साक्षात्कार
आपने साफगोई और हाज़िर जवाबी से कायल कर लिया, रजनीशजी। जाने की जल्दबाजी न करें। जिज्ञासु अभी बहुत हैं, बस, आप समाधान करते रहें। किसी शायर के अलफ़ाज़ दोहराता हूं -
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में, फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
14-09-2013, 04:48 PM | #2450 |
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Re: साक्षात्कार
हौंसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया, अलैक जी. आपके शब्द मुझे सदा प्रेरित करते हैं. उपरोक्त शे'र दिल को छू लेने वाला है और किसी नामा-ए-मुहब्बत से कम नहीं है. लेकिन फिलहाल 'साक्षात्कार' की बज़्म से तो उठने की इजाज़त दीजिये.
Last edited by rajnish manga; 14-09-2013 at 07:57 PM. |
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