10-02-2013, 08:03 AM | #21 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
अनुराधा बख्शी, दिल्ली
गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों और उनके परिवारों की शिक्षा और जीवन सुधार को अपना लक्ष्य बनाने वाली अनुराधा का सपना ‘प्रोजेक्ट व्हाय’ शुरू करके पूरा हुआ। आज उनके इस संगठन ने लम्बा रास्ता तय कर लिया है।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 10-02-2013 at 08:07 AM. |
10-02-2013, 08:06 AM | #22 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
संकल्प के सहारे सच हुआ सपना
शिक्षा आज हर किसी के लिए जरूरी बनती जा रही है, पर फुटपाथ पर रहने वाले जिन गरीब बच्चों को तो एक समय का खाना भी नसीब होता वे बच्चे पढ़ाई के लिए क्या कदम उठा पाएंगे। पर इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उन बच्चों में भविष्य को देख उनको ऊंचा उठाने की हर कोशिश में लग जाते हैं। इनमें से एक हैं अनुराधा बख्शी जिनका यह सपना 2000 में तब पूरा हुआ जब उन्होंने ‘प्रोजेक्ट व्हाय’ शुरू किया। उनकी इस संस्था ने गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों और उनके परिवारों की शिक्षा और जीवन सुधार को अपना लक्ष्य बनाया। शुरुआत बहुत थोड़े बच्चों, कुछ वालंटियर्स के साथ हुई और पब्लिक पार्क, फुटपाथ, कचरे के ढेर जैसी जगहों से होते हुए दिल्ली आधारित इस संगठन ने एक लम्बा रास्ता तय किया। तमाम बाधाओं को पार करते हुए वह स्कूल को गरीब बस्तियों तक ले गई। उन्होंने नई दिल्ली के गोविंदपुरी और आसपास की बस्तियों के करीब 8 हजार बच्चों को शिक्षा देने का संकल्प लिया और उन्हें इज्जत के साथ जीना सिखाया। आज यह प्रोजेक्ट गोविंदपुरी की एक साधारण संकरी गलियों में से एक में बड़ी बिल्डिंग से चल रहा है। इस संस्था द्वारा प्राइमरी और सेकेन्डरी लेवल की एजुकेशन, कम्प्यूटर ट्रेनिंग और शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए खास क्लासेस और महिलाओं के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग की व्यवस्था की गई है। समाज में जितने भी सवाल खडेþ होते हैं उनके जवाब में अनुराधा का ‘प्रोजेक्ट व्हाय’ हल के रूप में सामने खड़ा मिलता है। जब कुछ लोग उनके प्रयासों को खारिज करते हुए कहते हैं कि यह बच्चे गटर में रहते हैं और कभी पास नहीं हो सकते, उन बच्चों के लिए अनुराधा एक नया एजुकेशन मॉडल लेकर आई है जिसने स्कूल ड्रॉपआउट की संख्या कम की है और इन बच्चों को मेरिट में आने के काबिल बनाया है। उन्होंने एक 30 वर्षीय मानसिक रूप से अस्वस्थ युवा मनु के जीवन को सुधारने के लिए प्रयास किए थे, जो कि कचरे के ढेर पर अपनी जिंदगी गुजार रहे थे और इसी से उन्हें ‘प्रोजेक्ट व्हाय’ की प्रेरणा मिली। मनु ‘प्रोजेक्ट व्हाय’ की पहली सक्सेस स्टोरी थी। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत उन्होंने बच्चों के दिल के आपरेशन, उन्हें माता-पिता के अत्याचारों से बचाने और एक साल के उत्पल को जो बहुत अधिक जल गया था, मौत के मुंह से खींच लाने जैसे बडे काम भी कर दिखाए हैं। यह प्रोजेक्ट सभी के लिए एक छांव की तरह है लेकिन इस छांव के इंतजाम के लिए फंड जुटाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। वह इस प्रोजेक्ट के जरिए जो कुछ भी फाइनेंशियल मदद जुटा पाती है वह उन पाठकों की मदद से आती है जो उनका ब्लॉग पढ़ते हैं। इसमें ज्यादातर विदेशी ही हैं।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
13-02-2013, 09:36 PM | #23 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
इस ज़बरदस्त सूत्र को प्रारम्भ करने के किये आपको धन्यवाद भी देना चाहता हूँ, अलैक जी, और बधाई भी. हमारे आस पास बहुत से ऐसे काम किये जा रहे हैं जो सामान्य दिखने वाले लोगों द्वारा छोटे स्तर पर शुरू किये गए लेकिन जिनमे समाज को बदलने की तीव्र इच्छाशक्ति और क्षमता परिलक्षित होती है. चाहे आप अप्पन समाचार की बात करें, चाहे झारखंड के सुभाष गयाली का ज़िक्र करें, या डॉ.अच्युत सामंत द्वारा जारी काम का विचार करें, इन सभी ने अपने अपने तौर पर समाज को जागरूक करने का और दबे हुए, अशिक्षित तबकों का व अभावग्रस्त लोगों के जीवन में आशा की नयी किरण लाने का महत्वपूर्ण काम किया है. इनके साथ ही, इंजी. योगेश्वर द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के निमित्त तीन दशकों के कार्य तथा अनुराधा बख्शी का 'प्रोजेक्ट व्हाई' निस्संदेह प्रशंसा तथा सामाजिक व सरकारी सपोर्ट के योग्य पात्र हैं. चीन का अनोखा स्कूल (हम एक / हमारा एक ), न्यू जर्सी के टॉम स्ज़ाकी और अपने तैराक शरत गायकवाड़ भी अपने अपने तरीके से नयी ज़मीन खोज रहे है. जैसा आपने कहा, इन सभी व्यक्तियों का कार्य देख कर आश्चर्य से हम दांतों तले उंगली दबाने पर विवश है. इन सभी कार्यों और इनके पीछे की विभूतियों को हमारा ह्रदय से अभिनन्दन व नमन. अखबारों की नकारात्मक ख़बरों में दिखाई देने वाला भारत इन शक्तिशाली विभूतियों की आभा और कृतित्व में आज नहीं तो कल ज़रूर बदलेगा.
|
17-02-2013, 01:52 PM | #24 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
ग्रेस निर्मला, आंध्र प्रदेश
(ग्रेस चित्र में सबसे बाएं) सालों से चली आ रही कुप्रथाओं के खिलाफ खड़ा होने के लिए बहुत साहस और आत्मबल की जरूरत होती है। ऐसे में ग्रेस निर्मला ने लड़कियों को ‘जोगिनी’ बनने पर मजबूर करने वाली कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और जीत भी दर्ज की।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
17-02-2013, 01:54 PM | #25 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
कुप्रथा के खिलाफ ‘ग्रेस’ ने जीती जंग
अंजली, तिरूपथम्मा और ऐसी ही कई लड़कियों की अंधेरी जिंदगी में ग्रेस निर्मला एक आशा की किरण बनकर आई। आंध्रप्रदेश की रहने वाली निर्मला तेलंगाना में उन किशोरियों को बचा रही हैं जिनके जीवन में जोगिनी बनना तय था। उन्होंने इन लड़कियों को स्वयं द्वारा वर्ष 1993 में स्थापित एक वॉलिन्टियरी संगठन ‘आश्रय’ में पनाह दी। दरअसल आंध प्रदेश में दलित लड़कियों को जोगिनी बना कर देवता या देवी को समर्पित कर दिया जाता है और फिर गांव के उच्च जाति के या प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा उनका यौन शोषण किया जाता हैं। हालांकि सदियों पुरानी यह पराम्परा कानूनन अपराध है लेकिन फिर भी इसे जड़ से खत्म करने के लिए अभी बहुत प्रयासों की जरूरत है। ग्रेम द्वारा चलाया गया ‘आश्रय’ संगठन आंध्रप्रदेश के नौ जिलों में बेहतरीन काम कर रहा है। ‘आश्रय’ के जरिए दबी-कुचली महिलाओं को इस योग्य बनाया गया कि वह एक साथ इकट्ठा होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद कर सक ती हैं। ग्रेस एक गृहिणी थी और वर्ष 1990 में पार्ट-टाइम पढ़ाने का काम करती थी। उन्हें अपने पति निलैय्या से जोगिनियों की दुर्दशा के बारे में पता चला था क्योंकि उनके पति निजामाबाद जिले में जोगिनियों की आर्थिक स्थिति पर रिसर्च कर चुके थे। यह सुन कर ग्रेस ने तुरंत मन बना लिया कि उन्हें इन लड़कियों के उद्धार के लिए कुछ करना है। उन्होंने बताया कि उन्हें जोगिनियों के लिए उत्कोर गांव से काम करना शुरू किया तो देखा कि ईश्वर में उनकी आस्था और अंधविश्वास बहुत पक्का है। उन्होने सबसे पहले उस गांव में एक रहवासी स्कूल चलाने की शुरुआत की। पति के समर्थन से वह परिवार सहित महबूबनगर आ गई और यहां उन्होंने अपने बच्चों को बाकी दलित बच्चों साथ पढ़ाया। उन्होंने अपने बच्चों की तरह बाकी बच्चों को भी पाला-पोसा। जब उन्हें शिक्षित किया तो उनकी काउंसलिंग की और उन्हें प्रेरित किया कि वह जोगिनी बनने से इंकार करें। शुरुआत में यह बहुत ही कठिन था क्योंकि न तो लड़कियां और न ही उनके माता-पिता उनको गम्भीरता से लेते थे। चाहे वह बुरी ही क्यों न हो या अंधविश्वास पर आधारित ही क्यों न हो, लेकिन लम्बे से चली आ रही पराम्परा के विरोध में खड़ा होना पहाड़ को लांघने जितना ही कठिन काम था। फिर भी वह अपने निश्चय पर दृढ़ थी। वह महबूबनगर में दलित महिलाओं की एक वर्कशॉप में जोगिनी हाजम्मा से मिली। इसी के साथ वह जोगिनी लक्ष्म्मा, देवेंद्रम्मा, पापम्मा और क्षितिम्मा के संपर्क में आई और उन्होंने इस सभी का एक कोर ग्रुप बनाया। इस सभी ने आगे आने का साहस इसलिए जुटाया ताकि वह दूसरी लड़कियों को जोगिनी बनने से और उस अपमान को सहने से बचा सकें जिसे अब तक वह सहती आई हैं। उन्होंने आवाज उठाई और वे सफल हुई।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
17-02-2013, 02:08 PM | #26 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
डॉ. सरोजिनी कुलश्रेष्ठ, नोएडा
फूल में फिसलन बहुत पर मन बहकता है, शूल में पीड़ा अधिक पर मन महकता है। इन्हीं पंक्तियों से मिलता-जुलता है डॉ. सरोजिनी का जीवन। जिन्होंने वैवाहिक जीवन टूटने के दर्द को जिंदगी जीने का हौसला बना लिया। 90 की उम्र में भी उन्होंने साहित्य सृजन का सिलसिला बरकरार रखा है।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
17-02-2013, 02:08 PM | #27 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
निजी दर्द को बनाया नारी सशक्तीकरण का हथियार
जीवन की ऊंची-नीची डगर पर हादसों को हौंसले की तरह इस्तेमाल करने वाले दुनिया में बिरले ही होते हैं। वैसे अगर कुछ ऐसी ही बात यदि किसी महिला के लिए कही जाए तो निश्चय ही कम से कम उस शख्सियत के लिए तो सम्मान और बढ़ जाता है। कुछ ऐसी ही हैं 90 वर्षीय डॉ. सरोजिनी कुलश्रेष्ठ। उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन की टूटन के दर्द को ही नारी सशक्तीकरण का हथियार बना लिया। एक शिक्षिका तौर पर उन्होंने अपनी कई शिष्याओं को जीने का मकसद दिया। नोएडा सेक्टर-40 निवासी डॉ. कुलश्रेष्ठ की कलम इस उम्र में भी बेबाकी से महिलाओं को सशक्त होने का हौंसला भरती है। सरोजिनी बचपन से ही लेखन के प्रति समर्पित रहीं और आठ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने बच्चों के लिए एक कविता लिखी। फिर उन्होंने बच्चों के लिए 11 किताबें लिखी। इनमें कविताओं-कहानियों के साथ ही लोरी और प्रभातियां भी हैं। उनका विचार है कि नारी हमेशा ही स्वीकार करने और झुकने के लिए नहीं है, उसमें गलत का प्रतिकार करने का उद्गार भी है। काव्य शंकुतला इसका प्रमाण है। उनको साहित्य से जुड़ी विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं से 30 पुरस्कार और उपाधियां मिली है। इनमें विदुषी रत्न सम्मान, अखिल भारतीय ब्रज साहित्य संगम से वर्ष 1984, बाल कवियित्री सम्मान, राष्ट्रीय भाषा आचार्य सम्मान, देवपुत्र गौरव जैसे सम्मान मिले हैं। 17 वर्ष की उम्र में उनका विवाह डॉ. धर्मानंद के साथ हो गया था। पति को पढ़ने का शौक था और वह उन्हें भी प्रोत्साहित करते रहे। पति आगरा में मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे थे और वह मेरठ के डिग्री कॉलेज में स्नातक कर रही थीं। वर्ष 1942 में उन्हें पता चला कि वह गर्भवती है, जीवन में नव अंकुर के आने की आहट से उनका मन प्रफुल्लित हो उठा, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके पति ने आगरा में दूसरी शादी कर ली। इस मुश्किल घड़ी में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई जारी रखी। वर्ष 1951 बीए, एमए और पीएचडी के बाद उन्हें रघुनाथ गर्ल्स डिग्री कॉलेज मेरठ में हिंदी प्रवक्ता का पद मिल गया। एकाकी अभिभावक रहकर भी बेटी साधना को सवर्गुण सम्पन्न और सशक्त बनाया। महिला को सबला बनने का सबक मेरठ से उनका स्थानांतरण अजमेर के सावित्री गर्ल्स कॉलेज हिंदी विभागाध्यक्ष के तौर पर हुआ और फिर वह वर्ष 1957 में मथुरा के किशोरी रमण महाविद्यालय में प्राचार्य के पद रहीं। यहां 26 वर्ष तक सेवाएं देने के दौरान उन्होंने अपनी छात्राओं में हिम्मत और हौसले का बीज बोया। उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि उनकी पढ़ाई हुई कई शिष्याएं अच्छे पदों और बड़े मुकाम पर हैं।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
17-02-2013, 02:30 PM | #28 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
मोलोय घोष, दिल्ली
बहुत से लोगों के पास गुजरे जमाने के एलपी रिकॉडर्स और कैसेट्स आज भी हैं जिनमें कई महत्वपूर्ण धुनें और गाने हैं। संगीत से प्यार करने वाले मोलोय घोष ने इसी काम को एक बढ़िया प्रोफेशन के तौर पर देखा और अपना लिया। वह जब बीमारी से उठे तो उन्होंने संगीत के प्रति अपने प्यार को ही प्रोफेशन में बदल दिया।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
17-02-2013, 02:31 PM | #29 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
पुराने संगीत को सहेजने के प्रयास
लोग अपने पैशन को अपने प्रोफेशन में कैसे बदल सकते है इसका सबसे बड़ा उदाहरण मोलोय घोष हैं। दिल्ली के रहने वाले मोलोय आज एलपी रिकॉडर्स और आडियो कैसेट्स को सीडी और पेन ड्राइव में डिजिटल फॉर्म में सहेजने में संगीत प्रेमियों की मदद कर रहे हैं। वह बताते हैं कि वह अब तक करीब एक हजार एलपी और करीब 1500 आडियो कैसेट्स को सीडी में कन्वर्ट कर चुके हैं। उनकी योजना है कि वह आल इंडिया रेडियो और संगीत संग्रहालय व विश्व भारती कोलकाता जैसी संस्थाओं के साथ काम करें और भारत के प्राचीन संगीत को सहेजने में हाथ बटाएं। वह म्यूजिक क म्पनियों के साथ भी जुड़ना चाहते हैं। वह कहते हैं कि अगर हमें अपने देश का संगीत सहेजना है तो हमें एक अच्छा संग्रह बनाना चाहिए। उनका बचपन कोलकाता में बीता और वहां भक्ति संगीत में गहरी रूचि हो गई लेकिन जब 15 साल के हइए तो उन्हें गले का इंफे शन हुआ और डॉक्टर ने गाने से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने राह बदली और एमआईटी, मणिपाल में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। पर यहां आकर भी संगीत से खुद को दूर नहीं किया। जब पिता का ट्रांसफर दिल्ली हुआ तो उन्होंने एक मार्केटिंग का जॉब कर लिया। 2008 में लगातार यात्रा और मेहनत के कारण हेपेटाइटिस बी हो गया और उन्हें छह महीने के लिए बिस्तर पकड़ लिया। डॉक्टर की हिदायत थी कि अब वह फील्ड में नहीं जाएंगे। वह बताते हैं कि उनकी पत्नी चंद्राणी ने उन्हें यह नया काम शुरू करने और म्यूजिक में राह खोजने की सलाह दी। मोलोय ने तब कॉलोनी के बच्चों को रवींद्र संगीत सिखाना शुरू किया। वह छात्रों को बंगाली काव्य गीत भी सिखाने लगे। इस सिलसिले में उन्हें अपने प्रिय कृष्णा चट्टोपाध्याय के एलपी रिकॉर्ड्स सुनना होते थे। एक बार जब ग्रामोफोन खराब हो गया तो वह एक म्यूजिक शॉप पर गए और उन्होंने चट्टोपाध्याय की सीडी मांगी। वह यह सुनकर अचंभित रह गए कि उनकी कोई सीडी बाजार में नहीं थी। और बस यहीं से उनकी संगीत यात्रा की शुरुआत हुई। पहले पहल तो उन्होंने अपने आसपास तलाश किया कि कहीं कोई ऐसी शॉप हो जहां एलपी को सीडी में कन्वर्ट किया जा सके। जब ऐसी कोई जगह नहीं मिली तो यह काम खुद करने का विचार किया। उन्होंने अपनी सारी सेविंग खर्च करके अमेरिका से एक सॉफ्टवेयर खरीदा। वह एलपी को डिजिटल फॉर्म में कन्वर्ट ही नहीं करना चाहते थे बल्कि उससे आने वाली घर्र-घर्र की आवाज को भी दूर करना चाहते थे और साफ ओरिजनल वॉइस पाना चाहते थे और उन्होंने वह कर दिखाया। कुछ ही समय में संगीतप्रेमी उनके काम से खुश हुए और फिर उनके पास दूर-दूर से और भी लोग आने लगे। अब संगीत उनकी पहचान बन चुका है।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
30-03-2013, 04:11 AM | #30 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
नैल क्लार्क वारेन, सिडनी
एक ऐसी वेबसाइट जिसमें सॉफ्टवेयर लोगों की पसंद-नापसंद के आंकड़ों का आकलन करके उन्हें उन लोगों की प्रोफाइल ही दिखाता है, जिनकी पसंद आपस में मिलती है।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
Bookmarks |
|
|