01-04-2011, 09:26 PM | #21 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
कोई अच्छा काम करेंगे
वो मेरा ही काम करेंगे जब मुझको बदनाम करेंगे अपने ऐब छुपाने को वो मेरे क़िस्से आम करेंगे क्यों अपने सर तोहमत लूं मैं वो होगा जो राम करेंगे दीवारों पर खून छिड़क कर हाक़िम अपना नाम करेंगे हैं जिनके किरदार अधूरे दूने अपने दाम करेंगे अपनी नींदें पूरी करके मेरी नींद हराम करेंगे जिस दिन मेरी प्यास मरेगी मेरे हवाले जाम करेंगे कल कर लेंगे कल कर लेंगे यूँ हम उम्र तमाम करेंगे सोच-सोच कर उम्र बिता दी कोई अच्छा काम करेंगे कोई अच्छा काम करेंगे खुदको फिर बदनाम करेंगे !!
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
21-04-2011, 06:20 AM | #22 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
जिंदगी और मौत
जब थे जिंदा तो नहीं था हमारे लिए, किसी के भी पास दो पल का वक़्त, और आज ये जनाजे में भीड़ बढती जा रही है, दो कदम भी कोई साथ ना चला, और आज चार कांधे उठाये जा रहे हँ, जिंदगी भर ढूंढ़ते रहे अपनों में अपनों को, और आज ये इतने अनजाने भी अपने हँ, हंसकर बात करने का वक़्त नहीं था इनके पास, और आज याद में हमारी सब बेसुध हो रहे हँ, ए मौत आज दिल से तुझको है हमारा सलाम, हम तो उम्र भर रोते रहे इस जिंदगी के लिए, जिंदगी से तो ये मौत ही भली लगती है आज, जो अपने हँ बस हमारे ही पास बस पास.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
21-04-2011, 07:30 AM | #23 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
जिंदगी और मौत
जिंदगी का क्या भरोसा कब तलक चल पायेगी मौत का पक्का है वादा एक दिन वो आएगी सांस के तारों के सुर जिस दिन कहीं खो जायेंगे गोद में रख सर , सिरहाने मौत गुनगुनायेगी रात भर जो जल चुका उस दीप सी वीरान आँखें जिंदगी के पार कोई लौ सी टिमटिमाएगी शब्द अंतिम कह चुके होठों पे इक मुस्कान होगी इक वही मुस्कान सब कुछ, अनकही कह जाएगी स्पर्श की सीमा में सीमित , प्रेम जब बंधन न होगा आत्मा ब्रह्माण्ड में घुल , प्रेममय हो जाएगी
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
21-04-2011, 06:19 PM | #24 |
Senior Member
Join Date: Feb 2011
Location: खानाबदोश
Posts: 669
Rep Power: 26 |
Re: अपूर्ण
रूलाने का पूरा इंतज़ाम किया है आपने ........................
__________________
ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
|
24-04-2011, 10:03 AM | #25 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
खुशनसीब …… या बदनसीब…. वो अक्सर मेरे पास मुस्कुराते हुए आता
और बड़े गुमान से बताता यार ! मुझे तो कभी हुआ ही नहीं ‘ये प्यार’ …. एक दिन मुझसे भी जवाब निकल ही गया जाने तुझे क्या कहना चाहिए खुशनसीब …… की तुझे कभी गुजरना नहीं पड़ा दर्द के उस सैलाब से जो कई बार दे जाता है उम्र भर की उदासी या बदनसीब…. की तुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ दुनिया की उस सबसे खुबसूरत चीज़ का जिसके लिए लोग जानते हुए भी हर दर्द को उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं ……… सिर्फ उस एहसास के लिए … वही एहसास … जो इन्सान को…. इन्सान बनाता है
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
25-04-2011, 07:54 PM | #26 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
किसी ने अल्लाह कह के मारा किसी ने राम कह के मारा किसी ने अल्लाह कह के मारा किसी ने राम कह के मारा जो बच गए इससे उन्हें सद्दाम कह के मारा जो आये थे घर छोड़ शहर दो रोटी कमाने को “क्यों छिनने आये हो हमारा काम” कह के मारा कहते हैं जिससे बड़ी नहीं कोई और इबादत दुनिया में हाँ इसी इश्क करने की खातिर कितनो को सरेआम कर के मारा
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल Last edited by ndhebar; 25-04-2011 at 07:56 PM. |
03-05-2011, 07:18 AM | #27 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
हाँ,.. अब हम खामोश हैं इस कदर चाहा है तुझ कि खुद प्यार से महरूम हो गये,
तुम्हारे पास आने के लिये हम खुद से दूर हो गये, पूछते हो कि आज हम खामोश क्यों हैं कुछ बोलते क्यों नहीं ? क्या करें, तेरी ठोकरों से टूट के हम चूर-चूर हो गये|
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल Last edited by ndhebar; 03-05-2011 at 07:23 AM. |
03-05-2011, 07:27 AM | #28 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
खोना........... कभी अपनी धुन में खोया रहा
और कभी तुम्हारी यादों में कभी तुम्हे बातों में खोया रहा तो कभी अधूरे ख्वाबों में शायद एक ही चीज मुझे आती है .........खोना....... पहले खुद को और फिर तुम्हे और फिर शायद जीने की वजह भी जनता हूँ अब कुछ भी नहीं है मेरे पास ................................... पर जाने क्यों लगता है मैं अभी भी.... शायद अभी भी.... कुछ... खो रहा हूँ......
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
06-05-2011, 11:59 AM | #29 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
''हसरत'' हमने मांगी थी अक्सर दुआए बहुत, हसरतो को मगर,उम्र दे न सके !
तेरे दामन को भर देते फूलों से हम, कांटो को पर अलग उनसे कर न सके! बेखुदी में जिए तो क्या गम है, कभी ख़ुद को जुदा तुमसे कर न सके! दर्द की सीप में बंद मोती मिले, कतरे उन अश्को के जो गिर न सके!!
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल Last edited by ndhebar; 06-05-2011 at 12:02 PM. |
18-05-2011, 09:16 PM | #30 |
Special Member
|
Re: अपूर्ण
घृणा…!
----------- तुम तो नहीं, तुम्हारी वह बात, आज भी रह-रह, खूब याद आती है, और मजबूर कर देती है, सोचने के लिए, कि… तुम वास्तव में पक्की थी, अपनी कथनी और करनी की. तुम्हीं ने ही तो सिखाया था मुझे, घृणा करना, खोखलेपन से, और मैं तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाता , तुम्हारी हर बात मानता, अपना सब कुछ तुम्हें सौंपता, खुद ही तो खोखला हुआ था. गलती तो मेरी ही थी ना ! तुम तो पक्की निकली, अपनी बात की .
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल Last edited by ndhebar; 18-05-2011 at 09:23 PM. |
Bookmarks |
|
|