22-12-2014, 07:54 PM | #21 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
जब तक आंसू साथ रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे, तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं, देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे, बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारें छूने दो, चार किताबे पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे, किन राहों से दूर है मंजिल कौन सा रास्ता आसान है, हम जब थक कर रुक जायेंगे, औरों को समझायेंगे, अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है, हम तो उस दिन रायें देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे..
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
22-12-2014, 07:54 PM | #22 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
न शिवाले न कालिस न हरम झूठे हैं,
बस यही सच है के तुम झूठे हो हम झूठे हैं, हमने देखा ही नहीं बोलते उनको अब तक, कौन कहता है के पत्थर के सनम झूठे हैं, उनसे मिलिए तो ख़ुशी होती है उनसे मिलकर, शहर के दुसरे लोगों से जो कम झूठे हैं, कुछ तो है बात जो तहरीरों में तासीर नहीं, झूठे फनकार नहीं हैं तो कलम झूठे हैं..
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22-12-2014, 07:55 PM | #23 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
क्या खबर थी इस तरह से वो जुदा हो जाएगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना ख्वाब सा हो जाएगा, ज़िन्दगी थी क़ैद हम-में क्या निकालोगे उसे, मौत जब आ जायेगी तो खुद रिहा हो जाएगा, दोस्त बनकर उसको चाहा ये कभी सोचा न था, दोस्ती ही दोस्ती में वो खुदा हो जाएगा, उसका जलवा होगा क्या जिसका के पर्दा नूर है, जो भी उसको देख लेगा वो फ़िदा हो जाएगा..
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22-12-2014, 07:56 PM | #24 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे,
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे, खतावार समझेगी दुनिया तुझे, के इतनी जियादा सफाई न दे, हंसो आज इतना के इस शोर में, सदा सिसकियों की सुनायी न दे, अभी तो बदन में लहू है बहुत, कलम छीन ले रोशनाई न दे, खुदा ऐसे एहसास का नाम है, रहे सामने और दिखाई न दे..
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22-12-2014, 07:56 PM | #25 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
कभी यूंह भी आ मेरी आँख में,
के मेरी नज़र को खबर न हो, मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उस के बाद सहर न हो, वोह बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे यह सिफत भी अत करे, तुझे भूलने की दुआ करू, तो दुआ में मेरी असर न हो, कभी दिन की धुप में जहम के, कभी शब् के फूल को चूम के, यूंह ही साथ साथ चले सदा, कभी ख़त्म आपना सफ़र न हो, मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ, तुझे धडकनों में बसा लू में, के बिचादने का कभी दार न हो..
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22-12-2014, 07:57 PM | #26 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
धुप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ,
ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ, हँसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख, अपने साथ ये किस्सा क्या है अब मालूम हुआ, हम बरसों के बाद भी उनको अब तक भूल न पाए, दिल से उनका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ, सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले, बादल का इक टुकड़ा क्या है अब मालूम हुआ..
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22-12-2014, 07:58 PM | #27 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
देखा जो आइना तो मुझे सोचना पड़ा,
खुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा, उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा, अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा, मुझको था गुमान के मुझी में है एक अना, देखा तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा, दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है, लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा, इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार, जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा..
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22-12-2014, 07:58 PM | #28 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
देखा जो आइना तो मुझे सोचना पड़ा,
खुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा, उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा, अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा, मुझको था गुमान के मुझी में है एक अना, देखा तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा, दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है, लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा, इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार, जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा..
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22-12-2014, 07:59 PM | #29 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
ऐसे हिज्र के मौसम तब तब आते हैं,
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं, जादू की आँखों से भी देखो दुनिया को, ख़्वाबों का क्या है वो हर सब आते हैं, अब के सफ़र की बात नहीं बाक़ी वरना, हम को बुलाएं दस्त से जब वो आते हैं, कागज़ की कस्थी में दरिया पार किया, देखो हम को क्या क्या करतब आते हैं..
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22-12-2014, 07:59 PM | #30 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
ना मुहब्बत ना दोस्ती के लिए,
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए, दिल को अपने सज़ा न दे यूं ही, सोच ले आज दो घडी के लिए, हर कोई प्यार ढूढता है यहाँ, अपनी तन्हा सी ज़िंदगी के लिए, वक़्त के साथ साथ चलता रहे, यही बेहतर है आदमी के लिए..
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