28-01-2014, 02:47 PM | #21 |
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Re: लोककथा संसार
वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद श्योछिंग को भी सिद्धि प्राप्त हुई , उस की शक्ति असाधारण बढ़ी , उस ने पश्चिमी झील लौट कर धर्माचार्य फाहाई को परास्त कर दिया , पश्चिमी झील का पानी सोख लिया और लेफङ पगोडा गिरा दिया एवं सफेद नाग वाली पाईल्यांगची को बचाया । यह लोककथा पश्चिमी झील के कारण सदियों से चीनियों में अमर रही और पश्चिमी झील का सौंदर्य इस सुन्दर कहानी के कारण और प्रसिद्ध हो गया । **
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
03-02-2014, 09:14 PM | #22 |
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Re: लोककथा संसार
यहूदी लोक कथा
भिखारी का ईनाम एक भिखारी को बाज़ार में चमड़े का एक बटुआ पड़ा मिला. उसने बटुए को खोलकर देखा. बटुए में सोने की सौ अशर्फियाँ थीं. तभी भिखारी ने एक सौदागर को चिल्लाते हुए सुना – “मेरा चमड़े का बटुआ खो गया है! जो कोई उसे खोजकर मुझे सौंप देगा, मैं उसे ईनाम दूंगा!” भिखारी बहुत ईमानदार आदमी था. उसने बटुआ सौदागर को सौंपकर कहा – “ये रहा आपका बटुआ. क्या आप ईनाम देंगे?” “ईनाम!” – सौदागर ने अपने सिक्के गिनते हुए हिकारत से कहा – “इस बटुए में तो दो सौ अशर्फियाँ थीं! तुमने आधी रकम चुरा ली और अब ईनाम मांगते हो! दफा हो जाओ वर्ना मैं सिपाहियों को बुला लूँगा!” इतनी ईमानदारी दिखाने के बाद भी व्यर्थ का दोषारोपण भिखारी से सहन नहीं हुआ. वह बोला – “मैंने कुछ नहीं चुराया है! मैं अदालत जाने के लिए तैयार हूँ!” अदालत में काजी ने इत्मीनान से दोनों की बात सुनी और कहा – “मुझे तुम दोनों पर यकीन है. मैं इंसाफ करूँगा. सौदागर, तुम कहते हो कि तुम्हारे बटुए में दो सौ अशर्फियाँ थीं. लेकिन भिखारी को मिले बटुए में सिर्फ सौ अशर्फियाँ ही हैं. इसका मतलब यह है कि यह बटुआ तुम्हारा नहीं है. चूंकि भिखारी को मिले बटुए का कोई दावेदार नहीं है इसलिए मैं आधी रकम शहर के खजाने में जमा करने और बाकी भिखारी को ईनाम में देने का हुक्म देता हूँ”. बेईमान सौदागर हाथ मलता रह गया. अब वह चाहकर भी अपने बटुए को अपना नहीं कह सकता था क्योंकि ऐसा करने पर उसे कड़ी सजा हो जाती. इंसाफ-पसंद काजी की वज़ह से भिखारी को अपनी ईमानदारी का अच्छा ईनाम मिल गया. **
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03-02-2014, 09:28 PM | #23 |
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Re: लोककथा संसार
उत्तर भारत की लोक कथा
चिड़िया का दाना एक थी चिड़िया चूं-चूं। एक दिन उसे कहीं से दाल का एक दाना मिला। वह गईचक्की के पास और दाना दलने को कहा। कहते-कहते ही वह दाना चक्की में जागिरा। चिड़िया ने दाना मांगा तो चक्की बोली- ‘बढ़ई से चक्की चिरवा ले, अपना दाना वापस पा ले।’ चिड़िया बढ़ई के पास पहुंची। उसने बढ़ई से कहा-‘बढ़ई, तुम खूंटा चीरों, मेरी दालवापस ला दो।’ बढ़ई के पास इतना समय कहां था कि वह छोटी-सी चिड़िया की बातसुनता? चिड़िया भागी राजा के पास। राजा घिरा बैठा था चापूलसों से। उसने चूं-चूं को भगा दिया। वह भागी रानी के पास, रानी सोने की कंघी से बाल बनारही थी। उसने चूं-चूं से कहा। ‘भूल जा अपना दाना, आ मैं खिलाऊं तुझकोमोती।’ ‘मोती भी भला खाए जाते हैं? चिड़िया ने सांप से कहा, ‘सांप-सांप, रानी को डस ले।’ “रानी, राजा को नहीं मनाती राजा बढ़ई को नहीं डांटता बढ़ई खूंटा नहीं चीरता मेरी दाल का दाना नहीं मिलता।” सांप भी खा-पीकर मस्ती में पड़ा था। उसने सुनी-अनसुनी कर दी। चूं-चूं ने लाठीसे कहा-‘लाठी-लाठी तोड़ दे सांप की गर्दन।’ अरे! यह क्या! लाठी तो उसी परगिरने वाली थी। चूं-चूं जान बचाकर भागी आग के पास। आग से बोली-‘जरा लाठी की ऐंठ निकाल दो। उसे जलाकर कोयला कर दो।’ आग न मानी। चूं-चूं कागुस्सा और भी बढ़ गया। उसने समुद्र से कहा-‘इतना पानी तेरे पास, जरा बुझातो इस आग को।’ समुद्र तो अपनी ही दुनिया में मस्त था। उसकी लहरों के शोरमें चूं-चूं की आवाज दबकर रह गई। एक हाथी चूं-चूं का दोस्त थामोटूमल। वह भागी-भागी पहुंची उसके पास। मोटूमल ससुराल जाने की तैयारी मेंथा। उसने तो चूं-चूं की राम-राम का जवाब तक न दिया। तब चूं-चूं को अपनीसहेली चींटी रानी की याद आई। कहते हैं कि मुसीबत के समय दोस्त हीकाम में आते हैं। चींटी रानी ने चूं-चूं को पानी पिलाया और अपनी सेना केसाथ चल पड़ी। मोटूमल इतनी चींटियों को देखकर डर गया और बोला-‘हमेंमारे-वारे न कोए, हम तो समुद्र सोखब लोए।’ (मुझे मत मारो, मैं अभी समुद्रको सुखाता हूं।) इसी तरह समुद्र डरकर बोला-‘हमें सोखे-वोखे न कोए, हम तो आग बुझाएवे लोए।’ और देखते-ही-देखते सभी सीधे हो गए। आग ने लाठी कोधमकाया, लाठी सांप पर लपकी, सांप रानी को काटने दौड़ा, रानी ने राजा कोसमझाया, राजा ने बढ़ई को डांटा, बढ़ई आरी लेकर दौड़ा। अब तो चक्कीके होश उड़ गए। छोटी-सी चूं-चूं ने अपनी हिम्मत के बल पर इतने लोगों कोझुका दिया। चक्की आरी देखकर चिल्लाई-‘हमें चीरे-वीरे न कोए, हम तो दानाउगलिने लोए।’ (मुझे मत चीरों, मैं अभी दाना उगल देती हूं।) चूं-चूं चिड़िया ने अपना दाना लिया और फुर्र से उड़ गई। प्रस्तुति : गजेन्द्र ओझा
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03-02-2014, 09:45 PM | #24 |
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Re: लोककथा संसार
उत्तर भारत की लोक कथा
पाप की जड़ राजा चंद्रभान ने एक दिन अपने मंत्री शूरसेन से पूछा कि पाप की जड़ क्या होती है? शूरसेन इसका कोई संतोषजनक उत्तर नही दे पाया। राजा ने कहा- इस प्रश्न का सही उत्तरढूंढने के लिए मैं तुम्हें एक माह का समय देता हूं। यदि दी गई अवधि में तुम सहीउत्तर नहीं ढूंढ सके, तो मैं तुम्हें मंत्री पद से हटा दूंगा। राजा की बात सुनकरशूरसेन परेशान हो गया। वह गांव-गांव भटकने लगा। एक दिन भटकते-भटकते वह जंगलजा पहुंचा। वहां उसकी नजर एक साधु पर पड़ी। उसने राजा का प्रश्न उसके सामने दोहरादिया। साधु ने कहा- मैं डाकू हूं, जो राजा के सिपाहियों के डर से यहां छुपा बैठाहूं। वैसे मैं तुम्हारे प्रश्नका उत्तर दे सकता हूं। लेकिन इसके लिए तुम्हे मेराएक काम करना होगा। शूरसेन ने सोचा काम चाहे जो भी हो, कम से कम उत्तर तोमिल जाएगा। उसने डाकू के बात के लिए हामी भर दी। इस पर डाकू ने कहा- तो ठीक है, आजरात तुम्हें नगर सेठ की हत्या करनी होगी और साथ ही उसकी सारी संपत्ति चुरा कर मेरेपास लानी होगी। यदि तुम यह काम करने में सफल हो जाते हो, तो मैं तुम्हेप्रश्न का उत्तर बता दूंगा। शूरसेन लालच में आ गया। उसे अपना पद जो बचाना था।शूरसेन इसके लिए तैयार हो गया और जाने लगा। उसे जाता देख डाकू ने कहा- एक बार फिरसोच लो। हत्या व चोरी करना पाप है। शूरसेन ने कहा- मैं किसी भी हाल में अपना पदबचाना चाहता हूं और इसके लिए मैं कोई भी पाप करने के लिए तैयार हूं। यहसुनकर डाकू ने कहा- यही तुम्हारे सवाल का जवाब है। पाप की जड़ होती है- लोभ। पद केलोभ मे आकर ही तुम हत्या और चोरी जैसा पाप करने के लिए तैयार हो गए। इसी के वशीभूतहोकर व्यक्ति पाप कर्म करता है। शूरसेन ने डाकू का धन्यवाद किया और महल की ओर चलदिया। दूसरे दिन राजदरबार में जब उसने राजा को अपना उत्तर बताया, तो राजाउसकी बात से प्रसन्न हो गया। उसने मंत्री को ढेर सारे स्वर्णाभूषण देकर सम्मानितकिया। **
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03-02-2014, 10:25 PM | #25 |
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Re: लोककथा संसार
उत्तर भारत की लोक कथा
सच्चा ईनाम एक बार उसके राज्य में भयानक अकाल पड़ा। राजा ने आज्ञा दी कि अनाज के भंडार व गोदाम खोल दिए जाएं। उसकी आज्ञा का तुरंत पालन हुआ। सभी अनाज के भंडार व गोदाम प्रजा के लिए खोल दिए गए। कुछ दिनों में भंडार भी खाली हो गए। तब राजा ने महल की रसोई में पकने वाला भोजन गरीबों व जरूरतमंदों को बांटने का आदेश दिया। धीरे-धीरे महल का भंडार भी खाली हो गया। हालत यह हो गई कि एक दिन राज परिवार के पास भी खाने को कुछ नहीं बचा। उस दिन शाम को अचानक एक अजनबी राजा के सामने प्रकट हुआ। उसके हाथ में एक बड़ा सा कटोरा था, जिसमें दूध, गेहूँ और चीनी से बनी दलिया थी। उसने भूखे राजा को वह कटोरा दे दिया, पर राजा ने उसे चखा भी नहीं। पहले अपने सेवकों को बुलाया और कहा, तुम्हारे भूखे रहते मैं इसे नहीं खा सकता। सेवक भूखे तो थे, लेकिन राजा को भूखा देख कर उन्होंने अनमने भाव से ही दलिया खाई और उसमें से भी आधी राजा व उसके परिवार के लिए बचा दिया। राज परिवार जैसे ही वह बची दलिया खाने बैठा, दरवाजे पर एक भूखा अतिथि आ पहुँचा। राजा ने वह भोजन भी भूखे अतिथि को दे दिया। वह खा कर तृप्त होने के बाद उस व्यक्ति ने अपना वेश बदला। वह स्वयं भगवान थे, जिन्होंने राजा के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए ऐसा रूप धारण किया था। उन्होंने राजा से कहा, मैं तुम्हारे आचरण से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम मुझ से जो भी वरदान चाहो, माँग लो। भगवान को सामने पा कर राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, हे प्रभु! मैं इस लोक या परलोक का कोई ईनाम नहीं चाहता। मुझे ऐसा हृदय दें जो दूसरों की पीड़ा को महसूस करे और ऐसा मन व तन दें जो दूसरों की सेवा में लगा रहे। भगवान तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। **
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04-02-2014, 09:00 PM | #26 |
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Re: लोककथा संसार
Ref: भिखारी का ईनाम
Good judgment. It is obvious that the merchant was lying and the beggar was speaking the truth. If the beggar were dishonest, why would he not keep all the 200 coins? Why would he risk getting caught by announcing that he had found a purse with only 100 gold coins. The merchant was not only dishonest but also stupid. He deserved what he got Thanks for sharing this simple but charming story. |
04-02-2014, 09:15 PM | #27 |
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Re: लोककथा संसार
Ref: उत्तर भारत की लोक कथा चिड़िया का दाना
Moral: One should know at what level to pull strings! |
04-02-2014, 09:22 PM | #28 |
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Re: लोककथा संसार
Ref: पाप की जड़
It is true. There is enough for everyone's need. Never enough for one's greed. Greed for more and more is the root of all sin. |
04-02-2014, 09:28 PM | #29 |
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Re: लोककथा संसार
Re: सच्चा ईनाम
Will any modern politician / ruler ever ask for such a boon from God? In Bihar, a politician stole even the fodder for animals! This is Kaliyug after all. |
04-02-2014, 10:02 PM | #30 |
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Re: लोककथा संसार
Ref: बदी का फल
Lying witnesses. Dishonesty. Cheating. These existed thousands of years ago. They exist today. They will continue to exist a thousand years hence. |
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