21-05-2011, 05:57 PM | #21 |
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Re: अहसास
आज कहु मे एक छोटी कहानि . बात है कुछ सालो पूरानी. था एक लड़का भोला भाला. थि एक लडकी छेल छबीली. शरू हुइ थि जुब् येः कहानी. दोनो ने दी थी खुद को ज़ुबनि चाहे मुषिक्ले आये दिन रात कभी न छोड़ेंगे एक दुजे का साथ मगर इस कहानि ने लिया एक अनजन मोड् अचानक व्हो लड़का चल बसा सब छोड़. उसकि मौत पे कितने हि लोग रोये. अपने कलेजे के टुकड़े को खोये. मगर एक हादसा हुआ यह अजीब. जब लड़के की रूह पोह्ची जन्नत की करीब. उसने अपने कदमो को अन्दर जाने से रोका. खेल यह था कुछ अजब और अनोखा. कहा उस की रूह ने की करुगा में प्रवेश. मगर उससे पहले मुझे देना है एक सन्देश. ओह मेरी प्यारी चाहे दिन हो या रात. हमने कही थे एक दूजे को यह बात. "एक वादा था तेरे हर वादे के पीछे... तू मिलेगी मुझे हर दरवाजे के पीछे... पर तू मुझे रुसवा करगयी .... एक तू ही न थी मेरे जनाज़े के पीछे." तभी अचानक आयी पहचानी एक आवाज़. कोई नहीं समजा इस गूँज का यह राज़. किया था जो लड़के ने उससे यह सवाल. मिला उसे एक जवाब कुछ इस हाल. "एक वादा था मेरा हर वादे के पीछे... मै मिलूंगी तुजे हर दरवाजे के पीछे... पर तुने ही मुड़के ही न देखा... एक और जनाज़ा था तेरे जनाज़े के पीछे." दिया था जिसने उस लड़के के सवाल का जवाब. व्हो थी उस लड़की की मोहब्बत बे-हिसाब. चली आये काटे व्हो जीवन की डोर. जब उसका आशिक चला था उसे छोड़. यही तो नहीं पूरी होती मोहब्बत की ये बात. यह अंत नहीं है हुई है एक शरूवात. सुच्चे प्यार को कोई सीमा, पहरे, दीवार और भगवान् भी नहीं रोकता
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21-05-2011, 06:04 PM | #22 |
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Re: अहसास
अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं
अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं जाने कब पी थी अभी तक है मए-ग़म का ख़ुमार धुंधला धुंधला सा नज़र आता है जहाने बेदार आंधियां चल्ती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार आंख तो मल लूं, ज़रा होश में आ लूं तो चलूं वो मेरा सहर वो एजाज़ कहां है लाना मेरी खोई हुई आवाज़ कहां है लाना मेरा टूटा हुआ साज़ कहां है लाना एक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूं तो चलूं मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल उफ़ वह रंगीं पुर-असरार ख़यालों के महल ऐसे दो चार महल और बना लूं तो चलूं मेरी आंखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर ऐसे वहमों से ख़ुद को निकालूं तो चलूं
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09-06-2011, 01:48 PM | #23 |
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Re: अहसास
Kissi khush nigah si aankh ney
Yeh kamaal mujh pey karam kia Meri loh e jaan pey raqam kia Woh jo ek chand sa harf tha, woh jo ek shaam sa naam tha Woh jo ek phool si baat phirti thi dar ba dar Ussey gulistaan ka pata dia Mera dil key sheher e malaal tha, Ussey roshni mey basaa diya Meri aankh aur merey khuwaab ko Kissi ek pal mey behem kia Merey aainoun pey jo gard thi, Mah o saal ki, woh utar gai Woh jo dhund thi merey chaar soo Woh bikhar gai Sabhi roop aks jamaal key Sabhi khuwaab shaam wisaal key Jo ghubaar e wakt mey sar ba sar they uthey huey Woh chamak uthey Woh jo phool raah ki dhool thi Woh mehek uthey Liye saath rang bahaar key Chala mey jo sang bahaar key Kissi dast sha'abada saaz ney Merey naam par merey waastey Meri bey ghari ko panah dia Meri justaju ko nishaan dia Jo yaqeen sey bhi haseen hey mujhey Ek aisa tu ney gumaan dia Woh jo reza reza wajood tha Usey ek nazar mey behem kia Yeh kamaal mujh pey karam kia
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09-06-2011, 02:21 PM | #24 |
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Re: अहसास
Ho gayi hai peer parvat si pighalni chaahiye
Is Himalay se koi Ganga nikalni chaahiye Aaj ye deewaar pardo ki tarah hilne lagi Shart lekin thi ke ye buniyaad hilni chaahiye Har sadak par har gali mein har nagar har gaanv mein Haath lahraate huye har laash chalni chaahiye Sirf hungaama khada karna mera maksad nahi Saari koshish hai ke ye soorat badalni chaahiye Mere seene mein nahi to tere seene mein sahi Ho kahin bhi aag lekin aag jalni chaahiye
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10-06-2011, 12:16 AM | #25 |
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Re: अहसास
तुम्हे हमसे मुहब्बत है, खुदा की यह सौगात है
ना मेरी इतनी जुर्रत है, और ना ही औकात है
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
22-06-2011, 06:42 PM | #26 |
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Re: अहसास
क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत घर-प्रेम और जाति से अलग एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन के बारे में बता सकते हो तुम । बता सकते हो सदियों से अपना घर तलाशती एक बेचैन स्त्री को उसके घर का पता । क्या तुम जानते हो अपनी कल्पना में किस तरह एक ही समय में स्वंय को स्थापित और निर्वासित करती है एक स्त्री । सपनों में भागती एक स्त्री का पीछा करते कभी देखा है तुमने उसे रिश्तो के कुरुक्षेत्र में अपने...आपसे लड़ते । तन के भूगोल से परे एक स्त्री के मन की गाँठे खोलकर कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर का खौलता इतिहास पढ़ा है कभी उसकी चुप्पी की दहलीज़ पर बैठ शब्दो की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को । उसके अंदर वंशबीज बोते क्या तुमने कभी महसूसा है उसकी फैलती जड़ो को अपने भीतर । क्या तुम जानते हो एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण बता सकते हो तुम एक स्त्री को स्त्री-दृष्टि से देखते उसके स्त्रीत्व की परिभाषा अगर नहीं तो फिर जानते क्या हो तुम रसोई और बिस्तर के गणित से परे एक स्त्री के बारे में....।
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11-08-2011, 07:35 PM | #27 |
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Re: अहसास
प्यार ने पूछा ज़िन्दगी क्या है?
हमने कहा तेरे बिन कुछ नहीं. उसने फिर पूछा दर्द क्या है? हमने कहा जब तू संग नहीं. प्यार ने पूछा मोहब्बत कहा है? हमने कहा मेरे दिल में कही. उसने फिर पूछा खुदा कहा है? हमने ने कहा तुझमे कही. प्यार ने पूछा हमसे इश्क क्यों है? हमने कहा उसको भी पता नहीं उसने फिर पूछा इतनी बेचैनी क्यों है? हमने कहा इसमें कसूर मेरा नहीं. प्यार ने पूछा एतबार करोगे मेरा ? हमने कहा तुमसे बढकर कोई नहीं. उसने फिर पूछा साथ दोगे मेरा ? हमने कहा क्यों नहीं क्यों नहीं!!…
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02-08-2012, 11:22 AM | #28 |
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Re: अहसास
अब तो इतनी भी नहीं मिलती मैखाने में,
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।
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02-08-2012, 11:24 AM | #29 |
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Re: अहसास
जो बन जाते हैं आदत के ग़ुलाम,
चलते रहते हैं रोज़ उन्*हीं राहों पर, बदलती नहीं जिनकी कभी रफ़्तार, जो अपने कपड़ों के रंग बदलने का जोखिम नहीं उठाते, और बातें नहीं करते अनजान लोगों से, वे मरते हैं धीमी मौत।
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02-08-2012, 11:27 AM | #30 |
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Re: अहसास
उठा सके आदमी तो पहले नजर से अपनी नकाब उठाए,
जमाने भर की तजल्लियों से नकाब उल्टी हुई मिलेगी।
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