31-03-2015, 12:03 AM | #261 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
अदा जाफ़री Ada Jafarey ग़ज़ल न ग़ुबार में न गुलाब में मुझे देखना
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
31-03-2015, 12:05 AM | #262 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
अदा जाफ़री Ada Jafarey ग़ज़ल
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31-03-2015, 04:46 PM | #263 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
badiyaa ...............
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02-04-2015, 10:51 AM | #264 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
अदा जाफ़री Ada Jafarey अदा जाफ़री साहिबा के कुछ विशेष शे’र
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01-05-2015, 12:57 AM | #265 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
bahut achchhi gajale
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01-05-2015, 08:56 PM | #266 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
आप आये बहार आयी, मित्र रफ़ीक जी. हार्दिक धन्यवाद.
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02-07-2015, 10:59 AM | #267 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
"ख़ुमार" बाराबंकवी
KHUMAR BARABANKVI मूल नाम: मोहम्मद हैदर खान जन्म: 15 सितम्बर 1919 मृत्यु: 20 फरवरी 1999
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02-07-2015, 11:01 AM | #268 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
खुमार बाराबंकवी
KHUMAR BARABANKVI 15 सितम्बर वर्ष 1919 को जन्मे खुमार बाराबंकवी का मूल नाम "मोहम्मद हैदर खान" था। बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग 'दुल्लन' भी बुलाते थे। "खुमार" ने शहर के सिटी इंटर कालेज से आठवीं तक शिक्षा ग्रहण की । इसके पश्चात वह राजकीय इंटर कालेज बाराबंकी जिसकी मान्यता उस समय हाईस्कूल तक ही थी वहां से कक्षा 10 की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात लखनऊ के जुबली इंटर कालेज में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा। वर्ष 1938 से ही उन्होंने मुशायरों में भाग लेना शुरू कर दिया। खुमार ने अपना पहला मुशायरा बरेली में पढ़ा। उनका प्रथम शेर 'वाकिफ नहीं तुम अपनी निगाहों के असर से, इस राज को पूछो किसी बरबाद नजर से' था । ढाई वर्ष के अंतराल में ही वे पूरे मुल्क में प्रसिद्ध हो गये। उस दौर में जिगर मुरादाबादी उच्च कोटि के शायर माने जाते थे चूंकि खुमार ने 'तरन्नुम' से ही शुरूआत की, इसलिये शीघ्र ही वे जिगर मुरादाबादी के समकक्ष पहुंच गये। मुशायरों में अगर मजरूह सुलतानपुरी साहब के बाद अगर किसी को तवज्जो दी जाती थी तो वो "खुमार साहब" ही थे |
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02-07-2015, 11:04 AM | #269 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
खुमार बाराबंकवी
KHUMAR BARABANKVI महान शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी आपके अज़ीज़ दोस्त थे| जितना बड़ा क़द विनम्रता की उतनी ही बड़ी मूरत, कभी-कभी तो मुशायरों में आपको घंटों तक ग़ज़ल पढ़नी पड़ती थी, लोग उठने ही नहीं देते थे | हर मिसरे के बाद "आदाब" कहने की इनकी अदा इन्हें बाकियों से मुख्तलिफ़ करती है । आपका अंदाजे बयां भी औरों से अलग था जो इनकी ख़ूबसूरत ग़ज़लों में और भी चार-चाँद लगाता था | वैसे तो खुमार साहब मुशायरों को ही तवज्जो देते थे , लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ फ़िल्मों के गीत भी लिखे, जो उनकी ग़ज़लों की तरह ही उम्दा हैं | हर दिल अजीज 'खुमार बाराबंकवी' को वर्ष 1942-43 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक एआर अख्तर ने मुम्बई बुला लिया। यहाँ से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र और वे फ़िल्मी दुनिया में एक सफल गीतकार के रूप में जुड़ गए। आपने 1955 में फिल्म "रुख़साना" के लिये “शकील बदायूँनी” के साथ गाने लिखे थे। उससे पहले 1946 में फ़िल्म "शहंशाह " के एक गीत "चाह बरबाद करेगी" को "खुमार" साहब ने ही लिखा था, जिसे संगीत से सजाया था "नौशाद" ने और अपनी आवाज़ दी थी गायकी के बेताज बादशाह "के०एल०सहगल" साहब ने |
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02-07-2015, 11:06 AM | #270 |
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Re: सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
खुमार बाराबंकवी
KHUMAR BARABANKVI फ़िल्म 'बारादरी' के लिये लिखा गया उनका यह गीत 'तस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती' आज भी लोगों के दिलों में बसा है। उन्होंने तमाम फ़िल्मों के लिये 'अपने किये पे कोई परेशान हो गया', 'एक दिल और तलबगार है बहुत', 'दिल की महफ़िल सजी है चले आइए', 'साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं','भुला नहीं देना', 'दर्द भरा दिल भर-भर आए', 'आग लग जाए इस ज़िन्दगी को, मोहब्बत की बस इतनी दास्ताँ है', 'आई बैरन बयार, कियो सोलह सिंगार', जैसे गीत लिखे जो खासे लोकप्रिय हए। खुमार के ये गीत आज भी हमारी ज़िन्दगी में रस घोल देते हैं। खुमार साहब ने चार पुस्तकें भी लिखीं ये पुस्तकें हैं शब-ए-ताब, हदीस-ए-दीगरां, आतिश-ए-तर और रक्स-ए-मय। खुमार का अंतिम समय काफी कष्टप्रद रहा। मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से ही उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था। 13 फरवरी 99 को उनकी हालत गंभीर हो गई। उन्हें लखनऊ के मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। जहाँ 19 फरवरी की रात उन्होंने आखिरी साँस ली।
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