My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 11-09-2013, 07:54 PM   #21
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

स्कूल से मेरी छुट्टी पहले हो जाया करती थी, घर आकर मैं इधर-उधर टहलता... उस समय घर में कोई नहीं होता था, मैं थोड़ी ही देर में कपडे बदलकर छत पर चले जाया करता... हर मिनट नज़र घर के सामने की सड़क पर चली जाती थी, वहां तक देखने की जी तोड़ कोशिश करता जहाँ तक देख सकूं... ये मेरा हर रोज का रूटीन था... हर शाम मेरी उन छोटी आखों में ढेर सारा इंतज़ार होता था... अजीब बात है न, जबकि पता था कि माँ साढ़े चार बजे से पहले नहीं आएगी.. फिर भी इसी उम्मीद में रहता था कि काश आज थोडा पहले देख लूं उन्हें... बहुत गहरा उतर चुका था वो इंतज़ार... आज १७-१८ साल बाद ज़िन्दगी बहुत आगे निकल आई है... साल भर से ज्यादा होने को आये हैं उन्हें देखे हुए... ऐसा पहली बार हुआ है जब इतने दिनों तक माँ-पापा से नहीं मिला... हालांकि उनसे मिलकर भी उनसे ऐसी कुछ ख़ास बातें नहीं होती हैं... बस एक सुकून सा मिलता है... कलैंडर की तरफ देखता हूँ तो अभी भी दिवाली में एक महीना बाकी है...:-/

***********************
सुबह बाहर गहरा कोहरा था, सड़क पर सूखे पत्ते ओस की बूंदों से लिपटे ठिठुर रहे थे... मैंने खिड़की से झाँका तो देखा, सुबह सुबह कचरे उठाने वालों के अलावा कोई नहीं था... ऐसा लगा उनकी ज़िन्दगी की शेल्फ के हिस्से यूँ ही सड़कों पर खुले रखे हैं... वो बाहर अपना काम कर रहे हैं वो भी ऐसे मौसम में जब अपनी रजाई से निकलकर एक ग्लास पानी पीने के लिए भी मुझे सौ बार सोचना पड़ा था... घडी की तरफ देखा तो ७ बज चुके थे, दफ्तर तो १० बजे निकलना है ये सोच कर वापस रजाई में दुबक गया.. लेकिन नींद आखों के पैमाने से छलक कर कहीं दूर जा चुकी थी... मैं खुद में बहुत छोटा महसूस कर रहा था... ज़िन्दगी के कैनवास पर कई रंग छिड़क चुके हैं लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कोई अधूरापन ज़रूर है मुझे पसंद नहीं आता.. कभी कभी ये आईडीयलिस्ट वाली फिल्में देखकर और नोबेल पढ़ के दिमाग दूसरी काल्पनिक सतहों पर काम करने लगता है... फिर उस समय मैं जो सब कुछ सोचता हूँ, कहता हूँ, लिखता हूँ उसे मेरे सभी दोस्त और जाननेवाले एक सिरे से खारिज कर दिया करते हैं... ये सब बातें उन्हें बकवास लगती हैं... फिर थोड़ी देर बाद उस कल्पनिद्रा से बाहर आने पर मुझे भी एहसास होता है शायद कुछ चीजें वास्तविक नहीं हो सकतीं...

************************
याद है जब कल सुबह मैं तुमसे मिला था, हमने एक साथ बैठ के कितनी ढेर सारी बातें की... तुम्हें अपने उस सपने के बारे में भी बताया जिसमे तुम्हारे नहीं होने के कारण मैं कितना बेचैन हो गया था... अभी अभी थोड़ी देर पहले मुझे एहसास हुआ कि तुम्हारा यूँ मेरे साथ बैठना एक सपना था और तुम्हारी गैरमौजूदगी एक हकीकत.. सच ही तो है कभी-कभी सपने और हकीकत में फर्क करना कितना मुश्किल हो जाता है...

************************
ये दूरियों का गणित है, दूरियां ग़मों से, दूरियां उस बेचैनी से, दूरियां हर उस चीज से जो तुम्हें इस खूबसूरत दुनिया की नजदीकियों का एहसास करने से रोक लेती हैं हर एक बार... जब ठंडी हवा के हलके हलके थपेड़े तुम्हारे होंठों की मुस्कराहट बनना चाहते हैं, जब ये हलकी हलकी बारिश उन आखों की नमी को छुपाने की कोशिश करती नज़र आती है, जब कभी कभी तुम्हारा दिल भी एक मुट्ठी आसमान मांगता है... इस गणित से आज़ाद होकर चलो वहां, जहाँ एक उड़ान तुम्हारा इंतज़ार कर रही है...

************************
जब हम खुद को अपने आप से आज़ाद कर लेते हैं तो सुकून के ऐसे दौर में पहुँचते हैं जहाँ उस महीन सी आवाज़ को भी सुन लेते हैं जब ओस की बूँदें घास से टकराती हैं...इन आवाजों से मैं तुम्हें भी रूबरू कराना चाहता हूँ... ये ऐसी जगह है जहाँ कुछ भी सही नहीं, कुछ भी गलत नहीं बस एक लापरवाह सी आजादी है...

************************
मेरे एक हिन्दू मित्र ने मुझसे पुछा था कि मैं भगवान् को क्यूँ नहीं मानता...????
मैंने उससे बस इतना ही पूछा क्या तुम अल्लाह, ईसा या नानक को मानते हो... कभी मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ी है, या कभी चर्च में जाकर प्रेयर में शामिल हुए हो ????

मैं भगवान् के इस वर्गीकरण को नहीं मानता.... भगवान् अगर मन में है तो उसका एक रूप होना चाहिए.... भगवान् का अस्तित्व मन से बाहर निकालकर मंदिर, मस्जिद या और किसी इमारत में बसाने का विरोध मैं करता आया हूँ और हमेशा करता रहूँगा....
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 12-09-2013, 07:43 PM   #22
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

शादी को हुए दो महीने हो चुके हैं . आज मोहतरमा ड्यूटी पर हैं और मैं छुट्टी के इस एक दिन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चहलकदमी करता हुआ, कुछ कुछ ऊंघता सा, कुछ सुस्ताता सा, कुछ कुछ लिखने का मन बनाता सा.....

पिछले बरस की गर्मियों के दिन याद हो आये।. जब हमारी अपनी शादी की तमाम कशमकशों के मध्य भी हम अपने मिलने वाले क्षणों में सुख की अनुभूति कर लिया करते थे।.

वे अंतहीन प्रयत्नों के दिन थे।. शादी तब हमें निश्चय ही हमारे जीवन की तमाम मंजिलों में से एक मंजिल नज़र आती थी।. हमारे अपने प्यार को पा लेने की मंजिल। उन तमाम प्रयत्नों में बस यही खोजा जाता कि कहीं कोई सूत्र जाकर हमारी मंजिल तक जाकर मिले।. हर वह संभव कोशिश की जाती कि हमारे अपने हमारे प्यार को समझें और हमारी शादी करा दें।.

उन तमाम दुआओं, इच्छाओं और आर्शीवाद का असर एक बरस हो आने के बाद दिखता महसूस होने लगा।. हमारी अपने खुदाओं से विश्वास की डोर और भी मजबूती से बँधती चली गयी. और फिर उन तमाम दुःख भरी तपती दोपहरों और रोती रातों के बाद शीतलता भरी बारिशों के दिन आये. उस ईश्वर की कृपा हम पर बरसी और बरसती चली गयी।. हमारे अपने हमें एक करने के लिए मान गए।.

फिर एकाएक विवाह की तारीख का तय होना और फिर तमाम रस्मों--रिवाज़ के मध्य दिन कैसे बीतते चले गए, सच में पता ही नहीं चला. और हमारा विवाह हो गया।.

अब जब कि बीते दिनों को याद करता हूँ तो वे एक--एक करके मेरे लवों पर मुस्कान ला देते हैं।. या मेरे मौला हम पर अपनी कृपा बनाये रखना....
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2013, 08:26 PM   #23
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

होंठ उसके जब भी लपकता हूं, गर्दन से गुज़रता हूं
इरादे दरकने लगते हैं, लहू बहकने लगते हैं।
मन जैसा कैसा ऊपर नीचे को होने लगता है।

दिल होता है किसी चील की माफिक चोंच में दबा कर उसे
उड़ जाऊं, इफरात समय निकाल, नितांत अकेलेपन में शिकार करूं
नस नस चटका दूं उसकी, अपनी रीढ़ की हड्डियां तोडूं

नहीं ही पूरा हो पता पक्षियों का सा ये ख्वाब तो
गली के मुहाने पर झपट्टा मार कर पकड़ लेता हूं उसे
निचले होंठ को अपने दांतों से महीन महीन कुतर देता हूं
दोनों गालों पर अनार उगा देता हूं
किसी दुख का बदला लेता हूं
जाने कैसी संगति है मेरी, कैसा मनोविज्ञान है
बिछड़ने से पहले कर डालो सब तकलीफ कम रहा करेगी
वह कहती -
एक मिनट रूको, जाना तो है घर ही वापस
बस ज़रा लिपस्टिक लगा लूं

/एक मिनट का अंतराल, जिसमें-
बारी बारी से ऊपरी और निचले होंठ पर लिपस्टिक फिसलता है (मन होता मेरा मैं ही अपने होंठों से वो लाली मिला दूं)/

क्षण भर में बदल जाती वो
मैं नहीं बदल पाया सदियों में

हर पल में लगती वो खींचती हुई
टूटता नहीं कभी ये भोर का-सा जादू!
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2013, 08:29 PM   #24
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

क्या करूँ, लिख दूं रोमांटिक सा कुछ !!! जबकि ये भी पता है कि तुम्हें भी उतनी ही बेसब्री से इंतज़ार रहता है... इंतज़ार किसी ऐसे लफ्ज़ का जो तार छेड़ जाए तुम्हारे दिल का... जानती हो इन दिनों एक सपना फिर देखने लगी हैं आखें... क्या कहूं, जाने दो.. इतना दिलनशीं सपना कागज़ पर उतारने का दिल नहीं कर रहा... किसी धुली हुए फ्रेश सी सुबह में मेरी आँखों में झाँक लेना... दिख जाएगा झांकता हुआ, वैसे उस ख्वाब को भी देखनी है तुम्हारी शक्ल, कमबख्त धुंधला दिखाता है तुम्हें...

ये रात है, सुबह है या फिर शाम... पता नहीं क्या है, जो भी है कुछ तो होगा ही... ज़िन्दगी के कई किनारों पे आकर खो सा जाता हूँ.... पर कितना भी उलझा रहूँ इन लहरों के बहाव में, तुम्हारे क़दमों के निशां मेरी ज़िन्दगी पे साफ़ दिखते हैं... तुमने तो मेरी ज़िन्दगी में रंग ही रंग बिखेर कर रख दिए... और मैं जाहिल, समेट ही नहीं पा रहा... सारी रंगीनियाँ देखता रहता हूँ... एक-टक... एक एहसान करोगी मुझपर ?? मैं ग़र कहीं भटक गया तुम्हें ढूँढ़ते-ढूँढ़ते तो मुझे बस इतना याद दिला देना कि ये रंग ही मेरी ज़िन्दगी हुआ करते थे कभी...

कभी सोचा नहीं था कि मेरी एक गुज़ारिश का लिहाफ़ तुमपर इतना फबेगा... मेरी ज़िन्दगी के पन्नों पर तुम्हारे क़दमों की चहलकदमी ने इसे इसे एक स्वप्न बाग़ सरीखा बना दिया है, जहाँ चारो तरफ गुलाबी-नीले-पीले फूलों की खुशबुएं तैरती रहती हैं... तुम्हारे साथ बीती हर शाम ज़िन्दगी में खुशनुमा एहसास के मोती पिरोती जा रही है... देखते ही देखते कितना वक़्त साथ गुज़र गया, बीती बातें किसी ख्वाब की तरह लगती हैं, एक खूबसूरत सा ख्वाब जिसे हमदोनों ने साथ साथ जीया है...

जब तुम मेरे पास होती ये वक़्त ठहर क्यूँ नहीं जाया करता... मैं बस तुम्हें ताउम्र देखते रहना चाहता हूँ, क्या इतनी सी ख्वाईश भी वाज़िब नहीं है... मेरी शामें आजकल खाली ही गुज़र जाती हैं, तेरी एक झलक पा लेने की चाहत करना किसी पहाड़ी मंदिर पर चढ़ने जैसा मुश्किल हो गया है...

मैं अचानक से जम्प लगा देना चाहता हूँ, उस सुबह के आँगन में जब तुम्हें अपनी बाहों में भर के फिर दो कप चाय बना लाऊंगा... तुम्हारे हाथों की लकीरों को निहारते हुए उसपर अपनी ज़िन्दगी की पटरियों को बढ़ते देखूँगा... लेकिन कमबख्त ये वक़्त की दीवार है न, जम्प ही नहीं लगाने देती... वो दिन आएगा न !!! कभी-कभी डर भी तो बहुत लगता है...


उछाली थी जो तस्वीर तुम्हारी,आसमां की तरफ कभी मैंने,
जिद्दी थी तुम्हारी ही तरह,
तभी तो वक़्त बेवक्त दिख जाती है, आसमां में भी वो मुझे,
एक नन्ही सी बदली की तरह ....
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2013, 10:08 PM   #25
Dr.Shree Vijay
Exclusive Member
 
Dr.Shree Vijay's Avatar
 
Join Date: Jul 2013
Location: Pune (Maharashtra)
Posts: 9,467
Rep Power: 117
Dr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond reputeDr.Shree Vijay has a reputation beyond repute
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....



गीली यादो के सूखें पल.....................


__________________


*** Dr.Shri Vijay Ji ***

ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे:

.........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :.........


Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread.



Dr.Shree Vijay is offline   Reply With Quote
Old 19-09-2013, 08:08 PM   #26
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

तुम तो धुमुस जानते हो न. अरे वही जिसको धुरमुस कहते हैं. एक लोहे का छोटा सा वृत्त होता है, बेहद भारी, एक ओखल जैसे मोटे लकड़ी का सिरा होता है. इसे बार बार ज़मीन पर पटकते हैं जिससे मिटटी अच्छे से जम जाए. इससे मिटटी का लेवल भी बराबर करते हैं. कोंच कोंच कर भरते हैं जैसे शीशे के मर्तबान में कुछ.

तुम वैसे ही बसे हो न मन में. मिट्टी के कण के बीच हवा भर की जगह न हो जैसे. बहुत छोटा सा होता है दिल. कितने कितने दिन लम्हे लम्हे करके इसी तरह बसाती गयी हूँ तुम्हें दिल में. सख्त फर्श है अब बिलकुल. इसमें किसी पौध की रोपनी नहीं की जा सकती है. तुम्हारे खो जाने जैसा ही शोर होता है धुरमुस का. धम धम बजता है बारिश वाली शामों में. इतनी बारिश में गंगा किनारे तोड़ कर बही है. घर में घुस आये पानी को निकालने के बाद उसमें बहुत सारी मिट्टी गिराई गयी है. सुबह से मजदूर लगे हुए हैं. हर आवाज़ के साथ तुम्हारा नाम गहरे धंसता जाता है मिट्टी में. इसी कबर में तुम्हारे नाम के सारे ख़त डाल देती हूँ. अगली साल बारिश में फिर बहा देगी गंगा तुम्हें. मिटा देगी तुम्हारा नाम. ये क्या है कि मेरे तुम्हारे बीच बहती है. तुम एक नाव लेकर मेरे पार क्यूँ नहीं आ जाते?

तुम कहीं भी तो नहीं हो. गंगा में नहीं. बारिश में नहीं. धुरमुस यूँ भी अब कौन इस्तेमाल करता है. फिर मैं कहीं का कोई इंस्ट्रुमेंटल संगीत सुनते हुए तुम्हारी याद में कहाँ डूबने लगती हूँ. मेरे छोटे छोटे टुकड़े करता जाता है संगीत और पार्सल कर देता है. गंगा किनारे मांसखोर मछलियों को खिला देने के लिए. मेरा कोई टुकड़ा तुम्हारे हाथ कभी नहीं लगता. तुम मान भी तो लेते हो कि मैं मर गयी हूँ.

तुम तो मुझसे कभी मिले भी नहीं हो. तुम्हें मालूम है मेरी आँखों का रंग कैसा है?
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 19-09-2013, 08:08 PM   #27
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

हर शहर की अपनी गंध होती है. गंगा किनारे उफनते लाल पानी को देखते हुए. घुटने घुटने पानी के वापस लौट जाने के बाद शहर में बसती जाती है गंध. मुंबई में गेटवे के पास चुप सर पटकते समंदर की होती है एक गंध. नमक मिले पानी और आंसू में बहते हुए सपनों की मिलीजुली गंध. समंदर में विसर्जित अनगिन आत्माओं की गंध. समंदर से वापस लौटते हर रास्ते का पीछा करती है समंदर की गंध. वक़्त का एक सिरा पकड़ कर मैंने सोचा था तुम्हारा एक लम्हा अपने नाम लिखवा सकूंगी. इंतज़ार के कदमों वापस लौटता है शहर और 'सॉरी' का एक छोटा सा चिट थमाता है मुझे. पुराने पत्थरों में तुम्हारे टूटे वादों जैसा कुछ लिखा हुआ दिखता है. बहुत मुश्किल है इस भागते शहर से एक लम्हा चुरा पाना.

तुम्हें मालूम है मेरे पास तुम्हारी कोई तस्वीर नहीं है. याद का कोई टुकड़ा. स्पर्श का कोई लम्हा नहीं जो फ्रेम करके लगा सकूँ. जब तुम चले जाते हो तो मुझे यकीन नहीं होता कि तुम कभी थे भी. तुम्हारे नाम का टैटू बनवाने की इच्छा है. रूह का तो क्या है, जिस्म को तो याद रहे कि कभी छुआ था तुमने मुझे. 'you touched me here' कलाई में जहाँ दिल का तड़पना महसूस होता है वहीं.

बारिश धो देती है तुम्हारी खुशबू. छाता खो जाता है लोकल ट्रेन मैं. तुम्हारी साँसों में बसने लगा है अजनबी शहर. मेरे आने से उस शहर में खुलने लगती है किताबों की एक आलसी लाइब्रेरी जहाँ लोग फुर्सत में लिखते हैं अपने महबूब को ख़त. तुम वहां हर शाम रिजर्वेशन करवाते हो मगर ठीक आठ बजे तुम्हारी एक मीटिंग अटक जाती है सुई पर और तुम्हारा क्लाइंट तुम्हें समझाता है किन जिंदगी में प्रमोशन मुहब्बत से ज्यादा जरूरी क्यूँ है. यूँ कि इश्क तो ऐरे गैरे गरीब को भी हो जाता है मगर मिसाल की बात पर लोगों को ताजमहल याद आता है. जब तक तुम इस काबिल न हो जाओ कि कम से कम दो लाख की कीमती अंगूठी खरीद कर महबूबा को न दे सको, इश्क के नाम को कलंकित ही करोगे. तुम्हें बरगलाना इतना आसान है तो मैं क्यूँ नहीं बरगला पाती कभी?

हालाँकि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे कभी होने का कोई सबूत नहीं रह जाता. फिर भी जानते तो हो न कि मैं प्यार करती हूँ तुमसे?
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 19-09-2013, 08:09 PM   #28
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

नहीं. मुझे तुम्हारे ख़त कभी नहीं मिले. इसलिए कि तुमने कभी लिखे ही नहीं मुझे. हाँ. मैंने लिखे थे तुम्हें बहुत सारे ख़त. हाँ मैं थोड़ी पागल हूँ तुम्हारे बारे में. यु नो हाउ वुमेन आर. उनकी छठी इन्द्रिय होती है ऐसी ही. माँ की होती है. प्रेमिका की भी होती है. बीवी की होती है. मेरी क्यूँ है लेकिन? मैं तुम्हारी कुछ भी तो नहीं लगती. तुम्हारा ख्याल रखने को पूरी दुनिया के लोग हैं मगर तुम्हें तकलीफ होती है तो मेरी रातों की नींद क्यूँ उड़ती है?

तुम्हें लगा तुमने मुझे ख़त लिखे हैं? तुम्हें कभी ये लगा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ? सब कुछ लगेगा तुम्हें कमबख्त...सर्दी लगेगी, गर्मी लगेगी मगर ये नहीं लगेगा कि मुझे तुम्हारी बातें लग जाती हैं. तुम दिल्ली छोड़ कर चले क्यूँ नहीं जाते? दुनिया के इतने सारे शहर हैं, कभी इटली में जा के रहो न...वैसे टिम्बकटू भी अच्छी जगह है. कहीं चले जाओ जहाँ का पता मुझे मालूम न हो. वो लाल डब्बा मुझे देख कर ऐसे मुंह चिढ़ाता है कि दिल करता है पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दूं.

मालूम, तुमसे मिल कर बहुत साल बाद किसी को चिट्ठियां लिखने का दिल किया था. सुनो, तुम्हें क्यूँ लगता है कि मैं तुम्हें समझती हूँ? कितना वक़्त ही बिताया है तुमने मेरे साथ...इतने देर में लोगों को प्यार नहीं, धोखा होता है बस. तब जब कि मुझे यकीन हो जाना चाहिए था किन समन्दरों के शहर वाले लोग किसी गाँव में लंगर नहीं डालते मैं तुम्हारे लिए डॉकिंग स्टेशन बनवा रही हूँ. मुसाफिर सही, कभी दिन के एक घंटे रुकने को जी किया तो इधर नेरुदा की कवितायेँ हैं, दिलफरेब तसवीरें हैं जो मैंने ग्रीस के किसी द्वीप पर उतारीं थीं, कुछ तुम्हारी पसंद के लोग भी हैं...अँधेरे वाले लाईटबल्ब हैं. काली रौशनी वाले रोशनदान हैं.

And he hugs me like I am made of glass...and so tightly that I shatter...into dust and get imbibed in his blood...a fragment of me sparkles into his eyes...the last light of a dying star.

सोचा तो ये था कि विदा कह रही हूँ तुम्हें. लगता ऐसा है जैसे सी यू टुमारो कहा है.


आई नो, यू लव मी टू. इट हर्ट्स. बट नेवरमाइंड.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 21-09-2013, 06:53 PM   #29
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

घुंघराले बाल थे उसके गुड़िया जैसे. एकदम काले. वो हमेशा बालों में बहुत सारे क्लिप लगा के रखती थी कि संवारे से दिखें. हलकी भूरी आँखें थी उसकी. बिल्ली जैसी. बहुत प्यारी दिखती थी. दूध सा गोरा रंग. दुबली पतली. बहुत नजाकत थी उसमें. बोलती भी एकदम मद्धम थी. पढ़ने में थोड़ी कमजोर थी बस. क्लास की एक आम सी लड़की थी. मेरी उससे कोई ख़ास दोस्ती न दुश्मनी. बस ये सब उस दिन बदल गया जिस दिन मालूम चला तुम्हें वो पसंद है.

अब मुझे उसकी कोई बात भली न लगती. दिल ही दिल में उसे चुड़ैल जैसे विशेषणों से भी नवाज़ा होगा मैंने इस बात पर भी मुझे यकीन है. उसे कभी किसी हेल्प की जरूरत होती तो मेरा हरगिज़ उसकी मदद करने का मन नहीं करता. कभी गेम्स में उसके शूलेसेस खुले रहते तो मैं कभी उसे बताती नहीं. मुझे हरगिज़ समझ नहीं आता कि तुम्हें वो क्यूँ पसंद आई, मैं क्यूँ नहीं. बस उस दिन के बाद से आईने ने मुझसे कोई भी बात करनी बंद कर दी. वो कितना भी कहे कि मैं खूबसूरत हूँ, मेरी खूबसूरती का पैमाना एक भूरी आँखों और घुंघराले बालों वाली लड़की ने तय कर रखा था. मेरे छोटे छोटे बॉबकट बाल और गहरी काली आँखें एकदम साधारण थीं. इनसे किसी को क्यूँ प्यार हो भला.

वो प्यार जताने के दिन नहीं थे. न उलाहना देने के. न पूछने के कि तुम्हें वो क्यूँ अच्छी लगती है, मैं क्यूँ नहीं. तुम्हें इतना भर भी कहाँ बताया था कि तुम मुझे अच्छे लगते हो. तुम उन दिनों मुझे बिलकुल पसंद नहीं करते थे. जाने अनजाने तुमने मेरा बहुत दिल दुखाया. उस वक़्त कोई था भी नहीं बताने वाला कि दर्द ताउम्र नहीं रहता है, न पहला प्यार. तुमसे प्यार करना कितना जरूरी था आज दो दशक बाद समझती हूँ.

मुझे कभी यकीन नहीं होता कि किसी को मुझसे भी प्यार हो सकता है. मगर था वो एक लड़का. लम्बा, गोरा, हलकी भूरी आँखों वाला...उसने कहा कि वो मुझसे प्यार करता है. उस दिन आइना देखा तो आइना एकदम बड़बोला हो गया था. बार बार बताता कि मैं बेहद खूबसूरत हूँ. कोई मुझसे प्यार करता है. टेंथ के एक्जाम ख़त्म हो चुके थे. उस लड़की से फिर कभी मिलना नहीं हुआ. आज भी मगर इन्टरनेट पे हज़ार दोस्त हैं. मैं उसे कभी एक्सेप्ट नहीं कर पायी.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 21-09-2013, 06:54 PM   #30
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

पहली बार जाना था उसके बारे में तो तुम सामने थे. तुम्हें गले लगाते हुए मुस्कुरायी थी मैं. तुम्हारी मुस्कराहट से कैसे ज़ख्म भरते हैं जाना था पहली बार. तुम खुश थे. बहुत खुश. मैं उसे कभी नहीं देखना चाहती थी मगर देखा उस रोज़, तुम्हारे साथ...तुम उसके साथ खुश थे. मेरे लिए ये कितना जरूरी था उस वक़्त मालूम हुआ. अपनी जान किसी और के हाथों सौंप देना और दुआ का कासा खुदा के यहाँ से वापस मांग लेना जाना था उस दिन.

तुम्हारी शादी को कितना वक़्त हुआ फिर मैंने कभी नहीं गिना. तुम्हारी एक दुनिया थी जिसमें मैं कभी गलती से भी नहीं जाना चाहती थी. मुझे यकीन था तुम खुश होगे. कई बार सोचा कि एक बार फोन कर के पूछ लूं कैसे हो तुम. जितनी बार दिल ने कहा कि उसे महसूस हो रहा है तुम खुश नहीं हो मैंने दिल को जोरों से झिड़क दिया...मैं अपनी नेगेटिव इनर्जी और उलटपुलट सोच से तुम्हारे जिंदगी में कोई बुरी चीज़ नहीं लाना चाहती थी. कभी कभी कुछ चाहते रहो तो हो भी जाती है वो चीज़.

एक दिन अचानक अपनी पसंदीदा कैफे में देखा उसे. बड़े प्यार से गले मिली वो. मुझे अचरज हुआ कि उससे मिल कर बहुत अच्छा लगा. कुछ वैसा कि जिस चीज़ से तुम इतना प्यार करते हो वो मुझे पसंद न हो ऐसा कैसे हो सकता है. वो कुछ कुछ तुम जैसी ही तो थी. उसके गले मिल कर लगा तुम से ही मिल रही हूँ. सोल्मेट्स ऐसे ही होते हैं न. मुझे महसूस हुआ वो तुम्हारे लिए ही बनी थी. ये कुछ वैसा ही था जैसे शादी के बाद मैं बदलने लगी हूँ, बहुत सी चीज़ें जो पहले बर्दाश्त नहीं होती थीं, अब अच्छी लगने लगी हैं.

उसकी मुस्कुराती आँखें देखीं तो उनमें तुम नज़र आये. उसके काँधे पर तुम्हारे आफ्टरशेव की खुशबू थी हलकी सी. शादी के बाद मियां बीवी कुछ कुछ एक दूसरे के जैसे हो जाते हैं न. वो हंसती है तुम्हारे जैसे. खुश होती है तो तुम्हारी याद आती है. मुझसे उसपर बहुत प्यार उमड़ा. वो मेरी कोइ बहुत अपनी लगी मुझे. अपनी दुश्मन नहीं अपनी दोस्त लगी. तुम हमेशा से उसके थे.

उस दिन ये भी महसूस हुआ कि उसने मेरी जगह नहीं ली है. मेरी जगह कोई और ही है और वैसी ही महफूज़ है. वो मुझे बता रही थी कि जैसे तुम्हें मेरे बारे में सारी बातें वो ही बताती रहती है क्यूंकि तुम तो इन्टरनेट और फेसबुक पर आओगे नहीं. उसने बताया कि मैं आज भी बहुत खूबसूरत हिस्सा हूँ तुम्हारी जिंदगी का. उसने ये भी बताया कि तुमने उससे कहा था कि तुम्हारा और मेरा कोई पिछले जन्म का रिश्ता सा है. मैं समझदार हो गयी हूँ कि मेरा प्यार उदार हो गया है?

-आज शाम-
बाकी सब चल जाएगा, लेकिन सुनो, उसे स्वीटहार्ट मत बुलाया करो...अभी भी दुखता है कहीं ज़ख्म कोई
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 01:59 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.