06-08-2013, 01:38 AM | #261 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
गौतम बुद्ध के प्रवचन में एक व्यक्ति रोज आता था और ध्यान से उनकी बातें सुनता था। गौतम बुद्ध भी देखते थे कि वह व्यक्ति आता रोज है, लेकिन वे उससे कुछ पूछते या कहते नहीं थे। उसका चेहरा देख कर इतना जरूर समझ रहे थे कि वह व्यक्ति उनसे कुछ पूछना चाहता है, लेकिन गौतम बुद्ध फिर भी यह सोच कर चुप हो जाते थे कि एक न एक दिन तो वह व्यक्ति अपनी झिझक तोड़ कर उसके मन में जो शंका है, उस बारे में सवाल पूछ ही लेगा। एक दिन वह व्यक्ति बुद्ध के पास आकर बोला, मैं लगभग एक महीने से आपके प्रवचन सुन रहा हूं, पर क्षमा करें। मेरे ऊपर उनका कोई असर नहीं हो रहा है। इसका कारण क्या है? क्या मुझमें कोई कमी है? बुद्ध ने मुस्कराकर पूछा - यह बताओ, तुम कहां के रहने वाले हो? उस व्यक्ति ने कहा - श्रावस्ती का। बुद्ध ने पूछा - श्रावस्ती यहां से कितनी दूर है? उसने दूरी बताई। बुद्ध ने पूछा - तुम वहां कैसे जाते हो? व्यक्ति ने कहा - कभी घोड़े पर जाता हूं, तो कभी बैलगाड़ी में जाता हूं। बुद्ध ने फिर प्रश्न किया - वहां पहुंचने में कितना समय लगता है? उसने हिसाब लगाकर समय बताया। बुद्ध ने कहा - यह बताओ, क्या तुम यहां बैठे-बैठे श्रावस्ती पहुंच सकते हो? व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा - यहां बैठे-बैठे, भला वहां कैसे पहुंचा जा सकता है। इसके लिए चलना तो पड़ेगा या किसी वाहन का सहारा लेना पड़ेगा। बुद्ध मुस्कराकर बोले - तुमने बिल्कुल सही कहा। चल कर ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इसी तरह अच्छी बातों का प्रभाव भी तभी पड़ता है, जब उन्हें जीवन में उतारा जाए। उसके अनुसार आचरण किया जाए। कोई भी ज्ञान तभी सार्थक है, जब उसे व्यावहारिक जीवन में उतारा जाए। मात्र प्रवचन सुनने या अध्ययन करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। उस व्यक्ति ने कहा - अब मुझे अपनी भूल समझ में आ रही है। मैं आपके बताए मार्ग पर आज से ही चलूंगा। बुद्ध ने उसे आशीर्वाद दिया।
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06-08-2013, 02:10 PM | #262 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
Dark Saint Alaickजी,
अभी इस मंच पर नवागन्तुक हूँ आज पहली बार आपके लेखों पर नजर डाला। लगता है आप तो यहाँ के veteran member हैं। यह सूत्र मुझे बहुत अच्छा लग रहा है अभी, आज ही, इसे पढ़ना आरम्म्भ किया और पिछले पोस्टों को भी आने वाले दिनों में पढ़ने का इरादा है। आपके अन्य सूत्रों को पढ़ने के लिए हम फ़िर आएंगे और आते रहेंगे। लिखते रहिए। धन्यवाद |
08-09-2013, 12:23 AM | #263 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
बहुत खूब
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12-09-2013, 10:02 AM | #264 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
इस सूत्र को मैंने बुकमार्क कर लिया है, उम्मीद है अगली बार आऊंगा तो कुछ और रोचक पढने को मिलेगा. वैसे अब तक के पाठ तो प्रिंट करके सहेज कर रखने योग्य है. एक एक पोस्ट पढ़कर लगता है जैसे ज्ञान की गंगा में तैरते जा रहे हैं. बहुत ही बढ़िया, शब्द नहीं है मेरे पास इस तरह के सूत्र के लिए.
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16-09-2013, 08:02 AM | #265 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अपनी योग्यता अनुसार काम करें
अपनी स्किल्स को जानना सबसे ज्यादा जरूरी है। खुद को मिलने वाली शाबाशियों और सकारात्मक फीडबैक को याद करें। इससे अपनी उपलब्धियों के बारे में सोच पाएंगे। आप जान पाएंगे कि किन चीजों से आपको खुशी और संतुष्टि मिलती है और किन कार्यों को आप उत्साह से पूरा करते हैं। अपनी उपलब्धियों को चिन्हित करें। मान लीजिए पिछले दिनों आपने किसी प्रोजेक्ट का नेतृत्व अच्छा किया था तो अब यह जानें कि आप किस काम में बेहतर थे, प्रभावी बातचीत, विभिन्न विभागों में समन्वय, रिपोर्ट लेखन, सूचनाओं का सही संप्रेषण, मल्टी टास्किंग या फिर पहल करना। किसी नौकरी के लिए अपनी स्किल्स को समझने के लिए आप ओएनईटी पर विजिट कर सकते हैं। यह एक आॅनलाइन प्रोग्राम है जो व्यवसायिक सूचनाओं को प्रमुखता से देता है। उचित करियर तक पहुंच बनाने में व्यक्तिगत रुचियां, व्यक्तित्व और मूल्य भी स्किल्स की तरह ही जरूरी होते हैं। यह बातें अपने अनुकूल करियर का चुनाव करने में सहायक होती हैं। बहुत अधिक उलझन में यदि हैं तो किसी अच्छे करियर काउंसलर या मेंटर की मदद लेना भी अच्छा रहेगा। करियर काउंसलर विभिन्न पर्सनैलिटी टाइप इंस्ट्रूमेंट्स और एक्टिविटीज के जरिए आपके बारे में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करते हैं और उसके आधार पर आपके टेस्ट का विश्लेषण करते हैं। बेहतर होगा कि आप अपनी उपलब्धियों की एक सूची बनाएं और स्किल्स सम्बंधी पोर्टफोलियो बनाते समय अपनी स्किल्स को उदाहरण के साथ लिखें। करियर की योजना बनाते समय खुद का आकलन करना पहला और जरूरी कदम होगा। खुद को अनचाहे करियर में फंसे हुए देखने से बचने के लिए अपनी पिछली उपलब्धियों से जुड़ी स्किल्स, रुचियों और व्यक्तित्व पर गौर करें। अगर आप इतना कर लें तो तय मानिए कि आप अपने जीवन में कभी पिछड़ेंगे नहीं क्योंकि आपको अपनी हैसियत का पता रहेगा।
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16-09-2013, 08:03 AM | #266 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अहिंसा की ताकत
यह उन दिनों की बात है जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे। वे वहां रह कर भारतीयों और अन्य समुदायों के साथ हो रहे भेदभाव का विरोध कर रहे थे। उस समय सभी को यह पता था कि महात्मा गांधी अपना विरोध हमेशा अहिंसा के बूते ही जताते हैं। उन्होने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया और अहिंसा ही उनका सबसे बड़ा हथियार होता था। वे सचमुच के हथियारों से घृणा करते थे। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अन्य समुदायों के साथ भेदभाव का लगातार विरोध के कारण महात्मा गांधी की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। इससे कई लोग उनके विरोधी हो गए थे क्योंकि उन्हे इस बात की ईर्ष्या होती थी कि महात्मा गांधी अपना विरोध शांतिपूर्ण ढंग से कर रहे हैं। कुछ लोग उनकी हत्या की साजिश रचने लगे। उनके एक मित्र मिस्टर कैलनबैक को इसका पता लग गया। उन्होंने महात्मा गांधी से अपनी सुरक्षा को लेकर सचेत रहने को कहा पर महात्मा गांधी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। कैलनबैक परेशान रहने लगे। फिर उन्होंने खुद ही महात्मा गांधी की सुरक्षा करने का फैसला किया। वह जेब में पिस्तौल लेकर चलने लगे। यह बात उन्होंने महात्मा गांधी को नहीं बताई पर उन्हें इसका पता चल ही गया। उन्होंने कैलनबैक को बुलाकर कहा, आप मेरी रक्षा नहीं कर सकते। जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु अनिवार्य है। दूसरी बात यह है कि आत्मा अमर है उसे कोई मार नहीं सकता। इसलिए उसे रक्षा की क्या आवश्यकता है? तीसरी बात यह कि किसी की भी रक्षा हिंसा के साधनों से करना अनुचित है। मेरे पास तो अहिंसा की ताकत है फिर मैं क्यों डरूं। मैं इसी से हर संकट का सामना करूंगा। मैं आपकी भावना का सम्मान करता हूं पर आपका यह तरीका मुझे पसंद नहीं। महात्मा गांधी की इस बात से कैलनबैक बहुत प्रभावित हुए। उस दिन से उन्होंने पिस्तौल लेकर चलना बंद कर दिया।
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16-09-2013, 08:03 AM | #267 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
सोच समझ कर करें फैसला
कॅरियर प्लानिंग आसान नहीं होती। खासतौर पर जब आपके पास विकल्प बहुत हों तो यह काम और मुश्किल हो जाता है। कई बार देखने को मिलता है कि पढ़ाई के लिए चुने गए विषय और कॅरियर में भी समय के साथ रुचि कम हो जाती है। व्यक्ति को लगता है कि यह क्षेत्र वह नहीं है जिसमें वह ताउम्र काम करना पसंद करेगा। नतीजा वह अपने फैसले और परिस्थितियों को ही कोसने लगता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि कई बार हम अपने महत्वपूर्ण फैसले भी छोटी-छोटी बातों से प्रभावित होकर ले लेते हैं। मसलन हमारे दोस्तों ने किस कॅरियर का चुनाव किया है, हमारे दोस्त कौन से कॉलेज में दाखिला ले रहे हैं, कॉलेज की बिल्डिंग कैसी है आदि-आदि। पर आगे चल कर अपने निर्णयों को लेकर पछताना न पड़े और आप अपनी जीत का सफर सही समय में पूरा कर सकें इसके लिए जरूरी है कि आप कॅरियर सम्बंधी अपनी योजना सोच समझ कर बनाएं। निर्णय लेते समय छोटी बातों से प्रभावित न होकर दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान देना ही सबसे बेहतर रणनीति होती है। कॅरियर सम्बंधी फैसले लेते समय कई बातों पर गौर करना जरूरी होता है। यह निश्चित करें कि कहां जाना चाहते हैं। बिना सोच समझे किसी भी राह पर कदम बढ़ाना कई बार पछताने के लिए मजबूर कर देता है। अपना लक्ष्य बनाएं। इससे अधिक फोकस्ड होकर उस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ा पाएंगे। इसी आधार पर आपके अगले निर्णय प्रभावित होंगे। अपनी वास्तविक क्षमताओं का आकलन करें। इससे स्किल्स के मुताबिक कॅरियर चुनने में मदद मिलेगी। साथ ही यह भी समझ पाएंगे कि इच्छित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आपको किन स्किल्स पर और काम करना होगा। यदि लगे कि आप कोई फैसला नहीं ले पा रहे हैं तो काउंसलर की मदद लें। काउसंलर बातचीत एटीट्यूड व एप्टीट्यूड को बताने वाले टैस्ट के परिणामों के आधार पर व्यक्ति की क्षमताओं को समझने में मदद करते हैं।
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16-09-2013, 08:07 AM | #268 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
एक भक्त की आराधना
भगवान विट्ठल का एक नेत्रहीन भक्त था कात्यायन । वह रोज विट्ठल के भजन गाता और उनकी आराधना करता था। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता था, जब वह अपने प्रिय विट्ठल को याद नहीं करता हो। हालांकि वह नेत्रहीन था, लेकिन भजन गाते समय ऐसा लगता मानो विट्ठल उसे दिखाई दे रहे हों। एक बार कात्यायन के गांव के पास पहाड़ी पर स्थित विट्ठल के मंदिर में एक मेले का आयोजन किया गया। भला विट्ठल का भक्त वहां कैसे नहीं जाता? उसने मेले में जाने का फैसला किया हालांकि नेत्रहीनता के कारण परेशानी का सामना करना पड़ेगा, वह यह जानता था, लेकिन वह किसी के भी रोकने से नहीं रुका। मेले में अन्य श्रद्धालुओं के साथ जा रहा था और पूरे उत्साह के साथ विट्ठल के भजन गा रहा था। भीड़ में हट्टे-कट्टे नौजवान भी थे और कई वयस्क स्त्री-पुरुष भी हांफते हुए रास्ता पार कर रहे थे। कात्यायन को देखकर एक युवक ने पूछा, पहाड़ी तो बहुत ऊंची है और अभी चौथाई रास्ता भी पार नहीं हो पाया है। तुम वहां तक कैसे पहुंच पाओगे? कात्यायन हंसते हुए बोला - मित्र, मैं तो केवल अपना शरीर ढो रहा हूं। मेरी आत्मा तो कब की ऊपर विट्ठल के पास जा चुकी है। इस जवाब ने युवक में जोश भर दिया और वह भी जयकारा लगाता हुआ ऊपर चढ़ने लगा। वह अपने सारे कष्ट भूल गया। हालांकि सबसे अधिक कष्ट कात्यायन को ही हो रहा था, फिर भी वह अपनी गठरी और झोला संभाले चला जा रहा था। जब सब ऊपर मंदिर के पास पहुंचे तो एक भक्त ने कात्यायन से पूछा - आप इतने कष्ट उठाकर यहां तक क्यों आए? आपकी तो आंखें ही नहीं हैं। भला, आप क्या दर्शन करेंगे? इस पर कात्यायन ने थोड़ा भावुक होकर कहा - भाई, मैं विट्ठल को न देख पाऊं तो क्या हुआ। मेरा विट्ठल तो मुझे पहाड़ी से ही देख रहा है। जो सबको देखता है, उसे मैं देख पाऊं या नहीं देख पाऊं, उससे क्या फर्क पड़ता है। मेरा मानना है कि वह मुझे देख रहा है।
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16-09-2013, 08:09 AM | #269 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
मनोबल में होती है ताकत
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16-09-2013, 08:10 AM | #270 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
गमले तोड़ने का राज
जोसेफ मोनियर नाम का एक शख्स था। उसे नए-नए पौधे लगाने का बहुत शौक था। वह अपने इस शौक के लिए हरदम जुटा रहता था। उसकी एक और आदत थी कि नए पौधे लगाने के साथ वह मिट्टी के गमले भी खुद बनाता था। शुरू में तो कुछ दिनों तक उसने यही किया कि जो भी पौधा वह लगाता था उस गमले को सहेज कर रखता था लेकिन बाद में उसे न जाने क्या सूझी कि वह पौधे लगाने के लिए जो भी गमला बनाता उसे तोड़ डालता था। उसने कई दिनों तक ऐसा ही किया। रोज गमला बनाए और रोज ही उसे तोड़ डाले। लोगों ने उसे ऐसा करते देखा तो कुछ दिन तो चुप रहे लेकिन जब उसका यह क्रम बना रहा तो कहने लगे कि यह आदमी तो पागल है जो रोज मेहनत करके गमले तो बनाता है और फिर खुद ही तोड़ देता है। उस पर लोगों की बातों का कोई असर नहीं पड़ता था। वह अपने काम में लगा रहा। मिट्टी के गमले बना कर उन्हें तोड़ते हुए जब मोनियर को काफी समय हो गया तो उसने अपना ध्यान मिट्टी के गमलों पर से हटा दिया और सीमेंट के गमले बनाने शुरू कर दिए। मोनियर ने देखा कि सीमेंट के गमले ज्यादा मजबूत थे। उसने उन्हें भी तोड़ डाला और यह निष्कर्ष निकाला कि ये हल्के नहीं थे। इसके बाद उसने तार लपेट कर गमले बनाए पर उसमें जंग लग गया। एक दिन मोनियर ने गमले के अंदर तार लपेटे और उसमें कंक्रीट व सीमेंट भर दी। ये हल्के और मजबूत थे। तार में जंग भी नहीं लगा। ये गमले अत्यधिक मजबूत और टिकाऊ थे। गमलों में प्रयुक्त इस पद्धति को जब इंजीनियरों ने देखा तो वे दंग रह गए। इसके बाद भवनों के निर्माण में इसी तरह की पद्धति का प्रयोग होने लगा। आज इसका प्रयोग विशालकाय बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में हो रहा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि भवनों के निर्माण की मजबूत आधारशिला रखने वाला यही सनकी जोसेफ मोनियर ही था।
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