02-06-2013, 09:38 PM | #21 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
आरफियस और युरेडिस (सभी मित्रों ने सावित्री सत्यवान की कथा तो जरूर पढ़ी और सुनी होगी जिसके अनुसार सत्यवान की मृत्यु हो जाने के पश्चात् सावित्री यमराज का पीछा करती है और अपनी बुद्धिमत्ता से यमराज को मजबूर कर देती है कि वह उसके प्राण लौटा दे. आईये यहां आपको एक ऐसी ग्रीक पुरा कथा के बारे में बताते हैं जहां एक पति ने अपनी प्रिय पत्नि के प्राण वापिस पाने के लिए यमलोक तक की यात्रा की और अपने उद्देश्य में कामयाब भी हो गया लेकिन थोड़ी सी गलती के कारण उसे पुनः खो देता है) आरफियस ग्रीक पुराण कथाओं का दिव्य वीणावादक था. वह केलिओप नामक अप्सरा का पुत्र था और अपनी मां की तरह ही खूबसूरत था. उसकी प्रिया थी वनदेवी युरेडिस जिसे वह अपनी जान से ज्यादा चाहता था. एक दिन सर्पदंश से युरेडिस की मृत्यु हो गयी. विषाद में वह बहुत तड़पा और रोया, मन प्राण के सारे दर्द को अपने वीणा वादन में ढाल कर वह अपनी प्रिया की खोज में निकल पड़ा और स्टिक्स और टाइबर नदी को पार करने के बाद यमलोक पहुँच गया और वहां के देवता हेड्स के सामने जा कर अपनी पीड़ा उनके सामने कह सुनाई. हेड्स और उसकी प्रिया पर्सिफ़ोन को उसकी दशा पर दया आ गयी और उन्होंने युरेडिस को मृत्यु-बंधन से मुक्त कर दिया. लेकिन आरफियस को हिदायत दी गयी कि जब तक यमलोक की सीमा समाप्त न हो जाये तब तक वह पीछे मुड़ कर न देखे. सो, आगे आगे आरफियस और पीछे पीछे युरेडिस मगन मन से वहां से चल पड़े. आरफियस के संगीत की धुन बदल गयी थी. बहुत देर तक आरफियस ने अपने मन पर नियंत्रण रखा कि पीछे मुद कर अपनी प्रिया की ओर न देखे लेकिन यमलोक की सीमा के नज़दीक आते ही उसका धैर्य जवाब दे गया. वह अधीर हो कर पीछे मुड़ कर देखने लगा. जैसे ही उसने ऐसा किया एक चीख मार कर युरेडिस यमलोक की ओर वापिस खिंचने लगी और देखते देखते धुयें की तरह लोप हो गयी. आरफियस पछाड़ खा कर गिर पड़ा. पर अब क्या हो सकता था. वह मृत्यु से अपनी लड़ाई हार चुका था. ** |
02-06-2013, 11:36 PM | #22 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
भारतीय मिथक कथा
रूरू और प्रमद्वरा रूरू और प्रमद्वरा की प्रेम-कथा को पढ़ने और समझने से पहले हम यह जान लेते है कि रूरू कौन था? और प्रमद्वरा कौन थी? और कैसे इनका मिलन हुआ? रूरू के जन्म की पृष्ठभूमि : सप्तॠषियों में से एक महर्षि भृगु का नाम आपने अवश्य सुना होगा. इनके सुपुत्र थे महर्षि च्यवन जो देवताओं के वैद्य भी थे. अश्विनीकुमारों की कृपा से महर्षि च्यवन को अखंड यौवन का वरदान मिला. उन्होंने राजा शर्याति की सुपुत्री सुकन्या से प्रमति नामक अत्यंत रूपवान पुत्र को जन्म दिया. प्रमति भी अपने पिता की भांति तेजस्वी महर्षि हुआ. युवावस्था में, एक बार प्रमति नृत्य करती अप्सरा घृताची पर मुग्ध हो गया. घृताची भी प्रमति पर आसक्त थी. दोनों के सम्मिलन से रूरू नामक एक अत्यंत सुन्दर पुत्र का जन्म हुआ. प्रमद्वरा के जन्म की पृष्ठभूमि : गंधर्वराज विश्वावसु एक बार किसी पर्वतीय स्थल की रमणीक दृष्यावली का आनंद लेते हए भ्रमण कर रहे थे. अकस्मात् उनकी दृष्टि सरोवर में स्नान करती, अनिंद्य सुंदरी विवस्त्रा अप्सरा मेनका पर पड़ी. गन्धर्वराज कामविव्हल हो उठे. उन्होंने मेनका से प्रणय याचना की. मेनका ने उन्हें उदारतापूर्वक कृतार्थ किया. दोनों के समागम से अत्यंत रूपवती कन्या का जन्म हुआ. मेनका ने नवजात कन्या को महर्षि स्थूलकेश के आश्रम में छोड़ दिया. हृदयहीन मेनका ने अपनी एक कन्या शकुंतला को महर्षि कण्व के आश्रम में पलने के लिए छोड़ दिया तो दूसरी बेटी के लिए उसने महर्षि स्थूलकेश का का आश्रम चुना. जिस प्रकार अपनी बेटी शकुंतला से पिता विश्वामित्र ने कोई संपर्क नहीं रखा उसी प्रकार मेनका की इस दूसरी बेटी से भी उसके पिता गंधर्वराज विश्वावसु ने कोई सम्बन्ध नहीं रखा. कैसी निर्मम मां थी मेनका और कैसे प्रस्तर-ह्रदय थे इन दोनों के महान विचारक महर्षि और ब्रह्मॠषि कहलाने वाले पिताओं के. जिस प्रकार महर्षि कण्व ने शकुंतला का पालन पोषण किया था उसी प्रकार महर्षि स्थूलकेश ने भी मेनका की दूसरी पुत्री का पिता की तरह पालन पोषण किया और उसका नाम प्रमद्वरा रखा. सचमुच वह प्रमदाओं में श्रेष्ठ थी. वह रूप, शील और गुण का मूर्तरूप थी. |
02-06-2013, 11:39 PM | #23 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
एक बार ऋषिवर प्रमति अपने पुत्र रूरू को साथ ले कर महर्षि स्थूलकेश के आश्रम में पधारे. ऋषिपुत्र रूरू प्रमद्वरा को देखते ही उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो गये. रूरू को देख कर प्रमद्वरा की भी ऐसी ही स्थिति हो गयी थी. घृताची पुत्र रूरू एवं मेनका सुता प्रमद्वरा दोनों एक दूसरे के हो गये. रूरू ने अपने सहपाठियों के सहयोग से अपनी मनःस्थिति को अपने पिता प्रमति तक पहुंचा दिया और ऋषिवर प्रमति ने ऋषिवर स्थूलकेश से उनकी पालिता पुत्री का हाथ अपने पुत्र रूरू के लिए मांगा जिसके लिए महर्षि स्थूलकेश प्रसन्नतापूर्वक तुरंत तैयार हो गये. दोनों का विवाह संपन्न हो गया और प्रमद्वरा अपने पिता का आश्रम छोड़ कर अपने पति के आश्रम में आ गई.
दोनों के दिन खुशी खुशी बीतने लगे. लेकिन नियति से यह सब कुछ अधिक दिनों तक देखा नहीं गया. एक दिन जब प्रमद्वरा उपवन में फूल चुन रही थी, उसे एक विषैले सांप ने डस लिया. उसका शरीर नीला पड़ने लगा और वह संज्ञा-हीन हो कर धरती पर गिर पड़ी. इससे पहले कि कोई उपाय किया जा सकता, उसके प्राण पखेरू उड़ गये. अपनी निश्चेष्ट पड़ी पत्नि को देख कर रूरू पछाड़ खा कर गिर पड़ा और जोर जोर से क्रंदन करने लगा. |
02-06-2013, 11:41 PM | #24 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
((फूलों और सांपों का यह कैसा विचित्र सम्बन्ध है. - तक्षक नाग भी परीक्षित तक फूलों से हो कर ही पहुंचा था. - हरिश्चंद्र – तारामति के पुत्र रोहित को भी फूलों में छिपे सर्प ने ही डसा था. - ग्रीक पुराकथा में भी आरफियस प्रिया युरेडिस को भी फूल चुनते हए सांप ने डस लिया था.)) |
02-06-2013, 11:42 PM | #25 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
महर्षि स्थूलकेश के आश्रम में आये हुये सभी ऋषियों, मुनियों ने रूरू को सांत्वना दी और जीवन के नश्वर होने का बोध कराया. किन्तु रूरू अपनी प्रिय के अनंत-वियोग से भीतर तक हिल चुका था और इस दारुण दुःख के कारण रोये जा रहा था. रूरू के ह्रदय पर उन महर्षियों के उपदेशों का कोई असर नहीं हो रहा था. उसे तो जीती जागती प्रमद्वरा चाहिए थी. रूरू ने कुपित हो कर घोषित किया,
“काल ! मेरी प्रिय प्रमद्वरा को वापिस करो, अन्यथा मैं शाप दे कर समस्त ब्रह्माण्ड को क्षार कर दूंगा.” रूरू की अंजुरी में उनके अमर्ष से संकल्प का जल सुलग रहा था और समस्त देवलोक यह सुन कर थरथरा रहा था. तब तक रूरू ने पुनः घोषणा की, “यदि मैंने भक्तिपूर्वक गुरुजनों की आगया का पालन किया हो, यदि मई निष्ठापूर्वक सच्चरित्र रहा हूँ, यदि मैंने आस्थापूर्वक सदाचार का पालन किया हो, यदि मैंने द्वेषरहित हो कर पूर्ण सौहार्द से प्राणिमात्र के प्रति सद्भाव ही रखा हो, तो मेरी प्रिया जीवित हो कर उठ बैठे.” शाप का मुकाबला तो एक बार हो सकता है किन्तु सदाचार व् आचरण की चुनौती का मुकाबला करने की सामर्थ्य तो स्वयं महाकाल में भी नहीं थी. यमराज सहित देवतागण स्वर्ग से उतर आये. वे रूरू को समझाने लग गये, “वत्स, प्रमद्वरा की आयु शेष हो चुकी, वह कैसे जीवित की जा सकती है !” “कुछ भी हो मुझे प्रमद्वरा वापस मिलनी ही चाहिए.” रूरू अपने आग्रह पर अडिग थे. क्रंदन और विलाप के स्थान पर अब उसका आनन संकल्प, चुनौती और अमर्ष से प्रदीप्त हो गया था. यमराज सामने आये, “यदि कोई उसे अपनी आयु दी तो कुछ हो सकता है.” “बस इतनी सी बात, यह तो बहुत सरल है. मैं अपनी आधी आयु प्रमद्वारा को देता हूँ.” प्रसन्न वदन रूरू ने संकल्प जल को धरती पर छोड़ दिया. देखते देखते प्रमद्वरा उठ बैठी. उसे ऐसा लगा जैसे गहरी नींद से जागी हो. इस कालजयी, प्रियाव्रती, पत्नीव्रती रूरू के लिए किसी पुरुष ने व्रत नहीं रखा, किसी ने कोई उपवास नहीं किया, कोई पूजा, अर्चना, उपासना या अनुष्ठान नहीं हुआ. महर्षि अरविंद के एक छोटे से प्रसंग के अतिरिक्त किसी कालिदास या वाल्मीकि ने रूरू के बारे में लिखने की कोशिश नहीं की. क्या ऐसा इसलिए था कि रूरू का सम्बन्ध किसी राज परिवार से नहीं था और वह केवल एक ऋषिपुत्र था? (कवि-लेखक उमाकांत मालवीय के विवरण से प्रेरित) Last edited by rajnish manga; 02-06-2013 at 11:45 PM. |
08-06-2013, 12:38 AM | #26 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
भारतीय मिथक कथा
ययाति की कथा एक बार दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा अपनी सहेलियों के साथ अपने बाग में घूम रही थी i उनके साथ में गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी भी थीi शर्मिष्ठा अति मानिनी तथा अति सुन्दर राजपुत्री थी किन्तु रूप लावण्य में देवयानी भी किसी प्रकार कम नहीं थीi वे सब की सब उस उद्यान के एक जलाशय में, अपने वस्त्र उतार कर स्नान करने लगीi उसी समय भगवान् शंकर पार्वती के साठ उधर से निकलेi भगवन शंकर को आते देख वे सभी कन्याएं लज्जावश से दौड़ कर अपने-अपने वस्त्र पहनने लगींi शीघ्रता मेंशर्मिष्ठा ने भूलवश देवयानी के वस्त्र पहन लियेi इस पर देवयानी अति क्रोधित हो कर शर्मिष्ठा से बोली, “रे शर्मिष्ठा! एक असुर पुत्री होकर तूने ब्राह्मण कन्या का वस्त्र धारण करने का साहस कैसे किया? तूने मेरे वस्त्र धारण करके मेरा अपमान किया हैi” देवयानी ने शर्मिष्ठा को इस प्रकार से और भी अनेक अपशब्द कहेi देवयानी के अपशब्दों को सुनकर शर्मिष्ठा अपने अपमान से तिलमिला गई और देवयानी के वस्त्र छीन कर उसे एक कुएं में धकेल दियाi शर्मिष्ठा के चले जाने के पश्चात दैववश राजा ययाति शिकार खेलते हुये वहां पर आ पहुंचेi अपनी प्यास बुझाने के लिए वे कुएं के निकट गये और उस कुएं में वस्त्रहीन देवयानी को देखाi उन्होंने देवयानी क देह को ढंकने के लिये अपना दुपट्टा उस पर डाल दिया और उसका हाथ पकड़ कर उसे कुएं से बाहर निकालाi इस पर देवयानी ने प्रेमपूर्वक राजा ययाति से कहा, “हे आर्य! आपने मेरा हाथ पकड़ा है अतः मैं आपको अपने पति रूप में स्वीकार करती हूँi हे वीरश्रेष्ठ! यद्यपि मैं ब्राह्मण पुत्री हूँ किन्तु बृहस्पति के पुत्र कच के शाप के कारण मेरा विवाह ब्राह्मण कुमार के साथ नहीं हो सकताi इसलिए आप मुझे अपने प्रारब्ध का भोग समझ कर स्वीकार कीजियेi” ययाति ने प्रसन्न हो कर देवयानी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लियाi Last edited by rajnish manga; 08-06-2013 at 12:46 AM. |
08-06-2013, 12:42 AM | #27 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
(इस कथा का एक अन्य रूप भी पाया जाता है जो इस प्रकार है – देवयानी वहां से अपने पिता शुक्राचार्य के पास आई तथा उनसे
समस्त वृत्तान्त कहाi शर्मिष्ठा के किये हए कर्म पर शुक्राचार्य को अत्यंत क्रोध आया और वे दैत्यों से विमुख हो गयेi इस पर दैत्यराज वृषपर्वा अपने गुरुदेव के पास आ कर अनेक प्रकार से अनुनय-विनय करने लगेi इस प्रकार अनुनय-विनय किये जाने से शुक्राचार्य का क्रोध कुछ शान्त हुआ और वे बोले, “हे राजन! मुझे तुमसे किसी प्रकार की अप्रसन्नता नहीं है किन्तु मेरी पुत्री देवयानी अत्यंत रुष्ट हैi यदि तुम उसे प्रसन्न कर सको तो मई पुनः तुम्हारा साठ देने लगूंगाi” वृषपर्वा ने देवयानी को प्रसन्न करने के लिये उससे कहा, “हे पुत्री! तुम जो कुछ भी मांगोगी मैं तुम्हें वह प्रदान करूँगाi” देवयानी बोली, “हे दैत्यराज! मुझे आपकी पुत्री शर्मिष्ठा दासी के रूप में चाहियेi” अपने परिवार पर आये संकट को टालने के लिए शर्मिष्ठा ने देवयानी की दासी बनना स्वीकार कर लियाi शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ कर दियाi शर्मिष्ठा भी देवयानी के साथ उसकी दासी के रूप में ययाति के भवन में आ गयीi) |
08-06-2013, 12:44 AM | #28 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
कुछ काल उपरान्त देवयानी के पुत्रवती होने पर शर्मिष्ठा ने भी पुत्रोत्पत्ति की कामना से राजा ययाति से प्रणय निवेदन किया
जिसे ययाति ने स्वीकार कर लियाi जब देवयानी को ययाति तथा शर्मिष्ठा के सम्बंध के विषय में पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुईi इस प्रकार नहुष के पुत्र राजा ययाति के दो पत्नियां हुयीं – एक शर्मिष्ठा और दूसरी देवयानीi शर्मिष्ठा दैत्यकुल के राजा वृषपर्वा की कन्या थी और देवयानी दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य कीi राजा को शर्मिष्ठा से विशेष स्नेह थाi राजा ययाति के देवयानी से दो पुत्र यदु तथा तुवर्सु और शर्मिष्ठा से तीन पुत्र द्रुह्य, अनु तथा पुरु हयेi देवयानी को उचित सम्मान न पाते देख उसके पुत्र यदु ने उससे कहा कि माता! इस असम्मानजनक जीवन से क्या यह अधिक उचित न होगा कि हम अग्नि में प्रवेश करके यह जीवन समाप्त कर दें? यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगी तो भी मैं यह जीवन धारण नहीं करूँगाi पुत्र की यह बात सुनकर देवयानी ने सारी बातें अपने पिता भृगुनन्दन शुक्राचार्य को बता दी और स्वयं भी जल मरने को तैयार हो गईi उसने कहा कि ययाति मेरा ही नहीं आपका भी अनादर करती हैंi इससे क्रोधित हो कर शुक्राचार्य ने ययाति को लक्ष्य करके शाप दिया कि दुरात्मने! तुम्हारी अवस्था जराजीर्ण वृद्ध जैसी हो जायेi तुम बिलकुल शिथिल हो जाओi इस प्रकार शाप दी कर वे मौन हो गयेi इसके बाद ययाति ने गुरु शुक्राचार्य से बहुत अनुनय विनय की तो दैत्य गुरु ने शाप मुक्ति की संभावना से इनकार करते हए केवल इतना कहा कि यदि तुम्हारा कोई पुत्र अपना यौवन तुम्हें दी सके और बदले में तुम्हारी वृद्धावस्था लेले तो इस शाप का किसी हद तक प्रभाव निलंबित रह सकता हैi |
08-06-2013, 12:45 AM | #29 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
इस शाप के फलस्वरूप राजा ययाति को जब घोर वृद्धावस्था ने आ घेरा उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र यदु से अनुरोध किया कि तुम मुझे अपना यौवन देकर मेरी वृद्धावस्था ले लोi कुछ समय पश्चात् मैं तुम्हारा यौवन तुम्हें लौटा दूंगाi यह सुनकर यदु ने कहा यह सौदा आप अपने लाडले पुरु से करेंi जब उन्होंने पुरु से यह बात कही तो पुरु ने राजा का अनुरोध सुन कर तत्काल वृद्धावस्था के बदले में अपना यौवन दे दियाi
राजा ने एक के बाद एक अर्थात दो हजार वर्षों तक अपने पुत्र से यौवन विनिमय के पश्चात् हर प्रकार से तृप्ति की कामना में रत रहाi अन्ततः राजा को वैराग्य हो गया क्योंकि पुत्र से युवावस्था लेने के दो सहस्त्र वर्ष बाद भी उसकी भोग विलास की कामना समाप्त नहीं हुई थी, वे पुरु को उसकी जवानी लौटा कर वन में चले गयेi अंततः स्वर्ग में जाने पर अपने मुख से पुण्यों का बखान करने पर इन्द्र ने उसे स्वर्ग से नीचे गिरा दियाi क्योंकि पुण्यों का बखान करने से पुण्य क्षीण हो जाते हैंi तत्पश्चात, कन्या माधवी के पुत्र अष्टक, जो वेदवेत्ता ऋषि थे, के पुण्यफल से राजा ययाति पुनः स्वर्ग में पहुँच गयेi ** |
08-06-2013, 08:27 PM | #30 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
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