27-02-2014, 11:45 PM | #251 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तब ही तो शाम ढले फिर से पहले की तरह तेरे अहसास से रौशन हो दुनिया मेरी प्यार के दीप जले फिर से पहले की तरह
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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28-02-2014, 12:13 AM | #252 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमारे बाद नहीं आयेगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा, तुम लोगों से कहते फिरोगे, मुझे चाहो उसकी तरह......
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28-02-2014, 03:46 PM | #253 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हासिल हो कुछ मुआश ये मेहनत की बात है लेकिन सरूर-ए-कल्ब ये क़िस्मत की बात है. (मुआश = रोजगार / सरूर-ए-कल्ब = हृदय की मस्ती)
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28-02-2014, 03:58 PM | #254 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हम आईना हैं, कोई हमें जानता नहीं, पत्थर बने जो आप, तो मशहूर हो गए.......
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28-02-2014, 11:18 PM | #255 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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और मैं आँधियों को लाता हूँ रोज़ तेरे दिए जलाए हैं आज अपना दिया जलाता हूँ. (रियाकार = दुनियादार)
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28-02-2014, 11:48 PM | #256 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हर कदम पर हम आपके साथ है, दूर होकर भी आपके पास है, आपको हो न हो पता पर रब की कसम, हमें आपकी कमी का हर पल एहसास है......
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01-03-2014, 02:25 AM | #257 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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जिनसे शिकवा हजार बार किया आज फिर वादा कर नहीं आया आज फिर हमने इंतजार किया....................
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01-03-2014, 11:03 AM | #258 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसे तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है. (दश्त = रेगिस्तान)
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02-03-2014, 10:49 PM | #259 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हर रात बीतती रही यूं ही छत निहारते हुए तुम जब से गये हो राह में हमें पुकारते हुए
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02-03-2014, 11:47 PM | #260 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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एक सी शोख़ी खुदा ने दे रखी है हुस्नो इश्क़ को फ़र्क बस इतना कि वो आँखों में है ये दिल में है.
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