12-01-2015, 04:40 PM | #21 |
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Re: प्रेम ... समय
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
12-01-2015, 04:49 PM | #22 |
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Re: प्रेम ... समय
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12-01-2015, 04:49 PM | #23 |
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Re: प्रेम ... समय
तुम्हें कैसे पता चलता है कि कोई सचमुच तुम्हें प्रेम करता है?
ओशो, फ्रॉम डैथ टु डैथलैसनेस से लिया गया
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12-01-2015, 04:50 PM | #24 |
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Re: प्रेम ... समय
आदमी के व्यक्तित्व के तीन तल हैं: उसका शरीर विज्ञान, उसका शरीर, उसका मनोविज्ञान, उसका मन और उसका अंतरतम या शाश्वत आत्मा। प्रेम इन तीनों तलों पर हो सकता है लेकिन उसकी गुणवत्ताएं अलग होंगी। शरीर के तल पर वह मात्र कामुकता होती है। तुम भले ही उसे प्रेम कहो क्योंकि शब्द प्रेम काव्यात्म लगता है, सुंदर लगता है। लेकिन निन्यानबे प्रतिशत लोग उनके सैक्स को प्रेम कहते हैं। सैक्स जैविक है, शारीरिक है। तुम्हारी केमिस्ट्री, तुम्हारे हार्मोन, सभी भौतिक तत्व उसमें संलग्न हैं। तुम एक स्त्री या एक पुरुष के प्रेम में पड़ते हो, क्या तुम सही-सही बता सकते हो कि इस स्त्री ने तुम्हें क्यों आकर्षित किया? निश्चय ही तुम उसकी आत्मा नहीं देख सकते, तुमने अभी तक अपनी आत्मा को ही नहीं देखा है। तुम उसका मनोविज्ञान भी नहीं देख सकते क्योंकि किसी का मन पढ़ना आसान काम नहीं है। तो तुमने इस स्त्री में क्या देखा? तुम्हारे शरीर विज्ञान में, तुम्हारे हार्मोन में कुछ ऐसा है जो इस स्त्री के शरीर विज्ञान की ओर, उसके हार्मोन की ओर, उसकी केमिस्ट्री की ओर आकर्षित हुआ है। यह प्रेम प्रसंग नहीं है, यह रासायनिक प्रसंग है।जरा सोचो, जिस स्त्री के प्रेम में तुम हो वह यदि डाक्टर के पास जाकर अपना सैक्स बदलवा ले और मूछें और दाढ़ी ऊगाने लगे तो क्या तब भी तुम इससे प्रेम करोगे? कुछ भी नहीं बदला, सिर्फ केमिस्ट्री, सिर्फ हार्मोन। फिर तुम्हारा प्रेम कहां गया?
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12-01-2015, 04:50 PM | #25 |
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Re: प्रेम ... समय
सिर्फ एक प्रतिशत लोग थोड़ी गहरी समझ रखते हैं। कवि, चित्रकार, संगीतकार, नर्तक या गायक के पास एक संवेदनशीलता होती है जो शरीर के पार देख सकती है। वे मन की, हृदय की सुंदरताओं को महसूस कर सकते हैं क्योंकि वे खुद उस तल पर जीते हैं।
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12-01-2015, 04:50 PM | #26 |
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Re: प्रेम ... समय
इसे एक बुनियादी नियम की तरह याद रखो: तुम जहां भी रहते हो उसके पार नहीं देख सकते। यदि तुम अपने शरीर में जीते हो, स्वयं को सिर्फ शरीर मानते हो तो तुम सिर्फ किसी के शरीर की ओर आकर्षित होओगे। यह प्रेम का शारीरिक तल है। लेकिन संगीतज्ञ , चित्रकार, कवि एक अलग तल पर जीता है। वह सोचता नहीं, वह महसूस करता है। और चूंकि वह हृदय में जीता है वह दूसरे व्यक्ति का हृदय महसूस कर सकता है। सामान्यतया इसे ही प्रेम कहते हैं। यह विरल है। मैं कह रहा हूं शायद केवल एक प्रतिशत, कभी-कभार।
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12-01-2015, 04:50 PM | #27 |
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Re: प्रेम ... समय
दूसरे तल पर बहुत लोग क्यों नहीं पहुंच पा रहे हैं जबकि वह अत्यंत सुंदर है? लेकिन एक समस्या है: जो बहुत सुंदर है वह बहुत नाजुक भी है। वह हार्डवेयर नहीं है, वह अति नाजुक शीशे से बना है। और एक बार शीशा गिरा और टूटा तो इसे वापिस जोड़ने का कोई उपाय नहीं होता। लोग इतने गहरे जुड़ना नहीं चाहते कि वे प्रेम की नाजुक पर्तों तक पहुंचें, क्योंकि उस तल पर प्रेम अपरिसीम सुंदर होता है लेकिन उतना ही तेजी से बदलता भी है।
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12-01-2015, 04:51 PM | #28 |
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Re: प्रेम ... समय
भावनाएं पत्थर नहीं होतीं, वे गुलाब के फूलों की भांति होती हैं। इससे तो प्लास्टिक का फूल लाना बेहतर है क्योंकि वह हमेशा रहेगा, और रोज तुम उसे नहला सकते हो और वह ताजा रहेगा। तुम उस पर जरा सी फ्रेंच सुगंध छिड़क सकते हो। यदि उसका रंग उड़ जाए तो तुम उसे पुन: रंग सकते हो। प्लास्टिक दुनिया की सबसे अविनाशी चीजों में एक है। वह स्थिर है, स्थायी है; इसीलिए लोग शारीरिक तल पर रुक जाते हैं। वह सतही है लेकिन स्थिर है।
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12-01-2015, 04:51 PM | #29 |
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Re: प्रेम ... समय
कवि, कलाकार लगभग हर दिन प्रेम में पड़ते रहते हैं। उनका प्रेम गुलाब के फूल की तरह होता है। जब तक होता है तब तक इतना सुगंधित होता है, इतना जीवंत, हवाओं में, बारिश में सूरज की रोशनी में नाचता हुआ, अपने सौंदर्य की घोषणा करता हुआ, लेकिन शाम होते-होते वह मुरझा जाएगा, और उसे रोकने के लिए तुम कुछ नहीं कर सकते। हृदय का गहरा प्रेम हवा की तरह होता है जो तुम्हारे कमरे में आती है; वह अपनी ताज़गी, अपनी शीतलता लाती है, और बाद में विदा हो जाती है। तुम उसे अपनी मुट्ठी में बांध नहीं सकते।
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12-01-2015, 04:51 PM | #30 |
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Re: प्रेम ... समय
बहुत कम लोग इतने साहसिक होते हैं कि क्षण-क्षण जीएं, जीवन को बदलते रहें। इसलिए उन्होंने ऐसा प्रेम करने का सोचा है जिस पर वे निर्भर रह सकते हैं। मैं नहीं जानता तुम किस प्रकार का प्रेम जानते हो, शायद पहले किस्म का, शायद दूसरे किस्म का। और तुम भयभीत हो कि अगर तुम अपने अंतरतम में पहुंचो तो तुम्हारे प्रेम का क्या होगा? निश्चय ही वह खो जाएगा लेकिन तुम कुछ नहीं खोओगे। एक नए किस्म का प्रेम उभरेगा जो कि लाखों में एकाध व्यक्ति के भीतर उभरता है। उस प्रेम को केवल प्रेमपूर्णता कहा जा सकता है।
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