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Old 09-12-2012, 12:09 AM   #21
Dark Saint Alaick
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

बेहतरीन सूत्र। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 09-12-2012, 09:41 AM   #22
Shadow008
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Shadow008 will become famous soon enough
Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

एक भी छायाचित्र नहीं है
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Old 10-12-2012, 10:46 AM   #23
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

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Originally Posted by shadow008 View Post
एक भी छायाचित्र नहीं है
सूत्र भ्रमण के लिए आपका धन्यवाद मित्र .........
शीघ्र ही आवश्यक चित्र भी प्रस्तुत करूँगा !
malethia is offline   Reply With Quote
Old 10-12-2012, 05:35 PM   #24
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

श्लोक (15)
शास्त्रसंग्रहः। त्रिवर्गप्रतिपत्तिः। विद्यासमुद्देशः। नागरकवृत्तम्। नायकसहाय-दूतीकर्मविमर्शः। इति साधारणं प्रथमाधिकरणम् अध्यायाः पञ्ञ। प्रकरणानि पञ्ञ।।
कामसूत्र का अनुबंधन अधिकरण अध्याय और प्रकरण के रूप में किया गया है। पहले अधिकरण का नाम साधारण इस कारण से रखा गया है कि इस अधिकरण में ग्रंथातर्गत- सामान्य विषयों का परिचय है, किसी सिद्धान्त की व्याख्या अथवा तात्विक विवेचन नहीं किया गया है।
पहला प्रकरण, पहला अध्याय- शास्त्र-संग्रह। यहां पर शास्त्र-संग्रह का अर्थ है इस शास्त्र की सूची। ग्रंथ लिखने से पहले लेखक एक विषय सूची तैयार करता है और उसी सूची के द्वारा ग्रंथ की रचना करता है। इसी प्रकार आचार्य वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ की विषय सूची का नाम शास्त्र संग्रह रखा है अर्थात वह संग्रह जिससे यह ग्रंथ शासित हुआ है।
दूसरा प्रकरण, दूसरा अध्याय- त्रिवर्ग प्रतिपात्ति। काम, धर्म और अर्थ यह 3 त्रिवर्ग कहलाए जाते हैं। त्रिवर्ग की प्राप्ति का नाम प्रतिपात्ति है। इस अध्याय और प्रकरण में यह भी बताया गया है कि धर्म, अर्थ और काम को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है।
तीसरा प्रकरण, तीसरा अध्याय- विद्यासमुद्देश। यहां पर सारी विद्याओं की नाम की सूची को विद्या समुद्देश का नाम दिया गया है। इस अध्याय का मुख्य मकसद है कि मानव को स्मृति, श्रुति, अर्थ विद्या और उसकी अंगभूत विद्या दंडनीति के अध्ययन के साथ कामसूत्र का अध्ययन जरूर करना चाहिए। यहां पर विद्याओं की नाम-सूची का अर्थ संभोग की 64 कलाओं से हैं।
चौथा प्राकरण चौथा अध्याय- नागरकवृत। नागरक से काम सूत्रकार का अर्थ विदग्ध अथवा रसिक व्यक्ति से होता है और वृत्त का अर्थ आचरण नहीं बल्कि दिनचर्या समझना चाहिए।
कामसूत्र के मुताबिक मनुष्य का सबसे पहले विद्या पढ़नी चाहिए, फिर अर्थोपार्जन करना चाहिए और इसके बाद विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश करके नागरक वृत्त का आचरण करना चाहिए। कोई भी मनुष्य जब तक कामकलाओं की शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेता है तब तक उसको विवाह करने का कोई हक नहीं है। गृहस्थ जीवन को सही तरीके से चलाने के लिए अर्थ संग्रह जरूरी है। सुशिक्षित, धन-संपन्न मनुष्य ही अपने वैवाहिक जीवन को सही तरीके से चलाने में सक्षम हुआ करता है।
पांचवां प्रकरण, पांचवां अध्याय- नायक सहायदूती- कर्म- विमर्श। आचार्य वात्स्यायन के मतानुसार विवाह से पहले वर्ण धर्म के मुताबिक स्त्री और पुरुष का चुनाव करके प्रेम संबंध स्थापित करना चाहिए। अगर इस तरह के प्रेम संबंधों को स्थापित करने में किसी तरह की रुकावट आती है तो मदद के लिए स्त्री या पुरुष को जरिया बनाना चाहिए। स्त्री-पुरुष किस तरह के संबंध स्थापित करें, किस तरह के व्यक्ति को अपना जरिया बनाएं, इस अध्याय के अंतर्गत इन्ही बातों का उल्लेख किया गया है।
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kamasutra, kamasutra in hindi


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