My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 24-02-2013, 08:39 PM   #21
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

टी.वी. और इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन के कारण आज लगभग सभी वर्गों के लिए इन तक अपनी पहुंच बनाना बहुत आसान हो गया है. विभिन्न जानकारियां हासिल करने के लिए या फिर मनोरंजन के ही उद्देश्य से बच्चों से लेकर बड़े यहां तक कि बुजुर्ग भी अब इन तकनीकों का फायदा उठा रहे हैं. लेकिन वो कहते हैं जहां फायदे हैं वहां कई नुकसान भी होते हैं. ऐसा ही कुछ यहां भी है.

टी.वी और इंटरनेट की दुनिया बहुत विस्तृत है. दुनिया में कब, क्या होने वाला है और आगे भी क्या हो सकता है आदि जैसी सभी जरूरी और गैर जरूरी सूचनाएं बस पल भर में ही हासिल हो सकती हैं. इन सभी सुविधाओं ने हमारे युवाओं की उत्सुकता और जिज्ञासा को अत्याधिक प्रभावित किया है और परिणाम यह हुआ कि एक उपयुक्त आयु में पहुंचने से पहले ही आज युवाओं की दिलचस्पी शारीरिक संबंधों के प्रति बढ़ने लगी है.

पहले ऐसा माना जाता था कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष शारीरिक संबंधों में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं लेकिन अब इसे आधुनिकता का परिणाम कह लें या फिर कुछ और लेकिन स्वभाव से शालीन और संकोची समझे जाने वाली भारतीय महिलाएं भी अब सेक्स से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारियों से अवगत होने की कोशिश कर रही हैं.


पोर्न वेबसाइट्स देखना हो या अश्लील फिल्में, इतना ही नहीं अश्लील जोक्स में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. यह लक्षण उन युवतियों में ज्यादा देखने को मिल रहे हैं जो घर से दूर हॉस्टल में रहती हैं. हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों में पोर्न मूवीज देखने का चस्का बहुत बढ़ता जा रहा है. राजधानी दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में हुए इस सर्वे में यह प्रमाणित हुआ कि अगर 60 प्रतिशत लड़के पोर्न वेबसाइट्स देखते हैं तो वहीं 40 प्रतिशत लड़कियों में भी पोर्न वेबसाइट्स देखने की आदत बढ़ती जा रही है.


छोटे-छोटे शहरों और गांव से बड़े-बड़े सपने लेकर राजधानी का रुख करने वाली लड़कियों में अश्लील फिल्में देखने का नशा बढ़ता जा रहा है. यह बात सर्वे में शामिल उन लड़कियों ने स्वीकारी है जो हर रोज पोर्न वेबसाइट्स विजिट करती हैं. उनका कहना है कि गर्ल्स हॉस्टल या फ्लैट में पूरी प्राइवेसी मिलती है इसीलिए ग्रुप बनाकर सभी की मर्जी के साथ पोर्न फिल्में देखी जाती हैं.


सर्वे में यह सामने आया है कि पोर्न फिल्में देखने जैसे अपने शौक को पूरा करने के लिए हॉस्टल में रहने वाली लड़कियां किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं. वे अपने परिवार से ज्यादा पैसे मंगवाती हैं ताकि इंटरनेट लगवा सकें और कभी अगर पैसे ना भी हों तो भी वे अपने दोस्तों से उधार लेने में कोई परेशानी महसूस नहीं करतीं. टीवी, इंटरनेट, लैपटॉप, 3-जी वाले मोबाइल जैसी आधुनिक तकनीकों का फायदा उठाने वाला युवा आज इन्हीं सब सुविधाओं का आदि भी बन कर रह गया है. आज हालात ऐसे बन पड़े है कि खुद युवा इन सब के बिना खुद को अधूरा समझने लगा है. बस एक क्लिक से हम किसी भी जानकारी, किसी भी साइट तक अपनी पहुंच आसानी से बना सकते हैं. सर्वे में शामिल लड़कियों का कहना है कि पोर्न वेबसाइट्स देखना सेक्स एजुकेशन ग्रहण करने जैसा है और इसमें कोई बुराई नहीं है बल्कि जानकारी होना बहुत जरूरी है.


अब लड़कियों की बदलती मानसिकता को देखते हुए हम तो बस यही कहेंगे कि भले ही उनकी नजर में पोर्न फिल्में देखना गलत ना हो लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि पोर्न फिल्में देखने से जगी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ही लोग शारीरिक संबंधों का अनुसरण करते हैं और युवाओं में विकसित हुई यह जिज्ञासा कैसे परिणाम का कारण बनती है यह तो हम सभी जानते हैं.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 24-02-2013, 08:41 PM   #22
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

बच्चों को समाज और देश का भविष्य समझा जाता है. उन्हें जिम्मेदार और परिपक्व बनाने में उनके अपने परिवार की भूमिका बेहद अहम होती है. बच्चे के मानसिक और चारित्रिक विकास के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसे अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए एक स्वस्थ वातावरण मिले और साथ ही परिवार भी हर कदम पर उसकी सहायता करने के लिए तैयार रहे. संतान के जीवन में परिवार की इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए ही बच्चे के लिए परिवार को ही आरंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है.

आमतौर पर यह माना जाता है कि अगर अभिभावक बच्चे का सही और परिपक्व ढंग से पालन-पोषण करें तभी बच्चे के भविष्य को एक सकारात्मक मोड़ दिया जा सकता है, अन्यथा उन्हें सही मार्ग पर स्थिर रखना बहुत मुश्किल हो सकता है. इसीलिए आपने देखा होगा कि कई माता-पिता अपने बच्चों के साथ बहुत सख्त व्यवहार करते हैं. इसके पीछे उनका मानना है कि अगर बच्चों के साथ बहुत ज्यादा ढील बरती जाएगी तो वे एक आदर्श व्यक्तित्व ग्रहण नहीं कर पाएंगे.
एक समय पहले तक वैज्ञानिकों का भी कुछ ऐसा ही कहना था. अपने सर्वेक्षणों में वे पहले ही यह बात साबित कर चुके हैं कि अभिभावकों का बच्चों पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है. बच्चों की हर बात मान लेना या उन्हें हमेशा प्यार से समझाना सही नहीं है. कभी कभार बच्चों के साथ कठोरता बरतना भी बहुत जरूरी है.

लेकिन एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि माता-पिता का सख्त व्यवहार बच्चों को कुंठित और तनावग्रस्त बना देता है. विशेषकर वे माताएं जो अपने बच्चों के साथ सख्त व्यवहार करती हैं और उन्हें हर बात पर टोकती हैं, उनके बच्चों में आत्मविश्वास कम होने लगता है और वे मानसिक रूप से भी परेशान होने लगते हैं.

एक ओर जहां चीनी लेखक एमी चुआ ने अपनी किताब में यह लिखा है कि एशियाई देशों में अभिभावको द्वारा बच्चे के साथ किया जाने वाला सख्त व्यवहार उन्हें काबिल और अच्छा प्रतियोगी बनाता है, माता-पिता जब बच्चे के ऊपर दबाव डालते हैं तो बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं. वहीं दूसरी तरफ मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डेसिरी क्वीन का कहना है कि वे बच्चे जो माता-पिता के दबाव में आकर उपलब्धियां पा लेते हैं, वे भले ही सफल हो जाएं लेकिन मानसिक तौर पर वे परेशान और कुंठित हो जाते हैं. अन्य छात्रों की तुलना में वे ज्यादा तनाव में रहते हैं.

डेसिरी क्वीन ने चीन और अमेरिका के प्रतिष्ठित स्कूलों के बच्चों को अपने इस शोध का केन्द्र बनाया जिसके बाद उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि बच्चों पर अधिक सख्ती करना उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बनाता है.

डेली न्यूज में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार क्वीन का कहना है कि एमी ने भले ही यह लिखा हो कि पश्चिम में बच्चे चीनी या एशियाई बच्चों से ज्यादा खुश हैं लेकिन वे बच्चे वास्तविक रूप से खुश नहीं रहते.

अगर इस शोध और उसकी स्थापनाओं को भारतीय परिवेश के अनुसार देखें तो अभिभावकों का बच्चों के साथ सख्ती या कठोरता करना उन्हें सही मार्ग पर अग्रसर रखने के लिए काफी हद तक सहायक होता है. लेकिन यह कितना और किस हद तक होना चाहिए इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.

कई बार देखा जाता है कि अगर अभिभावक बच्चों को हर बात पर डांटते या उन पर दबाव बनाते हैं तो उनके बच्चे परेशान रहने लगते हैं और वे अवसाद ग्रसित हो जाते हैं. वहीं अगर माता-पिता सख्ती ना बरतें तो बच्चों को सही मार्ग पर चलाना दूभर हो जाता है. अभिभावकों की अनदेखी बच्चों के चारित्रिक विकास को बाधित करती हैं. वे अपनी पढ़ाई को तो नजर अंदाज करने ही लगते हैं इसके अलावा नैतिक और सामाजिक मूल्यों से दूर हो जाते हैं.

प्राय: देखा जाता है कि जिन बच्चों की गलतियां परिवार और समाज हमेशा माफ करता हैं, वे कभी भी सही और गलत में अंतर नहीं कर पाते. वह बहुत ज्यादा जिद्दी हो जाते हैं. उन्हें अपने हितों और इच्छाओं के आगे कुछ भी नजर नहीं आता. सहनुभूति या सहयोग जैसे शब्द उनके लिए कुछ खास महत्व नहीं रखते. समाज और परिवार की जरूरत और आपसी भावनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं रहता. वह जानते हैं कि उनकी हर भूल माफ कर दी जाएगी इसीलिए उन्हें अपनी बड़ी से बड़ी गलती भी बहुत छोटी लगती है. वह कभी भी जिम्मेदार और परिपक्व व्यक्ति नहीं बन पाते.

इसीलिए जरूरी है कि कठोरता और प्रेम में सामंजस्य बैठा कर ही बच्चों के साथ व्यवहार किया जाए. दोनों की ही अति संतान और परिवार के भविष्य पर प्रश्नचिंह लगा सकती है.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 24-02-2013, 08:45 PM   #23
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसकी संतान सबसे ज्यादा अहमियत रखती है. दांपत्य जीवन में संतान का आगमन जहां नई जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को लेकर आता है वहीं भावनात्मक और आत्मिक संतुष्टि को भी एक नया आयाम देता है. माता-पिता बनने के बाद विवाहित दंपत्ति एक-दूसरे के साथ उतना समय नहीं बिता पाते जितना वो पहले बिताते थे. इतना ही नहीं उनके काम के घंटों में भी कहीं अधिक वृद्धि हो जाती है लेकिन फिर भी उन्हें अपने बच्चे की देख-रेख करने से ज्यादा और कोई काम नहीं सुहाता.

बहुत से लोगों का यह मानना है कि माता-पिता बनने के बाद व्यक्ति बड़े दयनीय हालातों से गुजरता है. उसे ना तो पूरा आराम मिल पाता है और ना ही वह अपने लिए थोड़ा समय निकाल पाता है. लेकिन हाल ही में कैलिफोर्निया, रिवरसाइड और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा हुए एक साझा अध्ययन में यह बात प्रमाणित की गई है कि माता-पिता के लिए सबसे अनमोल क्षण उनके जीवन में बच्चे का आगमन होता है. काम और जिम्मेदारियों की अधिकता होने के बावजूद अभिभावक के रूप में वह सबसे ज्यादा संतुष्टि महसूस करते हैं.

इस स्टडी की सह-लेखिका एलिजाबेथ डन का कहना है कि अगर आप किसी पार्टी में गए हैं तो वहां आप खुद यह महसूस कर सकते हैं कि जिन मेहमानों की संतान नहीं है उनसे कहीं ज्यादा प्रसन्न वे लोग हैं जिन्हें संतान सुख की प्राप्ति हो चुकी है. इस पूरे अध्ययन के दौरान शोधकर्ता बस यही देखते रहे कि क्या अभिभावक अपने उन साथियों की अपेक्षा ज्यादा परेशान हैं? लेकिन अध्ययन के किसी भी मोड़ पर सर्वेक्षण करने वाले दल को यह नहीं लगा कि संतान का आगमन विवाहित दंपत्ति को मानसिक या शारीरिक थकान या किसी भी प्रकार की परेशानी में डालता है.

अमेरिका और कनाडा के अभिभावकों पर हुए इस सर्वेक्षण द्वारा यह बात पूरी तरह गलत साबित कर दी गई है कि संतान का आगमन माता-पिता के लिए किसी परेशानी से कम नहीं है. अन्य सह-लेखक सोंजा ल्यूबॉरमिस्की का मानना है कि अगर आप अपने बच्चों के साथ रहते हैं और उम्र के एक परिपक्व पड़ाव पर हैं तो आप अपने उन साथियों से कहीं ज्यादा खुशहाल रहेंगे जिनके बच्चे नहीं हैं. सिंगल पैरेंट या युवावस्था में माता-पिता बन जाना एक अपवाद हो सकता है.

शोधकर्ताओं का तो यह भी कहना है कि महिलाओं से ज्यादा पुरुष अपने बच्चे के आगमन को लेकर उत्साहित रहते हैं और उसके आने के बाद वह अपने उन दोस्तों से ज्यादा खुशहाल रहते हैं जिनके बच्चे नहीं हैं.

इस अध्ययन को अगर हम भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखें तो पाश्चात्य देशों की तुलना में भारतीय परिवारों में रिश्तों का महत्व कहीं अधिक है. यही कारण है कि भारतीय परिवार में संतान की उत्पत्ति के साथ ही खुशहाली का आगमन भी होता है. माता-पिता बनना किसी भी विवाहित जोड़े के लिए एक बेहद अनमोल क्षण होता है और उसे किसी परेशानी का नाम नहीं दिया जा सकता. संबंधों की मजबूत नींव पर खड़े भारतीय समाज में संतान ही परिवार का भविष्य निर्धारित करती है. माता-पिता अपने बच्चे की खुशियों के लिए अपनी सभी जरूरतों तक को न्यौछावर कर देते हैं और उन्हें इसका जरा भी संकोच नहीं होता. बच्चे की देखभाल करते हुए अगर वह एक-दूसरे के साथ समय व्यतीत नहीं कर पाते तो भी वह भावनात्मक तौर पर बेहद संतुष्ट महसूस करते हैं. वैसे भी बच्चे के साथ उनके कई सपने और अरमान जुड़े होते हैं इसीलिए वह अपने बच्चे के पालन-पोषण में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

उपरोक्त चर्चा और सर्वेक्षण के मद्देनजर एक बात तो प्रमाणित हो ही जाती है कि अभिभावक चाहे किसी भी समाज या देश के क्यों ना हों अपने बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारियां और भावनाएं समान रहती हैं.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:34 PM   #24
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

अनजान उग्रवादी अंकल, स्वीकार करो तुम नमस्कार !
लिख रहे आंसुओ से चिट्ठी, मत करना इसका तिरस्कार !
ख़बरें पढ़ते हैं रोज आज, हत-आहत इतने प्राण हुए !
इतनी माताओ के आँचल, किस कारन से वीरान हुए !
.
झर रहे नयन निर्झर जैसे, माँ को देखा छिपकर रोते !
क्यों खेल मरण का खेल रहे, क्यों बीज पाप का तुम बोते !
पापा अपने हमको प्यारे, भोली मम्मी भी प्यारी है !
प्यारे सब मित्र-पडोसी हैं, गुडिया भी अपनी प्यारी है !
.
सलमा, नीलम, सोनी, पिंकी, छोटू, अप्पू, गप्पू, सोनू !
हम साथ खेलते थे मिलकर, हँसता था नन्हा सा मोनू !
कुछ दिन पहले सब साथ बैठ, खाते थे मौज मानते थे !
पापा की उंगली पकड़ साथ, बाज़ार घूमने जाते थे !
.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:38 PM   #25
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

सुख-चैन छीन हम बच्चो का, क्या तुम्हे मिलेगा बतलाओ !
सूनी आँखों में नीर देख, क्या पाओगे तुम दिखलाओ !
क्यों त्रास दे रहे हो हमको, हम कहाँ गलत हैं समझाओ !
हम को अनाथ कर देने से, जो स्वर्ग मिले तो बतलाओ !
.
हम ख़ुशी-ख़ुशी अपनी गर्दन, स्वेच्छा से अर्पित कर देंगे !
इससे ही हो कल्याण अगर, हम प्राण समर्पित कर देंगे !
धोती वाले, टोपी वाले, अंकल जब पहले आते थे !
टाफी बिस्कुट मीठे-मीठे, भरपूर खिलौने लाते थे !
.
हँसते थे खूब हंसाते थे, गाते थे और बजाते थे !
चुटकुले सुनाते जब हमको, हम लोटपोट हो जाते थे !
मम्मी जब डांट पिलाती थी, फ़रियाद सुनाते थे उनको !
आते-जाते जो मिल जाएँ, घर तक पहुँचाते थे हमको !
.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:39 PM   #26
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

लेकिन अब जब भी आते हैं, जाने की जल्दी रहती है !
सहमी उनकी आँखें जाने क्या मौन भाव से कहती हैं !
रह-रह होंठों पर जीभ फेर, चुप-चुप उदास से रहते हैं !
पापा संग घर में बैठ अलग, जाने क्या बातें करते हैं !
.
अब राहों में जब मिलते हैं, मुंह लेते फेर देख हमको !
रोने-रोने को मन करता, पर हम पी जाते हैं गम को !
लम्बी-पतली गोरी-चिट्टी, दीदी की एक सहेली थी !
जब भी वह घर पर आती थी, बुझवाती एक पहेली थी !
.
उसकी मम्मी भी कभी-कभी, उसके संग आती थी घर पर !
चूड़ी-टिकुली-नथिया पहने, पल्लू डाले रहती सर पर !
जब भी आती थी हमें उठा, बांहों में खूब झूलाती थी !
सर को, गालों को, होठों को, वह चूम-चूम दुलराती थी !
.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:41 PM   #27
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

कितने ही दिन जब बीत गए, पूछा तब दीदी से हमने !
अब किस कारण वह कम आती, कुछ कहा-सुना है क्या तुमने ?
इतना सुनते ही दीदी की, आँखों से अश्रु लगे झरने !
चुपचाप फेर मुंह पड़ी रही, दांतों से भींच अधर अपने !
.
कुछ अच्छा-अच्छा लगता था, पहले जब संध्या होती थी !
रातों में नीलपरी आकर, आँखों में सपने बोती थी !
जब सुबह नींद खुल जाती थी, सूरज के गोले का बढ़ना !
छत पर से देखा करते थे, धीरे-धीरे ऊपर चढ़ना !
.
खोंते से बाहर निकल उच्च स्वर में गौरैया गाती थी !
अपने वह बच्चों की खातिर, दाने चुन-चुन कर लाती थी !
सब लोग विहंसते थे पहले, उल्लसित भाव से भरे-भरे !
अब अजब मुर्दनी छाई है, चेहरे लगते हैं मरे-मरे !
.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:41 PM   #28
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

खिड़की-दरवाजे बंद पड़े, गलियां दिखती हैं सूनसान !
निर्जन सड़कें लगती ऐसी, जैसे हो कोई बियाबान !
गुमसुम उदास सब बैठे हैं, अपनी आँखों में भर पानी !
हर कोई लगता अपराधी, मुख पर छाई है वीरानी !
.
संध्या होते ही माँ हमको, घर के भीतर कर देती है !
मुखड़े पर रूखे भाव लिए, सूखी रोटी धर देती है !
जिद करते बहार जाने की, जड़ देती चांटा गालो पर !
सौ बार फेकती है लानत, सुख-चैन लूटने वालों पर !
.
ऊंचे स्वर में जब रोते हैं चौके से मम्मी आती है !
चुप की मुद्रा में होठों पर, ऊंगली रख हमें डराती है !
अब तुम्ही उग्रवादी अंकल, देना जवाब इन बातों का !
आँखों-आँखों में काटी जो, काली अंधियारी रातों का !
.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:42 PM   #29
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

कुछ पुत्र तुम्हारे भी होंगें, हम जैसे ही भोले-भाले !
क्या उन बच्चों के मुख पर भी, तुम बंद किया करते ताले !
हम साथ बैठ कर खेलेंगे, घर उन्हें हमारे ले आओ !
या चलो वही पर चलते हैं, घर अपना हमको दिखलाओ !
.
किस कारन खून बहते हो, वह लिख कर हमको बतलाना !
जब बड़े बनेंगे हम आकर, वह चीज हमीं से ले जाना !
हीरा-मोती, सोना-चांदी, जो भी चाहोगे दे देंगे !
पर आज खेलने-पढ़ने दो, उस दिन जो चाहो ले देंगे !
.
इतनी सी विनती है अंकल, आशा है इसे मान लोगे !
वह हंसी हमारे अधरों की, लौटेगी अगर ध्यान दोगे !
हम तुमसे कुट्टी कर लेंगे, जो बात नहीं मानी सुन लो !
अथवा जीने दो ख़ुशी-ख़ुशी, दो में से एक तुम्ही चुन लो !
.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 01-03-2013, 07:44 PM   #30
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कलियां और कांटे

यह भी स्वीकार नहीं हो तो, थोड़े दिन और ठहर जाओ !
कुछ और बड़े हो जाएँ हम, फिर खेल मृत्यु का दिखलाओ !
हम आज अनल के कण छोटे, कल ध्वजा हमारी फहरेगी !
तुम लहू बहाने वालों पर, विकराल काल बन घहरेगी !
.
जो खींच रहे तम का परदा, रख देंगे उसे चीर कर हम !
मत समझो बिलकुल भोले हैं, मन से निकल दो तुम यह भ्रम !
देना जवाब चिट्ठी का तुम, अब पत्र बंद हम करते हैं !
बिन पढ़े फ़ेंक मत दो इससे, ज्यादा लिखने से डरते हैं !
.
फिर समय मिला तो और पत्र, हम लिखकर तुमको भेजेंगे !
इसको इतना ही रहने दो, उत्तर आया तो देखेंगे !


(अंतर्जाल के पिटारे से)
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:29 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.