26-11-2010, 05:17 PM | #21 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
यह काल संभव है ५०००-४००० BC . इस समय परिवार का जन्म हो चुका था और परिवार अब पुरुषप्रधान होने लगे थे | यह एक कुछ दिन पूर्व हुआ बदलाव ही था | संपत्ति अभी भी सामूहिक होती थी और संपत्ति का अर्थ धन नहीं गाय (पशु ) था, yahi कारण है की गाँव ( आबादी के समूह का पहला स्तर ) को संस्कृत ( उस समय की भाषा) में इसे ग्राम कहा गया | सबसे रोचक बात पुनः यह की उस समय ग्राम स्थायी नहीं होते थे, अर्थात ये आज के जैसे गाँव नहीं अपितु कारवां होते थे | जब दो ग्राम ( अर्थात कारवाँ) चलते चलते एक दुसरे के पास आते थे तो उनमें एक दुसरे की गायें लेने के लिए झगडे होते थे | इसका प्रमाण??? संस्कृत का शब्द देखिये संग्राम अर्थात युद्ध !!! लेकिन इसका देवताओं की sankalpana से क्या सम्बन्ध? सम्बन्ध है | मैं थोडा आप sabhi के मन में तब का चित्र खीचना चाहता हूँ, एक ऐसा काल जहां अपनी जमीन नहीं है, परिवार हैं किन्तु अभी उनमें स्थायित्व नहीं आया, मनोरंजन का साधन नहीं है | rigved का तीसरा मंडल तब के बारे में जानकारी देता है की देवताओं के तीन समूह होते हैं | भूमि, आकाश, ध्योस | पहले और दुसरे के बारे में बताने की aavashyakta नहीं है किन्तु ये तीसरा समूह रोचक है | ध्योस का अर्थ होता है क्षितिज पर स्थित अर्थात जिनकी स्थिति स्पष्ट नहीं है | इस समय तक अग्नि,इंद्र,वरुण आकाशीय देवता थे और विष्णु ध्योस में स्थित हैं | इंद्र को पुंडरिक कहा गया है |जिसका शाब्दिक अर्थ है बादलों में रहने वाला | हम सभी जानते हैं की इंद्र बारिश के देवता मने जाते हैं ( याद करें कृष्ण और गिरिराज पर्वत कांड ) और अपने पशुओं के लिए चारा खोजते मनुष्यों के लिए बारिश का देवता ही सबसे महत्वपूर्ण होगा | करेक्ट ? जितनी वर्षा! उतना चारा, उतने ही अधिक पशु और अधिक पशु का अर्थ है अधिक धन या लक्ष्मी | कृषि भी होने लगी थी और कृषि भी वर्षा पर निर्भर करती थी जिस कारण इंद्र का बोलबाला बना रहा | ऋग्वेद इस समय इंद्र के बारे में दो बातें kai बार कहता है; १- लक्ष्मी इंद्र की पत्नी है | २- इंद्र ने उषा देवी का बलात्कार किया | अब इस बलात्कार वाली बात का क्या अर्थ है ये मैं नहीं समझ पाया किन्तु लक्ष्मी इंद्र की पत्नी है ये पॉइंट नोट करने लायक है | जो बारिश दे सकता है वही धन ला सकता है | १००० BC के आसपास व्यापार बढ़ने लगा था, और व्यापार वर्षा पर नहीं चतुराई और काफी हद तक युक्तियों पर निर्भर करता है जिसके देवता हैं विष्णु | नतीजा समुद्र मंथन, गिरिराज कांड और ऐसी ही काफी युक्तियों के बाद लक्ष्मी विष्णु की पत्नी हो गयी | अब तक मानव सभ्यता बहुत अधिक विकसित हो गयी थी और पुराने सारे इतिहास को छिपाना अनिवार्य था | नतीजा विष्णु के काफी अवतार बताये गए उन्हें अच्छी तरह से स्थापित किया गया और रामायण अस्तित्व में आई | रामायण उस काल के लिए एक आदर्श था, रामायण में एक आदर्श राजा था जिसने अपने पिता के लिए वनवास झेला, एक आदर्श भाई था जो अपने भाई के साथ वन चला गया वो भी शादी के तुरंत बाद , एक आदर्श पत्नी थी जिसने अपने पति की हर बात मानी | ये ऐसे मूल्य थे जो उस समय के लोग चाहते थे जिस कारण से वो स्थापित हुए और लोगों से अपेक्षा की गयी की रोज इसे पढ़ें | अभी तक जो भी मैंने लिखा वो सिर्फ ऋग्वेद के तथ्य हैं, अब इससे मेरा निष्कर्ष : प्राचीन पूर्वज बेहद तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे, वो वैज्ञानिक थे, उन्होंने अपनी जरुरत देखि और उसको पूरा करने के उपाय निकाले | जब एक जरुरत समाप्त हो गयी तो उन्होंने उस उपाय को अगली जरुरत के अनुसार ढाल लिया | यह प्रक्रिया संवत १००८ तक चलती रही | १००८ में सायण ने सरे धार्मिक साहित्य का संकलन करके उसे सम्पादित करके उस रूप में रखा जिसे आज हम बुक स्टालों पर रखा पाते हैं और जिसे हम वास्तव में धर्म समझ लेते हैं किन्तु यह हमारा सौभाग्य था की सायण के समय में पुरातत्व उतना विकसित नहीं था और अब १९६० के बाद हुए उत्खनन से हम पुराने वेदों और पुरानों के वास्तविक वर्जन पढ़ सकते हैं और उन्हें एक दुसरे से तुलना करके अपनी समझ बढ़ा सकते हैं | अभी किसी ने दुसरे धर्मों में भी भेद होने की बात कही | सही है ये, उदाहरण के लिए बौद्ध और जैन धर्म ही ले लेते हैं | जैन धर्म में विभाजन का रोचक कारण है; प्राचीन काल में अकाल पड़ा और जैन भिक्षुओं का एक दल दक्षिण में चला गया | अब जो जैन यहाँ उत्तर में रह गए उन्होंने स्वाभाविक कारणवश अपने नियोम में शिथिलता बरती | अब अकाल में jaan भी बचानी थी | किन्तु जब दक्षिण के जैन अकाल के बाद वापस आये उन्होंने उन बिचारों का तिरस्कार किया और स्वयं को अलग कर लिया | किन्तु इसका भी घूम फिरकर यही अर्थ निकलता है की धर्म पत्थर पे खिची लकीर नहीं अपितु मानव आविष्कार है | हम आज टीवी फ्रिज ऐसी में रहते हैं किन्तु आविष्कारी नहीं हैं | हम उन आविष्कारों पे झगडा कर लेते हैं जिन्हें आधी चड्ढी पहनने वाले हमारे पूर्वज करके चले गए | यदि अभी भी इस संकल्पना पर किसी को कोई शक हो तो शायद यह एक तथ्य कुछ सहायता करे ; आज हिन्दू समाज विशेस रूप से शादी योग्य कन्या की अनिवार्य शर्त कुंवारापन मानता है | प्रश्न ये नहीं है की ये सही है या नहीं | मेरा प्रश्न ये है की की ये परंपरा कब और किसने प्रारंभ की ! कोई अनुमान | उत्तर है, किन्तु कुछ अनुमान आने देते हैं ... |
27-11-2010, 09:48 AM | #22 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
वाह क्या बात है …
बहुत ही सुन्दर विषय उठाया है अमित भाई जी … जल्दी ही कुछ लिखने का प्रयास करूँगा। Quote:
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27-11-2010, 01:21 PM | #23 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
मेरी राय इस विषय पर यह है की पहले जब धर्म संस्थापकों ने जो की बहुत ही बुद्धिमान व आगे की सोचने वाले थे, उन्होंने समाज की भलाई के लिए नियम बनाये और उन्ही नियमों को धार्मिक नियमों में पिरो कर लागु करवाया जो की आज भी प्रासंगिक है. उदहारण:-
- सगोत्र में विवाह नहीं करना. आज विज्ञानं यह मानता है की सगोत्र में शादी से बहुत ही जटिलता उत्पन्न होती है. - सूर्यास्त के पहले भोजन करना. पहले आज की तरह बिजली नहीं थी, अंधरे में या कम रौशनी में आपके खाने में किट पतंग गिर जाये तो मालूम भी नहीं चले. -रजस्वला स्त्री का ५ दिन तक रसोई में वर्जना, पति से अलग सोना इत्यादि . इस समय स्त्री में दुर्बलता तथा चिडचिडापन आ जाता है तथा साफ सफाई के हिसाब से स्त्री को इन दिनों सम्पूर्ण आराम मिल जाता है. इसी प्रकार जब हम सामाजिक नियमों को मनन पूर्वक गौर करेगे तो हमें उनके होने पर और पालन करने में सार्थकता नजर आएगी. |
27-11-2010, 04:46 PM | #24 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
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यदि आप पिछली पोस्ट को पढ़ें तो स्पष्ट होगा की ६०० BC तक हम अपनी देव कल्पना में ही सुधार कर रहे हैं | सर्व प्रमुख देव ही फिक्स नहीं हो पाए, त्रिदेव की संकल्पना नहीं है, जाती व्यवस्था है किन्तु कर्मप्रधान | आगे आप कुछ प्रविष्टियों बाद देखेंगे की कैसे धर्म में ये सारी चीजें घोली गयीं और देव रचित बना दिया गया जबकि वो ऐसे व्यक्ति द्वारा लिख दिए गए जिससे ज्यादा बाहरी दुनिया की जानकारी आजकल ४-५ साल के बच्चों को होती है | अरे बच्चों से बात याद आती है की ज़रा गौर फरमाइए आजकल बछ्स कितनी जल्दी मोबाइल ओपरेट करना सीख जाते हैं बनिस्पत घर के बुजुर्गों के ...यह विषय से सम्बंधित नहीं है, Just like that. |
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27-11-2010, 04:55 PM | #25 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
यह विषय से सम्बंधित नहीं है ... aur sari duniya me in baato ko maana bhi nahi jaata ...
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28-11-2010, 11:35 AM | #26 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
अमित भाई जी,
कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ और अग्रिम जमानत की अर्जी भी दाखिल कर देता हूँ कि यदि कुछ भी विषयपरक न हो तो माफ़ करें। पहले प्रश्न के जवाब में… पुराणों के अनुसार अति प्राचीन काल में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जल-प्लावित था। उसी जल में कमल-नाल से आदि ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ। कमल-नाल से उत्पन्न होने के कारण आदि ब्रह्मा को नारायण भी कहा गया है। किन्तु इनसे पूर्व भी पंच महाभूतों अर्थात पाँच तत्वों {क्षिति,जल,पावक,गगन समीरा} के रूप में भगवान् रुद्र अर्थात स्वयंभू विधमान थे। उनकी विधमानता का भान होते ही ब्रह्मा को महान् आश्र्चर्य हुआ। उन्होंने भगवान् रुद्र को आपना अग्रज तथा ज्येष्ठ पुरुष स्वीकार किया। तत्पश्र्चात् उन्होंने विनती भाव से निवेदन किया कि "भगवान् आप में ही आदि, मध्य तथा अन्त निहित हैं। आप ही सृष्टि की रचना में सक्षम हैं अतएव सृष्टि रचें। ब्रह्मा के इस अनुरोध को भगवान् रुद्र ने तथास्तु कह कर जल में प्रवेश किया। इस प्रकार तमाम प्राणियों और देवताओं का उत्पत्ति हुई। प्रश्न दो अभी के लिए अनुत्तरित है। प्रश्न तीन के जवाब में… प्राणियों की उत्पत्ति के बाद व्याप्त अस्थिरता को स्थिर करने के लिए इन रचनाओं की रचना की गयी। ताकी समाज में सामंजस्य स्थापित हो सके। प्रश्न चार के जवाब में… इस का उत्तर आपने स्वयं प्रविष्ट किया है और हम उसे सही मानते हुये आप से सहमत हैं। प्रश्न पाँच के जवाब में… इस धर्म में कुछ सीमायें और वर्जनाएँ निर्धारित हैं जिनका समय समय पर समर्थन और खंडन होता रहता है। जहाँ तक हमारा मनना है कि आजके भौतिकवाद में पूर्णतः उपयुक्त नहीं है। हार्दिक धन्यवाद। Quote:
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28-11-2010, 05:05 PM | #27 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
Quote:
जो लिख दिया वो ठाँSSSSS काहे को लिखना अग्रिम जमानत, सामने वाले की जिम्मेदारी बनती है अब की वो समझे ये सही है या गलत | Just be cool आपके उत्तर पर कुछ देर में लिखूंगा विस्तार से | |
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28-11-2010, 05:22 PM | #28 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
...I am cool broooo ...
आपके विचारों का इन्तजार है भाई जी ... Quote:
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29-11-2010, 01:48 PM | #29 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
अमित और अन्य मित्रो की पोस्ट का इन्तजार रहेगा. वैसे अमित की इस बात से में सहमत हूँ की धर्म कोई पत्थर की लकीर nahi होती है. यह समय के साथ परिवर्तन शील होता है. बस उद्देश्य की एकता होती है अच्छा उन्नत जीवन और व्यवस्था बनी रहे.
जब मनुष्य आबादी कम थी और चिकित्सा सुविधाए कम होने के कारण मृत्युदर अधिक थी तब बहु विवाह और अधिक संतानोत्पति को धर्म ने सही माना. अकाल के कारण खाने की कमी हो गयी थी तो ब्राह्मणों और ऋषियों को दो तीन जानवरों के मांस खाने के लिए धर्म में छूट मिली. धर्म मनुष्य की ही देन है और इश्वर के बारे में तो सटीक जवाब कोई नहीं दे पाया तो हम कौनसे बाग़ की मूली है पूरी दुनिया में कितने धर्म है और देवता है हर कोई अपने धर्म को और देवता को सच्चा बताता है लेकिन जहां तक मेरा मानना है इस बारे में इंसान को विचार शील होना चाहिए. अगर कोई एक धर्म ही सच्चा होता और उसके देवता या पैगम्बर ही सच्चे होते तो बाकी धर्म्वालाम्बियो का जन्म ही नहीं होना चाहिए था. |
29-11-2010, 02:18 PM | #30 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
प्रथम प्रश्न के लिए…
भगवान् रुद्र ने अपनी योजना के तहत दीर्घकाल तक जल में निवास करते हुए घोर तपस्या की और अनेकानेक औषधियों तथा अन्न की उत्पत्ति की। अन्न तथा औषधियाँ प्राणियों की प्रथम आवश्यकता हैं। जब प्राणी उत्पन्न होता है तो वह भूख से व्याकुल रहता है, अतः प्राणियों की उत्पत्ति से पूर्व क्षुधा-तृप्ति के उपादानों का संयोजन अनिवार्य था। इसलिए जीव उत्पत्ति की प्रक्रिया में उन्हें विलम्ब हो गया। आदि ब्रह्मा सृष्टि-रचना में शीघ्रता चाहते थे। अतः उन्होंने सृष्टि रचना कर दी तो भूख से व्याकुल उन प्राणियों ने उन्हीं को उदरस्थ करना चाहा। |
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