31-10-2010, 11:03 PM | #21 | |
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दिमाग को ख़तरा नहीं, अगर सरदार मोना हो लीवर को ख़तरा नहीं, यदि दवा बराबर दारू लें sms का ख़तरा नहीं, जब तीन के बाद सोना हो
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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31-10-2010, 11:13 PM | #22 |
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मुझे वह सर्द रात याद है जब तुम मेरे सपनों में आयीं
नयी नयी दुल्हन की तरह शर्माते हुए मेरी बाहों में समायीं मैंने चूमे तुम्हारे रक्तिम कपोल और दोनों गुलाबी अधर सहलाने चाहे तुम्हारे केश, तो हीटर से 'जय' उंगलियाँ जलायीं
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31-10-2010, 11:20 PM | #23 |
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मेरा जन्म दिन मनाईये , शौक से ऐ दुश्मनों !
आखिर मेरी ज़िन्दगी से एक साल कम हुआ है / खुश हो लो 'जय' , शोहरत से मेरी जलने वालों आखिर तुम्हारे नाम से गुमनाम कम हुआ है //
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31-10-2010, 11:28 PM | #24 | |
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जब दोस्त ही दोस्त हों महफ़िल में सिर्फ . हुआ दोस्त जिसका हमारे जैसा... फिर उसे दुश्मनों की क्या कमी है? दादा, प्रणाम.
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31-10-2010, 11:41 PM | #25 |
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राम राम बीरबल जी / दिन दूना रात चौगुना तरक्की करो !! दीपावली का अवसर है अतः अब रात में भी अपना कारखाना चलाया करो .... तभी तो तरक्की मिलेगी // " वो हथियार ले के चल पड़े, हमारी मौत के लिए / मेरा दोस्त मर मिटा, 'जय' अपने दोस्त के लिए //"
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31-10-2010, 11:48 PM | #26 | |
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मेरी किस्मत में गम गर इतना था दिल भी या रब कई दिए होते
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31-10-2010, 11:57 PM | #27 | |
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हृदय गदगद हो गया / धन्यवाद / "तुम हमारे स्वप्न में आते हो, तो बस मुस्कुराते हो / क्या गूंगे हो तुम ? नहीं तो मौन क्यों बन जाते हो //"
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01-11-2010, 12:03 AM | #28 | |
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धन्यवाद दादा. यह सोच कर हम आये, तेरे गुलशन में माही वो फूलों से चेहरे गुलाबों में मिल गए
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01-11-2010, 12:09 AM | #29 | |
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हमने अपनी बाजू को क्यों देखा ही नहीं // 'जय' जिनसे कह रहे थे तुम्हे ढूंढ कर लायें तुम थे उन्ही के पीछे, हमने देखा ही नहीं //
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01-11-2010, 12:10 AM | #30 |
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जान लेनी ही थी तो कह दिया होता मुस्कराने की क्या जरूरत थी
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