29-10-2011, 07:27 PM | #271 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
पथ की पहचान
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जबानी अनगिनत राही गए इस राह से उनका पता क्या पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है खोल इसका अर्थ पंथी पंथ का अनुमान कर ले। पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। यह बुरा है या कि अच्छा व्यर्थ दिन इस पर बिताना अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना तू इसे अच्छा समझ यात्रा सरल इससे बनेगी सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले। पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। है अनिश्चित किस जगह पर सरित गिरि गह्वर मिलेंगे है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी यह भी अनिश्चित है अनिश्चित कब सुमन कब कंटकों के शर मिलेंगे कौन सहसा छू जाएँगे मिलेंगे कौन सहसा आ पड़े कुछ भी रुकेगा तू न ऐसी आन कर ले। पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
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31-10-2011, 02:43 PM | #272 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
सारा देश हमारा
केरल से करगिल घाटी तक गौहाटी से चौपाटी तक सारा देश हमारा जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा - केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा, लगता है ताज़े लोहू पर जमी हुई है काई लगता है फिर भटक गई है भारत की तरुणाई काई चीरो ओ रणधीरों! ओ जननी की भाग्य लकीरों बलिदानों का पुण्य मुहूरत आता नहीं दुबारा जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा - केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा, घायल अपना ताजमहल है, घायल गंगा मैया टूट रहे हैं तूफ़ानों में नैया और खिवैया तुम नैया के पाल बदल दो तूफ़ानों की चाल बदल दो हर आँधी का उत्तर हो तुम, तुमने नहीं विचारा जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा - केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा, कहीं तुम्हें परबत लड़वा दे, कहीं लड़ा दे पानी भाषा के नारों में गुप्त है, मन की मीठी बानी आग लगा दो इन नारों में इज़्ज़त आ गई बाज़ारों में कब जागेंगे सोये सूरज! कब होगा उजियारा जीना हो तो मरना सीखो, गूँज उठे यह नारा - केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा संकट अपना बाल सखा है, इसको कठ लगाओ क्या बैठे हो न्यारे-न्यारे मिल कर बोझ उठाओ भाग्य भरोसा कायरता है कर्मठ देश कहाँ मरता है? सोचो तुमने इतने दिन में कितनी बार हुँकारा जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा - बालकवि बैरागी
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31-10-2011, 02:46 PM | #273 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
आज क्रांति फिर लाना है...
आज सभी आज़ाद हो गए, फिर ये कैसी आज़ादी वक्त और अधिकार मिले, फिर ये कैसी बर्बादी संविधान में दिए हक़ों से, परिचय हमें करना है, भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... जहाँ शिवा, राणा, लक्ष्मी ने, देशभक्ति का मार्ग बताया जहाँ राम, मनु, हरिश्चन्द्र ने, प्रजाभक्ति का सबक सिखाया वहीं पुनः उनके पथगामी, बनकर हमें दिखना है, भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... गली गली दंगे होते हैं, देशप्रेम का नाम नहीं नेता बन कुर्सी पर बैठे, पर जनहित का काम नहीं अब फिर इनके कर्त्तव्यों की, स्मृति हमें दिलाना है, भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... पेट नहीं भरता जनता का, अब झूठी आशाओं से आज निराशा ही मिलती है, इन लोभी नेताओं से झूठे आश्वासन वालों से, अब ना धोखा खाना है, भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... दिल बापू का टुकड़े होकर, इनकी चालों से बिखरा रामराज्य का सुंदर सपना, इनके कारण ना निखरा इनकी काली करतूतों का, पर्दाफाश कराना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... सत्य-अहिंसा भूल गये हम, सिमट गया नेहरू सा प्यार बच गए थे जे. पी. के सपने, बिक गए वे भी सरे बज़ार सुभाष, तिलक, आज़ाद, भगत के, कर्म हमें दोहराना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... आज जिन्हें अपना कहते हैं, वही पराए होते हैं भूल वायदे ये जनता के, नींद चैन की सोते हैं उनसे छीन प्रशासन अपना, 'युवाशक्ति' दिखलाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... सदियों पहले की आदत, अब तक ना हटे हटाई है निज के जनतंत्री शासन में, परतंत्री छाप समाई है अपनी हिम्मत, अपने बल से, स्वयं लक्ष्य को पाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... देशभक्ति की राह भूलकर, नेतागण खुद में तल्लीन शासन की कुछ सुख सुविधाएँ, बना रहीं इनको पथहीन ऐसे दिग्भ्रम नेताओं को, सही सबक सिखलाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... काले धंधे रिश्वतखोरी, आज बने इनके व्यापार भूखी सोती ग़रीब जनता,सहकर लाखों अत्याचार रोज़ी-रोटी दे ग़रीब को, समुचित न्याय दिलाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... राष्ट्र एकता के विघटन में, जिस तरह विदेशी सक्रिय हैं उतने ही देश के रखवाले, पता नहीं क्यों निष्क्रिय हैं प्रेम-भाईचारे में बाधक, रोड़े सभी हटाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... कहीं राष्ट्रभाषा के झगड़े, कहीं धर्म-द्वेष की आग पनप रहा सर्वत्र आजकल, क्षेत्रीयता का अनुराग हीन विचारों से ऊपर उठ, समता-सुमन खिलाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... अब हमको संकल्पित होकर, प्रगति शिखर पर चढ़ना है ऊँच-नीच के छोड़ दायरे, हर पल आगे बढ़ना है सारी दुनिया में भारत की, नई पहचान बनाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है... -डॉ. विजय तिवारी किसलय
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05-11-2011, 12:19 AM | #274 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
ऐ इन्सानों
आँधी के झूले पर झूलो आग बबूला बन कर फूलो कुरबानी करने को झूमो लाल सबेरे का मूँह चूमो ऐ इन्सानों ओस न चाटो अपने हाथों पर्वत काटो पथ की नदियाँ खींच निकालो जीवन पीकर प्यास बुझालो रोटी तुमको राम न देगा वेद तुम्हारा काम न देगा जो रोटी का युद्ध करेगा वह रोटी को आप वरेगा । गजानन माधव मुक्तिबोध
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05-11-2011, 12:21 AM | #275 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
पतंग एक उनके रक्तो से ही फूटते हैं पतंग के धागे और हवा की विशाल धाराओं तक उठते चले जाते हैं जन्म से ही कपास वे अपने साथ लाते हैं धूप गरुड़ की तरह बहुत ऊपर उड़ रही हो या फल की तरह बहुत पास लटक रही हो- हलचल से भरे नींबू की तरह समय हरदम उनकी जीभ पर रस छोड़ता रहता है तेज़ आँधी आती है और चली जाती है तेज़ बारिश आती है और खो जाती है तेज़ लू आती है और मिट जाती है लेकिन वे लगातार इंतज़ार करते रहते हैं कि कब सूरज कोमल हो कि कब सूरज कोमल हो कि कब सूरज कोमल हो और खुले कि कब दिन सरल हों कि कब दिन इतने सरल हों कि शुरू हो सके पतंग और धागों की इतनी नाज़ुक दुनिया आलोकधन्वा
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05-11-2011, 01:02 AM | #276 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
बहुत ही अच्छी कवितायें हैं..
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19-01-2012, 01:29 AM | #277 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
ससुराल से पाती आई है !
भैया भाभी सो जाते हैं, लेकिन यह विरहन जगती है कमरे की बन्द किवाङों से, मीठे मीठे स्वर आते हैं वे प्यार की बातें करते हैं, अरमान मेरे जग जाते हैं विश्वास करो मैं ने रातें तारों के साथ बिताई हैं
छत पर चढ़ बाट निहारूंगी , आने पर खाऊंगी खाना बस अधिक नहीं लिख सकती हूं , इतने को बहुत समझ लेना त्रुटियां चिट्ठी में काफ़ी हैं, साजन न ध्यान उन पर देना हे नाथ तुम्हारी दासी ने आने की आस लगाई है ।
जा कर बस लाना ही होगा, अब खैर नहीं चुप रहने में दस बीस बार पढ़ पाती को, सोचा अब जाना ही होगा पाजामे कुर्ते काफी हैं, एक सूट सिलाना ही होगा पैसे की चिन्ता ही क्या है , ऊपर की खूब कमाई है
मैं ने सोचा सप्ताह में तो , मरने का ही खत आयेगा सारे मित्रों पर हो आया पर, सूट सभी के छोटे थे पत्नी की किस्मत फूटी थी , या भाग्य हमारे खोटे थे देखा तो इधर मिला कूंआ, उस ओर बनी एक खाई थी ।
रंग बिरंगे मोजे पर फिर ,, पहन लिया बाटा के बूट दाढ़ी मूंछ सफ़ा कर के , नयनों में काजल घाल लिया फिर क्रीम लगा कर हल्की सी, ऊपर से पाउडर डाल लिया सिलकन कमीज़ के ऊपर ही पहनी नीली नकटाई है ।
पहले चढ़ने के चक्कर में , खिङकी से उलझ पैण्ट फाङी डब्बे के अन्दर पहुंचे तो , स्थान न था तिल धरने को मानो जैसे ससुराल नहीं , जाते हैं नरक में मरने को पाकेट में डाला हाथ मगर देखा तो वहां सफाई है ।
जब आंख उठा कर देखा तो टी.टी.आई सम्मुख पाया मांगा उसने जब टिकट तो मैं बोला भैय्या मजबूरी है कट गई जेब अब माफ़ करो , मुझ को एक काम ज़रूरी है पर डाल हथकङी हाथों में , ससुराल की राह दिखाई है ।
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05-02-2012, 05:22 PM | #278 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
क्योंकि सपना है अभी भी
इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल कोहरे डूबी दिशाएं कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी ...क्योंकि सपना है अभी भी! तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था (एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा?) किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना है धधकती आग में तपना अभी भी ....क्योंकि सपना है अभी भी! तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर वह तुम्ही हो जो टूटती तलवार की झंकार में या भीड़ की जयकार में या मौत के सुनसान हाहाकार में फिर गूंज जाती हो और मुझको ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको फिर तड़प कर याद आता है कि सब कुछ खो गया है - दिशाएं, पहचान, कुंडल,कवच लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं तुम्हारा अपना अभी भी इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल कोहरे डूबी दिशाएं कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध धुमिल किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी ... क्योंकि सपना है अभी भी! धरमवीर भारती
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21-04-2012, 01:45 AM | #279 | |
Diligent Member
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
Quote:
meye dhyan nahi |
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28-04-2012, 02:50 PM | #280 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
ये फर्क है क्यूँ ?
पापा की गाड़ी मेँ रात को जब मै एम जी रोड से गुजरती हूँ फुटपाथ पर सोये लोगोँ को ठिठुरते देख सिहरती हूँ माँ से जिद करके बच्चूमल से मँहगी ड्रेस जब लाती हूँ बाहर फटे कपड़ोँ मे खड़ी भिखारिन को देखकर डर जाती हूँ भाई के साथ जब डॉमिनोज मेँ अपनी पाकेटमनी से पिज्जा बर्गर खाती हूँ बाहर खड़े भूखे बच्चोँ को कूड़ेदान से खाने की चीजेँ चुनते पाती हूँ दादी कहती है ईश्वर ने हम सबको बनाया है फिर क्यूँ उस ऊपर वाले ने ये भेदभाव बनाया है | विदुषी अरोरा, नेहरू नगर ,आगरा
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