13-06-2012, 04:07 AM | #21 |
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Re: मीडिया स्कैन
अफगानिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कई स्तरों पर हैं। इसलिए भी हमारी विदेश नीति के एजेंडे पर अमेरिकी हावी रहते हैं। दरअसल पूरे अफगान मामले में कई खिलाड़ी एक साथ शामिल हैं। इनकी राहें जुदा-जुदा हैं पर चाल लगभग एक समान। हाल ही में एक बैठक हुई जिसमें अफगानिस्तान में नाटो फौज के कमांडर और पाकिस्तान व हिन्दुस्तान के आर्मी चीफ शामिल हुए। इसमें सरहद पर अमन-चैन को पुख्ता करने पर जोर डाला गया। दोनों तरफ के नुमाइंदे इस बात को जानते-समझते हैं कि सरहदी इलाकों में आपसी तालमेल की सख्त जरूरत है क्योंकि इन इलाकों में अक्सर जंग जैसा माहौल बना रहता है जिससे दोनों ही तरफ गलतफहमियां पैदा होती हैं। बहरहाल यह गुफ्तगू फौज से फौज की रही। वैसे यह गुफ्तगू इस लिहाज से बिल्कुल अलग कही जा सकती है कि इसके कामकाज का तरीका कूटनीतिक नहीं बल्कि उससे काफी अलग था। उसमें तो मैदान-ए-जंग की हकीकत पर तब बहस होती है जब कोई गलती कर बैठता है। जैसे पिछले साल नवम्बर महीने में अमेरिकी फौज से गलती हुई थी। यही नहीं कूटनीतिक नक्शे पर बहुत कुछ साफ-साफ नहीं दिखता। पल भर में जंग जैसा माहौल बन जाता है। -द न्यूज पाकिस्तान का प्रमुख अखबार
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13-06-2012, 04:11 AM | #22 |
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Re: मीडिया स्कैन
सीरिया में असद हुकूमत की हताशा
सीरिया के दर्द का कोई भी इलाज कारगर साबित होता नहीं दिख रहा। वहां के हालात बदतर होते जा रहे हैं। जिस तरह से हौला शहर में फौज ने 108 लोगों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया वह असद हुकूमत की हताशा का परिचायक है। यह हुकूमत इसी तरह के जालिमाना कदमों के जरिए अपनी सत्ता बनाए रखना चाहती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि असद सरकार ने हौला नरसंहार में अपनी किसी भूमिका से इनकार किया है और राष्ट्रपति असद के समर्थकों ने इस कांड का दोष विपक्ष के सिर मढ़ा है लेकिन कोई भी दलील इस हकीकत को झुठला नहीं सकती कि सरकार ने एक बार फिर अपने ही लोगों का कत्लेआम करवाया है। होम्स और अन्य शहरों में सैकड़ों सीरियाई नागरिक फौजी हमले के शिकार बन चुके हैं। ऐसे में यकीन ही नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रपति असद बिल्कुल मासूम और बेगुनाह हैं। जिन मुल्कों को सीरियाई अवाम की तकलीफों से कोई वास्ता है उनसे वहां के हालात की अब यही मांग है कि असद हुकूमत के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। - द डेली स्टार बांग्लादेश का प्रमुख अखबार
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14-06-2012, 11:04 AM | #23 |
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Re: मीडिया स्कैन
पेनेटा और पाकिस्तान
अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों में पैबंद की कवायदें जारी हैं, पर इसका मतलब यह नहीं कि अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पेनेटा के उन भड़काऊ बयानों को सही ठहराया जाए, जो उन्होंने हाल ही में पाकिस्तान के मामले में दूसरे मुल्कों की राजधानियों में दिए हैं। उन्होंने काबुल में कहा कि अमेरिका अपने सब्र की हद तक पहुंच चुका है। दरअसल उन्होंने पाकिस्तान के कबायली इलाकों में दहशतगर्दों के महफूज ठिकानों के मद्दे-नजर बयान दिया। नई दिल्ली वह जगह नहीं थी, जहां अमेरिका-पाकिस्तान तनाव पर चर्चा हो या आपरेशन ओसामा की जानकारी पाकिस्तान से छिपाने पर मजाक किया जाए। वह भी तब, जब हिन्दुस्तान को एशिया में नई अमेरिकी फौजी कूटनीति का अहम साझीदार बताया जा रहा हो। पेनेटा ने जिस तरह के अल्फाज इस्तेमाल किए और इसके लिए जिन ठिकानों को चुना, उनसे हमारी फौज में अमेरिका विरोधी तल्खी बढ़ेगी। पेनेटा के गलत जगह गलत बयानों ने कट्टरपंथी जमातों की हिन्दुस्तानी-अमेरिकी मुखालफत के लिए चारा का काम किया है। अब इस सबसे यह मुश्किल हो जाएगा कि पाकिस्तानी हुकूमत अमेरिका की मदद करे। -डॉन पाकिस्तान का प्रमुख अखबार
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17-06-2012, 10:39 AM | #24 |
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Re: मीडिया स्कैन
विज्ञान से बढ़ती दूरी
जहां चीन, भारत और दूसरे देश आर्थिक प्रगति व अनुसंधानों में निवेश क्षमता को बढ़ा रहे हैं, वहीं इन मामलों में यूरोप ढलान पर है। दरअसल हाल के वर्षों में यूरोप ने विज्ञान आधारित अपनी ताकत की लगातार उपेक्षा की है, जबकि यह शक्ति उसकी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रही है और उसने उसकी पहचान गढ़ी है। बहरहाल यह जानने के लिए कि विज्ञान यूरोप के लिए क्या कर सकता है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि वह यूरोप के लिए क्या नहीं कर सकता यानी यह ऐसे परिणाम नहीं दे सकता, जिससे तत्काल कमाई की जा सके। दरअसल आधुनिक शोधों के अगुवा अब नए तरीके से काम कर रहे हैं। जाहिर है इसके लिए नए हुनर व ज्ञान की जरूरत है, जो समाज में व्याप्त होकर उत्पादन और सेवाओं में गुणात्मक सुधार ला सके। विज्ञान मानव समाज की एकमात्र ऐसी चीज है, जिसमें एक काल को दिशा देने की क्षमता है। क्षणभंगुर भविष्य में भी भरोसा पैदा करता है विज्ञान। आधुनिक विज्ञान की शुरुआत 300 साल पहले यूरोप में ही हुई थी। तब इस क्षेत्र में बहुत कम लोग थे। संभवत हजार से ज्यादा नहीं थे, जब वैज्ञानिक क्रांति चरम पर थी। आज उसी यूरोप की यह स्थिति सोचनीय है। -शंघाई डेली चीन का प्रमुख अखबार
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25-06-2012, 07:50 AM | #25 |
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Re: मीडिया स्कैन
एक अफसोसनाक कदम
चुने गए वजीर-ए-आजम को नाकाबिल करार देते हुए शीर्ष अदालत ने न सिर्फ असाधारण बल्कि अफसोसनाक कदम उठाया है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रक्रिया सम्बंधी फैसला दिया होता, तो इस कहानी को ऐसा रूप दिया जा सकता था, जिससे मुल्क में मजबूत हो रही जम्हूरियत की जड़ों को कम से कम नुकसान पहुंचता और न्यायपालिका, पार्लियामेंट तथा कार्यपालिका टकराव के जिस मोड़ पर खड़ी दिख रही हैं, उससे भी बचा जा सकता। इस मामले में ऐसे कई पड़ाव आए थे, जब अदालत अवमानना के इस मुकदमे को नजरअंदाज कर सकती थी। खासकर इस बात के मद्देनजर वह ऐसा कर सकती थी कि जिस करप्शन के मामले को लेकर वह संजीदा है, वह सदर से बाबस्ता है न कि वजीर-ए-आजम से। कानूनी तौर पर भले ही पीएम के खिलाफ मामला बन रहा हो, पर शीर्ष अदालत के लिए बेहतर यही था कि वह सियासत के पानी में यों गहरे न उतरती। अच्छा होता कि स्पीकर को फैसला लेने दिया जाता। यह मुमकिन नहीं था, तो सुप्रीम कोर्ट स्पीकर के फैसले को नामंजूर करते हुए इसे इलेक्शन कमीशन को भेज सकता था। -द डॉन पाकिस्तान का प्रमुख अखबार
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28-06-2012, 12:56 PM | #26 |
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Re: मीडिया स्कैन
यूरोप का संकट
यूरोपीय संघ के शासक यूरो संकट से छुटकारा पाने के लिए सक्रिय कदम उठा सकते हैं। बॉन्ड बाजार में इस संकट ने भूचाल पैदा कर रखा है। मैक्सिको में जी-20 शिखर सम्मेलन की विज्ञप्ति के मुताबिक यूरोजोन के सदस्य देश सभी जरूरी उपायों को अपना रहे हैं। उधर ग्रीस में एंटोनिस समारास कामचलाऊ गठबंधन बनाकर प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, तो क्या कई हफ्तों की उथल-पुथल के बाद आखिरकार यूरोप की डूबती नैया किनारे लगने लगी है? दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसा नहीं है। जब तक कि यूरोजोन के नीति-नियंता इस क्षणिक राहत को स्थायी रूप नहीं देते, तब तक दुर्दिन की आशंका बनी रहेगी। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि कैसे एकल मुद्रा की ढांचागत गड़बड़ियों से यूरोप को छुटकारा मिले? जी-20 सम्मेलन में भी इसकी धीमी आवाज सुनाई दी। प्रस्ताव यह है कि ग्रीस संकट से यूरो देशों को दूर रखने के लिए 500 बिलियन यूरो राहत पैकेज के तौर पर दिए जाएं। अगले ही हफ्ते ब्रुसेल्स में भी बैठक होने वाली है। दरअसल, निवेशकों को पैबंद से ज्यादा की दरकार है। इसलिए ठोस कदम उठाने ही होंगे। -द इंडिपेंडेंट ब्रिटेन का प्रमुख अखबार
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28-06-2012, 11:15 PM | #27 |
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Re: मीडिया स्कैन
अधर में लटके फैसले
शीर्ष अदालत द्वारा यूसुफ रजा गिलानी को 26 अप्रैल से ही वजीर-ए-आजम के ओहदे के नाकाबिल करार दिए जाने से अजीब हालात पैदा हो गए। 26 अप्रैल से 19 जून के बीच उनके द्वारा लिए गए फैसलों को लेकर अफवाहों और अटकलों का बवंडर खड़ा हो गया था। इस दरम्यान लिए गए तमाम फैसलों को कानून सम्मत बनाने के लिए एक ऑर्डिनेंस लाया गया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के हवाले से कहा गया कि यदि ऑर्डिनेंस के जरिए उन फैसलों को कानूनन जायज नहीं बनाया जाता, तो नए वजीर-ए-आजम राजा परवेज अशरफ के लिए काम करना मुश्किल हो जाता। जहां तक इस ऑर्डिनेंस का सवाल है, इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिससे कोई बवाल पैदा हो सके। अलबत्ता इसके जारी करने के वक्त को लेकर कुछ सवाल उठाए जा सकते हैं। कई कानूनदां पहले से कह रहे हैं कि ऐसे ऑर्डिनेंस को शीर्ष अदालत में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में क्या यह बेहतर नहीं होता कि सरकार अध्यादेश जारी करने से पहले शीर्ष अदालत के तफसील फैसले का इंतजार कर लेती, यह वक्त धैर्य और परिपक्वता दिखाने का है, न कि टकराव मोल लेने का। - द न्यूज पाकिस्तान का प्रमुख अख़बार
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30-06-2012, 03:32 PM | #28 |
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Re: मीडिया स्कैन
मोहम्मद मुर्सी की जीत
मोहम्मद मुर्सी इस बहु-प्रतीक्षित और चर्चित राष्ट्रपति चुनाव के विजेता के तौर पर उभरे। वैसे सबसे घनी आबादी वाले अरब मुल्क में आए इस नतीजे पर किसी को हैरत नहीं हुई। सब जानते थे कि यही होगा। बहरहाल यह मिस्र का पहला फ्री इलेक्शन था और इसमें एक सिविलियन उम्मीदवार की जीत हुई। जाहिर है मुर्सी अब नील नदी की इस पाक जमीन के सबसे बड़े ओहदेदार हैं। उन्हें अहमद शफीक के खिलाफ खड़ा किया गया था। शफीक मुबारक की सरकार में प्रधानमंत्री थे। यही काबिलीयत उनकी बरबादी की वजह बनी। शायद जनता उनके नाम पर इसलिए राजी नहीं हुई, क्योंकि उनका उस तानाशाह से रिश्ता रहा, जिसने तीस साल तक मुल्क पर निरंकुश राज किया। वोटरों ने उन्हें बाहर का दरवाजा दिखा दिया। अरब क्रांति के मामले में मिस्र सूत्रधार की भूमिका में रहा। मुर्सी ने कहा है कि वह मिस्र के सभी लोगों के लिए हुकूमत चलाएंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि वह अपने बयान पर कायम रहेंगे। पश्चिमी दुनिया ने अमेरिका में पढ़े मुर्सी की जीत का स्वागत किया है। हालांकि ज्यादातर हुकूमतें उनके बयान को लेकर चौकन्ना भी हैं। -द पेनिनसुला कतर का प्रमुख अखबार
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03-07-2012, 01:21 AM | #29 |
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Re: मीडिया स्कैन
किसानों के दुश्मन
रासायनिक उर्वरकों की कमी हर साल की समस्या है। इस वर्ष यह कमी विस्फोटक हो गई है। एग्रीकल्चर इनपुट कंपनी (एआईसी) देश में रासायनिक उर्वरकों की आपूर्ति करने वाली अकेली कंपनी है। देर से ही सही, मगर मानसून ने दस्तक दे दी है। यह धान की बुआई का महीना है। अभी मक्का की फसलों को भी रासायनिक खाद की जरूरत होती है, लेकिन दुर्भाग्य से पर्याप्त उर्वरक नहीं है। आकलनों के मुताबिक देश को सात लाख टन उर्वरक की जरूरत है, परंतु एआईसी अब तक महज डेढ़ लाख टन उपलब्ध करा पाई है यानी मांग के मुकाबले आपूर्ति 20 फीसदी है। एआईसी का कहना है कि स्टॉक खत्म हो चुका है। कृषि के लिए आवश्यक चीजें मुहैया न करा पाना वास्तव में सरकार की एक बड़ी नाकामी है। हमारी अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े और सर्वाधिक रोजगार मुहैया कराने वाले क्षेत्र के प्रति सरकार की यह अक्षमता यह बताती है कि क्यों किसान खुद को व्यवस्था में हाशिये पर पाते हैं। पिछले दो साल में भरपूर फसल हुई है, लेकिन अगले एक पखवाड़े में यदि उर्वरकों की कमी दूर नहीं की गई, तो इस साल की खेती बच नहीं पाएगी। -काठमांडू पोस्ट नेपाल का प्रमुख अखबार
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03-07-2012, 03:18 AM | #30 |
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Re: मीडिया स्कैन
कैदियों की रिहाई
एक सराहनीय पहल नाकामी में तब्दील हो गई और पाकिस्तानी फौज व चुनी हुई हुकूमत के रिश्तों को लेकर सवाल पूछे जाने लगे। यहां तक कहा जाने लगा कि जम्हूरी हुकूमत की पहल को एक बार फिर फौज ने बेकार कर दिया है। अगर सरकारी अमले ने साफगोई के साथ यह जाहिर किया होता कि हुकूमत हिन्दुस्तान के किस कैदी को छोड़ने जा रही है और मीडिया ने रिपोर्ट प्रसारित करने से पहले तथ्यों की पड़ताल कर ली होती, तो एक अप्रिय स्थिति से बचा जा सकता था। बहरहाल सरबजीत और सुरजीत की पहचान में घालमेल के पीछे एक अहम मसला है हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की जेलों में ऐसे अनेक कैदी हैं, जो अपनी कैद की सजा काफी पहले पूरी कर चुके हैं या जो मामूली आरोपों में सालों से सलाखों के पीछे हैं। इन बदनसीबों को तब तक आजादी नहीं मिल सकती, जब तक कि दोनों मुल्क ऐसी व्यवस्था पर रजामंद नहीं होते, जो सिर्फ गंभीर अपराधों के मुजरिमों को सजा पूरी होने के बाद कैद में रखने की इजाजत देती हो। -द डॉन पाकिस्तान का प्रमुख अखबार
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