17-11-2012, 10:48 PM | #21 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिवसेना सुप्रीमों बाला साहेब ठाकरे के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते आज कहा कि स्वर्गीय ठाकरे का महाराष्ट्र की राजनीति में विशिष्ट स्थान था। नीतीश ने ठाकरे के निधन को असामयिक बताते हुए गहरा शोक एवं दुख व्यक्त किया है। उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा है कि स्वर्गीय ठाकरे का महाराष्ट्र की राजनीति में विशिष्ट स्थान था और उनके निधन से महराष्ट्र की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। नीतीश ने स्वर्गीय ठाकरे की आत्मा की चिर शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की और शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है। राजद सुप्रीमों और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद, उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी, बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और पार्टी सांसद रामकृपाल यादव ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
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17-11-2012, 10:50 PM | #22 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
ममता ने बाला साहब के निधन पर शोक जताया
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन पर शोक जताया और कहा कि अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति पर राज किया। ममता ने अपने शोक संदेश में कहा, ‘उन्होंने लंबे समय तक महाराष्ट्र की राजनीति पर राज किया और उनकी कई धारणाओं पर विवाद उठा।’ ममता ने शोक संतप्त परिवार के सदस्यों को अपनी संवेदनाएं भेजीं।
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17-11-2012, 10:51 PM | #23 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
करूणानिधि ने ठाकरे के निधन पर दुख जताया
द्रमुक प्रमुख एम. करूणानिधि ने आज शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन पर शोक प्रकट किया। मुंबई की एक यात्रा के दौरान ठाकरे के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए करूणानिधि ने कहा, ‘वह ओबरॉय होटल आए थे, जहां मैं ठहरा हुआ था और लंबी बातचीत हुई। हालांकि हम लोगों के विचारों में भेद था, लेकिन उनके प्रेम और सरलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया।’ करूणानिधि ने कहा कि ठाकरे के लिए उनके राज्य के लोगों के हित ही सर्वोपरि थे। करूणानिधि ने एक शोक संदेश में कहा, ‘मैं ठाकरे परिवार और शिवसेना के मित्रों से गहरा शोक प्रकट करता हूं।’
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17-11-2012, 10:52 PM | #24 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
बाल ठाकरे : मराठी गौरव के प्रतीक
प्रभावशाली संदेश वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र की राजनीतिक मंच पर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया। शिवसेना के 86 वर्षीय प्रमुख को उनके शिवसैनिक भगवान की तरह पूजते थे और उनके विरोधी भी उनके इस कद से पूरी तरह वाकिफ थे। अपने हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने वाले ठाकरे अपने मित्रों और विरोधियों को हमेशा यह मौका देते रहे कि वह उन्हें राजनीतिक रूप से कम करके आंकें ताकि वह अपने इरादों को सफाई से अंजाम दे सकें। वह अकसर खुद बड़ी जिम्मेदारी लेने की बजाय किंगमेकर बनना ज्यादा पसंद करते थे। कुछ के लिए महाराष्ट्र का यह शेर अपने आप में एक सांस्कृतिक आदर्श था। अपनी उंगली के एक इशारे से देश की वित्तीय राजधानी की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल ठाकरे ने आर के लक्ष्मण के साथ अंग्रेजी दैनिक फ्री प्रेस जर्नल में 1950 के दशक के अंत में कार्टूनिस्ट के तौर पर अपना कॅरियर शुरू किया था, लेकिन 1960 में उन्होंने कार्टून साप्ताहिक ‘मार्मिक’ की शुरूआत करके एक नये रास्ते की तरफ कदम बढाया। इस साप्ताहिक में ऐसी सामग्री हुआ करती थी, जो ‘मराठी मानूस’ में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने का जज्बा भर देती थी और इसी से शहर में प्रवासियों की बढती संख्या को लेकर आवाज बुलंद की गई।
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17-11-2012, 10:53 PM | #25 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
ठाकरे का मराठी समर्थक मंत्र काम कर गया और उनकी यह बात कि ‘महाराष्ट्र मराठियों का है,’ स्थानीय लोगों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि उनकी पार्टी ने वर्ष 2007 में भाजपा के साथ पुराना गठबंधन होने के बावजूद राष्ट्रपति के चुनाव में अपनी एक अलग राय बनाई और संप्रग की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया, जो महाराष्ट्र से थीं। उन्होंने वर्ष 2009 में सचिन तेंदुलकर की आलोचना कर डाली, जिन्होंने कहा था कि मुंबई पूरे भारत की है। ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और उसके बाद मराठियों की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली। उन्होंने मराठियों के लिए नौकरी की सुरक्षा मांगी, जिन्हें गुजरात और दक्षिण भारत के लोगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था। 23 जनवरी 1926 को जन्मे बाल केशव सीताराम ठाकरे की चार संतानों में दूसरे थे। उनके पिता लेखक थे और मराठी भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करने वाले आंदोलन ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। खुद को अडोल्फ हिटलर का प्रशंसक बताने वाले बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र में मराठियों की एक ऐसी सेना बनाई, जिनका इस्तेमाल वह विभिन्न कपड़ा मिलों और अन्य औद्योगिक इकाइयों में मराठियों को नौकरियां आदि दिलाने में किया करते थे। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बना दिया। हालांकि ठाकरे ने खुद कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन शिवसेना को एक पूर्ण राजनीतिक दल बनाने के बीज बोए जब उनके शिव सैनिकों ने बॉलीवुड सहित विभिन्न उद्योगों में मजदूर संगठनों पर नियंत्रण करना शुरू किया।
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17-11-2012, 10:54 PM | #26 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
शिवसेना ने जल्द ही अपनी जड़ें जमा लीं और 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहनमुंबई नगर निगम पर कब्जा कर लिया। भाजपा के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। वह खुद कहते थे कि वह ‘रिमोट कंट्रोल’ से सरकार चलाते हैं। हालांकि उन्होंने मुख्यमंत्री का पद कभी नहीं संभाला। बहुत से लोगों का मानना है कि 1993 के मुंबई विस्फोटों के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में शिव सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके चलते सेना-भाजपा गठबंधन को हिंदू वोट जुटाने में मदद मिली। ‘मराठी मानूस’ की नब्ज को बहुत अच्छी तरह समझने का हुनर रखने वाले बाल ठाकरे इस कहावत के पक्के समर्थक थे कि ज्यादा करीबी से असम्मान पनपता है और इसीलिए उन्होंने सदा खुद को सर्वश्रेष्ठ बताया। अपने समर्थकों से ज्यादा घुलना मिलना और करीबी उन्हें पसंद नहीं थी और वह अपने बेहद सुरक्षा वाले आवास ‘मातोश्री’ की बालकनी से अपने समर्थकों को ‘दर्शन’ दिया करते थे। प्रसिद्ध दशहरा रैलियों में उनके जोशीले भाषण सुनने लाखों की भीड़ उमड़ती थी। पाकिस्तान और मुस्लिम समुदाय को अकसर निशाने पर रखने वाले बाल ठाकरे ने एक बार मुस्लिम समुदाय को ‘कैंसर’ तक कह डाला था। उन्होंने कहा था, ‘इस्लामी आतंकवाद बढ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका जवाब देने का एकमात्र तरीका है। हमें भारत और हिंदुओं को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।’ बाघ की विविध छवियों के साथ सिंहासन पर बैठने वाले ठाकरे वर्षों तक महाराष्ट्र की राजनीति पर छाए रहे। उनके पास कोई पद या ओहदा नहीं था, लेकिन उनके प्रभाव का यह आलम था कि मातोश्री ने राजनीतिक नेताओं से लेकर, फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों और उद्योग जगत की दिग्गज हस्तियों की अगवानी की।
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17-11-2012, 10:54 PM | #27 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
ठाकरे अपने गैर परंपरागत खयालात के लिए पसंद किए जाते थे। हालांकि इस दौरान उन्हें कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। 11 दिसंबर 1999 से 10 दिसंबर 2005 के बीच उनके मताधिकार पर रोक लगा दी गई क्योंकि उन्होंने लोगों से सांप्रदायिक आधार पर वोट देने की अपील की थी, जिसके बाद उच्च न्यायालय के आदेश और चुनाव आयोग की अधिसूचना के द्वारा उनपर यह रोक लगाई गई। अपने प्रवासी विरोधी विचारों के कारण ठाकरे को हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। उन्होंने बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए ‘बोझ’ बताकर खासा विवाद खड़ा कर दिया था। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वह प्रशंसक थे। ठाकरे की पार्टी को 1991 में बड़ा झटका लगा जब छगन भुजबल ने बाल ठाकरे द्वारा मंडल आयोग रिपोर्ट का विरोध करने के विरोध में पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। ठाकरे को उस समय व्यक्तिगत आघात लगा, जब उनकी पत्नी मीना की 1995 में मौत हो गई। अगले ही वर्ष ठाकरे के सबसे बड़े पुत्र बिंदुमाधव की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। उन्हें 2005 में अपने जीवन का सबसे बड़ा झटका लगा जब उनके भतीजे राज ने शिवसेना को छोड़ दिया और 2006 में अपनी राजनीतिक पार्टी एमएनएस बना ली। इस घटना ने शिवसेना-भाजपा के दोबारा सत्ता में लौटने की उम्मीदों को भी कमजोर कर दिया। ठाकरे की सेहत पिछले कुछ समय से ठीक नहीं थी। 24 अक्तूबर को दशहरा रैली में ‘शेर की दहाड़’ सुनाई नहीं दी। उन्होंने वीडियो रिकार्डेड भाषण के जरिए अपने समर्थकों को संबोधित किया और सार्वजनिक जीवन से सन्यास का ऐलान किया। उनहोंने अपने समर्थकों से उनके पुत्र उद्धव और पोते आदित्य का साथ देने का आग्रह किया और इसके साथ ही शिवसेना के उत्तराधिकार की बेल को सींच दिया।
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17-11-2012, 10:55 PM | #28 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
राज के जाने पर ठाकरे ने कहा था, ‘धृतराष्ट्र नहीं हूं’
‘मैं भले ही काला चश्मा पहनता हूं, पर मैं धृतराष्ट्र नहीं हूं।’ शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने यह बात उस समय कही थी, जब 2005 में शिवसेना में उपजी कलह के बाद उनके भतीजे राज ठाकरे पार्टी छोड़कर चले गए थे और लोगों ने उन्हें धृतराष्ट्र की संज्ञा दी थी। शिव सेना के मुखपत्र ‘सामना’ में छपे एक इंटरव्यू में बाल ठाकरे से पूछा गया-पार्टी की इस कलह में आपको धृतराष्ट्र कहा जा रहा है-तो उन्होंने कहा, ‘भले ही मैं काला चश्मा पहनता हूं, मैं महाभारत का धृतराष्ट्र नहीं हूं।’ धृतराष्ट्र पौराणिक कथा महाभारत का नेत्रहीन राजा था और कौरवों का पिता था। राज के पार्टी छोड़कर चले जाने पर ठाकरे ने जोर देकर कहा था कि उसके जाने से वह दुखी नहीं हैं, लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने कहा कि जो पार्टी छोड़कर गए हैं, उन्हें लौट आना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘मैं दुखी और स्तब्ध हूं। मुझे राज से यह उम्मीद नहीं थी। मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि राज इस तरह का काम करेगा।’ उनका कहना था, ‘‘राज जो चाहता है, मैं और उद्धव वैसा करने को तैयार हैं। मैं नहीं कह सकता कि कौन से ‘गुरू’ ने उसे सलाह दी और उसके दिमाग में जहर भर दिया।’ ठाकरे ने कहा कि शिव सेना को चलाने वाला वही था। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने राज से कहा है कि वह और उद्धव मिलकर बैठें और इसपर विचार करें।’ 86 वर्षीय ठाकरे का कुछ दिन की बीमारी के बाद आज अपराह्न साढे तीन बजे उपनगरीय बांद्रा स्थित उनके आवास ‘मातोश्री’ में निधन हो गया।
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18-11-2012, 09:30 PM | #29 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
हेमा मालिनी ने स्थगित की जया स्मृति
दिग्गज बॉलीवुड अदाकारा और नृत्यांगना हेमा मालिनी ने दिवंगत शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के सम्मान में अपना वार्षिक नृत्य महोत्सव स्थगित कर दिया है । ठाकरे का कल निधन हो गया । अपनी माता जया चक्रवर्ती की स्मृति में 64 साल की अदाकारा 2010 से हर साल जया स्मृति का आयोजन करती हैं जिन्होंने उन्हें भरतनाट्यम के लिये प्रेरित किया । मालिनी ने शुक्रवार को यहां नेहरू केंद्र में समारोह का उद्घाटन किया लेकिन ठाकरे की शनिवार को हुए निधन के बाद अगला दो दिन स्थगित कर दिया । अदाकारा ने ट्विट किया, ‘श्री बाल ठाकरे के दुखद निधन के कारण जया स्मृति 17 और 18 नवंबर को स्थगित रहेगा । मुझे उम्मीद है कि आप सभी मुझे चाहने वाले इस स्थिति में मेरे साथ खड़े होंगे ।’
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 19-11-2012 at 01:17 AM. |
18-11-2012, 09:52 PM | #30 |
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Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
ठाकरे को भावभीनी विदाई, महानगर बंद रहा
हिंदुत्ववादी नेता और मराठी स्वाभिमान के झंडाबरदार बाल ठाकरे आज पंचतत्व में विलीन हो गए । उनको लाखों लोगों ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से भावभीनी विदाई दी जबकि महानगर लगभग बंद रहा । ठाकरे के बांद्रा स्थित घर ‘मातोश्री’ से शिवाजी पार्क की सड़क पर उनकी अंतिम झलक पाने के लिए लाखों लोग सड़कों पर उमड़ पड़े । उनकी मौत पर आज मुंबई लगभग बंद रही और बड़े-बड़े मॉल से लेकर छोटी चाय की दुकानें और ‘पान बीड़ी’ की दुकानें भी बंद रहीं । शव यात्रा के दौरान ‘परत या परत या बालासाहेब परत या (लौट आओ, लौट आओ, बालासाहेब लौट आओ), कौन आला रे, कौन आला शिवसेनेचा वाघ आला (कौन आया, कौन आया, शिवसेना का बाघ आया) और ‘बाला साहेब अमर रहे’ के नारे लगते रहे । उनके सबसे छोटे बेटे और शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ने मुखग्नि दी। उनकी शव यात्रा में कई नेता (जिसमें सहयोगी से लेकर विपक्षी तक शामिल थे), फिल्म अभिनेता से उद्योगपति तक शामिल हुए । शव यात्रा के दौरान लंबे समय तक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और मित्र रहे शरद पवार, भाजपा प्रमुख नितिन गडकरी, लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल और राजीव शुक्ला उपस्थित रहे । शिवसेना के पूर्व नेता छगन भुजबल और शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए संजय निरूपम भी वहां मौजूद रहे । ठाकरे ने महाराष्ट्र की कई पीढियों का नेतृत्व किया था । सरकार ने शिवाजी पार्क में उनके अंतिम संस्कार करने को मंजूरी दी जो पहले इस तरह की किसी घटना का स्थान नहीं रहा । उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया जो 1920 में बाल गंगाधर तिलक को दिए गए सम्मान के बाद पहला सार्वजनिक अंतिम संस्कार था। शिवसेना के संरक्षक के शव पर राज्यपाल के. शंकरनारायणन और मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने पुष्पचक्र अर्पित किया । मुंबई पुलिस के एक दस्ते ने उन्हें बंदूक की सलामी दी । यह सम्मान बिना आधिकारिक पद वाले किसी व्यक्ति को विरले ही मिलता है । पूरी मुंबई में सन्नाटा छाया रहा और कोई भी टैक्सी या आॅटोरिक्शा नहीं दिखा । बाजार, रेस्त्रां, सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स बंद रहे । बांद्रा-शिवाजी पार्क मार्ग शिवसेना समर्थकों के नारे से गुंजायमान रहा । बाला साहेब की अंतिम यात्रा जैसे ही ‘मातोश्री’ से शुरू हुई उनके बेटे उद्धव भावनाओं को काबू नहीं कर सके और विलाप करने लगे । जिस ट्रक में ठाकरे को ले जाया गया उसमें उद्धव के अलावा उनकी पत्नी रश्मि और बेटे तेजस तथा आदित्य सवार थे । ट्रक पर उनके भतीजे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे सवार नहीं हुए और शोक संतप्त लोगों के साथ पैदल चले । इसके बाद वह शिवाजी पार्क में अंतिम संस्कार की व्यवस्था के लिए चले गए । जुलूस जैसे ही ‘शिवसेना भवन’ की तरफ बढा हजारों लोग सड़कों, घरों की बालकनी और फ्लाईओवर पर कतारबद्ध हो गए । उनकी एक झलक पाने के लिए लोग लैम्पपोस्ट के खंभों और वृक्षों पर चढ गए । कई लोगों ने उन पर फूल बरसाए । ‘मातोश्री’ और शिवाजी पार्क के बीच दस किलोमीटर की दूरी तय करने में शव यात्रा को करीब आठ घंटे लगे । शव यात्रा थोड़े वक्त के लिए ‘शिवसेना भवन’ में रूकी जिसे ठाकरे ने 1977 में बनवाया था जहां उनके शव को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा श्रद्धांजलि देने के लिए रखा गया था । यह सेना के आम कार्यकर्ताओं के लिए नहीं था । दशहरा रैली के दौरान ठाकरे जिस स्थान से शिवसेना के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते थे उसी जगह उनकी चिता सजाई गई । इसी जगह से 19 जून 1966 को पार्टी की शुरुआत करने के बाद उन्होंने अपने समर्थकों को अपना पहला भाषण दिया था । ठाकरे की जिंदगी बचाने का प्रयास करने वाले और कई वर्षों से उनकी देखभाल करने वाले चिकित्सकों ने उन्हें सर्वप्रथम श्रद्धांजलि अर्पित की । अंतिम संस्कार करने से पहले स्टेज पर लाल तिलक और उनका ट्रेडमार्क काला चश्मा रखा गया था । ठाकरे का नौकर थापा उद्धव और राज के साथ खड़ा था । ठाकरे के भतीजे और शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले राज ठाकरे की आंखें चिता को मुखाग्नि देते वक्त नम हो गईं । मनसे नेता ठाकरे की बीमारी के दौरान अकसर ‘मातोश्री’ जाते थे । वह उद्धव को भी अस्पताल लेकर गए और उनकी दो बार हुई एंजियोप्लास्टी के दौरान मौजूद रहे । समकालीन महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेता ठाकरे का कल निधन हो गया था । वह सांस और अग्नाशय की बीमारी से पीड़ित थे । आर. के. लक्ष्मण के साथ अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के तौर पर सफर शुरू करने वाले ठाकरे ने मराठी युवकों को जागरूक किया । उस वक्त गुजराती, दक्षिण भारतीय, मारवाड़ी और पारसी सहित बाहरी लोग व्यवसाय और नौकरी में बहुलता में थे । उस वक्त ठाकरे ने ‘धरती पुत्र’ का नारा दिया था । ठाकरे के समर्थकों ने जहां उनकी पूजा की, वहीं उनको पसंद नहीं करने वालों ने विभाजनकारी राजनीति को लेकर उनकी कड़ी आलोचना की । ठाकरे ने कभी चुनाव नहीं लड़ा लेकिन करीब आधी सदी तक राज्य की राजनीति में बिना किसी पद पर रहे हमेशा प्रबल बने रहे । अधिकतर वक्त वह ‘मातोश्री’ में रहे जहां वह राजनीतिक नेताओं, विदेश हस्तियों, फिल्म अभिनेताओं और उद्योगपतियों से मुलाकात करते थे । क्षेत्रीय राजनीति के मुद्दों पर उनकी पार्टी 1995 में भाजपा के साथ गठबंधन में सत्ता में आई, लेकिन अगले चुनाव में उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई । बहरहाल, उनकी पार्टी वित्तीय राजधानी के सबसे धनी निकाय बृहन्मुंबई नगर निगम पर काबिज रही।
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