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22-05-2012, 06:36 PM | #1 |
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Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
आपने दोनों देशों के 'राजनीतिक रास्ते' अलग क्यों हुए, यह बखूबी स्पष्ट कर दिया ! अब मुझे लगता है कि दोनों ओर के राजनीतिक नेतृत्व पर भी आप कुछ रोशनी डालें तो अच्छा रहेगा !
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17-05-2012, 12:01 AM | #2 |
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Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
आप साफ़ देख सकते हैं कि पाकिस्तान के हर हुक्मरान के सर पर वहां की सेना की तलवार हमेशा लटकी रहती है ! यह किसी देश में मुमकिन नहीं है कि मिलिट्री चीफ देश के जनता द्वारा चुने हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के खिलाफ सरेआम बयानबाजी करे और वे केवल खींसे निपोर कर रह जाएं, लेकिन पाकिस्तान में यह बिलकुल मुमकिन है ! आप वहां के अखबार नियमित देखें तो आपको सहज स्पष्ट हो जाएगा कि सेना प्रमुख और आईएसआई चीफ लगातार सरकार को धमकाते रहते हैं और उनका यह अनापेक्षित दबाव शासक को सर झुका कर स्वीकार भी करना पड़ता है ! कैसे बनी पाकिस्तानी सेना इतनी शक्तिशाली, अब हम इस पर विचार करेंगे !
दोनों देशों के निजाम के फर्क पर विचार करेंगे, तो स्पष्ट हो जाएगा कि भारत में शासन ने नौकरशाही को ताकतवर बना कर उसके जरिए सेना को नियंत्रित किया, जबकि पाकिस्तान में सेना ने नौकरशाही के जरिए शासन को नियंत्रित किया ! विरासत में दोनों देशों को सैन्य बालों का कमांडर इन चीफ मिला था ! भारत ने पहले दिन से ही यह पद ख़त्म कर तीनों सेनाओं के अलग प्रमुख बना दिए, और उनका नेतृत्व राष्ट्रपति के जिम्मे कर दिया, लेकिन पाकिस्तान में याहया खान के शासनकाल तक यह व्यवस्था कायम रही ! इसके बाद भी वहां अब तक बार-बार इस कांसेप्ट की बात होती रही है अर्थात छुपे रूप में सेना की आकांक्षा अब भी सर्वोच्च बने रहने की है ! एक अन्य कारण की ओर देखें, तो भारत में हुए भूमि सुधारों की भी इसमें एक बड़ी भूमिका रही है, जो पाकिस्तान में नहीं हुआ ! जैसा कि मैंने अपनी एक पूर्व प्रविष्ठि में कहा है, पंजाब पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिस्सा है, बल्कि कहिए कि अब पंजाब ही पाकिस्तान है, और मिलिट्री, ब्यूरोक्रेसी और राजनेताओं की सबसे बड़ी जमात इसी इलाके से है ! अंग्रेजों की नीति समाज के ताकतवर हिस्से को अपनी ओर मिलाने की थी. अतः वह सारी भर्तियां सुविधा संपन्न तबके से करते थे ! दलित तबके को तो कभी भी और कैसे भी कुचला जा सकता है ! ज़ाहिर है, इस वर्ग से भर्तियां स्वतंत्र भारत में नहीं हुईं ! भूमि सुधार के कारण भारत में जमींदार तबका समाप्त हो चुका था और इसकी वज़ह से सेना में मध्य और निम्न वर्ग से लोग आए, लेकिन पाकिस्तान में इसके उलट भूमि सुधार हुए ही नहीं, ये तबके लगातार मजबूत बने रहे और सेना ही नहीं, प्रशासन के तमाम हलकों में भर्तियां उच्च वर्ग से जारी रहीं, जिनका आपसी गठजोड़ मैं अपनी एक पूर्व प्रविष्ठि में स्पष्ट कर चुका हूं ! इसका एक और बड़ा कारण एक पूर्व प्रविष्ठि में स्पष्ट हो चुका है कि आज़ाद भारत के हिस्से जो भूभाग आया, वह प्रशासनिक दृष्टि से पूरी तरह रेग्यूलेट इलाका था, अतः यहां न्याय, विधि, कर संग्रह, प्रशासन और नौकरशाही जैसी तमाम इकाइयां अंग्रेजों ने विकेन्द्रीकृत की हुई थीं यानी ये सारे अधिकार या व्यवस्था यहां विभिन्न हाथों में बंटी हुई थी, जिसने लोकतांत्रिक राह पर चलने में भारत की मदद की; इसके विपरीत पाकिस्तान संयुक्त भारत के जिन हिस्सों से बना, वह अंग्रेजों की दृष्टि से नॉन रेग्यूलेट थे और इस वज़ह से ब्रिटिश शासकों ने उन इलाकों में सारी प्रशासनिक शक्ति केंद्रीकृत कर रखी थी अर्थात तानाशाही रवैया उन इलाकों के लोगों की आदत बन चुका था अथवा खून में था, जिसने बाद में भी रंग दिखाया ! सेना के लगातार मज़बूत होते जाने का एक अन्य बड़ा कारण शुरू में ही कश्मीर को लेकर युद्ध हो जाना रहा, जिसने वहां की राजनीति ही नहीं, सेना को भी एक बहाना दे दिया, जिसके बल पर वह निरंतर शक्ति संचित कर बलशाली होती गई !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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