26-11-2012, 01:00 AM | #21 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
तो क्या मैं मान लूं कि 6 दिसम्बर 1992 को हुआ था, अयोध्या में जिन्होंने किया था वह तुलसीदास वगैरह से बड़े रामभक्त थे। मन नहीं मानता, बहुत बुरा लगता है। 6 दिसम्बर 1992 को यह घटना हुई थी और 12 अक्टूबर 1992 को हमने सरयू के किनारे एक बड़ी रैली की थी। अब उसमें हमने वहां एक अपील की थी संस्कृति की रक्षा का मतलब होता है हमारा अच्छा-बुरा जो भी है, हम उसको सुरक्षित रखें। इतिहास का मतलब भी होता है अगर अच्छा या बुरा जो भी इतिहास हमारी धरती का है उसे हम सुरक्षित रखें, क्योंकि बुरे इतिहास को सुरक्षित रखते हैं तो आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा मिलती है, सबक मिलता है कि अगर किसी ने नालायकी की है तो ऐसी नालायकी दूसरा न करे। जब अच्छा इतिहास देखते हैं तो उससे प्रेरणा मिलती है आगे बढ़ने की और कुछ अच्छा करने की।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
26-11-2012, 01:01 AM | #22 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
मैं आपको सच बता रहा हूं निर्मल खत्री, जो वहां से ससंद सदस्य रहे कई बार, इस समय भी हैं, वह मेरे साथ थे। वहां छोटी और बड़ी मस्जिद के दोनों इमाम और सारे मंदिरों के साधु-संतों ने आकर हमारा स्वागत किया। यह होता है विवेक की बात का असर, लेकिन उसे साहस जैसा कहना चाहिये, तो बहरहाल यह दोनों परंपराएं साथ-साथ चलती हैं। इसीलिये अब उन परंपराओं को संक्षिप्त करते हुए खाली नाम ले लूंगा, क्योंकि जवाहरलाल नेहरू के प्रसंग से जिन ग्रंथों का मैंने नाम लिया, अब एक परंपरा है, तब नहीं थी। राम थे तो रावण भी थे, कंस भी थे, दुर्योधन भी थे, गजनी, गौरी, बाबर सब थे। बाबर का नाम मैं इसलिये ले रहा हूं कि जो बाहर से हमला करके आया वह हुआ पराया और यहां बस गया हो गया अपना। अगर यह अंतर नहीं करेंगे तो सारे संसार का इतिहास बदलना पड़ेगा। खाली भारत का ही नहीं, संसार का इतिहास बदलना पड़ेगा।
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26-11-2012, 01:01 AM | #23 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
वे मुसलमान थे लेकिन नाम हिंदू थे
आज सब भौतिक है, आप सब विश्लेषण करके सही निष्कर्ष करके निकाल सकते हैं, इसलिये मैं कह रहा हूं। नहीं तो सारे इतिहास बदलने पड़ेंगे। फिर दोनों में अंतर करना सीखना होगा तो फिर दूसरी तरफ राम, विष्णु, शिव, बुद्ध, महावीरजी, हजरत मोहम्मद, ईसा, शंकाराचार्य, अकबर, दारा शिकोह, बहादुरशाह जफर, मौलाना आजाद जैसे बाकी सारे लोग भी हैं। क्षुद्र और महान परंपरा के नाम सबके बीच में से मिलते हैं, आप वहां भेदभाव नहीं कर सकते। यह जिस दिन आप समझ लेंगे, उस दिन आपकी सद्भावना बन जाएगी। जिन्होंने भक्ति की, कृष्ण भक्ति की, सारी भारतीय संस्कृति, यहां की लोकगाथाओं और उनकी रचनाएं कीं अमीर खुसरो, कबीर, जय सिंह, रहीम, रसखान और तमाम संत और फकीर, इनमें से एक भी हिंदू नहीं था, सब मुसलमान थे। इनके नाम हिंदू थे। इनके नाम हिंदू हैं, यह भी महत्वपूर्ण है। तो इसीलिए यह जो बहुत सारी बातें कही जाती हैं उनमें कोई अर्थ नहीं है, उस भ्रम को काटकर सत्य को सामने लाने की आवश्यकता है।
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26-11-2012, 01:02 AM | #24 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
विचित्र हो गई अखबारों की भाषा
अब जो बात होती है, यह साहित्य का जो मामला है, यह भाषा से जुड़ा हुआ है। आज भाषा के मामले में इसके सामने बड़ी दिक्कत है। आज अखबारों की भाषा विचित्र हो गई। बड़े-बड़े प्रतिष्ठित अखबारों में, हिन्दुस्तान जैसा अखबार जिसको गांधीजी ने शुरू किया था। उसमें होता है आज एसओएल में, एसओएल में यह हो रहा है। पहले दिमाग पर जोर डालिए कि यह एसओएल क्या होता है? हिंदी का अखबार पढ़ रहे हैं। स्कूल आॅफ लर्निंग, विभूति नारायणजी, आपके विश्वविद्यालय में तो ऐसा नहीं होता है न? यह जो एसओएल लिख रहे हैं, वह समझते हैं कि भाषा को बहुत आसान बना रहे हैं। मैंने उस अखबार का नाम इसलिए लिया कि इसका जन्म आजादी की लड़ाई के समय हुआ था और बिड़ला जी को हिंदुस्तान टाइम्स गांधीजी ने खरीदवाकर दिया था कि जिससे आजादी की लड़ाई में समर्थन मिले। अब यह सब जानकारियां भी नई पीढ़ी को देना बहुत जरूरी हो गया है।
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26-11-2012, 01:02 AM | #25 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
मैं ऐसे मौकों पर इसलिए कह देता हूं किसी के दिमाग में एक-दो बात रहेगी तो आगे खोजकर कुछ और नया निकाल लेगा। तो अब आजकल यह सारा मामला हो रहा है। अब इस सबसे कैसे निपटा जाए और यह वह देश है जब आजादी वाले दिन यानी 15 अगस्त 1947 को गांधीजी, जो झील के किनारे घूमने गए थे लौटकर आए, 11 बजे सोने चले गए, लेकिन इसी बीच रात को बीबीसी का कोरस्पोंडेंट आया संदेश देने के लिए कि आप अपना संदेश रिकार्ड कराइए। गांधीजी ने कोई संदेश नहीं दिया क्योंकि सवेरे उन्होंने ऐसा कहा था दिन में, कि इस समय मेरे पास कोई संदेश नहीं है। संदेश तो क्योंकि दंगे हो गए थे, बंटवारा हो गया था देश का। गांधीजी आए और कहा भूल जाइए कि कभी मुझे अंग्रेजी आती थी। गांधीजी के यह अंतिम वाक्य थे और उसके बाद फिर वह सोने के लिए चले गए। मैं समझता हूं भाषा के प्रति यह भावना सभी भारतीय भाषाओं के प्रति फिर से पैदा करने की जरूरत है। बड़ी दिक्कत हो गई है। संसद में सभी राजनीतिक पार्टियों में, सारी कमेटियों में, सब जगह आप देखें बड़े-बड़े, मुझे याद है 1967-68 में कभी भारतीय भाषाओं के बारे में दिखाते थे कि हमारे साथ हैं वह, वह सब लोग जोर लगाकर संसद में अंग्रेजी में बोलते हैं, जबकि अनुवाद की व्यवस्था है।
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26-11-2012, 01:02 AM | #26 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
गरीबी पर चर्चा सिर्फ अंग्रेजी में होती है। गरीब जानता ही नहीं है उसके लिए क्या चर्चा हो रही है और सारा समय जिस तरह से बीत रहा है, वह सब आप जानते हैं। अगर हिंदुस्तान अपने फर्ज को भूलता है तो एशिया मर जाएगा और आपको-हमको इस बात पर गर्व होना चाहिए कि जहां पर लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक भावना का प्रश्न है, शायद भारत ही ऐसा देश है जो एशिया में आदर्श कहा जा सकता है। सारी कठिनाइयों के बावजूद और शायद लोकतंत्र अगर इस क्षेत्र में प्रतिष्ठित है और दुनिया के लिए एक प्रेरणा भी है तो वह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था ही है। अगर हिंदुस्तान अपने फर्ज को भूलता है तो एशिया मर जाएगा। यह ठीक ही कहा गया है हिंदुस्तान कई मिली-जुली सभ्यताओं या तहजीबों का घर है, जहां वे साथ-साथ पनपी हैं। हम सब ऐसे काम करें कि हिंदुस्तान एशिया की या दुनिया के किसी भी हिस्से की कुचली और चूसी हुई जातियों की आशा बना रहे। जहां अन्याय हो, वहां भारत को लोग याद करें। मैं समझता हूं इससे बड़ा दौर और कुछ नहीं हो सकता। आप लोगों ने बुलाया, कुछ कहने का मौका दिया, इसके लिए धन्यवाद।
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