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04-11-2010, 12:27 AM | #1 | |
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बावफा ना सही बेवफा ही सही, दोस्त हो आखिर ,झेल ही लेंगे.
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अच्छा वक्ता बनना है तो अच्छे श्रोता बनो, अच्छा लेखक बनना है तो अच्छे पाठक बनो, अच्छा गुरू बनना है तो अच्छे शिष्य बनो, अच्छा राजा बनना है तो अच्छा नागरिक बनो |
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09-11-2010, 10:25 PM | #2 |
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तुम्हारी अधखुली पलकों में
ये कैसी मदिरा बहती है / तुम्हारे अधखिले अधरों में क्यों गुलाबी धारा बहती है // तुम्हारे 'जय' कपोलों के उभारों की सतह स्निग्ध है कितनी तुम्हारी विस्तृत बाहें क्यों सुखद सी कारा लगती हैं // .................................................. ....... कारा...... जेल
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
20-05-2011, 01:20 AM | #3 |
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Re: छींटे और बौछार
दो एक अपनी बनाई पक्तिया लिखने का सहास कर रहा हूं ।
गम की अन्धेरी रातो मे जिनको छुपा के रखा था दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था दो पल खुशी मे ही अपना ईमान ही खो दिया ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे ……………………………… जय भाई पंक्ति को पूर्ण करे शब्द नही मिल रहे ।
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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20-05-2011, 01:40 AM | #4 | |
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Re: छींटे और बौछार
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दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था दो पल खुशी मे ही अपना ईमान भी खो दिया ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे सजा के रखा था शब्द चयन में त्रुटि हो सकती है अतः अपराध क्षम्य हो बन्धु ............... जय राम जी की //
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20-05-2011, 05:14 PM | #5 | |
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Re: छींटे और बौछार
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यहाँ कुछ उपमा होता तो ज्यादा सटीक लगता जैसे बिन बदल बरसात, जैसे ...................................
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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20-05-2011, 06:41 PM | #6 |
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Re: छींटे और बौछार
नल लगा रखा हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
20-05-2011, 11:52 PM | #7 |
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Re: छींटे और बौछार
उन्हें गुल जब भी देता है , उसे गुलदान मिलता है
नज़र उनसे अगर मिलती, तो थरथर जिस्म हिलता है अज़ब है दास्ताँ उसकी , अज़ब है शख्सियत उसकी है जीने की तमन्ना भी मगर घुट घुट के मरता है बहारों का ये मौसम है, गुल-ओ-गुलज़ार है हर सू मगर उसके ख्यालों में, मरुस्थल ही दहकता है अगर बाजू में आ जाएँ , क़यामत टूट पड़ती 'जय' खुदा जाने न जाने क्यों ,उन्ही पर दिल मचलता है
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21-05-2011, 12:07 AM | #8 | |
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Re: छींटे और बौछार
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सावन का आभास करा गए नयना मेरे उषा से संध्या तक 'जय' यूं सजल रहे पर निशांत तक सूख चुके थे नैना मेरे (अरे भाई सुबह सुबह बिजली की कटौती के कारण पम्प बंद हो गया था .... हा हा हा हा .... )
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21-05-2011, 11:27 AM | #9 |
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Re: छींटे और बौछार
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
20-05-2011, 08:41 AM | #10 |
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Re: छींटे और बौछार
सभी रचनाकार से निवेदन है की अपनी पंक्तियों का पंजीकरण करवा लें/
नहीं तो किसी भी समय प्रीतम की बुरी नजर पड़ सकती है/ |
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